हेगड़े के ‘मन की बात’ नहीं, भाजपा के ‘दिल की बात’

‘बिल्ली आंख मूंद कर दूध पीती है और सोचती है कि दुनिया देख नहीं रही है’ – संस्कृत सुभाषित

जनाब अनंत कुमार हेगड़े, उत्तरी कर्नाटक से भाजपा के सांसद हैं और अपने विवादास्पद बयानों या नफरती वक्तव्यों के लिए अक्सर सुर्खियां बटोरते हैं।

और अब जबकि उनके सूबे कर्नाटक में उनकी पार्टी भाजपा पिछले साल चुनावों में हुई करारी हार के बाद अभी भी अपने को संभल नहीं पा रही है, गुटबाजी चरम सीमा पर है और खुद हेगडे के राजनीतिक भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, उस पृष्ठभूमि में तो ऐसे बयानों की बहार आयी है। याद रहे जनवरी माह में ‘मस्जिद विध्वंस’ (1 )  को लेकर उनका ऐसा ही घृणा से भरा बयान चर्चित हुआ था, और उनका यह दावा भी सुर्खियां बना था कि ‘हिन्दू समाज खामोश नहीं बैठेगा’ / वही/ और तमाम धाराओं में उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज हुए थे और पिछले दिनों सांसद महोदय ने एक और विवादास्पद बयान दिया है।

इस बार संविधान का समूचा ढांचा उनके निशाने पर रहा है, उनका कहना है कि ‘कांग्रेस के चलते संविधान में विकृतियां घुस आयी हैं’ और उन्हें दूर करना हो और संविधान बदलना हो तो मोदी के नारे 400 पार को संसदीय चुनावों में सफल बनाना होगा। (2)

अलविदा संविधान, स्वागत मनुस्मृति

भारत का संविधान-जिसका निर्माण भारत की राजनीतिक एवं सामाजिक मुक्ति के महान संघर्ष में मुब्तिला रहे अपने वक्त़ की अज़ीम शख्सियतों ने किया-वह बुनियाद है जिस पर भारत के जनतंत्र की समूची इमारत बुलंदी के साथ खड़ी है और जिसमें हमारे आधुनिक गणतंत्र के व्यापक एवम समावेशी विचारों को तवज्जो दी गयी है। यह अलग बात है कि उसको लेकर अपनी बेआरामी छिपा पाना, हिन्दुत्व वर्चस्ववादियों के लिए हमेशा ही मुश्किल साबित होता रहता है, और जो उसे खोखला एवं कमजोर करने के लिए वाचा एवं कर्मणा के स्तर पर आए दिन जुटे रहते हैं। जनाब हेगडे का बयान इसी विचारों को प्रतिबिंबित करता है।

जैसा कि स्पष्ट है कि उनके इस बयान की जबरदस्त भर्त्सना हो रही है, विपक्षी पार्टियों ने दावा किया है कि हेगडे का यह बयान संघ-भाजपा के असली इरादों को उजागर करते हैं और जो किस तरह एक धर्मनिरपेक्ष-जनतांत्रिक भारत को हिन्दु राष्ट्र में ढालना चाह रही है, किस तरह वह अनुसूचित तबकों एवं पिछडी जातियों के आरक्षण को खतम करना चाह रही है, जातिप्रथा को मजबूती दिलाना चाह रही है और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के कर्णधारों ने जिसकी रूपरेखा आज़ादी के आंदोलन में रखी और जिसे डॉ. अम्बेडकर ने संविधान की मसविदा समिति के चेयरमैन होने के नाते उसे शक्ल प्रदान करने में अहम भूमिका अदा की, उस संविधान को समाप्त कर मनुस्मृति से प्रेरित नये संविधान को बनाना चाह रही है।

प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कहा है कि पूरे मुल्क पर ‘तानाशाही और अधिनायकवाद’ का खतरा मंडरा रहा है। (3)

गौरतलब है कि वर्ष 2014 में पहली दफा प्रधानमंत्री बनते वक्त ‘संविधान को सबसे पवित्र किताब’ घोषित करने वाले और अपने आप को ‘‘अम्बेडकर का शिष्य’’ घोषित करने वाले मोदी जी ने भी उनके इस बयां खामोशी बरतना मुनासिब समझा। और न ही भाजपा के किसी वरिष्ठ नेता ने हेगड़े के बयान की भर्त्सना की है या उन्हें माफी मांगने का निर्देश दिया है।

बताया जाता है कि भाजपा ने उनके इस विवादास्पद बयान से औपचारिक दूरी बना ली है। भाजपा यह समझाना चाह रही है कि वह हेगडे के ‘मन की बात’ थी, न कि भाजपा के ‘ दिल की बात’ है।

इससे बड़ा झूठ शायद ही कहीं नज़र आता हो।

यह दूरी उसी किस्म की थी जब आतंक की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ने महात्मा गांधी की भर्त्सना की थी और गोडसे को सच्चा देशभक्त बताया था। उस वक्त मोदी जी ने कहा था कि -वह उन्हें कभी दिल से माफ नहीं करेंगे।(4)

वैसे इस ‘औपचारिक दूरी’ के दावों के बीच शायद भाजपा को या उसके नेताओं को याद नहीं रही, जब वर्ष 2017 में भी हेगड़े ने संविधान बदलने के इरादे जाहिर किए थे-जब वह केन्द्र में मंत्री भी थे-और केसरिया पलटन के अगुवाओं ने वही घिसा-पिटा बयान दिया था ‘औपचारिक दूरी’ का।

इस बार औपचारिक दूरी के दावों की हवा तभी निकल गयी जब संयोग ऐसा हुआ कि एक तरफ भाजपा के प्रवक्ता संविधान बदलने के हेगडे के दावों से अपनी दूरी का ऐलान कर रहे थे, वह खुद संविधान के प्रति कितने समर्पित हैं, यह समझा रहे थे और उसी दिन केन्द्र सरकार की तरफ से सीएए (सिटिजनशिप एमेण्डमेण्ट एक्ट अर्थात नागरिकता संशोधन अधिनियम) के नियमों का ऐलान हो रहा था, जो एक तरह से संविधान के सिद्धांतों और मूल्यों पर गहरा आघात करते हैं। याद करें सीएए को संसद पटल पर जब पारित किया गया था, तबसे उसे चुनौती देती हुई 250 याचिकाएं अभी भी सर्वोच्च न्यायालय में लटकी पड़ी हैं।

सीएए नियमों का ऐलान-इस क्रोनोलोजी को भी समझें

नए प्रस्तुत नागरिकता संशोधन अधिनियम दरअसल संविधान के इस बुनियादी उसूल को चुनौती देता है, जिसमें यह कहा गया है कि किसी के भी साथ उसकी आस्था या उसके धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। दूसरी तरफ सीएए के नियम भारत के गणतंत्र बनने के 75 वें साल में नागरिकता के लिए धर्म को पैमाना मान कर इस पूरी लंबी लड़ाई में जबरदस्त खलल डाल रहे हैं । संविधान की धारा 14 का यह खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है जिसमें यह कहा गया है कि ‘राज्य किसी व्यक्ति के साथ न्याय के मामले में समानता का व्यवहार करेगा और भारत के भूभाग में उसे कानून का पूरा संरक्षण मिलेगा।’

इन नियमों का सूत्रीकरण भाजपा के पिछले पांच साल से अधिक समय से जारी कोशिशों का ही परिणाम है प्रस्तावित नागरिकता बिल में भी ऐसे प्रावधान शामिल किए जा रहे हैं जिसके तहत धार्मिक उत्पीड़न से बचने के नाम पर पड़ोसी मुल्कों के गैरमुस्लिम शरणार्थियों को आसानी से नागरिकता प्रदान की जा सके।(5)

इजरायल के तर्ज पर-जहां दुनिया में कहीं भी उत्पीड़ित यहूदी हो उसे इजरायल पहुंचने या उसकी नागरिकता पाने का जो अधिकार प्रदान किया गया है – उसी तर्ज पर भारत के संविधान में बदलावों को अंजाम दिया जा रहा है ताकि भारत ‘‘उत्पीड़ित हिन्दुओं की स्वाभाविक जगह’’ बन सके। यह छिटपुट उदाहरण यह बताने के लिए काफी हैं कि हुकूमत किस दिशा में बढ़ रही है। याद रहे कि नागरिकता संशोधन बिल, 2016 के तहत मुसलमानों को साफ तौर पर बाहर रखा गया है, तथा उसमें सिर्फ मुस्लिम बहुल देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों का उल्लेख है। यह बात इस सच्चाई की भी अनदेखी करती है कि पड़ोसी मुस्लिम बहुल मुल्कों में शियाओं, अहमदिया आदि समुदायों का भी उत्पीड़न होता है, जबकि वह भी इस्लाम को मानते हैं। (6)

चुनाव के ऐन पहले सीएए नियमों का ऐलान करने के पीछे एकमात्र कारण यही है कि भाजपा उसके पास मौजूद सभी ‘हथियारों’ को आजमाना चाह रही है और अब जबकि उसकी तरकश के तमाम हथियार बोथर होते दिख रहे हैं, तब वह लोगों के ध्रुवीकरण को बढ़ावा देकर अपनी चंद सीटें बढ़ाना चाह रही हैं।

अगर हम विगत कुछ माह के रिकार्ड को देखें तो पता चलता है कि भाजपा को जो जो उम्मीदें थी वह खरी उतरती नहीं दिख रही हैं। फिर चाहे विकसित भारत संकल्प यात्रा के रथ को देश भर घुमाना रहा हो या राममंदिर के उदघाटन के बहाने पूरे मुल्क में एक नयी लहर पैदा करना रहा हो, अब वह सब खुमार उतर चुका है और देश भर की जनता महंगाई, रोजगार जैसे सवालों पर, किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के सवाल पर और सरकार द्वारा दरबारी पूंजीतियों को दी जा रही छूट से फूट पड़ता आक्रोश हो, अब भाजपा को सबक सीखाने के मूड में दिख रही है।

जनता के अंदर उठते इन आलोडनों को हम राहुल गांधी की सभा में जुटती अभूतपूर्व भीड़ से भी देख सकते हैं।

लोकशाही की बात, गोलवलकर शाही की आस

वैसे अगर हम संतुलित निगाहों से देखें तो यह भी कोई पहली मर्तबा नहीं है कि संघ परिवार/हिन्दुत्व ब्रिगेड से ताल्लुक रखने वाले लोगों में से किसी ने संविधान बदलने की ऐसी बात नहीं की हो। याद रहे संघ के मौजूदा सुप्रीमो मोहन भागवत में हैदराबाद में आयोजित अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए ‘‘मुल्क की मूल्य प्रणाली के अनुकूल संविधान एवं न्यायविधान में बदलाव की हिमायत की थी। ’(7 )’ कोई भी महीना नहीं गुजरता जब हम ऐसे वक्तव्यों, बयानों से रूबरू न होते हों, जहां भारतीय संविधान को ‘‘पश्चिमी प्रभावों’’ से युक्त होने के नाम पर तथा ‘‘भारतीय /कहने का तात्पर्य हिन्दू/ मूल्यों की उपेक्षा करने के लिए’’ विवादों के घेरे में न लाया जाता हो।

तयशुदा बात है कि ऐसे विवादास्पद कहे जाने वाले बयानों से, समग्रता में वह बात स्पष्ट नहीं होती कि किस चुपचाप तरीके से हुकूमत में बैठी जमात के लोग संवैधानिक सिद्धांतों को तिलांजलि देते या उन्हें अन्दर से खोखला कर रहे होते हैं और किस तरह समूचे मुल्क पर अपने बहुसंख्यकवादी निरंकुशता की विचारधारा को थोप रहे हैं।

गोवंश के जीवन के अधिकार का जिस तरह मनुष्य के जीने के अधिकार / संविधान की धारा 21 जो जीवन एवं व्यक्तिगत आज़ादी की सुरक्षा की बात करती है/ पर हावी होता दिख रहा है, वह अपने वक्त़ की कटु वास्तविकता है। भाजपाशासित राज्यों द्वारा गोवंश की रक्षा पर बनाए जा रहे कानून और दक्षिणपंथी जमातों को ‘‘गोरक्षा के नाम पर दी जा रही खुली हिंसा की छूट ने तमाम निरपराधों को अपने जान से हाथ धोना पड़ रहा है। (8)

अगर हम भाजपा की अपनी यात्रा को देखें तो पता चलता है कि किस सुनियोजित तरीके से वह इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। याद कर सकते हैं कि जब अटलबिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे, उन्होंने संविधान समीक्षा के नाम पर तत्काल एक आयोग का गठन किया था।/ जस्टिस वेंकटचलैया आयोग ने अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी थी। इस बात को मद्देनज़र रखते हुए कि भाजपा की अगुवाईवाली तत्कालीन राष्टीय जनतांत्रिक गठबन्धन की सरकार के पास चूंकि उस वक्त पूर्ण बहुमत नहीं था इसलिए संविधान की समीक्षा के प्रस्तावों को सदन में रखने का भी वह साहस जुटा नहीं सके। (9)उन्हीं दिनों यह बात भी रेखांकित की गयी थी कि उसके पहले सम्पन्न तीन चुनावों में भाजपा ने भारतीय संविधान की समीक्षा का एजेण्डा चुनावी घोषणापत्र में बाकायदा जोड़ा था।

संविधान को लगातार इस तरह खारिज करते रहना या उसे प्रश्नांकित करते रहना- जिसने न केवल मनुस्मृति द्वारा प्रस्तावित सदियों से चली आ रही आचारसंहिता को चुनौती दी थी तथा व्यक्ति तथा उसकी आज़ादी एवं स्वायत्तता को केन्द्र में स्थापित करने की बात कही थी- एक तरह से 21 वीं सदी की दूसरी दहाई में मनुस्मृति के प्रति संघ परिवारी खेमें में अभी भी व्याप्त जबरदस्त सम्मोहन को उजागर करता है। यह बात इतिहास में भी दर्ज है कि मनुस्मृति के प्रति इसी सम्मोहन के चलते ही, आज़ादी के वक्त़ जब नवस्वाधीन मुल्क के कर्णधार देश के लिए नया संविधान बनाने की प्रक्रिया में मुब्तिला थे, संघ के तत्कालीन सुप्रीमो गोलवलकर ने बाकायदा आज़ाद भारत के नए संविधान के लिए मनुस्म्रति को ही प्रस्तावित किया था। / आर्गनायजर, 30 नवम्बर, 1949, पेज 3/ संघ के मुखपत्र में यह शिकायत की गयी थी कि

‘हमारे संविधान में प्राचीन भारत में विलक्षण संवैधानिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है। मनु की विधि स्पार्टा के लाइकरगुस या पर्सिया के सोलोन के बहुत पहले लिखी गयी थी। आज तक इस विधि की जो ‘मनुस्मृति’ में उल्लेखित है, विश्वभर में सराहना की जाती रही है और यह स्वतःस्फूर्त धार्मिक नियम -पालन तथा समानुरूपता पैदा करती है। लेकिन हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए उसका कोई अर्थ नहीं है।’’

इतना ही नहीं उन दिनों जब डॉ. अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल के माध्यम से हिन्दू स्त्रियों को पहली दफा सम्पत्ति और तलाक के मामले में अधिकार दिलाने की बात की थी, तब कांग्रेस के अन्दर के रूढिवादी धड़े से लेकर हिन्दूवादी संगठनों ने उनकी मुखालिफत की थी, उसे हिन्दू संस्कति पर हमला बताते हुए उनके घर तक जुलूस निकाले गए थे। उन दिनों स्वामी करपात्रा महाराज जैसे तमाम साधु सन्तों ने भी-जो मनु के विधान पर चलने के हिमायती थे-अम्बेडकर का जबरदस्त विरोध किया था।

गोलवलकर ने उन्हीं दिनों लिखा था: ‘जनता को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए तथा इस संतोष में भी नहीं रहना चाहिये कि हिंदू कोड बिल का खतरा समाप्त हो गया है। वह खतरा अभी ज्यों का त्यों बना हुआ है, जो पिछले द्वार से उनके जीवन में प्रवेश कर उनकी जीवन की शक्ति को खा जाएगा। यह खतरा उस भयानक सर्प के सदृश है, जो अपने विषैले दांत से दंश करने के लिये अंधेरे में ताक लगाए बैठा हो।’ (श्री गुरुजी समग्र : खण्ड 6, पेज 64 , युगाब्द 5106)

याद रहे इतिहास में पहली बार इस बिल के जरिए विधवा को और बेटी को बेटे के समान ही सम्पत्ति में अधिकार दिलाने, एक जालिम पति को तलाक देने का अधिकार पत्नी को दिलाने, दूसरी शादी करने से पति को रोकने, अलग अलग जातियों के पुरूष और स्त्री को हिन्दू कानून के अन्तर्गत विवाह करने और एक हिन्दू जोड़े के लिए दूसरी जाति में जनमे बच्चे को गोद लेने आदि बातें प्रस्तावित की गयी थीं। इस विरोध की अगुआई गोलवलकर के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने की थी, जिसने इसी मुददे पर अकेले दिल्ली में 79 सभाओं-रैलियों का आयोजन किया था, जिसमें ‘हिन्दू संस्कति और परम्परा पर आघात’ करने के लिए’ नेहरू और अम्बेडकर के पुतले जलाए गए थे।/(देखें, रामचन्द्र गुहा, द हिन्दू, 18 जुलाई 2004)

यह वही गोलवलकर थे जिन्होंने कभी भी अनुसूचित जाति और जनजातियों के कल्याण एवम सशक्तिकरण हेतु नवस्वाधीन मुल्क के कर्णधारों ने जो विशेष अवसर प्रदान करने की जो योजना बनायीं, उसका कभी भी तहेदिल से समर्थन नहीं किया। आरक्षण के बारे में उनका कहना था कि यह हिन्दुओं की सामाजिक एकता पर कुठाराघात है और उसने आपस में सद्भाव पर टिके सदियों पुराने रिश्ते तार-तार होंगे। इस बात से इन्कार करते हुए कि निम्न जातियों की दुर्दशा के लिए हिन्दू समाज व्यवस्था जिम्मेदार रही है, उन्होंने दावा किया कि उनके लिए संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने से आपसी दुर्भावना बढ़ने का खतरा है। (गोलवलकर, बंच आफ थाटस्, पेज 363, बंगलौर: साहित्य सिंधु, 1996)

हालांकि इधर बीच गंगा जमुना से काफी सारा पानी गुजर चुका है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि मनुस्मृति को लेकर अपने रूख में हिन्दुत्व ब्रिगेड की तरफ से कोई पुनर्विचार हो रहा है। फर्क महज इतना ही आया है कि भारतीय संविधान की उनकी आलोचना-जिसने डॉ. अम्बेडकर के शब्दों में कहा जाए तो ‘मनु के दिनों को खत्म किया है’ – अधिक संश्लिष्ट हुई है। हालांकि कई बार ऐसे मौके भी आते हैं जब यह आलोचना बहुत दबी नही रह पाती और बातें खुल कर सामने आती हैं। विश्व हिन्दू परिषद के नेता गिरिराज किशोर, जो संघ के प्रचारक रह चुके थे, उनका अक्तूबर 2002 का वक्तव्य बहुत विवादास्पद हुआ था, जिसमें उन्होंने एक मरी हुई गाय की चमड़ी उतारने के ‘अपराध’ में झज्जर में भीड़ द्वारा की गयी पांच दलितों की हत्या को यह कह कर औचित्य प्रदान किया था कि ‘हमारे पुराणों में गाय का जीवन मनुष्य से अधिक मूल्यवान समझा जाता है।’

संविधान बदलने की जरूरत को लेकर हेगड़े के बयान को इस रौशनी में ही समझना चाहिए। जब वह जब कहते हैं कि ‘संविधान में विकृतियां भर गयी हैं और उन्हें दूर करना चाहिए ‘ तब वह गोलवलकर के नफरत भरे विचारों को ही जुबां दे रहे होते हैं, गोलवलकर के उस बयान को ही उद्धृत कर रहे होते हैं कि आरक्षण ‘‘हिन्दुओं की सामाजिक एकता पर कुठाराघात है।’

नोट्स :
1. https://thewire.in/communalism/anantkumar-hegde-mosque-babri-fir-karnataka-bjp
2. https://timesofindia.indiatimes.com/city/bengaluru/400-seat-target-to-amend-constitution-karnataka-bjp-mp-anantkumar-hegde/articleshow/108374242.cms
3. https://www.indiatoday.in/india/video/mallikarjun-kharge-slams-bjp-mp-ananth-hegde-for-his-remarks-on-constitution-2513367-2024-03-11
4. https://www.indiatoday.in/elections/lok-sabha-2019/story/modi-sadhvi-pragya-godse-insult-gandhi-controversy-interview-1527293-2019-05-17
5. https://thewire.in/67272/citizenship-amendment-bill-2016/;  https://thediplomat.com/2017/03/the-trouble-with-indias-new-citizenship-bill/
6. https://timesofindia.indiatimes.com/india/amend-constitution-align-it-to-indian-value-system-rss-chief/articleshow/60471393.c

7. http://www.indowindow.com/akhbar/article.php?article=138&category=12&issue=19https://thediplomat.com/2017/03/the-trouble-with-indias-new-citizenship-bill/

8 .  https://thewire.in/203103/cow-vigilantism-violence-2017-muslims-hate-crime/

9 . http://www.indowindow.com/akhbar/article.php?article=138&category=12&issue=19https://thediplomat.com/2017/03/the-trouble-with-indias-new-citizenship-bill/

(सुभाष गाताडे सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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