बिहार: किशनगंज पर जलवायु परिवर्तन की मार, खेतों में ही जल जा रही हैं फसलें

किशनगंज। नीति आयोग 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, किशनगंज बिहार का सबसे गरीब जिला है। जिसकी 64.75 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है। उसके बाद कटिहार का नंबर आता है। वहीं जलवायु परिवर्तन से संबंधित ‘क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी असेसमेंट फॉर एडाप्टेशन प्लानिंग इन इंडिया यूजिंग ए कॉमन फ्रेमवर्क’ के अनुसार भारत में जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक खतरा जिन 50 जिलों में हैं। उनमें से चौदह बिहार में हैं। इन जिलों में सीमांचल इलाके के 4 में से 3 जिला शामिल हैं। अररिया, किशनगंज और  पूर्णिया।

इन दोनों आंकड़ों से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव अभावग्रस्त और गरीब जिले पर पड़ रहा है। 2023 के अप्रैल से जून महीने में पूरे बिहार में हिट वेब की वजह से खेती और मौसम पर बुरा प्रभाव पड़ा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हिटवेब से बिहार में 50 से अधिक लोग की मृत्यु भी हुई है। सीमांचल के जिलों में जून महीने में 40 डिग्री से 42 डिग्री सेल्सियस तक रहा।

जलवायु परिवर्तन से खेती पर गहरा असर

बिहार में किशनगंज मुख्य रूप से खेती के लिए जाना जाता है। रबी और खरीफ फसल के अलावा किशनगंज में चाय अनानास और ड्रैगन फ्रूट की खेती होती है। जो किसी अन्य जिले में नहीं होती है। किशनगंज की जलवायु के अनुसार इसे बिहार का दार्जिलिंग भी कहा जाता है। 

किशनगंज जिला के ठाकुरगंज प्रखंड के मोहम्मद जैबार बताते हैं कि “स्थिति यह है कि खेत में ही जूट, कुछ सब्ज़ियों की फसलें और मूंग की फसल जल जा रही हैं। जून के पहले सप्ताह में ही धान की रोपनी हो जाती थी। इस बार जून खत्म होने को है और लगभग 50% से ज्यादा किसान रोपनी शुरू भी नहीं किए हैं।”

किसान जैबार धूप से झुलसी फसल दिखाते हुए

वहीं पोठिया प्रखंड के नरेश शाह बताते हैं कि “अन्य साल की तुलना में इस साल गर्मी अधिक पड़ रही हैं। इस वजह से रेड स्पाइडर कीड़े लग रहे हैं और इसकी वजह से पत्तियां लाल हो जाती है। इसलिए नई कलियां निकल नहीं पा रही हैं और पुरानी पत्तियों का विकास भी उस अनुपात में नहीं हो रहा है। कीड़ा मारने के लिए जो केमिकल दवा दी जा रही है इससे फसलों के उत्पादन पर असर पड़ेगा। सिंचाई भी पहले की तुलना में तीन बार ज्यादा करनी पड़ रही है। पहले की तुलना में लगभग प्रति एकड़ 600 से 700 किलो पत्ती कम निकलने का अनुमान है”।

गिर रहा भूजल स्तर

अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2002 से 2013 के बीच हर साल उत्तर भारत में 15 से 25 सेंटीमीटर तक भूजल का स्तर गिरता गया। इसकी मुख्य वजह वन रोपण की कमी और बिना सोचा-समझा विकास का मॉडल है। ग्रामीण कार्य विभाग बिहार सरकार के रिपोर्ट के मुताबिक जिलावार ग्रामीण पथ नेटवर्क, जिलावार मुख्य जिला पथ नेटवर्क और जिलावार राज्य उच्च पथ नेटवर्क में दिनों दिन बढ़ोतरी हुई है। वहीं पलायन पहले की तुलना में ज्यादा बढ़ रहा है। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग बिहार सरकार के मुताबिक सीमांचल के सभी जिले के पानी में प्रति लीटर आयरन की मात्रा औसत से बहुत ज्यादा है। 

स्थानीय वेब पोर्टल पत्रकार विमलेंदु बताते हैं कि, “कोसी नदी के बगल वाले क्षेत्रों में एक अजीब समस्या देखने को मिल रही है। किसी एक जिला का ही दूसरे क्षेत्र बाढ़ तो पहले क्षेत्र सूखा से प्रभावित रहता है। थोड़ी भी बारिश होती है तो कई नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन होने की वजह से किशनगंज में वैकल्पिक कृषि भी खूब बढ़ी है। जबकि वर्षा कम होने से किशनगंज में चाय, अनानास और ड्रैगन फ्रूट की खेती सिकुड़ती जाएगी। जो यहां की प्रसिद्ध फसल है।”

किशनगंज पर जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव

बदलता तापमान, अनियमित बारिश और सुखाड़ की बढ़ती घटनाएं सीमांचल को प्रभावित कर रही हैं। इन सबके बीच किशनगंज के महिला मजदूर और दलित किसान, जलवायु परिवर्तन से लड़ने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ पूरे मामले पर कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण हम एक ही समय में कुछ क्षेत्रों में बाढ़ और कुछ अन्य क्षेत्रों में सूखे का सामना कर रहे हैं। हमारे पास अधिक वर्षा के दिन होते थे और पानी सोखने के लिए पर्याप्त भूमि होती थी। 2022 में ही बिहार सरकार के द्वारा 111 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था। वहीं किशनगंज के कई क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित रहे थे। 

(किशनगंज से राहुल की ग्राउंड रिपोर्ट)

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