सनातन धर्म को लेकर उत्तर-दक्षिण और BJP-I.N.D.I.A. के टकराव के पीछे की कहानी 

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन के पुत्र उदयनिधि स्टालिन के बारे में हाल तक शायद ही तमिलनाडु से बाहर कोई चर्चा होती थी। लेकिन आज चेपक विधानसभा से डीएमके विधायक और युवा खेल एवं कल्याण राज्य मंत्री, उदयनिधि स्टालिन की राज्य में ही नहीं पूरे देश में चर्चा है। 

विवाद की शुरुआत सनातन धर्म के खात्मे को लेकर तमिलनाडु में हुए एक सेमिनार में उदयनिधि के कथित भाषण से हुई थी, जिसे लीगल राइट्स ऑब्जर्वेटरी- एलआरओ नाम के एक ट्विटर हैंडल के ट्वीट ने पूरे देश में चर्चा और बहस का विषय बना डाला। जिसमें कहा गया था कि उदयनिधि स्टालिन ने जिस प्रकार से #RiceBag और #चर्च के आदेश पर सनातन धर्म को बदनाम करने और इसे गंदे मच्छरों को खत्म करने रूप में व्याख्यायित किया है, उसके खिलाफ हम विभिन्न कानूनी उपाय तलाशेंगे! उदयनिधि स्टालिन, आप सज़ा से बचेंगे नहीं।

इसके जवाब में उदयनिधि स्टालिन ने अपने ट्वीट में कहा, “जो है सामने रखो। मैं किसी भी कानूनी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हूं। हम ऐसे रोज-रोज के भगवा धमकियों से डरने वाले नहीं हैं। हम, पेरियार, अन्ना और कलाईनार के अनुयायी हैं। हम माननीय मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के कुशल मार्गदर्शन में सामाजिक न्याय को बरकारर रखने एवं एक समतावादी समाज की स्थापना के लिए निरंतर संघर्ष करते रहेंगे। मैं आज, कल और हमेशा यही कहूंगा: द्रविड़ भूमि से सनातन धर्म को रोकने का हमारा संकल्प रत्ती भर भी कम नहीं होगा।”

2 सितंबर को भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय का इस मुद्दे पर सक्रिय हो जाना कोई अचरज की बात नहीं थी। उनका बयान, “तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन के बेटे और डीएमके सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को मलेरिया और डेंगू से जोड़ा है। उनका मानना है कि इसका समूल नाश किया जाना चाहिए, न कि सिर्फ विरोध किया जाना चाहिए। संक्षेप में, उसके द्वारा सनातन धर्म को मानने वाली भारत की 80 प्रतिशत आबादी के नरसंहार का आह्वान किया जा रहा है। द्रमुक विपक्षी गुट का एक प्रमुख सदस्य और कांग्रेस का दीर्घकालिक सहयोगी है। क्या मुंबई बैठक में इसी मुद्दे पर सहमति बनी थी?” ने देशभर में आरएसएस और भाजपा की मशीनरी को ट्रिगर करने का काम किया। 

कितने नेताओं, मंत्रियों और साधुओं, महंतों के बयान अब तक आ चुके हैं, इसकी कोई थाह नहीं है। स्टालिन के बेटे के सिर पर बोली उसी प्रकार से लगाई जा रही है, जैसा मुस्लिम कट्टरपंथियों की ओर से पहले अक्सर सुनने को मिलती थी। यह कट्टरपंथ भारत के लिए नया है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से यह सब इतना आम हो चुका है कि इसने मुस्लिम धर्मांध कट्टरपंथियों और धार्मिक देशों की सियासत को काफी पीछे छोड़ दिया है।  

आज 7 सितंबर को एक बार फिर से उदयनिधि स्टालिन ने अंग्रेजी में 3 पेज और तमिल में 8 पेज का पत्र लिखकर डीएमके के युवा कार्यकर्ताओं के बीच सनातन धर्म के खिलाफ द्रविड़ आंदोलन की ऐतिहासिक मुहिम को जारी रखने का संकल्प को दोहराया है।

अपने पत्र में स्टालिन ने पीएम मोदी के 9 वर्ष के कार्यकाल की विफलताओं का सिलसिलेवार ब्यौरा देते हुए एडीएमके नेता पलानीस्वामी की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें भाजपा के इशारे पर तमिलनाडु की व्यापक जनता के हितों के विरुद्ध काम करने का आरोप लगाया है।

पीएम मोदी और भाजपा पर पीएम केयर्स फण्ड की जवाबदेही, कोरोनाकाल में इलाज एवं समुचित सुरक्षा उपाय के बजाय ताली,थाली बजाने के पाखंड सहित सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक 7.5 लाख करोड़ रूपये के भृष्टाचार सहित मणिपुर में जातीय नरसंहार जैसे अनेक मुद्दों पर घेरते हुए फासिस्ट सरकार द्वारा अपनी विफलताओं को फेक खबरों के सहारे छुपाने का आरोप लगाते हुए तमिलनाडु की जनता से निकट भविष्य में धूल चटाने का आह्वान किया है। 

सवाल उठता है कि सनातम धर्म को लेकर यह विवाद अचानक से कैसे तूल पकड़ गया और इसके पीछे विभिन्न राजनीतिक शक्तियों का क्या मकसद है और वे इस मुद्दे पर क्यों इतना तूल दे रहे हैं? क्या तमिलनाडु या दक्षिण भारत में हिंदू धर्म के मतावलंबी नहीं रहे? क्या सनातन धर्म से द्रविड़ भारत का आशय वही है जैसा उत्तरी भारत में प्रचलन में है?

पेरियार, अन्नादुरै, करुणानिधि से होते हुए तमिलनाडु में आज स्टालिन और अब जूनियर स्टालिन क्या वास्तव में समतामूलक समाज की लड़ाई को उत्तरोत्तर उस ऊंचाई पर ले जाने में सफल रहे हैं, जिसे केंद्र में रखकर द्रविड़ आंदोलन की आधारशिला रखी गई थी?

उदय स्टालिन के ट्वीट कर बताते हैं कि सनातन धर्म पर हमले के दौरान ही उन्होंने तमिल भाषा के स्थान पर अंग्रेजी को चुना है, क्या इसका अर्थ यह नहीं कि वे जानबूझकर बड़े दर्शक वर्ग के लिए अपनी इस मुहिम को आगे चला रहे हैं, जबकि दर्जनों अन्य विषयों और कार्यक्रमों पर उन्होंने तमिल में अपनी बात कही है?

क्या स्टालिन के इन बयानों से उत्तरी भारत में I.N.D.I.A गठबंधन के सहयोगियों, मुख्य रूप से कांग्रेस पार्टी के लिए असमंजस की स्थिति उत्पन्न नहीं हो रही है?

क्या एक ऐसे समय में, जब I.N.D.I.A गठबंधन ने पटना, बेंगलुरु और अब मुंबई बैठक के बाद लगातार अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली है, जिसके चलते मोदी की भाजपा को पहली बार एनडीए गठबंधन की सुध आई है, लेकिन उसके पास अखिल भारतीय स्तर पर एक भी विश्वसनीय गठबंधन साझीदार न होने के कारण मोदी-शाह जोड़ी की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं, उनके लिए आवश्यक जीवनी-शक्ति मुहैया कराई गई है?

ऐसे अनेकों सवाल आज देश में तमाम लोगों के मन में उठ रहे हैं, जिनका जवाब ढूँढा जाना है। आइये, एक-एक कर इन तमाम प्रश्नों के जवाब तलाशने का प्रयास करते हैं:

1. उदयनिधि स्टालिन ने यह वक्तव्य सनातन धर्म विरोधी सम्मेलन में एक वक्ता के तौर पर दिया था। इसके लिए स्टालिन ने अपनी ओर से सार्वजनिक मंच पर कोई वक्तव्य जारी नहीं किया था। लेकिन जैसा कि सभी जानते हैं, भाजपा के साइबर सेल के लिए I.N.D.I.A गठबंधन के किसी भी चूक को बड़े पैमाने पर उछालकर देश को दिग्भ्रमित करने का कार्यभार है, सो उसने इस सेमिनार में एक राज्य के नेता का वक्तव्य निकाल लिया और आज उस पर समूचा देश उबाल खा रहा है।

2. दक्षिण भारत में सनातन धर्म को लेकर बहस: इस विषय पर उदयानिधि स्टालिन के बचाव में आये कार्ति चिदंबरम जो पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम के बेटे हैं, ने कहा है कि स्टालिन का सनातन धर्म को जड़ से मिटाने का आशय वर्ण व्यवस्था को मिटाने से था।

उन्होंने कहा, “जब उन्होंने सनातन धर्म को उद्धृत किया तो उसका मतलब वही था जो तमिलनाडु के राजनीतिक बहस-मुबाहिसे में समझा जाता है, और समाज में सनातन धर्म को जातिगत पदानुक्रम के रूप में संदर्भित किया जाता है। इसलिए जब स्टालिन ने कहा कि हमें सनातन धर्म को जड़ से समाप्त करना होगा, तो वे स्पष्ट रूप से जातिगत पदानुक्रम के खात्मे की बात कर रहे थे।” 

कार्ति चिदंबरम ने अपने ट्वीट में कहा है कि “सनातन धर्म एक जातिगत पदानुक्रम समाज के लिए एक संहिता से अधिक कुछ नहीं है। जितने भी लोग इसकी वकालत कर रहे हैं, वे सभी उन पुराने दिनों के लिए लालायित हो रहे हैं! जाति भारत के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं।”  

3. क्या उत्तर भारत में सनातन धर्म की अलग व्याख्या है?: हिंदू धर्म के मूल स्वरुप को सनातन धर्म कहा जाता है। सनातन का अर्थ है जो सदा से विद्यमान है। आदि से लेकर चिरकाल तक। सनातन धर्म में वेद, पुराण सहित मनु-स्मृति, महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथ भी हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि 19 सदी के अंत में सनातन शब्द ने हिंदू पुनरुत्थान के दौरान फिर से जोर पकड़ा, जब ‘हिंदू’ शब्द के प्रयोग से बचने का प्रयास किया गया, क्योंकि इसकी उत्पत्ति फ़ारसी से हुई है, जिसे विजातीय माना गया। लेकिन आज हिंदू और हिन्दुइज्म से आगे बढ़कर हिंदुत्व शब्द को जोर-शोर से उछाला जा रहा है। हिंदू धर्म अर्थात वर्णाश्रम व्यवस्था इसका अविभाज्य अंग है।

4. हिंदुत्व की विचारधारा का स्वर्णकाल: आजादी के बाद अगले 30 वर्षों तक देश में भूमि सुधार, सामजिक सुधार, हिंदू कोड बिल सहित अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण के प्रावधानों के साथ-साथ राज्य एवं केंद्र में आरक्षण की व्यवस्था का ही परिणाम रहा कि दलितों एवं अनुसूचित जनजाति से सरकारी नौकरियों के माध्यम से समाज में परिमाणात्मक सुधार हुए। लेकिन इसके बावजूद समाज में आज भी बड़े पैमाने पर छूआछूत और जातीय श्रेष्ठता का भाव हिंदू समाज में बरकारर है। भारत एकमात्र देश है जहाँ वर्गीय भेद के साथ-साथ हजारों वर्षों की जातिगत भेदभाव ने एक इंसान को जानवर से भी बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर किया है।

80 के दशक में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू किये जाने से जहाँ ओबीसी वर्गों को भी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू हुई, वहीं इसकी काट के लिए भारतीय राजनीति और समाज के भीतर ऐसी व्यूह रचना शुरू हुई है, जिसने भारत में मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के पीछे इस मनुवादी व्यवस्था को फिर से प्रतिष्ठित करने के गुप्त अभियान को बेहद सफाई से मजबूती प्रदान की है।

यह बात आज किसी से छिपी नहीं है कि 2014 के बाद से हिंदुत्व की प्रयोगशाला गुजरात से निकलकर आज यूपी, मध्यप्रदेश, हरियाणा और यहां तक कि मणिपुर में गुल खिला रही है। हालांकि दक्षिण के एकमात्र राज्य कर्नाटक में अपेक्षित सफलता के बाद इसे फिलहाल के लिए करारी हार का मुहं देखना पड़ा है, लेकिन वर्णाश्रम और हिंदुत्व के अनोखे घातक मिश्रण के आज भी कर्नाटक के बड़े हिस्से में मजबूत पहुंच से इंकार करना मूर्खता होगी। यूपी एक बड़ा राज्य है, जहां मंडल और बहुजन राजनीति के पराभव के लिए अति-पिछड़ों एवं गैर-जाटव को आधार बनाकर हिंदुत्व के नव-प्रयोग के लिए अयोध्या, मथुरा, काशी और गोरखधाम, गीता प्रेस जैसे कई आधार स्तंभ मौजूद हैं।

5. उत्तर भारत में आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठन हिंदुत्व के अपने अभिनव प्रयोग में गौ रक्षा, लव जिहाद, मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कार, दलितों एवं अति पिछड़ों को हनुमान, शिव कांवड़ यात्रा जैसे अनेकों प्रयोगों में उतारकर हिंदू फोल्ड में लाने के प्रयास बड़े स्तर पर सफल हुए हैं।

व्यापक ओबीसी और दलित समाज के भीतर बड़ा हिस्सा आज भी अपने लिए रोजगार, आरक्षण और बेहतर आर्थिक संसाधनों के विकल्प के प्रति पूरी तरह से तटस्थ है, उसके लिए समाज की मुख्यधारा में प्रभुत्वकारी वर्ग द्वारा स्थान दिए जाने और विभिन्न सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का हिस्सा बन पाने में ही परम सिद्धि प्राप्त करने की कामना है।

मंडल और बहुजन समाज की राजनीति ने शुरू-शुरू में बड़ी हलचल पैदा की, लेकिन नौकरियों में आरक्षण पाने और क्रीमी लेयर से आगे जाने के बजाय इसने पहले से मजबूत अन्य सामाजिक शक्तियों के मजबूत लोगों के साथ राजनीतिक संश्रय स्थापित कर संपूर्ण समाज के लिए वह काम अधूरा छोड़ दिया, जिसकी इनसे अपेक्षा थी।

6. उत्तरी भारत और दक्षिण के राज्यों में एक बुनियादी अंतर यह भी है कि आजादी पूर्व से लेकर बाद के 3 दशक बाद भी द्रविड़ आंदोलन ने जहाँ सांस्कृतिक मोर्चे पर अपने संघर्ष को जारी रखा, वहीं बुनियादी शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार ध्यान देकर उत्तरी भारत और काफी हद तक पश्चिमी भारत की तुलना में अपने नागरिकों को बेहतर आधार मुहैया कराया।

90 के दशक में उदारीकरण के साथ देश भर में सरकारी क्षेत्रों में अग्रणी दक्षिण के लोगों ने ही आईटी क्षेत्र में बाजी मारी और आज देश ही नहीं बल्कि अमेरिका और यूरोप के कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भारतीय सीईओ की धूम की असली वजह बने हुए हैं। आज के हालात ये हैं कि उत्तर भारत और दक्षिण के बीच की दूरी लगातार बढ़ती जा रही है, इसका दोष कहीं न कहीं उत्तर भरतीय अहम्मन्यता में है, जिसे गरीब और विपन्न रहना मंजूर है लेकिन देश का पीएम उसे उत्तर भारतीय चाहिए। इसमें आरएसएस के हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान और लोहिया के अंग्रेजी विरोध ने भी बड़ा योगदान दिया है।

आज भले ही इंडिया के स्थान पर भारत नाम को लेकर राष्ट्रीयता का खुमार भाजपा द्वारा तैयार किया जा रहा है, लेकिन भारत बनाम इंडिया की बहस को हिंदी प्रदेशों के समाजवादी नेताओं ने ही सिरे चढाया था। भारत गाँवों में बसता है, जबकि इंडिया बड़े-बड़े शहरों में सूट-बूट और हैट पहने दिखता है, ये बातें हमारे जैसे 80 के दशक में बड़े हो रहे लोगों के लिए आम बात हुआ करती थी, जब हमें कक्षा 6 से अंग्रेजी भाषा का अक्षर ज्ञान कराया जाता था।

90 के दशक से अंग्रेजी के प्रति जो आकर्षण बढ़ा, उसने गली-मोहल्लों में अल्प-शिक्षित शिक्षकों और स्कूलों की नई फ़ौज तैयार कर दी, जिसने राज्य सरकारों द्वारा स्थापित हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूलों के शिक्षित और अनुभवी शिक्षकों को बेकार सिद्ध कर डाला। आज स्थिति यह है कि उत्तर भारत में अधिकांश बच्चे अंग्रेजी माध्यम के नाम पर निजी स्कूलों की महंगी फीस देने के बाद भी सही मायने में शिक्षित नहीं हो पा रहे हैं, इस त्रासदी पर किसी भी पार्टी की कोई आधिकारिक समझ है, इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। 

सनातन धर्म, हिंदू धर्म और अब आरएसएस भाजपा की हिंदुत्व की व्याख्या उत्तर भारत में इस कदर गड्ड-मड्ड है कि किसी भी साधारण व्यक्ति के पास इसका तार्किक जवाब नहीं मिलेगा। इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ भाजपा-आरएसएस नहीं बल्कि 80 के दशक में वही कांग्रेस रही है, जिसने समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता को अपना मार्गदर्शक सिद्धांत बताया था, लेकिन 70 के दशक के अंत और 80 की शुरुआत में भारतीय इजारेदार पूंजी के सशक्त होते जाने और विश्व हिंदू परिषद के भीतर अपने लिए भी घुसपैठ बनाये रखने की गुंजाइश तलाशी थी।

यूं ही इंदिरा गांधी ने रुद्राक्ष धारण करने और विभिन्न हिंदू प्रतीकों को अपनाना शुरू नहीं कर दिया था। इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या और 84 के सिख नरसंहार से 400+ लोकसभा के प्रचंड बहुमत के पीछे हिंदू सांप्रदायिकता और आरएसएस के पूरी तरह से पीछे खड़े होने से इंकार नहीं किया जा सकता। बीजेपी के 2 सीट पर सिमट जाने की व्याख्या आज तक क्यों नहीं की गई, इसे समीक्षकों को सोचना चाहिए। यदि इसकी समीक्षा की गई होती तो 2014 में कांग्रेस को 44 सीटों और 2019 में 50+ पर नहीं सिमटना पड़ता।

आज भी कांग्रेस यदि सनातन धर्म और वर्णाश्रम व्यवस्था को किसी एक प्रदेश में खुलकर कह पा रही है तो वह तमिलनाडु के अलावा कर्नाटक राज्य है। क्या कर्नाटक में जो बात राज्य के मंत्री प्रियांक खड़गे बोल पा रहे हैं, वही बात कांग्रेस का शीर्षस्थ नेतृत्व या महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड या हिमाचल प्रदेश में कह सकता है? नहीं, हर्गिज नहीं। उल्टा मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और यहां तक कि राजस्थान तक में कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री कहीं न कहीं आज भी आरएसएस के हिंदुत्व के अभियान में सिकुड़े-सिमटे उसी खोल को पहनने की कोशिश में हैं।

धर्म एक व्यक्तिगत धारणा और विश्वास का मामला है, जातीय पदानुक्रम के हर लक्षण के खिलाफ हम कृतसंकल्पित हैं, ऐसा कहने का साहस उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों तक में नहीं है, जो खुद ओबीसी समुदाय से आते हैं। ऐसा भी नहीं है कि 80-90 के दशक तक उत्तर भरतीय सवर्ण वर्ग इस हद तक धर्मांध और जातीय श्रेष्ठता में अंधा था, क्योंकि तब समाज में इसे उपेक्षा और तिरस्कार के भाव से देखा जाता था, असभ्य और पिछड़ेपन की निशानी समझा जाने लगा था। 

लेकिन इतिहास ने करवट ली है, और आज जातीय अस्मिता और हिंदुत्व के प्रतीक गांवों, कस्बों और यहां तक कि शहरों में सत्ता और धर्म की शक्ति से मजबूत करते हैं। हाथों में 250 ग्राम कलावा बांधना, भगवा गमछा और बड़ा टीका जनसाधारण से आपको अलग कर देता है, विशिष्ट बना देता है। पहले कभी भी यह प्रतिष्ठा इन प्रतीकों को लेकर नहीं थी।

यूपी, बिहार, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में इन प्रतीकों के साथ आपको आज बहुतायत में लोग मिल जायेंगे। कांग्रेस के लिए भी लंबे अर्से से चुनावों में जीत सत्ता पर काबिज होने की रही, जिसे अब भाजपा ने धर्म के आधार पर अपने लिए काफी आसान बना लिया है। उत्तर भारत में जब तक नैरेटिव को बदलने के लिए कांग्रेस, समाजवादी या वामपंथी दल जमीन पर जाकर मानव धर्म, भाईचारे और साझी लड़ाई और साझे दुश्मन की शिनाख्त नहीं करायेंगे, तब तक उनके लिए मुंह खोल पाना एक दुरूह काम बना रहेगा। 

आज हिंदुत्व या सनातन धर्म के नाम पर भाजपा के लिए नैरेटिव खड़ा करना जितना आसान है, उतना ही सहज तमिलनाडु में यह काम उदयनिधि स्टालिन के लिए हो गया है। डीएमके के लिए ईडी, सीबीआई की जांच और अलोकप्रियता से बचने के लिए द्रविड़ आंदोलन की वैचारिकी को हवा देने का राजनीतिक लाभ साफ नजर आता है। इसके चलते बिना किसी खास मशक्कत के मुख्यमंत्री स्टालिन का नया उत्तराधिकारी सामने आ गया है। आज देश स्वयं चौराहे पर खड़ा है, जिसके सामने विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बन जाने के झूठे मुगालते से अधिक विश्व के सर्वाधिक गरीब और कुपोषित बच्चों का प्रश्न मुंह बाये खड़ा है। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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rewatib7@gmail.com
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7 months ago

ये जितने रावणी खानदान वाले साउथ में मुंह से दुर्गंध निकाल रहे सनातन को नहीं सूरज के ऊपर थूक रहे पूरा थूक उन धर्मद्रोहियों के मुंह पर वापस जा रहा। सच में देश में ये गंदगी भर गए हैं