indian express

तीन नेता, तेरह बोल! एनआरसी न हुआ जादू का तिलिस्म हो गया

इंडियन एक्सप्रेस की आज की पहली ख़बर क्लासिक है। इस ख़बर को बैनर हेडलाइन से पढ़ते हुए आप भीतर के पन्ने पर पहुँचते हैं तो ख़बर ही बदल जाती है। इसलिए बार बार कहता हूँ कि अख़बारों को पढ़ने और चैनलों को देखने का तरीक़ा बदल लें। सभी अख़बार पढ़ते हैं लेकिन सभी को अख़बार पढ़ना नहीं आता है। यह ख़बर आपसे मदद माँगी रही है। आपको इशारा कर रही है कि आप पाठक ही प्रेस को बचा सकते हैं। इसलिए समाचार संपादक बिना कुछ कहे कुछ और भी कह देता है लेकिन हेडलाइन वही रखता है जो हुज़ूर ए हिन्द को पसंद हो।

पहले पन्ने पर केंद्रीय मंत्री का बयान है कि अभी तक सरकार के किसी भी स्तर पर नेशनल रजिस्टर को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है। देशव्यापी नेशनल रजिस्टर की कोई योजना नहीं है।

जो लोग दिल्ली की सत्ता संरचना को जानते हैं उन्हें पता है कि गृहमंत्री अमित शाह के ऐलान की काट अगर नक़वी से कराई जाए तो वह लतीफ़ा से ज़्यादा नहीं है। गृहमंत्रालय में क्या हुआ है या नहीं हुआ इसकी जानकारी अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नक़वी दे रहे हैं।

आप ध्यान रखें कि गृहमंत्री अमित शाह ने अपने किसी भी बयान में नेशनल रजिस्टर से पीछे हटने की बात नहीं कही है। उनके पुराने सारे बयान और संसद में दिए गए बयान यही कहते हैं कि वे नेशनल रजिस्टर लेकर आ रहे हैं। अगर सरकार पीछे हटने के संकेत दे रही है तो क्या इसका ऐलान संबित पात्रा और नक़वी करेंगे! बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार साइड में जाकर हंस रहे होंगे।

इसलिए एक्सप्रेस ने अपनी ख़बर में अमित शाह के पुराने बयानों का ज़िक्र कर दिया है। संसद में NRC को लेकर दिए गए पुराने जवाबों का भी उल्लेख किया गया है।

अब यहाँ से खेल को समझिए।

ख़बर नक़वी से शुरू होती है कि सरकार के किसी भी स्तर पर NRC को लेकर चर्चा नहीं हुई है। फिर पहुँचती है बीजेपी के महासचिव राम माधव के बयान पर। जिसमें वे कहते हैं कि अभी NRC के बारे में बात करना अपरिपक्व होगा क्योंकि सरकार ने कोई डिटेल नहीं तैयार किया है।

लेकिन ठीक दो पैराग्राफ़ के बाद इसी ख़बर में राम माधव का बयान है कि गृहमंत्री ने ऐलान किया है। चूँकि इसके होने में दो साल का वक्त लग जाएगा और अभी कोई डिटेल देश के सामने नहीं आया है इसलिए इस पर बात करने का समय नहीं है।

अगर टेलिग्राफ होता तो हेडलाइन बनाता कि NRC आने में दो साल लगेगा। ऐसा नहीं है कि एक्सप्रेस का समाचार संपादक संघर्ष नहीं कर रहा है। वह ख़बर को सरकार के हिसाब से लिख रहा है मगर समझ पाठकों पर छोड़ दे रहा है। यह कॉपी एक्सप्रेस की पत्रकारिता के शानदार इतिहास की दुर्लभ कॉपी है। जिसमें पत्रकारिता है और नहीं भी है!

वर्ना इंडियन एक्सप्रेस ये हेडलाइन लगाता कि राम माधव कहते हैं कि NRC को आने में दो साल लगेंगे। मगर माधव और नक़वी को पता नहीं कि सरकार में क्या हो रहा है क्योंकि दोनों कहते हैं NRC को लेकर कोई डिटेल नहीं है।
एक्सप्रेस की ख़बर scribble का नमूना है। जैसे बच्चा किसी पन्ने पर पेंसिल से गोंज देता है। गोंजना भोजपुरी का महान शब्द है।

उसी शुक्रवार के दिन पत्र सूचना कार्यालय PIB पूरा डिटेल जारी करता है। जिसमें NRC को लेकर सारे सवालों के जवाब दिए गए हैं। बताया गया है कि NRC के वक्त किन किन दस्तावेज़ों की ज़रूरत पड़ सकती है। उसमें आधार से लेकर वोटर आई कार्ड की बात है लेकिन ख़बर छपी है कि NRC का डिटेल नहीं आया है। क़ायदे से हेडलाइन यह होती कि सरकार ने जनता को NRC का डिटेल बताया यानि वो इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गई है।

एक्सप्रेस अगर अपनी पहली ख़बर में इस जानकारी के साथ नक़वी और माधव के बयानों को रखता तो पाठक और बेहतर तरीक़े से देख लेता कि सरकार कैसे खेल खेलती है। इस खेल का एक ही आधार है। लोगों की समझने की क्षमता दोयम दर्जे की है और प्रेस हमारी जूती के नीचे। बिहार के मुख्यमंत्री का बयान भी इस मज़बूत विश्वास पर है कि NRC के विरोधियों को अक़्ल नहीं है। उन्हें कुछ बयान दे दो, चने की तरह चबाते रहेंगे।

अब इसी ख़बर में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान छपा है कि बिहार में नेशनल रजिस्टर लागू नहीं होने देंगे। क़ायदे से पत्रकारों को तुरंत बिहार सरकार में सहयोगी भाजपा का बयान लेना चाहिए था तब पता चल जाता। वैसे नीतीश कुमार ने यह नहीं कि वे सर्वशक्तिमान अमित शाह से बात करने की हिम्मत जुटाएँगे और उनसे बोल कर आएंगे कि NRC लागू नहीं करेंगे। ऐसा कुछ नहीं हुआ है। इसी तरह लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग़ पासवान के बयान का भी मतलब नहीं है। दोनों वही करेंगे जो सरकार कहेगी।

काश आप सभी ने जॉर्ज ऑरवेल की 1984 पढ़ी होती जिसमें सूचना प्रसारण मंत्रालय का नाम Ministry of truth है। सत्य मंत्रालय। जिसका काम झूठ फैलाना है। ऑरवेल की इस रचना में जो मंत्रालय लोगों को सताता है उसका नाम ministry of love यानि प्रेम मंत्रालय है। आप समझ गए होंगे।

सोचिए हिन्दी अख़बारों में किस लेवल का खेल चल रहा होगा। मोदी समर्थकों को भी सोचना चाहिए कि जब वे सरकार की हर ग़लत और झूठ का समर्थन करते ही तो फिर ख़बरों का मैनेजमेंट क्यों हो रहा है? ख़बरों को ख़बरों की तरह आने दिया जाए। ऐसा न करना मोदी समर्थकों की बौद्धिक क्षमता का अपमान है। उन्हें गोदी मीडिया से अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी चाहिए।

मैं गोदी मीडिया से मोदी समर्थकों के स्वाभिमान की रक्षा के लिए ही लड़ता हूँ। मैं हमेशा कहता हूँ कि गोदी मीडिया वालों आप हिम्मत से सच छापें, मोदी समर्थक उसे झूठ मान लेंगे। झूठ मत छापों क्योंकि वे सच मान लेंगे।

नोट: भारत का गोदी मीडिया लोकतंत्र का हत्यारा है। यह लाइन अपने घरों की दीवारों पर लिख दें। मोहल्लों में लिख दें। वैसे बहुत देर हो गई है। इंटरनेट बंद है इसलिए दूसरे मोहल्ले में जाकर इस लेख को पोस्ट कर आया हूँ ।

(यह लेख वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक पेज से साभार लिया गया है।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments