बिहार में कम बारिश से हाहाकार, धान की रोपाई के लिए बादलों की ओर टकटकी लगाए हैं किसान

पटना। राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में जहां अति-वृष्टि से तबाही हुई है, वहीं बिहार में अल्प-वृष्टि की भविष्यवाणी जारी की गई है। मानसून रेखा के दक्षिण की ओर खिसकने की संभावना जताते हुए पटना मौसम केन्द्र ने 18 जुलाई से 23 जुलाई के बीच वर्षा नहीं होने का अनुमान व्यक्त किया है। इसे देखते हुए धान के बीचड़ों को बचाने के इंतजाम करने की सलाह दी गई है।

धान की रोपाई के इस सीजन में वर्षा के लिए लोग बादलों की ओर टकटकी लगाए हुए हैं। इस सीजन में कभी ठीक से वर्षा नहीं हुई है। मामूली वर्षा होने पर भी शहरों-बाजारों में जल जमाव हो जाना अलग बात है। पर जून महीने में सामान्य से 69 प्रतिशत कम वर्षा हुई। इसलिए धान के बीचड़े भी बडे पैमाने पर नहीं लगाए जा सके। जितने बीचड़े नलकूप आदि के सहारे लगाए गए, उन्हें भी सूखने से नहीं बचाया जा सका।

जुलाई में वर्षा शुरू हुई तो जिन लोगों ने किसी प्रकार से बीचड़े बचा लिए थे, उनके खेतों में धान की रोपनी भी शुरू हुई। पर काफी बड़े इलाके में अभी बीचड़े तैयार करने के लिए बीज डालने का काम होना है। इधर बरसात भी ठहर गई है। जितनी भी वर्षा हुई है छिटपुट ढंग से हुई है और कहीं भी इस ढंग से नहीं हुई है कि खेती के काम के लिए पर्याप्त हो। रोपनी महज दस से पंद्रह प्रतिशत ही हो पाई है।

वर्षा भले बहुत ही कम हुई है, पर वज्रपात कई बार हुए हैं। इससे राज्य के विभिन्न हिस्सों में एक दिन 15 लोग मारे गए और दूसरे एक दिन में 21 लोगों की मृत्यु वज्रपात से हो गई। गरजते-बरसते बादल आते हैं और दूसरी ओर चले जाते हैं। इस दौरान थोड़ी वर्षा होती है, साथ ही वज्रपात भी हो जाते हैं। इनके चपेट में आने से मनुष्य व पशुओं की मौत हो जाती है।

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, अल नीनों परिघटना के विकसित होने के बावजूद मानसून पूरे देश में फैल गया है और जुलाई में औसत वर्षा सामान्य होने की संभावना जताई गई है। हालांकि जुलाई के शुरू में ही उत्तरी प्रदेशों और हिमालयी राज्यों में भारी अति वृष्टि हुई है, लेकिन बिहार व झारखंड जैसे मैदानी राज्यों में अल्प वृष्टि की हालत है। जून में तो बहुत कम वर्षा हुई, जुलाई में भी स्थिति बहुत बदली नजर नहीं आ रही है।

भारतीय मौसम विभाग के पटना केंद्र ने बयान जारी किया है कि मानसून की रेखा राजस्थान, मध्य प्रदेश से होकर ओडिसा की ओर चली गई है। इस रेखा के दक्षिण की ओर खिसकने की संभावना है। इसलिए बिहार में इस सप्ताह वर्षा की बहुत कम संभावना है। यह बयान पटना, मौसम विज्ञान केन्द्र के प्रमुख आशीष कुमार की ओर से जारी किया गया है। बयान में कहा गया है कि धान की बुवाई के मौसम में वर्षा की यह हालत चिंताजनक है और धान के बीचड़ों को बचाने के लिए पानी की व्यवस्था करने की जरूरत है।

जून-जुलाई में वर्षा की ऐसी हालत का सबसे खराब असर भूजल की स्थिति पर पड़ा है। पूरे राज्य में भूजल का स्तर तेजी से गिर गया है। राज्य के सभी जिलों में भूजल स्तर पिछले साल के मुकाबले नीचे चला गया है। सबसे खराब हालत नवादा और भागलपुर जिलों की है जहां भूजल 10 फीट से भी अधिक नीचे चला गया है। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग ने पिछले वर्ष 30 जून और इस वर्ष 30 जून की स्थिति पर 28 जिलों की जिलावार रिपोर्ट जारी की है।

नवादा में जून 2023 के बाद भूजल का स्तर 35.6 फीट नीचे चला गया है जबकि 2022 में यह 25.4 फीट नीचे था। इसी तरह भागलपुर पश्चिम में भूजल 32.10 फीट नीचे चला गया है जबकि 2022 में यह केवल 22 फीट नीचे था। पटना में भी पिछले साल के मुकाबले भूजल का स्तर 2.9 फीट नीचे चला गया है।

(अमरनाथ झा वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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