ग्राउंड रिपोर्ट: पेंशनधारी बुजुर्गों को सिर्फ मोदी चाहिए, विकास नहीं है मुद्दा

देहरादून। देहरादून शहर का एक रिहायशी इलाका बंजारावाला। हाल के वर्षों में इस इलाके में बड़ी संख्या में निर्माण हुए हैं। पहाड़ से पलायन करने वाले लोगों ने बड़ी संख्या में यहां आकर घर बनाये हैं। 60-62 साल तक सरकारी नौकरी करने के बाद सेवानिवृत्त हुए बुजुर्ग भी इस इलाके में घर बनाकर अपने बच्चों के साथ रहने लगे हैं। इन बुजुर्गों को इन दिनों लोकसभा चुनाव के रूप में चर्चा का अच्छा मुद्दा मिल गया है। दुकानों के बाहर जमे ये बुजुर्ग इन दिनों सिर्फ चुनावों पर चर्चा कर रहे हैं।

ये चर्चाएं आम लोगों के मुद्दों पर केन्द्रित नहीं होतीं, बल्कि इस बात पर केन्द्रित होती हैं कि मोदी 400 से आगे कितनी सीट ला सकते हैं? जब भी कोई ऐसी खबर आती है जो भाजपा के पक्ष में नहीं होती तो ये बुजुर्ग तिलमिला जाते हैं और तरह-तरह के तर्क देकर या व्हाट्एप से मिली जानकारियों को साझा करके ऐसी खबरों पर भाजपा का बचाव करते हैं। कांग्रेस नेताओं के भाजपा में शामिल होने की खबरों पर बुजुर्गों की इन महफिलों में चटकारे लेकर चर्चा की जाती है।

बंजारावाला की एक मुख्य सड़क पर इसी तरह का एक नजारा देखने का मिला। करीब 28-30 साल के एक युवक की एक दुकान है। साइज में दुकान काफी बड़ी है, लेकिन सामान के नाम पर कुछ गिनी-चुनी चीजें ही हैं। शाम का वक्त है और दुकान के बाहर कुर्सियों पर बुजुर्गों की महफिल सजी हुई है। इन बुजुर्गों में एक दुकानदार युवक के दादा हैं, जो सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। बाकी भी उन्हीं की उम्र के सेवानिवृत्त हो चुके बुजुर्ग हैं। बुजुर्गों की इस महफिल में कुछ लोग आकर खलल डालते हैं। सभी बुजुर्गों के हाथ में नीले रंग का पर्चा पकड़ाते हुए ये लोग सवाल करते हैं कि क्या चल रहा है, चुनाव का माहौल?

बुजुर्ग उत्साहित होकर कहते हैं बहुत अच्छा चल रहा है। 400 पार जा रहा है। पर्चा बांटने वाले लोग, जो संख्या में 10-12 हैं, कहते हैं कि वे किसी पार्टी से नहीं हैं, लेकिन चाहते हैं कि इस बार सत्ता परिवर्तन हो। वे बेरोजगारी, महंगाई, अंकिता भंडारी हत्याकांड, स्मार्ट सिटी के नाम पर बर्बाद कर दिये गये शहर और अग्निवीर जैसे तमाम मुद्दे गिनाते हैं और कहते हैं कि मौजूदा सरकार हर मोर्चे पर फेल हुई है, इसलिए इस बार सत्ता बदलनी चाहिए।

बुजुर्गों को यह बात अच्छी नहीं लगती। वे इन लोगों को टालने की कोशिश करते हैं, ताकि वे चले जाएं। एक बुजुर्ग, जो दुकानदार युवक के दादा हैं, ताव में आ जाते हैं। पर्चा बांटने वालों से कहते हैं कि तुम कांग्रेस के एजेंट हो। मोदी की बुराई करते हुए तुम्हें शर्म आनी चाहिए। पर्चा बांटने वाले कहते हैं कि वे मोदी की बुराई नहीं कर रहे हैं, सरकार की कमियां गिना रहे हैं। बुजुर्ग पहले से ज्यादा नाराज हो गये हैं। कहते हैं कि अब इस उम्र में तुम सिखाओगे हमें। सवाल पूछते हैं कि क्या नहीं किया मोदी ने? पर्चा बांटने वाले कहते हैं आप एक काम बता दीजिए। बुजुर्ग रटा-रटाया धारा 370, राम मंदिर गिनाते हैं। यह जोड़ना भी नहीं भूलते कि यदि तुम और तुम्हारा परिवार सुरक्षित है तो मोदी के कारण ही है। अब यहां गर्मागरम बहस शुरू हो चुकी है।

जनता के मुद्दों को लेकर लोगों के बीच पहुंचे जन संगठन।

पर्चा बांटने वाले लोग इन मुद्दों की असलियत बताने लगते हैं। लेकिन, बुजुर्ग नहीं मानते। दुकानदार युवक असमंजस में है। वह पर्चा बांटने वालों को संकेत करके कहता है कि इनकी आदत ही ऐसी है, आप लोग चले जाओ। पर्चा बांटने वाले जाने लगते हैं, लेकिन बुजुर्गवार ललकारते हैं। बहस फिर शुरू हो जाती है। अब युवक भी बहस में कूद पड़ा है। आश्चर्यजनक रूप से वह अपने दादा के साथ नहीं बल्कि पर्चा बांटने वालों के साथ है। वह अपने दादा को समझाता है आपको तो नौकरी मिल गई थी, पेंशन भी मिल रही है, हमारे लिए कहां है नौकरी? पर्चा बांटने वालों पर आग बबूला हो रहे बुजुर्ग अपने पोते की बात सुनकर तुरंत शांत हो जाते हैं। युवक माफी मांगकर पर्चा बांटने वालों को विदा करता है।

यह तो सिर्फ बानगी भर है। पहाड़ छोड़कर देहरादून आकर सेवानिवृत्त जिंदगी बिता रहे ज्यादातर बुजुर्गों का यही हाल है। उनके लिए न तो महंगाई कोई मुद्दा है और न ही घरों में बेरोजगार बैठे युवा। अंकिता भंडारी हत्याकांड तो इन बुजुर्गों की नजर में अंकिता के माता-पिता की लापरवाही का नतीजा है। एक बुजुर्ग का कहना है कि उस लड़की के मां-बाप को इतनी अक्ल तो होनी ही चाहिए थी कि जंगल में बने रिजॉर्ट में जवान बेटी को क्यों भेजना है। बुजुर्गों के इस रवैये को लेकर पहाड़ और देहरादून के कई लोग असमंजस में हैं। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि यदि कांग्रेस ने पहले ही पेंशन बंद कर दी होती तो आज ये बुजुर्ग बीजेपी को बचाने के लिए अंकिता के माता-पिता को ही दोष नहीं दे रहे होते।

प्रेम बहुखंडी कहते हैं कि उत्तराखंड में पेंशनधारी बुजुर्ग नफरत की सबसे बड़ी फैक्टरी बन गये हैं। रमेश कोठारी का मानना है कि देहरादून के पहाड़ियों को नफरत की खेती करने के बजाय इस चुनाव में 1982 की तरह पहाड़ी स्वाभिमान बनाम दिल्ली राजशाही के घमंड को चूर करने के लिए वोट करना चाहिए। कुलदीप प्रकाश व्यंग्य करते हैं, कांग्रेस ने कई गलतियां की हैं। इनमें एक गलती पेंशन बंद न करना भी है। कांग्रेस की इस गलती को बीजेपी ने सुधार दिया है। भविष्य में बुजुर्गों का किसी नेता का अंधभक्त बनने की संभावनाएं पूरी तरह से खत्म हो गई हैं।

मोदी के प्रति बुजुर्गों के इस समर्पण के बावजूद हाल के वर्षों में कुछ पेंशनधारी बुजुर्गों के विचारों में बदलाव भी आया है। देहरादून की एक सड़क पर टहलते हुए सेवानिवृत्ति कमांडर आरएस राणा (बदला हुआ नाम) मिलते हैं। चुनाव की चर्चा छेड़ते ही वे सीधे बीजेपी पर निशाना साधते हैं। कहते हैं ये सड़क देख लीजिए। छह महीने पहले इसे सीवर लाइन डालने के लिए खोदा गया था। अब एक हफ्ते पहले सड़क का सीमेंट बजरी से डामरीकरण किया गया। लेकिन हालत देख लीजिए, एक हफ्ते में ही पूरी सड़क उखड़ गई है।

डबल इंजन विकास मॉडल। देहरादून में एक साल बाद बनी कंक्रीट रोड एक हफ्ते में ही टूट गई।

केवल बजरी से डामरीकरण किया है, सीमेंट डाला ही नहीं। लेकिन पूछने वाला कोई नहीं है। वे इस नई डामरीकरण वाली सड़क पर बने गड्ढे दिखाते हैं। सड़क का आरसीसी डामरीकरण के बाद अब भी हरी चटाइयां बिछी हुई हैं और पानी भी डाला जा रहा है, लेकिन सड़क उखड़नी शुरू हो गई है। कमांडर राणा कहते हैं, यदि अभी हम यहां पर कहें कि इस सरकार में ऐसा घटिया विकास हो रहा है तो ये कहने वाले कई लोग आ जाएंगे कि अब सड़क बनाने भी मोदी आएगा क्या?

राणा कहते हैं, वे भी बीजेपी के वोटर रहे हैं। 2014 और 2019 में बीजेपी को ही वोट डाला था। 2019 में सोचा था कि पांच साल कम होते हैं, अगले पांच साल में ज़रूर अच्छे दिन आएंगे। लेकिन ये सड़क बता रही है कि कितने अच्छे दिन आये हैं। वे कहते हैं कि देहरादून को स्मार्ट सिटी बनाने की बात हुई थी। लेकिन पूरे शहर की सड़कों को खोदकर रख दिया। एक सड़क दस-दस बार खोदी जा रही है। विकास ही नहीं हर मोर्चे पर बीजेपी सरकार फेल हुई है।

महंगाई और बेरोजगारी से एक घर परेशान है, लेकिन भक्ति में अब भी कमी नहीं आई है। वे कहते हैं कि किसी को ये सब समझाओ तो बुरा मान जाते हैं। बीजेपी के पास कोई उपलब्धि नहीं रह गई है। इसीलिए हिन्दू-मुस्लिम विवाद खड़ा किया जा रहा है। विकास के बजाय मटन-मछली पर बहस हो रही है। वे टिहरी में पूर्व सैनिकों के साथ बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा की गई गाली-गलौच का जिक्र करते हैं और कहते हैं कि पूर्व सैनिक इस बार बीजेपी को वोट देंगे, इसमें संदेह है।

जनचौक ने उत्तराखंड आये शहीद भगत सिंह के भानजे प्रो. जगमोहन सिंह से देहरादून में मुलाकात की। वे सिविल सोसायटी की ओर से चलाये जा रहे भारत जोड़ो अभियान में सहयोग के लिए लुधियाना से उत्तराखंड आये थे। हल्द्वानी, नैनीताल और रुद्रपुर में कुछ सभाएं करने के बाद उन्होंने देहरादून के भानियावाला में भी जलियांवाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित एक सभा में हिस्सा लिया। जनचौक से बातचीत में उन्होंने कहा कि भाजपा अंग्रेजों की नीति पर चल रही है।

वह समाज को विभाजित करने का लगातार प्रयास कर रही है। जलियांवाला बाग कांड का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दू, मुस्लिम और सिखों में आपसी भाईचारा देखकर अंग्रेज समझ गये थे कि यदि सभी धर्मों के लोग एकजुट रहे तो जल्दी ही भारत छोड़ना पड़ेगा। जलियांवाला बाग कांड भी ऐसा ही एक प्रयास था। वे कहते हैं कि इस बार लोग समझ रहे हैं कि उन्हें बरगलाया जा रहा है, ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि चुनाव नतीजे बदलेंगे।

(देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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