मिलिए! उन 12 रैट होल माइनर्स से जिन्होंने बचायी 41 जिंदगियां

नई दिल्ली। उत्तरकाशी में मलबा गिरने से सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने में सरकार की सारी एजेंसियां फ्लॉप साबित हुई। सेना, आपदा प्रबंधन और विदेश से आए विशेषज्ञों की विशेषज्ञता और अति-आधुनिक तकनीक बेअसर रही। और 15 दिन इसी कवायद में निकल गया। 16वें दिन रैट होल माइनर्स को काम पर लगाया गया और 24 घंटे के अंदर 12 रैट माइनर्स 41 मजदूरों को सुरंग से बाहर निकाल दिए। ऐसे में सवाल उठता है कि ये रैट माइनर्स कौन हैं और इनके काम करने का तरीका क्या है?

कौन हैं रैट होल माइनर्स

सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए कुल 18 रैट होल माइनर्स लगाए गए थे। लेकिन सुरंग के अंदर जाने वाले 12 रैट माइनर्स में मुन्ना कुरैशी, मोनू कुमार (बुलंदशहर), फिरोज कुरैशी (दिल्ली), नासिर खान, जतिन, देवेंद्र कुमार (बुलंदशहर), वकील हसन, इरशाद अंसारी, राशिद अंसारी, नसीम मलिक, सौरभ और अंकुर टीम थे। टीम के ज्यादातर सदस्य मूल रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। जिन्होंने अपनी जान को जोखिम में डालकर मजदूरों को बाहर निकाल।

सुरंग में घुसने और काम का तरीका

रैट होल माइनर्स मुख्यत:कोयले की खदानों से कोयला निकालने के लिए सुरंग बनाते हैं। कोयलांचल के साथ ही पूर्वोत्तर के राज्यों में तकनीकी विकास के पहले यह तरीका अपनाया जाता था। लेकिन वर्तमान में इस पद्धति पर कानूनी रोक है। लेकिन विषम परिस्थितियों में इस तरीके का प्रयोग किया जाता है।

सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग में 800 मिमी व्यास के एक संकीर्ण स्टील पाइप के अंदर अपने पैर की उंगलियों पर बैठकर, अपने घुटनों को मोड़कर जितना संभव हो उतना नीचे झुक कर और अपने शरीर के बाईं ओर झुका हुआ, अपने हाथों को अपनी छाती के पास और अपनी गर्दन को जितना संभव हो उतना नीचे झुकाकर, रैट माइनर्स ने काम किया। उत्तरकाशी सुरंग से मलबा हटाने में उन्हें करीब 24 घंटे तक लगातार प्रयास करना पड़ा।

सुरंग में जाने का कोई रास्ता और समय की कमी के अभाव में खनिकों ने दो-दो के ग्रुप में ड्रिल किए गए स्टील पाइप में प्रवेश कर नंगे हाथों की मदद से एक खुरपी और एक हैंडहेल्ड ड्रिल मशीन से मलबे, रेत, पत्थर, जाली और टूटे हुए स्टील के ढेर को साफ किया। पीछे वाले सहकर्मी ने मलबे को एक ट्रॉली पर लाद दिया, जिसे बाद में पाइप के मुहाने पर खड़े तीन-चार खनिकों ने रस्सी के सहारे खींच कर बाहर निकाल लिया। जैसे-जैसे इंच दर इंच मलबा साफ होता गया, एक के बाद एक स्टील ह्यूम पाइपों को ड्रिल करके बनाए गए मार्ग के मुहाने पर बचाव कर्मियों ने पाइप को आगे और अंदर धकेलते रहे।

12 रैट-होल खनिकों ने बारी-बारी से पाइप के अंदर सोमवार शाम 7.15 बजे से मंगलवार शाम 6.30 बजे तक काम किया और 8-10 मीटर के मलबे की आखिरी बाधा को हटाकर 16 दिनों से फंसे श्रमिकों को बाहर निकाला।  

अंतिम दौर में रैट माइनर्स टीम का नेतृत्व कर रहे फिरोज के साथ मोनू कुमार और देवेन्द्र कुमार थे। उन्होंने कहा कि “आखिरी चक्कर में, फंसे हुए मजदूरों ने ड्रिलिंग उपकरण के एक हिस्से को मलबे में छेद करते देखा और उसकी ओर भागे। उन्होंने भी उत्साह में अपनी ओर से मलबा हटाना शुरू कर दिया। उस समय मैंने अपने सहकर्मी से चैनल के मुहाने पर खड़े बचावकर्मियों को फंसे हुए मजदूरों तक पहुंचने के लिए पाइप को और अंदर धकेलने के लिए सूचित किया।” “फंसे हुए मजदूरों के पास सबसे पहले पहुंचने और उनसे हाथ मिलाने वालों में फिरोज कुरेशी सबसे पहले थे।”

देवेंद्र ने कहा कि“हम अपने घुटनों के बल बैठ सकते हैं और अपने शरीर के वजन को अपने पैर की उंगलियों पर लगातार तीन घंटे तक रख सकते हैं, अपने शरीर को जितना संभव हो उतना मोड़कर उस स्थान पर समायोजित कर सकते हैं जहां हम काम कर रहे हैं। हम दो फीट जितनी कम जगह में भी इस तरह काम कर सकते हैं और अवरुद्ध हिस्से तक पहुंचने के लिए हमने सिल्क्यारा सुरंग में पाइप के अंदर यही किया। हमें रैट-होल माइनर कहा जाता है, लेकिन चूहे भी लगातार तीन घंटे तक इस तरह खड़े या बैठ नहीं सकते। हमने ड्रिल मशीन को अपने ठीक सामने, अपनी छाती के लंबवत रखा था, जिसका भारी हिस्सा जहां इसकी मोटर लगी हुई थी वह हमारी छाती के दाहिनी ओर छू रहा था।”

मोनू और देवेन्द्र उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर के रहने वाले हैं जबकि फिरोज दिल्ली का रहने वाला है। वे दिल्ली स्थित दो कंपनियों के 18 खनिकों की एक टीम का हिस्सा थे, जो 16 दिनों तक आशा और निराशा के बीच झूलते बचाव अभियान के गुमनाम नायक बन गए।

फिरोज ने कहा कि “जैसे ही हम तीनों उस क्षेत्र में दाखिल हुए जहां 41 मजदूर फंसे हुए थे, वे हमें गले लगाने के लिए दौड़ पड़े। उन्होंने हमें अपने कंधों पर उठाया और बादाम और टॉफ़ी दीं। फिर हम तीनों पाइप से बाहर निकले और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल के कार्यकर्ताओं ने मजदूरों को बाहर निकाला।”  

रैट-होल खनिक अक्सर संकीर्ण सुरंगों और सीवर लाइनों के निर्माण में शामिल होते हैं और मानसून से पहले नालों की सफाई भी करते हैं। उन्हें 12 घंटे के काम के लिए प्रतिदिन 300 से 600 रुपये के बीच भुगतान किया जाता है। वे ज्यादातर लोक निर्माण विभाग और नगर निगमों द्वारा दी जाने वाली संविदात्मक नौकरियों में शामिल कंपनियों के साथ काम करते हैं।

विशेषज्ञता नहीं अभ्यास से उपजा कौशल

यह पूछे जाने पर कि वे ऐसी कठिन परिस्थितियों में कैसे काम कर सकते हैं, सूर्य मोहन, उन खनिकों में से एक, जिन्होंने सोमवार को मीडिया से वादा किया था कि वे 24 घंटे के भीतर लगभग 10 मीटर तक पहाड़ का मलबा साफ कर देंगे और फंसे हुए मजदूरों को किसी भी कीमत पर बचा लेंगे, उन्होंने बताया कि “हम किसी भी फुर्तीले और लचीले व्यक्ति की तुलना में उस स्थिति में अधिक समय तक रह सकते हैं। हम दुर्गंध वाले गड्ढों में लगातार दो-तीन घंटे तक काम कर सकते हैं। हम उन परिस्थितियों में काम कर सकते हैं जहां ऑक्सीजन का स्तर कम है। यह कोई विशेषज्ञता नहीं है, बल्कि बचपन से अभ्यास के माध्यम से निखारा गया कौशल है।”

बदले में कुछ नहीं चाहते रैट माइनर्स

मजदूरों को बचाने के बदले में वे क्या चाहते हैं के सवाल पर  सूर्य मोहन ने कहा- “बिल्कुल कुछ नहीं।” उन्होंने कहा कि“मजदूरों ने साथी मजदूरों को बचाया है। हो सकता है कि किसी दिन हम काम के दौरान कहीं फंस जाएं और ये बचाए गए कर्मचारी हमें बचा लें।”

सूर्या ने कहा कि“जब हमें दिल्ली से सिल्क्यारा लाया गया तो हम बहुत उत्साहित नहीं थे, लेकिन हमारी कंपनी चाहती थी कि हम यह काम करें। हमारे मालिक को उस कंपनी से फोन आया था जो (सिल्कयारा बेंड-बारकोट) सुरंग के निर्माण में शामिल है। हम उस जगह का निरीक्षण करने के लिए सोमवार दोपहर 2 बजे सुरंग में दाखिल हुए जहां हमें काम करना था और एक-दूसरे को बताया कि यह हमारे लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। उन्होंने कहा कि वह और उनके साथी खनिक कभी भी किसी बचाव अभियान का हिस्सा नहीं रहे।

उत्तराखंड सरकार रैट माइनर्स को देगी 50 हजार का ईनाम

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 18 रैट-होल खनिकों सहित प्रत्येक बचावकर्मी के लिए 50,000 रुपये के इनाम की घोषणा की है। उन्होंने चिन्यालीसौड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बचाए गए प्रत्येक मजदूर को 1 लाख रुपये के चेक भी सौंपे। मंगलवार रात को सुरंग से निकाले जाने के तुरंत बाद एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के कार्यकर्ता बचाए गए लोगों को अस्पताल ले आए थे।

बुधवार को मजदूरों को भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर से चिन्यालीसौड़ से ऋषिकेश ले जाया गया और व्यापक शारीरिक और मानसिक जांच के लिए एम्स में भर्ती कराया गया।

एम्स, ऋषिकेश की निदेशक मीनू सिंह ने कहा, “हम उनके रक्तचाप, नाड़ी की जांच कर रहे हैं और ईसीजी और इलेक्ट्रोलाइट परीक्षण भी कर रहे हैं। मेडिकल प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए छाती का एक्स-रे और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन भी किया जाएगा। आने वाले दिनों में वे नींद संबंधी विकार से पीड़ित हो सकते हैं लेकिन हम उन्हें उचित सलाह और दवाएं उपलब्ध कराएंगे।”

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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