लोकसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व शुरू से ही उनकी आबादी के अनुपात से कम रहा है, फिर भी उसमें उतार-चढ़ाव आता रहा है। लेकिन आज हालत यह हो गयी है कि कई राज्य ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी 10% से ज्यादा होने के बावजूद उन राज्यों से एक भी मुस्लिम सांसद लोकसभा में नहीं है। इस संबंध में आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए अनुष्का कटारुका और विग्नेश राधाकृष्णन ने ‘द हिंदू’ में एक लेख लिखा है, जिसमें अनेक निष्कर्ष बरबस हमारा ध्यान खींच लेते हैं। यहां इन्हीं निष्कर्षों पर हम बात रख रहे हैं।
भारत में मुस्लिम आबादी 1951 में लगभग 10% थी। 2011 में यह आबादी बढ़कर 14% हो गयी, और 2020 में 15% हो गयी। लेकिन ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के एक अनुमान के अनुसार, संसद में मुस्लिम सदस्यों की हिस्सेदारी ने कभी भी 10% का आंकड़ा पार नहीं किया, और पिछले 15 वर्षों में इसमें तेजी से कमी आयी है।
7वीं और 8वीं लोकसभाओं में (1980 से 1989 के बीच) मुस्लिम सांसदों की संख्या सर्वाधिक 8.3% तक पहुंची थी, जिस दौर में भाजपा की संसद में उपस्थिति नगण्य हो गयी थी। उसके बाद के दौर में जैसे-जैसे भाजपा की राजनीति और लोकसभा में उसकी सीटें बढ़ती गयीं, उसी अनुपात में वहां मुस्लिम उपस्थिति कम होती गयीं। 10वीं लोकसभा (1991-96) में, जब भाजपा ने 100 का आंकड़ा पार कर लिया, तो वहां मुस्लिम प्रतिनिधित्व घटकर 4.97% रह गया। उसके बाद यह हिस्सेदारी फिर थोड़ी बढ़ी। 14वीं लोकसभा (2004-09, यूपीए के पहले कार्यकाल) में यह प्रतिनिधित्व लगभग 7% तक पहुंच गया था। किंतु वर्तमान, 17वीं लोकसभा (2019-24) में फिर से घट कर 5% से नीचे पहुंच गया है।
चूंकि लोकसभा चुनावों में भाजपा खुद बहुत कम मुस्लिम उम्मीदवार खड़े करती रही है, इसलिए जब भाजपा ज्यादा सीटें जीतती है, तो लोकसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व घट जाता है, जबकि भाजपा के कम सीटें जीतने से लोकसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व उसी अनुपात में बढ़ जाता है।
हाल के वर्षों में कांग्रेस के कमजोर होने के कारण पैदा हुए शून्य को कुछ हद तक अन्य गैर-भाजपा दलों द्वारा भरा गया है। ‘इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग’ के सभी 4 सांसद और ‘जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस’ के सभी 3 सांसद मुस्लिम हैं। समाजवादी पार्टी के पांच सांसदों में से तीन (60%) मुस्लिम हैं। बसपा के 30%, तृणमूल कांग्रेस के 22.7%, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के 16.7%, लोक जनशक्ति पार्टी के 16.7% और कांग्रेस के 7.7% सांसद मुस्लिम हैं।
हालांकि 15% से अधिक मुस्लिम आबादी वाले राज्यों में, केरल, असम, जम्मू और कश्मीर, बिहार और पश्चिम बंगाल ने समय के साथ बड़े पैमाने पर मुस्लिम सांसदों की संख्या को लगातार बनाए रखा है, फिर भी कई राज्य ऐसे हैं, जहां अच्छी-खासी मुस्लिम आबादी है, लेकिन वहां से लोकसभा के लिए एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया है। जैसे उत्तराखंड में 14%, त्रिपुरा में 9%, मणिपुर और गोवा में 8% मुसलमान रहते हैं, लेकिन इन राज्यों से कोई मुस्लिम सांसद नहीं है।
इसी तरह से झारखंड में, जहां मुस्लिम आबादी 14.53% है, वहां से पिछली चार लोकसभाओं में कुल मिलाकर 1 मुस्लिम सांसद चुना गया है, जबकि उत्तर प्रदेश में 19.26% मुस्लिम आबादी रहती है, और वहां 1980 के दशक की शुरुआत में मुस्लिम सांसदों की हिस्सेदारी 18% थी, जो 2014 में घटकर केवल 1% रह गयी थी, हालांकि 2019 में यहां से 6 मुस्लिम सांसदों के लोकसभा पहुंचने के बाद उनका प्रतिनिधित्व 7.5% हो गया था।
कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और आंध्र प्रदेश जैसे आबादी में 10-15% मुस्लिम हिस्सेदारी वाले राज्यों में, मुस्लिम सांसदों की हिस्सेदारी समय के साथ कम हो गयी है। दरअसल, महाराष्ट्र को छोड़कर इनमें से किसी भी राज्य से फिलहाल कोई मुस्लिम सांसद नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जिया उस सलाम अपने एक लेख में इस दौर की पीड़ा को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि आज के इस दौर में बहुलवाद एक जुमला मात्र बन कर रह गया है। वे कहते हैं कि “मुसलमानों को प्रतिनिधित्व न देने का मामला केवल भाजपा तक ही सीमित नहीं है।… पार्टियां बातें तो बहुलवाद की करती हैं, लेकिन अमल में बहुसंख्यकवाद करती हैं।… उन्होंने राजनीतिक मंच पर मुस्लिम नेताओं की उपस्थिति को कम कर दिया था।… वे अब बिहार, झारखंड, राजस्थान और महाराष्ट्र से मुसलमानों की पीट-पीट कर हत्या की खबरें आने पर मौन हो गए हैं। इस तथ्य को नजरअंदाज किया जा रहा है कि आजादी के बाद से लिंचिंग के 97% से अधिक मामले 2014 के बाद दर्ज किए गए हैं, जिनमें से अधिकांश पीड़ित मुस्लिम हैं।… फिर भी, किसी भी राजनीतिक विचारधारा के नेता ने मृतकों के परिवारों से मिलना उचित नहीं समझा। लगातार हो रही इन हत्याओं पर कोई राजनीतिक आवाज तक नहीं उठायी जा रही है।”
‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ बोर्ड के भारत के प्रतिनिधि आकार पटेल का कहना है कि, “भारत की सत्ताधारी पार्टी का एक भी सांसद मुस्लिम नहीं है। न तो लोकसभा में, न ही राज्यसभा में। भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, कि एक भी मुस्लिम कैबिनेट मंत्री नहीं है। भाजपा के सभी राज्यों में विधायकों की कुल संख्या लगभग 1000 है, जिनमें से एक भी मुस्लिम नहीं है। जबकि लोकतंत्र को ठीक से काम करने के लिए समुदायों की इसमें सक्रिय भागीदारी और आपसी होड़ का होना जरूरी है।”
वह कहते हैं कि “भारत में जो राष्ट्रवाद विकसित हुआ है, वह बहुत ही उग्र है, और उसकी दिशा किसी बाहरी शक्ति के खिलाफ न होकर, खुद अपने ही लोगों के खिलाफ केंद्रित हो गयी है, और हाल ही में मुसलमानों के खिलाफ इस भेदभाव को बाक़ायदा क़ानूनी संरक्षण भी दिया जाने लगा है।”
(अनुष्का कटारुका, विग्नेश राधाकृष्णन, जिया उस सलाम और आकार पटेल के लेखों पर आधारित-प्रस्तुति : शैलेश।)