पर्यावरण, पर्यटन और पर्यटकों की दुर्गति

अप्रैल के अंतिम दिनों से उत्तराखंड और हिमाचल में पर्यटन से जुड़ी गतिविधियों में सक्रियता बढ़ जाती है। इन्हीं दिनों उत्तराखंड में चार धाम यात्रा का आरंभ हो जाता है। इसी तरह से हिमाचल में बर्फ से भरे दर्रों की तरफ जाने वाले रास्तों की सफाई काफी हद तक हो जाती है, लेकिन बर्फ की चादरें इस समय तक बिछी रहती हैं। इसे देखने और उन रास्तों पर यात्रा करने का लुत्फ उठाने के लिए लोग इन पहाड़ों की तरफ भागते हैं। इन दोनों ही राज्यों की अर्थव्यवस्था में पर्यटन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उत्तराखंड की सरकारों ने चार धाम यात्रा को लोकप्रिय बनाने के लिए कई कार्यक्रम चलाये हैं। रही सही कसर 2019 के लोकसभा चुनाव अभियान के अंतिम क्षणों में प्रधानमंत्री मोदी ने केदारनाथ की यात्रा कर गुफा में ध्यान लगाकर पूरा किया। पर्यटकों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि देखी जा रही है। पर्यटन और इन राज्यों के अपने विकास माॅडलों का दबाव वहां के निवासियों और खुद पर्यटकों के जीवन पर दिखने लगा है।

उत्तराखंड में चार धाम यात्रा पर पर्यटकों की संख्या पर नियंत्रण बनाये रखने के लिए पंजीकरण कराना जरूरी कर दिया गया है। लेकिन, इससे पर्यटकों की जिंदगी पर वहां के पर्यावरण का असर कम नहीं हो रहा। 10 जून, 2023 तक 43.5 लाख ऐसे तीर्थयात्रियों का पंजीकरण किया गया जो चार धाम की यात्रा करने निकले थे। तीर्थ यात्रा शुरू होने से इस समय तक 121 तीर्थ यात्रियों की मौत हो चुकी थी जिसमें 58 की मौत केदारनाथ की यात्रा के दौरान हुई। 634 लोग घायल हुए और 20 खच्चरों की इन यात्रियों को ढोने के दौरान मौत हुई।

यमुनोत्री के रास्ते में 470 यात्री घायल हुए और 21 घोड़े और खच्चरों की मौत हुई। 2500 यात्रियों को ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत हुई। 8 जुलाई, 2023 को रामनगर के पास ढेला नदी में आई अचानक बाढ़ ने 10 में से 9 लोगों को मौत के मुंह में पहुंचा दिया। गंगोत्री के कांलिंदी खल की ट्रैकिंग में 38 लोगों का ले जा रहे 32 वर्षीय गाइड विपिन राणा की थकान और भार ढोने की वजह रास्ते में मौत हो गई।

जून के अंत में हो रही बारिश की वजह से पहाड़ की धसान, टूट और मलबा गिरने से उत्तराखंड में 15 हजार से अधिक यात्री वापसी की प्रक्रिया में फंसे हुए हैं। जबकि वहां रुके यात्रियों से होटल भरे हुए हैं। ऐसी ही स्थिति हिमाचल में है। वहां 200 से अधिक यात्रियों को पूरी रात सड़क पर गुजारनी पड़ी। उपरोक्त घटनाएं कुल चित्र का एक प्रतिनिधि हिस्सा ही हैं। यदि आप इन दो प्रदेशों की स्थानीय खबरों से गुजरें, तो रोज ही पर्यटकों की बेहाल स्थिति का वास्तविक जायजा मिल सकेगा।

ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड और हिमाचल की सरकारें पर्यटकों को दिशा-निर्देश नहीं देतीं। ये उन्हें गर्म कपड़ा, दवा और अन्य व्यवस्था के साथ चलने के लिए हिदायत देती हैं। और, बताती हैं कि जो लोग गंभीर बिमारियों से ग्रस्त हैं, वो ऊंची चढ़ाइयों पर जाने से बचें। ये हिदायतें सड़क के उन नियमों से भी बदतर हैं, जिनका पालन करने की अनिवार्यता के बावजूद सड़क हादसों में वृद्धि देखी जा रही है। इन हिदायतों में जो बात गायब है, वह पर्यावरण में आने वाले बदलाव को लेकर तैयारियां और उस संदर्भ में जारी होने वाले निर्देशों का न होना है।

मसलन, इस साल के अप्रैल महीने के अंत में पश्चिमी विक्षोभ दिखने लगा था और इसका असर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड पर पड़ना था। चार धाम के पट खुलने के दौरान ही इस विक्षोभ के असर से वहां बर्फबारी और बारिश शुरू हो गई। धामों के कपाट बंद कर दिये गये। हजारों पर्यटक वहां फंस गये और दुर्गति के शिकार हुए। इसी तरह जून के शुरुआती दिनों में बिपरजॉय चक्रवात का असर भी इन इलाकों पर पड़ना था। इसकी वजह से तेज बारिश की भविष्यवाणी मौसम विभाग कर चुका था। इसकी वजह से हिमाचल और उत्तराखंड में बहुत से पर्यटक बीच रास्तों में ही फंस गये।

इसी दौरान संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में काम करने वाले मौसम विभाग की एशियाई शाखा ने आगाह करना शुरू कर दिया था कि पहाड़ी इलाकों में अचानक तेज बारिश की संभावना कई गुना बढ़ गई है, और पश्चिमी विक्षोभ का असर मानसून पर पड़ेगा व बारिश का केंद्र पहाड़ की ओर खिसकेगा। जून के अंत में हम इस भविष्यवाणी को सच होते देख रहे हैं। तेज बारिश से पहाड़ दरकने, झील, नदी और रपटा में पानी के तेज बहाव और भराव से पर्यटकों के मरने, सड़क पर फंस जाने और बह जाने की खबरों को हम देख सकते हैं।

इन पर्यावरण संबंधी बदलाव का एक और परिणाम तापमान में होने वाली अचानक गिरावट और नमी में होने वाली वृद्धि है। ऐसे में, कमजोर दिल, सांस, शुगर और रक्तचाप जैसी बीमारियां घातक और जान लेवा हो जाती हैं। अवसाद के शिकार लोगों के लिए भी यह मौसम खतरनाक साबित होता है। थकान, जो पहाड़ में चलने के दौरान होती है, भी जानलेवा साबित होती है। भारत में इन बीमारियों से ग्रस्त लोगों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। ऐसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों में स्वास्थ्य लाभ के संदर्भ में पहाड़ों की यात्रा को भी काफी बढ़ावा दिया गया है।

पर्यटन एक उद्योग की तरह पनपा है। यह भी अन्य उद्योगों की तरह पर्यावरण और लोगों के जीवन की चिंता की बजाय मुनाफा को ही केंद्र में रखता है। हर साल करोड़ों लोग हिमाचल और उत्तराखंड की ओर पर्यटन के लिए जाते हैं। इस उद्योग से वहां के जन-जीवन और पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ रहा है। खुद पर्यटक भी इस उद्योग के मुनाफे की हवस में शिकार हो रहे हैं।

पर्यावरण और पर्यटन एक दूसरे के साथ एक दुष्चक्र की तरह आपस में मिलते और एक दूसरे को तबाह करते हुए दिख रहे हैं। इसमें इंसान की जिंदगी नष्ट और दुर्गति का शिकार हो रही है। जरूरत है, इस मसले को एक सर्वांगीण तरीके से समझने और इसे दुरुस्त करने की और पहलकदमी बढ़ाने की।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

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