विपक्षी दलों की बैठक में क्यों शामिल नहीं हो रहे हैं केसीआर, नायडू और पटनायक

नई दिल्ली। कांग्रेस संसद के अंदर और बाहर मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में विपक्षी दलों के साथ विरोध करती रही है। अडानी मुद्दे पर कांग्रेस के साथ 19 दल संसद के अंदर और बाहर विरोध में शामिल थे। लेकिन अब जब विपक्षी एकता की बात की जा रही है तो 19 दल भी एक मंच पर आने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। बिहार की दो प्रमुख पार्टियां जेडीयू और राजद हर स्तर पर विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए लगी है। कभी हां और कभी ना की स्थिति वाली ममता बनर्जी भी विपक्षी एकता में शामिल है। लेकिन ओडिशा के नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के के चंद्रशेखर राव अब विपक्षी मंच पर आने के बजाए सत्तारूढ़ भाजपा के करीब दिखाई दे रहे हैं। इसी तरह सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती भी विपक्षी दलों की बैठक में शामिल होने का कोई संकेत नहीं दे रहे हैं। लेकिन यह कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी अंतत: विपक्षी गंठबंधन में शामिल हो जायेगी।

लोकसभा चुनाव के पहले जब विपक्ष एक संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहा है, तब तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रीय दलों ने बैठक में शामिल होने में कोई रूचि नहीं दिखा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इसका कारण क्या है?

दरअसल, कर्नाटक चुनाव के बाद क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव की आहट सुनाई देने लगी है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का असर पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी पड़ेगा। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है, और भाजपा की उपस्थिति नगण्य है। ऐसे में केसीआर और नायडू कांग्रेस की बजाए भाजपा खेमे के नजदीक रहना चाहते हैं। क्योंकि दोनों दलों का राज्य में भाजपा से कोई खतरा नहीं है। ओडिशा में भी कांग्रेस और भाजपा लगभग बराबर राजनीतिक ताकत रखते हैं। ऐसे में तीनों क्षेत्रीय दल विपक्षी एकता के नाम पर कांग्रेस के सामने समर्पण नहीं करना चाहते।

के चंद्रशेखर राव

जेडीयू और राजद के नेताओं ने जब प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विपक्षी दलों की बैठक का ऐलान किया तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव का नाम नहीं लिया। कहा जा रहा है कि केसीआर ने ‘वन अगेंस्ट वन’ ब्लॉक में शामिल होने के बारे में अपना मन नहीं बनाया है क्योंकि तेलंगाना की राजनीति के चलते उनके कांग्रेस के साथ मतभेद हैं। हाल ही में तेलंगाना के नागरकुरनूल में एक सार्वजनिक संबोधन में, केसीआर ने कांग्रेस की आलोचना की और लोगों से कहा कि ‘पार्टी को बंगाल की खाड़ी में फेंक दो।’

इसके अलावा, केसीआर ने अन्य राज्यों में अपनी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) पार्टी के विस्तार के साथ खुद को व्यस्त कर लिया है। महाराष्ट्र में, बीआरएस ने सभी 288 निर्वाचन क्षेत्रों में अपने कार्यालय खोले हैं और मुंबई, पुणे, औरंगाबाद और नागपुर में क्षेत्रीय कार्यालय खोलने की योजना बना रही है। बीआरएस ने मध्य प्रदेश में भी विस्तार की योजना बनाई है। यह भी संभावना नहीं है कि पिछले साल अगस्त में पटना के अपने दौरे के बाद केसीआर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ सहज होंगे, क्योंकि केसीआर और नीतीश कुमार दोनों अपने को विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करना चाहते हैं। बीआरएस के वर्तमान में नौ लोकसभा और सात राज्यसभा सांसद हैं।

नवीन पटनायक

76 वर्षीय दिग्गज राजनेता हमेशा भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए या कांग्रेस को समर्थन देने को लेकर असमंजस में रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में, विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के लिए नीतीश कुमार ने कई बैठकें की हैं। 9 मई को बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा एक प्रयास भी किया गया था, लेकिन भुवनेश्वर में उनके और पटनायक के बीच बैठक में ‘राजनीति पर कोई चर्चा नहीं’ हुई थी। पटनायक ने बैठक के बाद कहा, “हमारी एक जानी पहचानी दोस्ती है और हम कई साल पहले सहकर्मी थे। आज किसी भी गठबंधन पर कोई चर्चा नहीं हुई।”

उस दौरान नीतीश कुमार ने कहा था, “उनके (पटनायक के) पिता बीजू बाबू और नवीन जी से मेरे संबंध बहुत पुराने हैं। कोविड-19 महामारी के कारण हम मिल नहीं पाए। कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई। हमारे बीच अच्छे संबंध हैं और किसी भी तरह की राजनीति पर चर्चा करने की जरूरत नहीं है।”

अतीत में नवीन पटनायक ने हमेशा सुरक्षित राजनीतिक चाल चली है। उनके करीबी सहयोगियों का कहना है कि उनकी राष्ट्रीय राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है और वह ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में खुश हैं। भाजपा और कांग्रेस के साथ उनका राजनीतिक व्यवहार समानता पर आधारित है। नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के विपक्ष के फैसले के बीच, पटनायक ने कार्यक्रम में भाग लेने की घोषणा की थी। बीजेडी के 12 लोकसभा सांसद और नौ राज्यसभा सदस्य हैं।

एन चंद्रबाबू नायडू

विपक्षी दलों की बैठक की सूचना के बीच भाजपा भी सक्रिय हुई। क्षेत्रीय दलों से गृहमंत्री अमित शाह ने बातचीत करना शुरू किया। तेलुगु देशम पार्टी के प्रमुख और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू 3 जून को शीर्ष भाजपा नेतृत्व के साथ बातचीत करने के लिए दिल्ली आए। माना जा रहा है कि अब एक बार फिर नायडू भाजपा-एनडीए गठबंधन में शामिल हो सकते हैं। कर्नाटक चुनावों के नतीजों का पड़ोसी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश पर प्रभाव पड़ा है।

नायडू की अमित शाह से मुलाकात को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है। 2018 में दोनों दलों के बीच कड़वाहट के बाद नायडू और शाह के बीच यह पहली मुलाकात थी, जब टीडीपी ने मोदी सरकार पर आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने की पार्टी की मांग के प्रति उदासीनता दिखाने का आरोप लगाया था।

अब नायडू भाजपा के साथ गठबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि उन्हें वाईएसआरसीपी और मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ खड़ा होना मुश्किल लगता है, जो राज्य में बहुत लोकप्रिय हैं। इसलिए ऐसे समय में जब वे भाजपा का विश्वास हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, तब नायडू के लिए संयुक्त विपक्ष की बैठक में भाग लेना अनिश्चित होगा। टीडीपी के एक राज्यसभा सदस्य और तीन लोकसभा सदस्य हैं।

23 जून को होगी विपक्षी दलों की बैठक

भाजपा-एनडीए के विरोध में लंबे समय से विपक्षी दलों का एक व्यापक मोर्चा बनाने की बात चल रही है। मोर्चा बनाने का मुख्य कारण मोदी सरकार की जनविरोधी और फासीवादी नीतियां है। विपक्षी दलों का आरोप है कि वर्तमान सरकार न केवल जनविरोधी, कॉर्पोरेटपरस्त और संविधान विरोधी है बल्कि दलित, पिछड़े और महिलाओं की भी विरोधी है। मोदी सरकार राज्य सरकारों के अधिकारों को भी सीमित करने की कोशिश करती रहती है। क्षेत्रीय दलों की सरकारें लगातार केंद्र सरकार पर आरोप लगाती रही है। लेकिन भाजपा-एनडीए के सामने कमजोर राजनीतिक शक्ति के कारण उनकी बात नहीं सुनी जाती है।

देश में लंबे समय से भाजपा-एनडीए के विरोध में विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की बात हो रही है। कांग्रेस और दूसरे दल इसके लिए प्रयास भी करते रहे हैं। लेकिन हाल के दिनों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश में ज्यादा सक्रिय रहे हैं। दो असफल प्रयासों के बाद, विपक्षी दलों की बहुप्रतीक्षित बैठक 23 जून को पटना में होने जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी बैठक में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की है। इक बैठक में विपक्षी दलों के प्रमुखों को शामिल होना है।

एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में जद (यू) के अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और राजद के तेजस्वी यादव ने बुधवार शाम को नई तारीख की घोषणा की। राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने कहा कि, ‘सबसे बात करने के बाद तय हुआ कि 23 जून को सभी विपक्षी दलों की बैठक होगी। बैठक पटना में होगी। पार्टियां बीजेपी के खिलाफ एकजुट होंगी।’

ममता बनर्जी (TMC), अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी), उद्धव ठाकरे (शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे), हेमंत सोरेन (JMM), अरविंद केजरीवाल (AAP), एमके स्टालिन (DMK), डी राजा (CPI), सीताराम येचुरी ( सीपीआई-एम) और दीपांकर भट्टाचार्य (सीपीआई-एमएल) बैठक में भाग लेंगे।

12 जून से तारीख इसलिए टाल दी गई क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी दोनों ने तब बैठक में शामिल होने में असमर्थता जताई थी। डीएमके अध्यक्ष स्टालिन ने भी बता दिया था कि वह तय तारीख पर नहीं आ पाएंगे। हालांकि, अब नेता 23 जून को पटना में होने वाली बैठक में शामिल होने के लिए तैयार हो गए हैं।

(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)

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