इंडिया गठबंधन की यूएसपी क्या है?

व्यापार की दुनिया में एक जुमला बड़ा प्रचलित है- ‘दोस्त, आपकी यूएसपी (unique selling points या propositions) क्या है?’ इस जुमले का सीधा-सादा अर्थ यह है कि आपके माल या उत्पाद की विशिष्टता क्या है? विशिष्टता जानने के बाद ही माल की खरीदी होगी। अब यह जुमला सियासत के बाजार में भी प्रचलित होने लगा है।

मौजूदा दौर में सियासत या राजनीति या पॉलिटिक्स भी बाजार की शक्ल ले चुकी है। सत्ता प्राप्ति के नफा-नुकसान तौलने के बाद ही सियासी पार्टियां अपनी नीति-कार्यक्रम-घोषणापत्र, चुनाव रणनीति, प्रत्याशियों का चयन करती हैं और गठबंधन बनाती हैं। विशुद्ध विचारधारा के आधार पर दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी राजनीति नहीं के बराबर होती है। वामपंथी राजनीति में जरूर 22-24 कैरेट का सोना रहता है। वैसे इसमें भी अब कभी-कभी मिलावट की गंध आ जाती है।

अलबत्ता, चरम उपभोक्तावाद के दौर में किसी भी विचारधारा को चौबीस कैरेटी बनाये रखना लगभग असंभव है। बाजार में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं। मोदी-शाह ब्रांड के सियासी दौर में उतार-चढ़ाव का सिलसिला और भी तेज हो गया है। विपक्षी राजनीति भी इससे अप्रभावित नहीं है। 

राजनीति के ऐसे परिदृश्य में 26-28 गैर भाजपाई विपक्षी दलों के महागठबंधन ‘इंडिया (indian national developmental inclusive alliance)’ की चौथी बैठक 19 दिसंबर को राजधानी दिल्ली में होने जा रही है। पहले यह बैठक 6 दिसंबर को होने वाली थी। लेकिन, कतिपय वरिष्ठ नेताओं की ना-नुकुर के बाद बैठक की नई तारीख तय की गई है।

यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब संसद के दोनों सदन ठप रहे हैं। 14 सांसदों को निलंबित किया गया है। मुद्दा था संसद की सुरक्षा में सेंध का। दो युवक 13 दिसंबर को लोकसभा की दर्शक दीर्घा से कूदे और बेरोजगारी के मुद्दे पर हल्ला करने लगे। जूते से निकालकर सामान्य पीली गैस भी छोड़ी। विपक्ष के सांसद इस घटना पर संसद में गृहमंत्री अमित शाह के बयान की मांग कर रहे थे। सरकारी पक्ष ने मांग को नजरंदाज किया। इस मुद्दे पर इंडिया की बैठक में क्या रुख अपनाया जाएगा, यह महत्वपूर्ण रहेगा।

लोकसभा के चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं। अगले वर्ष फरवरी या मार्च में ‘वोट ऑन अकाउंट’ लेने के बाद कभी भी हो सकते हैं। वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल मई में समाप्त हो जाएगा। अब सवाल यह है कि महागठबंधन की सबसे बड़ी अखिल भारतीय स्तर की कांग्रेस पार्टी की हिंदी राज्यों में ताजा हार और दक्षिणी राज्यों (कर्नाटक व तेलंगाना) में जीत की पृष्ठभूमि में इस बैठक को कितनी दशा-दिशा दे सकेगी?

इंडिया के सभी घटकों को इस सच्चाई का एहसास होगा ही कि उनका मुकाबला मोदी-शाह ब्रांड की राजनीति से है, जिसमें सर्वस्वीकृत लोकतांत्रिक कसौटियों के लिए स्पेस कम ही रहता रहा है। तीनों हिंदी प्रदेशों में भाजपा को मिली ताजा जीत के बाद अब तो यह और भी सिकुड़ता जाएगा। ताजा विगत चुनावों में इंडिया के घटकों से जिस एकता व ईमानदारी की अपेक्षा थी, वह तकरीबन गायब ही रही। राहुल गांधी के सभी बाण निशाने पर नहीं लगे, पिछड़ी जातियों के सर्वे का नारा बेअसर रहा, परिणाम प्रतिकूल रहे, आदिवासी भी छिटके रहे।

हकीकत यह है कि मोदी-शाह राज ने एक नए किस्म की ‘जन कल्याणवादी राजनीति’ को बाजार में उतार दिया है। अगले पांच वर्ष यानी 2028 तक 81 करोड़ लोगों के सामने जीवन निर्वाह का सपना सजा दिया है। वे ‘मोदी गारंटी’ के  मोहपाश से आसानी के साथ मुक्त हो सकेंगे, यह नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर दिखाई दे रहा है।

इसके साथ ही धर्म अस्त्र-शस्त्र भी तैनात हैं, मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह परिसर का विवाद, काशी की ज्ञानव्यापी मस्जिद प्रकरण पहले से ही चर्चा में है। इन दोनों प्रकरणों के अलावा अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर लगभग तैयार है और अगले वर्ष जनवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसका विधिवत उद्घाटन भी हो जायेगा।

उत्तर के हिंदी भारत की प्राण जनता के लिए यह त्रिआयामी आकर्षण भी मोहपाश से कम नहीं है। अब चुनावों में विपक्ष का संभावित ‘सॉफ्ट हिंदुत्व बाण’ भी निशाने पर लगेगा, इसकी संभावना कम ही दिखाई देती है। धर्म और हिंदुत्व संघ और भाजपा का ‘विशिष्ट आरक्षित क्षेत्र’ है। दोनों की लगभग मोनोपोली है। विपक्ष द्वारा इसमें सेंधमारी की कवायद  नाकाम ही रहेगी।

हिंदी प्रदेशों के ताजा चुनावों में कांग्रेस की ‘सॉफ्ट हिंदुत्व एप्रोच’ बुरी तरह से पिटी भी है। हिन्दुओं को रिझाने के लिए कमलनाथ और बघेल ने क्या-क्या जतन नहीं किये। सभी निष्फल रहे।

संघ और भाजपा कभी भी ‘सॉफ्ट धर्मनिरपेक्षता’ का नाम नहीं लेते हैं। यदि लेंगे तो उन्हें ‘नकली धर्मनिरपेक्षी’ ही माना जायेगा। यही बात कांग्रेस के संबंध में ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ के सवाल पर लागू होती है; कांग्रेसी ‘नकली हिंदुत्ववादी’ ही माने जाएंगे और चुनावों में हुआ भी यही। 

जब वस्तुस्थिति यह है तो मतदाता इंडिया के नेताओं से जानना चाहेंगे कि ‘आपकी यूएसपी’ क्या है? आपकी विशिष्टता क्या है? किस मायने में आप संघ और भाजपा से भिन्न हैं? इंडिया के सामने अपनी ‘विशिष्टता व भिन्नता प्रदर्शन’ की सबसे बड़ी चुनौती है। क्या इंडिया गठबंधन का नेतृत्व इस चुनौती का सामना कर पायेगा? बैठक में इस मुद्दे पर स्पष्ट दृष्टि अपनानी होगी और दो टूक फैसले लेने होंगे।

सवाल उठेगा ही कि कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, शिवसेना, आरजेडी, जनता दल (यू), समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस आदि पार्टियों के पास क्या-क्या नया है? क्षेत्रीय पार्टियों की यूएसपी क्या है? कौन से नारों, नीति, कार्यक्रमों के आधार पर वे अपने मतदाताओं को रिझा सकेंगी?

उत्तर प्रदेश को ही लें। इस राज्य में लोकसभा की 80 सीटें हैं। मुख्य जंग भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच है और कुछ जगह बसपा के कारण लड़ाई त्रिकोणात्मक रहेगी। इंडिया को जिताने और वोटों के विभाजन को रोकने की मुख्य जिम्मेदारी समाजवादी पार्टी की रहेगी, बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव के कंधों पर रहेगी। पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की होगी। उनका आमना-सामना भाजपा से है।

महाराष्ट्र में देश के वरिष्ठतम नेता शरद पवार और शिवसेना के नेता ठाकरे को भाजपा+विभाजित राष्ट्रवादी कांग्रेस+विभाजित शिवसेना की संयुक्त प्रचंड शक्ति से भिड़ना होगा। यही स्थिति कम-अधिक और जगह भी है। केरल जैसे प्रदेश का दृश्य काफी पेचीदा है। मतदाता जानना चाहेगा कि कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों में ऐसी क्या विशिष्टता है जो कि मोदी-शाह ब्रांड भाजपा के पास नहीं है। इसलिए यूएसपी की जरूरत होगी ही।

इस लेखक की दृष्टि में यूनिक सेलिंग प्वाइंट में प्राथमिकता के स्तर पर जनता को यह विश्वास दिलाना होगा कि महागठबंधन के घटक ईमानदारी के साथ एकताबद्ध व संकल्पबद्ध हो कर चुनावी जंग में उतरेंगे और वोटों का विभाजन नहीं होने देंगे। दूसरे स्थान पर यह विश्वास भी पैदा करना होगा कि विजय के बाद ‘दलबदल’ नहीं करेंगे। कोई निर्वाचित सांसद को खरीद नहीं सकेगा।

इसके साथ ही देश को यह वचन देना चाहिए कि इंडिया लोकतंत्र, बहुलतावाद, समतावादी भारत और संविधान के प्रति समर्पित रहेगा। राज्य का चौथा स्तम्भ मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा होगी और उसे ‘गोदी बंदी अवस्था’ से आजाद कराया जाएगा। इसके अतिरिक्त, क्षेत्रीय अस्मिता व आकांक्षाओं की रक्षा की जाएगी, समयबद्ध गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा आदि का खात्मा किया जाएगा, जीने और काम के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया जायेगा।

इसके साथ ही क्षेत्रीय विकास असंतुलन दूर होगा, कृषि क्षेत्र व आदिवासी अंचलों में कॉर्पोरेट पूंजी को प्रवेश नहीं मिलेगा, न्यूनतम समर्थन मूल्य का क़ानून बनेगा, अवैध वन कटाई-खनन नहीं होगा, स्वास्थ्य व शिक्षा क्षेत्र में राज्य की भागीदारी बढ़ेगी और निजी पूंजी को समयबद्ध बाहर किया जाएगा, निर्वाचित जनप्रतिनिधि की जीवन शैली सादा रहेगी।

और बेलगाम उपभोग पर पाबंदी होगी, निजी क्षेत्रों के प्रबंधकों के वेतनमान व व्यय की समीक्षा होगी, अपराधियों व सज़ायाफ्ता व्यक्तियों को चुनाव का टिकट नहीं मिलेगा, एक ही परिवार में सत्ता का केन्द्रीकरण नहीं होगा और एक से अधिक सदस्य चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, उपभोग की सीमा निर्धारित की जायेगी और पर्यावरण पर फोकस रहेगा।

इसके अतिरिक्त प्रादेशिक विशिष्टताओं को ध्यान में रख कर प्राथमिकता-पैमाना निर्धारित किया जाना चाहिए। इसकी भी जोरदार शब्दों में घोषणा की जाए कि कालेधन को पनपने नहीं देंगे और देश का धन लेकर भगोड़े पूंजीपतियों को वापस लाया जायेगा। अवैध सम्पत्तियां जब्त होंगी। खुदरा व्यापारियों और छोटी पूंजी धारकों के हितों की रक्षा की जाएगी, न्याय की प्रक्रिया तेज की जायेगी आदि।

सारांश में, इस सदी की तर्कसंगत जरूरतों और दबावों को ध्यान में रख कर नए सिरे से जन कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं की पहचान कर घोषणा की जाए। और भी ढेरों क्षेत्र हैं यूएसपी के लिए। मसलन, पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा देना और वहां विकास की रफ़्तार तेज करना। जातिगत सर्वेक्षण की आवश्यकता पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए।

मुख़्तसर में, जब तक इंडिया अपने कुछ नायाब करतब लेकर सामने नहीं आता है तब तक उसकी विजयश्री संदिग्ध ही रहेगी। मोदी जी के सामने इंडिया किसका चेहरा रखेगा, यह उत्सुकतापूर्ण जिज्ञासा देश में बनी रहेगी? इस सवाल पर सभी दृष्टियों से विचार करने की भी महती आवश्यकता है। इस दस लाख टके के सवाल का उत्तर ही इंडिया गठबंधन की सबसे महत्वपूर्ण ‘यूएसपी’ होगी।  

(रामशरण जोशी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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