यूरोप के कई देश इन दिनों जलवायु परिवर्तन का फल सीधे-सीधे झेल रहे हैं। आम तौर पर ठंडा माने जाने वाले इन देशों में भयानक गर्मी पड़ रही है। इंग्लैंड व फ्रांस जैसे देशों में लू की लहरें चल रही हैं। तापमान 40-45 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक है। जलवायु परिवर्तन के इस परिणाम के कई स्थानीय कारण भी बताए गए हैं।
यूरोप में इस वर्ष की गरमी अभूतपूर्व ढंग से बहुत अधिक है। विलायत में कुछ जगहों पर तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया है। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। पिछले महीने फ्रांस में कुछ जगहों पर तापमान 45 डिग्री से अधिक हो गया था। यह भी इतिहास में पहली बार हुआ था। यूरोप के अन्य देशों में भी अत्यधिक गर्मी है। स्थिति असहनीय है क्योंकि इन इलाकों के घरों में वातानुकूलन यंत्र लगाने का चलन नहीं रहा है।
तापमान के असामान्य रूप से अधिक होने का पहला कारण तो यही है कि वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान बढ़ रहा है। तापमान का रिकार्ड 1880 से उपलब्ध है। नासा ने उसका विश्लेषण किया है। उससे पता चलता है कि पिछले आठ वर्षों से यूरोपीय देशों का लगातार तापमान बढ़ता गया है। विश्व के तकरीबन सभी हिस्से से तापमान बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। विलायत में इस वर्ष हर महीने तापमान पहले से अधिक दर्ज किया गया। विलायत व अन्य यूरोपीय देशों में लू की मौजूदा लहर का इसी रुझान को प्रकट करती है। इसकी शुरुआत जुलाई के दूसरे सप्ताह में हुई।
लेकिन इस स्थिति के लिए जलवायु परिवर्तन को अकेले जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। यह ज़रूर कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसी स्थिति बनी कि कुछ दूसरे स्थानीय कारण इसे पैदा कर सकें। असल में यूरोपीय क्षेत्र के वायुमंडल में एक कम दबाव का क्षेत्र बना था, उसकी वजह से उत्तरी अफ्रीका से गर्म हवा उस ओर आई। आर्टिक महासागर का असामान्य रूप से गर्म होने का भी प्रभाव पड़ा।
अत्यधिक दबाव वाला क्षेत्र धीमी गति से अग्रसर हुआ और उत्तर अफ्रीका से गर्म हवा लेकर आता रहा। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया अभी जारी है। इसलिए यह कहना कठिन है कि यूरोप को इस लू की लहर से कब छुटकारा मिलेगी। पश्चिमी व मध्य यूरोप में इसका प्रकोप है।
गर्म हवाएं उत्तर दिशा में बढ़ रही हैं। सबसे पहले इसका प्रभाव पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस और अब ब्रिटेन पर पड़ रहा है। फिर यह बेल्जियम, नीदरलैंड, लक्जमबर्ग और पश्चिमी जर्मनी, स्विट्जरलैंड और उत्तरी इटली पहुंच रहा है। यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकास्टिंग ने एक बुलेटिन में यह जानकारी दी है जिसे इंडियन एक्सप्रेस ने भी प्रकाशित किया है।
हवा की इसी तरह की गति जून में भी देखी गई थी जब फ्रांस, नार्वे और कई अन्य देशों में अत्यधिक तापमान दर्ज किया गया था। हालांकि ऐसी स्थानीय परिघटनाएं अल्पजीवी होती हैं। फ्रांस में अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस होने के कुछ घंटे बाद ही तापमान करीब 15 डिग्री घट गया। लेकिन अत्यधिक गर्मी की स्थिति बनी हुई है। विलायत में गर्म हवाओं के साथ-साथ अटलांटिक की ओर से आई आर्द्र हवा का प्रभाव भी है। जिससे भारी वर्षा और वज्रपात की संभावना बनी हुई है। यह प्रभाव दक्षिणी व पूर्वी इंग्लैंड में होने की संभावना है।
तापमान में चिंताजनक ढंग से बढ़ोत्तरी जलवायु परिवर्तन की वजह से है, इसमें कोई संदेह नहीं। हर साल तापमान में बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) के प्रमुख ने चेतावनी दी है कि यूरोप में जिस तरह की गर्मी इन महीनों में देखी गई है, वह जल्दी ही सामान्य परिघटना बन जाएगी। डब्लूएमओ के महासचिव पेट्टेरी टलास ने कहा कि भविष्य में इस तरह की गर्म हवाएं अर्थात लू की लहर सामान्य हो जाएगी। नए तरह की चरम परिघटना सामने आएगी। हमने वायुमंडल में इतना कार्बन डाईअक्साइड डाल दिया है कि इस तरह की नकारात्मक मौसमी घटनाएं दशकों तक जारी रह सकती हैं। हम वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन घटाने में सफल नहीं हुए हैं। लू की लहरें बार बार चल सकती हैं।
जलवायु परिवर्तन के बारे में सबसे व्यवस्थित अध्ययन करने वाली आईपीसीसी ने अपनी रिपोर्ट में बार-बार चेतावनी दी है कि प्रकृति की चरम घटनाओं की बारंबारता और तीव्रता में काफी बढ़ोत्तरी होगी। इन घटनाओं में भारी वर्षा, लू की लहर, सूखा, बाढ़, वज्रपात आदि शामिल हैं। आईपीसीसी की सबसे ताजा रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक तापमान के अगले दशक भर में पूर्व-औद्योगिक युग के तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाने की पूरी संभावना है।
अब यह स्पष्ट हो गया है कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक आपातकाल बन गया है। इसे लेकर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ वैश्विक स्तर पर एक सर्वेक्षण कराया जिसमें दुनिया के करीब दो तिहाई लोगों ने जलवायु परिवर्तन को वैश्विक आपातकाल माना था। करीब साठ प्रतिशत लोगों ने माना कि इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।
इसके साथ ही इस असहनीय स्थिति का स्थानीय कारण भी है।
(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरण मामलों के जानकार हैं।)
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