कृषि कानूनों में काला क्या है-10: कब्र मनमोहन ने खोदी, दफनाया मोदी ने

क्या आप जानते हैं किसानों कि बदहाली का बीज बोया था या दूसरे शब्दों में कहें तो किसानों का कब्रिस्तान नव उदारवाद या आर्थिक उदारीकरण के प्रणेता तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने बनाया था और उन्हें उस कब्रिस्तान में दफनाने का काम किया प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने। तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में वर्ष 1994 में एग्रीमेंट आन एग्रीकल्चर (खेती-बाड़ी समझौते) पर भारत ने हस्ताक्षर किये, जिसमें प्रावधान था कि भारत सरकार प्रतिवर्ष कुल कृषि उत्पाद के 10 फीसद से ज्यादा की खरीद नहीं करेगी और नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिका को आश्वासन दिया कि वे एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर की शर्तों का अक्षरश: पालन करेंगे, जिसमें सब्सिडी खत्म करना, सरकारी खरीद बंद करना और विकसित देशों को फ्री मार्केट देना शामिल है। इसी के तहत बिना व्यापक विचार विमर्श किये ,बिना किसानों को विश्वास में लिए मोदी सरकार ने तीनों काले कृषि कानूनों को बना दिया और इस तरह डब्ल्यूटीओ के कब्रिस्तान में किसानों को दफ़नाने की कोशिश की। इसके विरोध में साल भर से चल रहे किसानों के अहिंसक आन्दोलन के कारण विवश होकर मोदी सरकार को तीनों कृषि कानून निरस्त करने पड़े।   

गौरतलब है कि 1 जनवरी 1995 लागू विश्व व्यापार संस्था डब्ल्यूटीओ अस्तित्व में आया। इसके लागू होने के पहले एग्रीमेंट आन एग्रीकल्चर हुआ, जिसमें वर्ष 1994 में नरसिंह राव सरकार के समय भारत में बिना सोचे समझे दस्तखत कर दिया। इस समझौते के अंतर्गत सदस्य देशों को तीन भागों में रखा गया। इन तीन भागों के रंग अलग-अलग थे। पहला भाग हरे रंग का था दूसरा नीले और तीसरा पीले रंग करता है। हरे रंग के बॉक्स में वह विकसित देश शामिल किए गए जिनकी कृषि उपज और उस समय दी जा रही सब्सिडी का व्यापार पर कोई असर नहीं पड़ता था। विकसित देशों को छूट दी गई कि वह जितना चाहे जिस रूप में चाहे किसानों को या उनके उपज पर सब्सिडी दे सकते हैं।

नीले रंग के बॉक्स में वह देश शामिल किए गए जिनकी पैदावार पर पाबंदी लगाई जा सकती है और सब्सिडी कम की जा सकती है । तीसरे पीले रंग के बॉक्स में बाकी बचे देश शामिल किए गए जिनके ऊपर को के मानकों को उत्साहित करने की जरूरत  बताई गयी है।

अब आप इसका मतलब समझ लीजिए । विकसित देशों को सब्सिडी देने की इजाजत के कारण कनाडा की कुछ फसलों पर 80 फीसद, जापान की 50 फीसद और नार्वे, स्विट्जरलैंड 60 फीसद सब्सिडी दे रहे हैं । दूसरी और विकासशील देशों को सब्सिडी देने पर पाबंदी लगाई जा रही है।

विकसित देशों में अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं जिन का क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल से 3 गुना ज्यादा है आबादी भी बहुत कम है ।अमेरिका में 33 करोड़, कनाडा में 3करोड़ 60 लाख  और आस्ट्रेलिया में दो करोड़ की आबादी है । इससे खाने वालों की संख्या बहुत कम है और यह देश अपने अनाज और उससे बनने वाली वस्तुओं को बाहर की मंडियों में बेचना चाहते हैं । इसलिए विकसित देश चाहते हैं कि जब उनका माल विकासशील देश में जाए तो उस पर कोई टैक्स ना लगे, कोई रुकावट ना हो, कोई पूछताछ ना हो और एक स्थान पर कागज दिखाकर वे जहां चाहे अपना माल बेच सकें ।

उनको इस काम को रोकने के लिए विकासशील देशों के पास केवल एकमात्र तरीका है कि वह बाहर से आने वाले माल पर टैक्स या ड्यूटी लगा दे, ताकि देश में पैदा किए जा रहे माल या पैदा किए जा रहे अनाज से उसकी कीमत कम ना हो जाए । इसके विपरीत विकसित देश फ्री मार्केट चाहते हैं, जिसका डब्ल्यूटीए के 35 विकासशील देश मिलकर विरोध कर रहे हैं, जिसमें भारत और चीन भी शामिल है।

1994 में उरूग्वे में हुए खेती-बाड़ी समझौते में शामिल भारत पर यह भी प्रतिबंध है कि सरकार उनकी कृषि उपज पर 10 फीसद से अधिक की खरीद नहीं कर सकती। खेती-बाड़ी समझौते पर हस्ताक्षर करते समय भारत 1986-88 के आंकड़ों को आधार बना रहा था तथा तीसरे शेड्यूल के फार्मूले को समझ नहीं पा रहा था।चूँकि भारत खेती-बाड़ी समझौते पर दस्तखत कर चुका है, इसलिए विकसित देशों ने भारत पर इसकी शर्तों को मानने का दबाव बना रखा है।    

इतिहास गवाह है डब्लूटीओ समझौते से पहले जब भारत के आला हुकमरां  अमेरिका जाते थे तो उनका स्वागत सत्कार उस तरह नहीं होता था जिस तरह डब्ल्यूटीओ समझौता लागू होने के बाद हो रहा है। वर्ष 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका गए तो उनका भव्य स्वागत किया गया। नरेंद्र मोदी के अमेरिका जाने पर गुजरात दंगों के कारण पहले अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिया था इसलिए प्रधानमंत्री के रूप में जब वह पहली बार अमेरिका गए तो अपने स्वागत से इतने अभिभूत हो गए की आने से पहले प्रधानमंत्री ने अमेरिका को आश्वासन दिया कि वे एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर की शर्तों का पूरी तरह से पालन करेंगे, जिसमें सब्सिडी खत्म करना, सरकारी खरीद बंद करना और विकसित देशों को फ्री मार्केट देना शामिल है।

जब किसान इन कानूनों को रद्द कराने के संघर्ष को जीत चुके हैं, तब भी डब्ल्यूटीओ निर्देशित व कॉरपोरेट परस्त नीतियों को सम्पूर्ण रूप में खारिज कराने के लिए उनका संघर्ष जारी रह सकता है। 

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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