राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड में सभी दोषियों को रिहा करने की अनुमति देने वाले 11 नवंबर के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे थे और हत्यारों के प्रति मोदी सरकार के लचीले रवैये को लेकर पूरे देश में आक्रोश का एक माहौल बन रहा था। डैमेज कंट्रोल के तहत केंद्र सरकार ने इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि यह आदेश बिना सुने पारित किया गया। पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि चूंकि पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या से संबंधित मामला है, इसलिए अदालत को आदेश पारित करने से पहले केंद्र सरकार को सुनना चाहिए था।

हत्या के दोषियों को रिहा किए जाने के मामले में कांग्रेस ने कहा है कि वह इस मामले में कानूनी उपाय तलाशेगी। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स में कहा कि इस मामले में कांग्रेस सोनिया गांधी के विचारों से सहमत नहीं है और कांग्रेस का विचार स्पष्ट है और वह बीते कई सालों से इस विचार को स्पष्ट करती आई है। कांग्रेस ने इस फैसले की तीखी आलोचना करते हुए कहा था कि पूर्व पीएम राजीव गांधी के हत्यारों को मुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह से अस्वीकार्य और पूरी तरह से गलत है। सोनिया गांधी रिहाई के पक्ष में रही हैं।

केंद्र ने कहा कि केंद्र सरकार को पक्षकार बनाए बिना सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं/आवेदन दायर किए गए थे। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने इस मामले में 6 दोषियों – नलिनी श्रीहरन, रॉबर्ट पेस, रविचंद्रन, सुथेनथिरा राजा @ संथान, श्रीहरन @ मुरुगन और जयकुमार की समय से पहले रिहाई की अनुमति देने वाला आदेश पारित किया था। तमिलनाडु सरकार 2018 में उनकी सजा कम करने की सिफारिश की थी।पीठ ने एजी पेरारीवलन मामले में एक अन्य दोषी की समय से पहले रिहाई के लिए 18 मई को पारित पहले के आदेश का पालन किया।

1998 में राजीव गांधी की हत्या के लिए अपीलकर्ताओं सहित 25 व्यक्तियों को टाडा कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी। जब मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया तो जस्टिस के.टी. थॉमस ने 19 दोषियों को बरी कर दिया, लेकिन उनमें से चार (पेरीवलन, श्रीहरन, संथन और नलिनी) की मौत की सजा को बरकरार रखा। तीन अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। तमिलनाडु सरकार ने 2000 में नलिनी की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में पेरारीवलन, श्रीहरन और संथन की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। 2018 में अन्नाद्रमुक  कैबिनेट ने सात दोषियों की रिहाई की सिफारिश की, लेकिन राज्यपाल ने इस छूट को अधिकृत करने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर 2022 के अपने आदेश में 17 मई को पारित निर्देश के बाद आदेश पारित किया, जिसमें मामले के एक अन्य दोषी पेरारिवलन को राहत दी गई थी।

पीठ ने कहा कि पेरारीवलन का आदेश वर्तमान आवेदकों पर लागू होता है। कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने सभी दोषियों को रिहा करने की सिफारिश की है, जिस पर राज्यपाल ने कार्रवाई नहीं की है। पीठ ने यह भी कहा कि दोषियों ने तीन दशक से अधिक समय तक जेल में बिताया है और जेल में उनका आचरण संतोषजनक था।

राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी एस नलिनी ने समय से पहले रिहाई की मांग करते हुए अगस्त महीने में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसके द्वारा उसकी शीघ्र रिहाई की याचिका खारिज कर दी गई थी।

मद्रास हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस एन माला की बेंच ने नलिनी की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि हाईकोर्ट भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत समान आदेश पारित करने के लिए शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में एक दोषी एजी पेरारीवलन को रिहा करते हुए आदेश पारित किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई, 2022 को, संविधान के अनुच्छेद 142 को लागू करते हुए पेरारिवलन को रिहा कर दिया था, जिसने राजीव गांधी हत्याकांड में 30 साल से अधिक जेल की सजा काट ली थी।

पुनर्विचार याचिका के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी फिर से जेल के भीतर जाएंगे? दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजीव गांधी हत्याकांड के 6 दोषियों को तीन दशक जेल में बिताने के बाद 12 नवंबर को रिहा कर दिया था। रिहा होने वालों में चार श्रीलंकाई के साथ ही नलिनी श्रीहरन और रविचंद्रन शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में नलिनी, उसके पति श्रीहरन और दो अन्य को मौत की सजा की पुष्टि की थी। तमिलनाडु सरकार ने 2000 में नलिनी की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था। राजीव गांधी की 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती विस्फोट में हत्या कर दी गई थी।

राजीव गांधी हत्या मामले में हाल ही में रिहा किए गए चार श्रीलंकाई दोषियों को निर्वासित (डिपोर्ट) करने का आदेश 10 दिनों में आने की उम्मीद है, चारों अभी पुनर्वास शिविर में हैं। तिरुचि के जिला कलेक्टर एम. प्रदीप कुमार के अनुसार प्रक्रिया के अनुसार, संबंधित देश को एक संदेश भेजा जाएगा। देश यह सत्यापित करने के बाद जवाब देगा कि वह इसके नागरिक हैं या नहीं। इस के आधार पर, विदेशी नागरिकों को भारत से निर्वासित किया जाएगा। फ़िलहाल यह मामला लटकता नजर आ रहा है।

पुलिस और एजेंसियों ने इस बात की आशंका जताई है कि राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई तमिलनाडु और श्रीलंका में लिट्टे के पुनरुद्धार के लिए एक ट्रिगर बन सकती है। खुफिया सूत्रों ने बताया कि तमिलनाडु के साथ-साथ श्रीलंका में कई लिट्टे स्लीपर सेल हैं और दोषियों की रिहाई से उनकी गतिविधि बढ़ सकती है, क्योंकि लिट्टे के कुछ पूर्व गुर्गे अभी भी तमिल राष्ट्र की महत्वाकांक्षा रखते हैं। अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. अन्नपूर्णा सुंदरेशन ने कहा कि तमिल राष्ट्रवाद और तमिल आंदोलन लिट्टे से शुरू नहीं हुए और न ही लिट्टे के साथ समाप्त हुए।

राजीव गांधी हत्याकांड के 7 दोषियों की समय पूर्व रिहाई के बाद न्यायिक निर्णय से जुड़ी आशंका सच साबित हो गई है। राजीव के हत्यारों की रिहाई के बाद इस फैसले के गलत नजीर बनने की आशंका जाहिर की गई थी। इस क्रम में अपनी पत्नी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे स्वयंभू स्वामी श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा ने सु्प्रीम कोर्ट से खुद को रिहा करने की गुहार लगाई है। श्रद्धानंद का कहना है कि उसे राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की तरह जेल से रिहा किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 से मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए एजी पेरारिवलन को मई महीने में रिहा किया था। शीर्ष अदालत ने अन्य दोषियों की रिहाई के लिए भी उसी का हवाला दिया। ऐसे में राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई करने के फैसले से जुड़ी आशंकाएं सच साबित हो रही हैं। शीर्ष अदालत के फैसले के बाद यह सवाल उठने लगे थे कि भविष्य में इस आधार पर लंबे समय से जेल में बंद अन्य लोग भी रिहा करने की मांग करने लगेंगे। अब श्रद्धानंद का कहना है कि उसका मामला समानता के अधिकार के उल्लंघन का सटीक उदाहरण है। उसने कहा कि वह जेल में 29 साल से अधिक बिता चुका है और एक भी दिन की पैरोल नहीं मिली है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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