मोदी राज में ‘अच्छे दिनों’ की चाह लिए 97 हजार भारतीय अमेरिकी बॉर्डर पर गिरफ्तार

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नई दिल्ली। देश में आजकल चमत्कार को नमस्कार का रिवाज है। टीवी, विज्ञापन और अखबारों में आये दिन खबर पढ़ने को मिलती है कि अपना देश दुनिया में सबसे तेज गति से विकास कर रहा है। लेकिन इसके समानांतर एक स्याह पक्ष भी है, जिसे देखने की हिम्मत बहुत कम लोग कर पाते हैं या कहें देखकर भी अनजान बनने का नाटक करते हैं।

प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (पीटीआई) के हवाले से खबर आ रही है कि पिछले एक वर्ष (अक्टूबर 2022 से लेकर सितंबर 2023) के बीच में रिकॉर्ड 96,917 भारतीय गैरकानूनी तरीके से अमेरिका में घुसने के प्रयास में हिरासत में लिए जा चुके हैं। यह संख्या हालिया यूएस कस्टम एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन (यूसीबीपी) के आंकड़ों में बयां हो रही है।

यह भी कहा जा रहा है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारतीयों के अवैध तरीके से अमेरिकी सीमा के भीतर घुसने की कोशिशों के दौरान गिरफ्तारी की संख्या में करीब पांच-गुना बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।

यह बेहद चौंकाने वाली खबर है, क्योंकि भारत के भीतर तो दिन-रात सरकार, मीडिया और सरकार समर्थकों का यही दावा है कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यस्था है, और देश की जीडीपी की रफ्तार दुनिया में अव्वल है। ऐसे में जब अवसरों का खजाना देश के भीतर से फूट रहा है, तो इतनी बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग आखिर किस वजह से कई-कई महीनों तक तमाम जोखिमों और कभी भी गिरफ्तार होने के खतरों की परवाह किये बिना भी धनी लेकिन धीमी पड़ चुकी अर्थव्यस्थाओं के पीछे पागल हुए जा रहे हैं?

2019 से 2023 के बीच अमेरिकी बॉर्डर पर अवैध सीमापार करते गिरफ्तार भारतीयों की संख्या 

यूसीबीपी के मुताबिक, 2019-20 में बॉर्डर पार करने की कोशिश में 19,883 भारतीय गिरफ्तार हुए थे। 2020-21 में यह आंकड़ा 30,662 हो गया, जबकि 2021-22 में इसमें 100% की वृद्धि देखने को मिली, और इस वर्ष 63,927 भारतीय हिरासत में लिए जा चुके थे। लेकिन इसके बावजूद भारतीयों के हौसले पस्त नहीं हुए और अब वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा बढ़कर 96,917 तक पहुंच चुका है।

हालांकि पीटीआई द्वारा प्रकाशित इन आंकड़ों को पहले ही टाइम्स ऑफ़ इंडिया द्वारा प्रकाशित किया जा चुका था, लेकिन पीटीआई में भी प्रकाशित होने का अर्थ है कि भारत सरकार भी अब इसे आधिकारिक रूप से स्वीकार कर चुकी है। बहरहाल, अब तमाम अन्य भारतीय समाचार पत्रों ने भी इसे अपनी लीड खबर के रूप में स्वीकार्यता दे दी है, लेकिन असल सवाल यह है कि क्या हम सिर्फ इन आंकड़ों को देखकर एक संख्या के रूप में संजो कर आगे बढ़ जायें या ठहर कर विचार करें कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

ऐसी हरकतों से पूरी दुनिया में देश की बदनामी होती है, और मोदी सरकार के दावों को लेकर संदेह पैदा होता है कि वे जमीनी हकीकत को बयां कर रहे हैं या आंकड़ों में हेराफेरी कर विश्वगुरु का झांसा दिया जा रहा है?

इन 96,917 भारतीयों में से अमेरिका में प्रवेश करने वालों में से करीब 30,010 लोगों ने कनाडा की सीमा से घुसने का प्रयास किया था, जबकि 41,770 लोगों को मैक्सिको की सीमा पार करने के दौरान पकड़ा गया है। शेष वे लोग हैं जिन्हें घुसपैठ करने के बाद उनकी ट्रैकिंग कर गिरफ्तार किया गया था। इस प्रकार 2019-20 में पकड़े गए 19,883 भारतीयों की तुलना में इस वर्ष पांच गुना वृद्धि हुई है। 

भारत से अमेरिका में बसने की चाहत रखने वालों में गुजरात और पंजाब के लोगों की संख्या सर्वाधिक बताई जा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि यह संख्या तो सिर्फ उन लोगों की है जो बॉर्डर क्रॉस करने के दौरान कानून के हत्थे चढ़े, लेकिन वास्तविक संख्या इससे कई गुना अधिक हो सकती है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबर के मुताबिक, गुजरात के एक पुलिस अधिकारी का इस बारे में कहना था, “यह तो विशाल हिमखंड का सिर्फ उतना हिस्सा है, जितना समुद्र से आइसबर्ग का सिरा दिखता है। बॉर्डर पर पकड़े गए प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से कम से कम 10 अन्य लोग हो सकते हैं जिन्हें अमेरिका में घुसपैठ करने में सफलता प्राप्त हो गई हो।” इस हिसाब से तो अकेले भारत से ही 10 लाख भारतीय अमेरिका की सीमा में प्रवेश कर चुके होंगे?

हिरासत में रह रहे लोगों की चार श्रेणियां बनाई जा सकती हैं। एकल व्यस्क, परिवार के सदस्यों के साथ बच्चे, पूरा परिवार और सिर्फ बच्चे। इसमें अकेले वयस्क लोगों की संख्या 84,000 पाई गई है, जिन्हें अमेरिकी सीमा पार करने के दौरान पकड़ा गया। लेकिन बेहद चिंताजनक तथ्य यह है कि इनमें 730 बच्चे भी हिरासत में लिए गये हैं, जिनके साथ परिवार का कोई अन्य सदस्य नहीं था।

एक अन्य रिपोर्ट में जानकारी मिलती है कि अधिकांश भारतीय प्रवासियों द्वारा अमेरिका में प्रवेश करने के बाद सीमा गश्ती दल से शरण की गुहार लगाई जाती है। इनमें से कई लोग इन्हीं तरीकों को आजमा कर अमेरिका में प्रवेश पाने में सफल भारतीयों के कारनामों से प्रभावित होकर अपनी किस्मत आजमाते हैं। इस प्रकार दुनिया भर से अमेरिका में अवैध प्रवासन की रफ्तार में तेजी आई है। रिपोर्ट के अनुसार, इस एक वर्ष के दौरान दुनिया भर से अवैध तरीके से अमेरिकी सीमा पार करने की कोशिश करते 20 लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

अमेरिका की संघीय सरकार का वित्तीय वर्ष 1 अक्टूबर से 30 सितंबर के बीच होता है, और इसीलिए अवैध घुसपैठ के आंकड़े भी एक वित्तीय वर्ष को दर्शाते हैं। इस संबंध में अमेरिकी सीनेटर जेम्स लैंकफोर्ड ने गुरुवार को सीनेट में अपने वक्तव्य में कहा कि इन लोगों के द्वारा मेक्सिको के निकटतम हवाई अड्डे तक पहुंचने के लिए फ्रांस सहित अन्य देशों से करीब चार फ्लाइट्स ली जाती हैं। इसके बाद मेक्सिको में कार्टेल की मदद से अमेरिकी सीमा तक पहुंचने के लिए किराए पर बस का प्रबंध किया जाता है, जो उन्हें सीमा तक लाकर छोड़ देती है।

सीनेटर लेंकफोर्ड के अनुसार, “इस वर्ष भारत से हमारी दक्षिणी सीमा पर 45,000 भारतीयों ने सीमा पार की, कार्टेल को पैसे दिए और देश की सीमापार कर घुस आये और पूछने पर उनका जवाब होता है कि उन्हें भारत में खतरा है।” लैंकफोर्ड ने एक बार फिर से दोहराते हुए कहा कि ‘मैं इस बात को कई बार कह चुका हूं कि मेक्सिको में मौजूद आपराधिक गिरोह दुनियाभर के प्रवासियों को सिखा-पढ़ाकर सीमा पार कराता है कि उन्हें क्या कहना है और कहां जाना है, ताकि शरण पाने की सुनवाई पूरी होने के दौरान शरण दिए जाने की प्रकिया को आसानी से पार किया जा सके।

अवैध सीमापार की कोशिश में कई भारतीय गंवा चुके हैं जान

एक वर्ष पहले गुजरात के बलदेव पटेल का तो पूरा परिवार ही इस हादसे का शिकार हो गया था। उनके 39 वर्षीय पुत्र जगदीश बलदेवभाई पटेल, पत्नी वैशालीबेन पटेल (37वर्ष) और दो बच्चे, पुत्री विहंगी जगदीशकुमार पटेल 11 वर्ष, और 3 साल का धार्मिक पटेल 19 जनवरी 2022 के दिन मैनिटोबा और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच बॉर्डर के पास मृत अवस्था में पाए गए थे।

पटेल परिवार हाड़ कंपा देने वाली ठंड के मौसम में अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहा था और पूरे परिवार की जान जोखिम में डालने के कारण पूरे परिवार को जान से हाथ धोना पड़ा। जांचकर्ताओं का यह भी मानना है कि ये मौतें मानव तस्करी अभियान से जुड़ी थीं।

पटेल के अनुसार उनका बेटा दिंगुचा में अपने मकान में रहता था, जो अब बंद पड़ा है। दिंगुचा में हर घर से एक सदस्य कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन या ऑस्ट्रेलिया में रह रहा है और बेटे ने टीचर और व्यवसाय में हाथ आजमाया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। पटेल परिवार के बारे में जांच से पता चला है कि रातभर 11 घंटे से अधिक समय तक कड़कड़ाती ठंड में चलते हुए वे एक दूसरे से बिछड़ गये थे। यह आपबीती किसी एक परिवार के साथ नहीं गुजरी है, बल्कि ऐसी अनेकों दर्दनाक कहानियां हमारे सामने मौजूद हैं। 

गुजरात में बड़ी संख्या में लोग मानते हैं कि यदि बेहतर जिंदगी और आर्थिक सुरक्षा चाहिए तो किसी न किस तरह पश्चिमी देशों में जाने का जुगाड़ बनाना चाहिए। इसके लिए कई बार फर्जी प्रमाणपत्र बनाये जाते हैं। कनाडा जैसे विकसित देशों में जाने के लिए शिक्षा का प्रमाणपत्र होना जरूरी है, और स्टूडेंट वीजा के लिए कई बार झूठे दस्तावेज बनाये जाते हैं। कई बार यह काम ट्रेवल एजेंट के साथ जुड़ा गिरोह करता है, और इसके एवज में कई लाख की रकम ऐंठी जाती है।

पंजाब और गुजरात के छोटे बड़े शहरों में ट्रेवल एवं आव्रजन एजेंट्स के विज्ञापनों की भरमार देखी जा सकती है। ये लोग व्यवस्था में मौजूद खामियों का फायदा उठाकर बड़े पैमाने पर अपने बिजनेस को अंजाम देते आ रहे हैं। लेकिन यह भी तथ्य है कि तमाम मुसीबतों को उठाने के बाद यही लोग जब इन देशों में शरण पा जाते हैं तो अपनी मेहनत के बल पर कुछ वर्षों बाद आर्थिक तौर पर बेहतर स्थिति में आ जाते हैं, और भारत में भी अपने परिवार को आर्थिक मदद पहुंचाते हैं। आज विश्व में सबसे अधिक रेमिटेंस के मामले में भारत अव्वल स्थान पर मौजूद है।

विदेशों में बसे भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार के विश्वसनीय स्रोत

वर्ल्ड माइग्रेशन की एक रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 1995 से 2020 के बीच भारत को प्रवासी भारतीयों से मिलने वाली रकम किस प्रकार लगातार बढ़ती चली गई है। 1995 में जहां यह राशि मात्र 6.2 बिलियन डॉलर थी, 2020 में बढ़कर 83.2 बिलियन डॉलर हो चुकी थी। खुद 7 फरवरी 2023 को जारी भारत सरकार की प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि वर्ष 2021-22 के दौरान देश में 89.127 बिलियन डॉलर रेमिटेंस हासिल हुआ। यही वह रकम है जो सरकार के आयात-निर्यात में लगातार घाटे की क्षतिपूर्ति करता आ रहा है।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यदि हमारा देश वास्तव में सबसे तेज गति से विकास कर रहा है, दुनिया भर की विदेशी कंपनियां भारत में आने के लिए बैचेन हैं, और देश के कई प्रदेशों में हर साल लाखों करोड़ रुपये के निवेश के एमओयू पर हस्ताक्षर किये जाते हैं, तो वह जमीन पर क्यों नहीं दिखाई देता?

भारतीय देश के भीतर ही बेहतर शिक्षा प्राप्त कर देश के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं, बशर्ते उन्हें नजर आये कि उनके लिए वाकई में अवसर मौजूद हैं।

मोदी सरकार और गोदी मीडिया का प्रचार तन्त्र हवा-हवाई विकासगाथा का कितना भी ढिंढोरा पीट ले, कड़वी सच्चाई तो यही है कि हमारे युवा आज पहले के मुकाबले कई गुना संख्या में अपनी जान जोखिम में डालकर पश्चिमी देशों की धरती को छूने के लिए बेताब हैं। ऐसा नहीं होता तो एक साल में 1 लाख भारतीय अमेरिकी सीमा पर गिरफ्तार नहीं किये जाते। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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