वोडाफोन-आइडिया के बेलआउट से दो महीने पहले आदित्य बिड़ला समूह ने बीजेपी को दिया था 100 करोड़ का डोनेशन

नई दिल्ली। भारती एयरटेल और रिलायंस जियो के बाद यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा टेलीकॉम आपरेटर है। लेकिन वोडाफोन आइडिया या वीआई जिस पर संयुक्त तौर पर ब्रिटिश कंपनी वोडाफोन पीएलसी और भारतीय उद्योग समूह आदित्य बिड़ला ग्रुप का मालिकाना है, पिछले पांच सालों से गहरे संकट में हैं।

सबसे बड़ा कारण कर्ज है। इस टेलीकॉम आपरेटर के ऊपर बैंकों और वित्तीय संस्थाओं जिनमें ज्यादातर भारत सरकार की हैं, के 2.14 लाख करोड़ रुपये कर्ज हैं।

सितंबर 2021 में नरेंद्र मोदी सरकार ने एक राहत पैकेज की घोषणा की थी और उसके जरिये उसमें उसने यह प्रावधान किया था कि वो अपने सरकारी कर्जे के एक हिस्से को सरकार की इक्विटी में तब्दील कर सकते हैं।

जनवरी 2022 में वीआई ने कनवर्जन के रास्ते को चुना। हालांकि जैसे ही समय बीता और इसका कर्जा बढ़ता गया टेलीकाम आपरेटर ने छह दिसंबर को घोषणा की कि उसने सरकार से इसके बारे में कुछ नहीं सुना।

अब चुनाव आयोग द्वारा जारी किया गया ताजा इलेक्टोरल बॉन्ड डाटा दिखाता है कि कंपनी के घाटे की घोषणा के छह दिनों बाद आदित्य बिड़ला ग्रुप द्वारा बीजेपी को इलेक्टोरल बांड के तौर पर 100 करोड़ रुपए दिए गए।

फरवरी 2023 में डोनेशन देने के दो महीने के भीतर मोदी सरकार ने 16000 करोड़ रुपये के कर्ज को इक्विटी में तब्दील कर दिया। और इसके जरिये भारत सरकार वीआई की सबसे बड़ी हिस्सेदार बन गयी।

समूह की तीन कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे: बिड़ला कार्बन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, उत्कल एलुमिना इंटरनेशनल लिमिटेड और एबीएनएल इन्वेस्टमेंट लिमिटेड।

अप्रैल 2019 और जनवरी 2024 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये 556 करोड़ राजनीतिक दलों को देकर आदित्य बिड़ला समूह चंदा देने वाला सबसे बड़ा समूह बन गया। इसमें से 285 करोड़ रुपये बीजेपी को गए।

ग्रुप ने 264.5 करोड़ रुपये बीजेडी को दिए जो उड़ीसा में पावर सेक्टर के लिए था।जहां समूह का माइनिंग, मेटल और केमिकल से जुड़े हित हैं।

स्क्रोल ने इस सिलसिले में बिड़ला समूह को सवाल भेजे थे लेकिन उनका अभी तक कोई जवाब नहीं आया था। जवाब आने के बाद रिपोर्ट को उसके मुताबिक अपडेट कर दिया जाएगा।

आदित्य बिड़ला समूह देश के सबसे पुराने उद्योग समूहों में से एक है। 1995 में इसने आइडिया सेलुलर के साथ टेलीकॉम सेक्टर में प्रवेश किया और इसके अगुआ खिलाड़ियों में शामिल हो गया। बीच में 2016 में रिलायंस जियो के भरभंडकारी प्रवेश ने आइडिया सेलुलर और वोडाफोन इंडिया को 2018 में विलय के लिए मजबूर कर दिया। जिसका नतीजा वोडाफोन-आइडिया रहा। जिसमें वोडाफोन का हिस्सा 45 फीसदी और आदित्य बिड़ला समूह का 26 फीसदी था। लेकिन 2019 के एक सुप्रीम कोर्ट रूलिंग ने नवजात विलय के पंख काट दिए और टेलीकॉम कंपनियों को सरकार के उस बड़ी बकाया राशि को देने का निर्देश दिया जिसको उन्होंने सरकारी स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल के लिए कुल आय में समायोजित किया था। वीआई के लिए यह राशि 58000 करोड़ रुपये थी। 

देनदारी का बोझ उस समय आया जब वीआई जियो और एयरटेल के साथ प्रतियोगिता कर रही थी और फिर इसने देखा कि इसके वायरलेस सब्सक्राइबर की मार्केट हिस्सेदारी अक्तूबर, 2018 में 37 फीसदी से घटकर जुलाई 2021 में 23 फीसदी पर आ गयी। 

आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने जून 2021 में कैबिनेट सचिव को बताया कि बगैर तत्काल सरकारी सहायता के वीआई का वित्तीय संकट इसके आपरेशन को कभी भी न लौटने वाले ध्वंस में बदल देगा।

सितंबर 2021 में मोदी सरकार ने एक टेलीकॉम रिलीफ पैकेज की घोषणा की। जिसमें टेलीकॉम आपरेटरों को अपने सरकारी कर्जे के एक हिस्से को सरकार की इक्विटी में बदल देने की छूट दी।

इसके पीछे के तर्क की व्याख्या करते हुए दिल्ली आधारित टेलीकॉम कंसल्टेंसी फर्म के निदेशक महेश उप्पल ने कहा कि विशेषज्ञों और एक्सपर्ट के बीच इस बात को लेकर समान रूप से यह चिंता थी कि भारत का टेलीकॉम सेक्टर बहुत ज्यादा संकुचित होता जा रहा है। दस साल पहले हमारे यहां 12-13 ऑपरेटर थे और अब हमारे पास केवल चार बचे हैं और उसमें भी बीएसएनएल पहले से ही संघर्ष कर रहा है।

उन्होंने कहा कि इसलिए यह सही नीति है जिसमें वीआई को लंबे दिनों तक जिंदा रखने के लिए कुछ दिनों की सहायता जरूरी है। जिससे इस क्षेत्र में प्रतियोगिता को किसी भी रूप में कम न होने दिया जाए।

10 जनवरी 2022 को वीआई के बोर्ड ने 16000 करोड़ रुपये के बकाए को इक्विटी में तब्दील करने पर मुहर लगा दी जो 35.8 फीसदी था। इसका मतलब है कि सरकार टेलीकॉम आपरेटर की सबसे बड़ी शेयरधारक बन जाएगी। और वह वोडाफोन पीएलसी और आदित्य बिड़ला ग्रुप से भी बड़ा होगा।

उसी दिन मुंबई आधारित आदित्य बिड़ला समूह की अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड ने 10 करोड़ रुपये का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा। जिसे बीजेपी ने 21 जनवरी 2022 को भुनाया। गेंद अब सरकार के पाले में थी। फिर भी इन महीनों के बीच संचार मंत्रालय की ओर से बिल्कुल चुप्पी थी। जून 2022 में फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने एक अज्ञात सरकारी सूत्र का हवाला देते हुए कहा कि तब्दीली दो या तीन सप्ताह के बीच हो जाएगी। लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ।

उसी साल अक्तूबर महीने में इकोनामिक टाइम्स ने अज्ञात सरकारी सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट किया कि बेलाआउट में एक नई बाधा खड़ी हो गयी है। सरकार मालिकानों से चाहती है कि वे वीआई में और पैसा डालें या फिर नये निवेशकों को खोजें। इसको उसने तब्दीली की पूर्व शर्त के तौर पर इस्तेमाल किया।

वीआई के मालिकान जो पहले ही मार्च 2022 में 4500 करोड़ रुपये पंप कर चुके थे, ने एक कैच-22 की स्थिति की तरफ इशारा किया। जिसमें उनका कहना था कि जब तक कर्ज इक्विटी में नहीं बदलता है टेलीकॉम आपरेटर फंड इकट्ठा नहीं कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अक्तूबर 2022 में मुंबई आधारित एटीसी टेलीकाम इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड से 16000 करोड़ हासिल करने के लिए वीआई के लिए यह शर्त थी।

वीआई के मालिकान बहुत परेशान थे। इकोनामिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक बकायेदारों का 16000 करोड़ चुकाने और 5 जी वायरलेस सर्विसेज को हासिल करने के लिए उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से संपर्क किया। उसी दिन फार्च्यून ने कहा कि स्टेट बैंक ने बातचीत पर विराम लगा दिया है क्योंकि उसके पास सरकार की योजना को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।

6 दिसंबर, 2022 को वीआई ने घोषणा की कि एटीसी टेलीकॉम प्रस्ताव गिर चुका है क्योंकि इसको सरकार से इस तरह के किसी कनवर्जन की कोई सूचना नहीं मिली।

10 दिसंबर को वीआई ने कहा कि टेलीकाम आपरेटर और एटीसी ने आपसी सहमति से फंड इकट्ठा करने के लिए 28 फरवरी, 2023 तक के लिए समय सीमा को विस्तारित कर दिया है।

दो दिन बाद 12 दिसंबर को आदित्य बिड़ला समूह की तीन कंपनियों ने 100 करोड़ रुपये का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा। जिसमें मुंबई आधारित बिड़ला कॉर्बन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने 55 करोड़ रुपये का खरीदा उसके बाद भुवनेश्वर आधारित उत्कल अलुमिना इंटरनेशनल लिमिटेड ने 35 करोड़ का और गुजरात आधारित एबीएनएल इन्वेस्टमेंट लिमिटेड ने 10 करोड़ रुपये का बॉन्ड खरीदा। इन बॉन्डों को बीजेपी ने 14 दिसंबर, 2022 को भुनाया।

5 जनवरी, 2023 को सीएनबीसी-टीवी 18 ने बताया कि बिड़ला ने संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात कर कवर्जन की प्रक्रिया को तेज करने की गुजारिश की। इसमें कहा गया कि संचार मंत्रालय ने इक्विटी कनवर्जन के लिए जरूरी सभी अनुमतियों को हासिल कर लिया। लेकिन विचार के लिए विभाग के पास फाइल पेंडिंग में है।

3 फरवरी को वीआई द्वारा मालिकान या फिर निवेशकों के स्तर पर किसी भी तरह के फंड को इकट्ठा न करने के बावजूद संचार मंत्रालय ने 16000 करोड़ रुपये के कनवर्जन को मंजूरी दे दी और इससे डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट को 33 फीसदी इक्विटी हासिल हो गयी। और फिर 28 फरवरी को वीआई की एटीसी टेलीकॉम के साथ डील पूरी हुई।

दूसरे चक्र का दान

20 नवंबर, 2023 को आदित्य बिड़ला समूह की तीन कंपनियां बिड़ला कॉर्बन इंडिया, उत्कल अलुमिना इंटरनेशनल और अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड ने बीजेपी को नया टेलीकम्यूनिकेशन विधेयक संसद से पारित करने से एक महीने पहले 100 करोड़ रुपये का दान दिया।

नये कानून ने टेलीकॉम इंटस्ट्री के लिए बिजनेस को खत्म कर दिया। इस कानून ने स्पेक्ट्रम को रिफ्रेम करने का कानून पास कर दिया यानि कि इसको जिसके लिए खरीदा गया है उससे इतर टेक्नालाजी में इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे 4जी स्पेक्ट्रम को 5जी में भी लागू किया जा सकता है। यह टेलीकॉम इंडस्ट्री की बहुत दिनों से मांग चली आ रही थी।

इस एक्ट ने सरकार को यह करने का भी अधिकार दे दिया कि सार्वजनिक हित में वह टेलीकाम आपरेटरों को स्थापित करने, आपरेट करने और आधारभूत ढांचे को बनाए रखने के लिए प्राइवेट प्रापर्टी तक पहुंच की इजाजत दे सकती है। 

भारती समूह जो एयरटेल की मालिक है,ने भी 100 करोड़ रुपये का बीजेपी को 9 नवंबर 2023 को दान दिया। उसके बाद जनवरी, 2024 में 50 करोड़ और रुपये का दान दिया।

क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड एक कंपनी जो रिलायंस समूह से जुड़ी है, ने भी 17 नवंबर, 2023 को 50 करोड़ रुपये का दान दिया।

सेलुलर आपरेटर्स एसोसिएशन ने विधेयक का स्वागत किया। एक अलग से बयान में वीआई के सीईओ अक्षय मूदरा ने विधेयक के बारे में कहा कि टेलीकॉम सुधार की प्रक्रिया में एक अभूतपूर्व घटना है।

(यह रिपोर्ट स्क्रोल से साभार ली गयी है जो न्यूज़लॉन्ड्री, स्क्रोल और द न्यूज़ मिनट के साझे उपक्रम की उपज है।)

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