नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित ईरानी महिला नरगिस मोहम्मदी आखिर कौन है?

नई दिल्ली। नार्वे की नोबेल कमेटी ने ईरानी महिला एक्टिविस्ट नरगिस मोहम्मदी को 2023 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया है। अपने सम्मान पत्र में उसने कहा है कि ऐसा “ईरान में उत्पीड़न के खिलाफ उनकी लड़ाई और सभी की स्वतंत्रता और मानवाधिकार को बढ़ावा देने के उनके संघर्ष के लिए” किया गया है।

अपनी घोषणा में कमेटी ने पिछले साल ईरान की मोरलिटी पुलिस की कस्टडी में हुई युवा महिला महसा आमिनी की हत्या के खिलाफ ईरान में चले विरोध-प्रदर्शन को भी चिंहित किया। इसमें कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों का मोटो, ‘ज़न-जिंदगी-आज़ादी’ (महिला-जीवन-स्वतंत्रता), “बिल्कुल सटीक तरीके से नगरिस मोहम्मदी के काम और उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हैं।” 

नरगिस मोहम्मदी कौन है?

ईरान में 1972 मे पैदा हुई मोहम्मदी मौजूदा समय में राज्य विरोधी प्रोपोगंडा को फैलाने और अवमानना के आरोप में जेल में बंद हैं। मोहम्मदी और उनका परिवार बहुत पहले और तकरीबन ईरानी क्रांति के दौर से ही राजनीतिक प्रदर्शनों में शामिल होता रहा है। ईरान में राजतंत्र 1979 के अंत में खत्म हुआ और इसके साथ ही ईरान के लिए इस्लामिक गणतंत्र का रास्ता साफ हुआ।

मोहम्मदी ने इसी साल न्यूयॉर्क टाइम्स को एक साक्षात्कार में बताया कि उनके बचपन की दो यादों ने उन्हें एक्टिविज्म के रास्ते की ओर मोड़ दिया। इसमें उनकी मां का उनके भाई को देखने के लिए जेल का दौरा और इसके साथ ही उनका फांसी पर प्रत्येक दिन कैदियों के चढ़ाने की घोषणाएं सुनने के लिए उनका घड़ी पर देखना।

वह कॉजिवन शहर में न्यूक्लियर फिजिक्स की पढ़ाई करने गयी थीं। यहीं पर उनकी अपने भविष्य के पति ताघी रहमानी जो खुद राजनीतिक तौर पर बहुत सक्रिय हैं, से मुलाकात हुई। ईरान में उन्हें 14 साल की जेल हुई थी। और मौजूदा समय में वह फ्रांस में अपने दो बच्चों के साथ निर्वासन का जीवन जी रहे हैं।

उनके परिवार ने एक बयान में कहा है कि मोहम्मदी को बेहद प्रतिष्ठित सम्मान देने के लिए वह नोबेल पीस कमेटी को अपना आभार जाहिर करना चाहता है। इसके साथ ही सभी ईरानियों को अपनी शुभकामनाएं देना चाहता है। खास करके ईरान की साहसी लड़कियों और महिलाओं को जिन्होंने स्वतंत्रता और समानता के लिए लड़ाई में अपनी बहादुरी के जरिये पूरी दुनिया को आकर्षित कर लिया….जैसा कि नरगिस हमेशा कहती हैं: जीत आसान नहीं है, लेकिन यह निश्चित है’ बयान में कहा गया है।  

एक्टिविज्म की ओर झुकाव

अपने युवा दिनों से ही मोहम्मदी ईरानी महिलाओं के अधिकारों से संबंधित कामों, मृत्युदंड के खिलाफ और राजनीतिक कैदियों को दूसरी कड़ी सज़ाओं और इन सबके खिलाफ स्थानीय अखबारों में लेखन में शामिल रही हैं। वह और उनके पति तेहरान में अपने कार्य स्थल से ही लाइव वीडियो प्रसारण किए, यहां वह इंजीनियर थीं,  लेकिन बाद में सरकार के निर्देश पर उनको निकाल दिया गया।

डीडब्ल्यू रिपोर्ट के मुताबिक वह 2000 में ईरान में सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स में शामिल हो गयीं, जो मृत्युदंड को खत्म करने के लिए ईरानी एडवोकेट शिरीन इबादी द्वारा स्थापित किया गया था। संयोग से इबादी को 2003 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था।

मोहम्मदी को पहली बार 2011 में गिरफ्तार किया गया। द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक: “न्यायपालिका ने सुश्री मोहम्मदी को पांच बार सजा दे चुकी है, 13 बार उन्हें गिरफ्तार किया गया है और उन्हें कुल 31 साल और 154 कोड़ों की सजा मिल चुकी है। इस साल उनके खिलाफ तीन और न्यायिक मामले खोले गए जो उनके लिए अतिरिक्त सजा का कारण बन सकते हैं, उनके पति ने कहा।”

हालांकि जेल में रहते हुए भी वह दूसरे कैदियों के साथ प्रदर्शन आयोजित करती रही हैं। 2002 में उनकी किताब ‘ह्वाइट टार्चर’ उस समय प्रकाशित हुई जब दिल के दौरे और सर्जरी के बाद वह कुछ दिनों के लिए घर पर थीं। यह उनके जेल में बिताए तनहाई कैद का दस्तावेज है और इसमें उन महिलाओं के साक्षात्कार शामिल हैं जिनको सजाएं मिल चुकी हैं।

मोहम्मदी को इसके अलावा पश्चिम में दूसरे कई प्रमुख पुरस्कार मिल चुके हैं जिसमें पेन/बारबी फ्रीडम टू राइट अवार्ड मई 2023 में और 2023 के यूनेस्को/गुलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम प्राइस शामिल है। 2022 में उन्हें बीबीसी द्वारा प्रकाशित दुनिया की 100 प्रभावशाली शख्सियतों की सूची में शामिल किया गया था।

(ज्यादातर इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिया गया है।)

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