जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजाति के बाद अब ओबीसी समाज भी सड़कों पर

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जम्मू-कश्मीर में 13 नवंबर 2022 से ही अनुसूचित जनजाति की सूची में पहाड़ी, ब्राह्मण एवं अन्य समुदाय के लोगों को शामिल करने के केंद्र सरकार के प्रस्तावित बिल के खिलाफ विरोध की आवाज आने लगी थी। ‘एसटी बचाओ मार्च’ के तहत पैदल मार्च गंदोह से डोडा और जम्मू तक निकाला गया। पैदल मार्च में शामिल नेताओं का कहना था कि यदि राज्य में पहाड़ियों को आरक्षण देना है तो भले ही सरकार उन्हें 10% तक दे दे, हमें कोई एतराज नहीं है, लेकिन हमारे हक न छीने जायें। वहीं बजट सत्र में ही केंद्र सरकार इससे संबंधित तीन विधेयक पेश कर चुकी थी, जिसे अब मानसून सत्र में पारित करा चुकी है।

25 जुलाई को अन्य पिछड़ा वर्ग से जुड़े विभिन्न संगठनों ने उच्च जातियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल किये जाने के प्रस्ताव के विरोध में जम्मू में ‘अधिकार तिरंगा यात्रा’ निकाली। ओबीसी महासभा, ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लासेज फेडरेशन एवं ऑल जम्मू-कश्मीर वेलफेयर फोरम श्रीनगर के सदस्यों ने इस विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

ओबीसी महासभा के महासचिव मोहन लाल पवार ने अपने बयान में कहा, “हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के जम्मू-कश्मीर के ओबीसी वर्ग के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार का विरोध करते हैं।”

श्रीनगर से भी गुज्जर और बक्करवाल समुदाय के द्वारा अनुसूचित जनजाति की सूची में पहाड़ी समुदाय को शामिल किये जाने के खिलाफ सड़क पर विरोध प्रदर्शन की खबर आ रही है। ओबीसी समुदाय के नेता मुखिया गुज्जर का इस बारे में कहना है, “हम अकेले नहीं हैं। पूरे देश का गुज्जर समुदाय हमारे साथ है। हम अपने वाजिब हक के लिए संघर्ष जारी रखेंगे।” प्रदर्शनकारी अपने मार्च को राज भवन की ओर ले जा रहे थे, लेकिन उन्हें पुलिसकर्मियों ने बीच में ही रोक दिया था।  

23 जुलाई को जम्मू में एक विशाल मशाल रैली आयोजित कर अनुसूचित जनजाति समुदाय की ओर से एसटी श्रेणी में उच्च जातियों को शामिल किये जाने के सरकार के प्रस्तावित बिल का विरोध किया गया। एसटी समुदाय के मुताबिक सरकार वंचित समुदाय की दुर्दशा की अनदेखी कर रही है। ऊपर से अब उच्च जातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में डालकर पहले से वंचित तबकों और समाज के मजबूत वर्गों के बीच के विभाजन की खाई को बढ़ाने का ही काम होगा।

जम्मू-कश्मीर में अभी तक गुज्जर और बक्करवाल समुदाय को ही अनुसूचित जनजाति की श्रेणी के तहत आरक्षण एवं अन्य अधिकार हासिल थे। इस समुदाय के लोगों का आज कहना है कि जम्मू-कश्मीर में भी मणिपुर जैसे हालात पैदा किये जा रहे हैं। यहां के मूल जनजातियों के हक़ को छीनकर उच्च जातियों के लोगों को दिया जा रहा है। सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।

केंद्र सरकार के इस बिल से पुंछ और राजौरी जिले के वंचित और पिछड़े तबकों के हितों को चोट पहुंचने जा रही है। उनका मानना है कि गुज्जर और बक्करवाल की तुलना में अन्य समुदाय सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से ऐतिहासिक तौर पर मजबूत रहे हैं। आधुनिक राज्य की जिम्मेदारी थी कि इस ऐतिहासिक सामजिक अन्याय को कम करने के लिए उन्हें सकारात्मक एक्शन के माध्यमों के जरिये मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जाता, जैसा अमेरिका एवं अन्य यूरोपीय देशों में देखने को मिलता है।

जम्मू-कश्मीर में गुज्जर, बक्करवाल की करीब 30 लाख आबादी होने के बावजूद आधा दर्जन विधायकों के द्वारा प्रतिनिधित्व मिलता था। लेकिन एसटी श्रेणी में पहाड़ी और ब्राह्मण को शामिल करने के बाद उनके पास राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी छिन जायेगा, जिसका समुदाय पुरजोर विरोध करेगा। 

जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जाति में वाल्मीकि और अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में पहाड़ी, ब्राह्मण और कोल समुदाय को शामिल करने के लिए केंद्र सरकार मानसून सत्र में ही तीन विधेयक पारित करने पर आमादा है। इसी सिलसिले में सोमवार को जब लोकसभा में मणिपुर मुद्दे पर विपक्षी दल नारेबाजी और पीएम मोदी के संसद के भीतर बयान पर अड़ा था, और प्रश्न काल के लिए आंशिक रूप से सदन चलाने का मौका मिला, तो उस दौरान भी सरकार नर्सिंग एंड मिडवाइफरी कमीशन बिल, 2023, नेशनल डेंटल कमीशन बिल, 2023 और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (पांचवां संशोधन) को पारित करा पाने में कामयाब रही।

इसी प्रकार मंगलवार को भी सरकार लोकसभा में मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज (संशोधन) विधेयक, 2022 एवं जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2022 जैसे प्रमुख विधेयक पारित करने में कामयाब रही है। इसी के साथ-साथ राज्यसभा में लंबित संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (पांचवां संशोधन) विधेयक, 2022 भी भाजपा सरकार बिना किसी बाधा के पारित करा पाने में सफल रही है।

कश्मीर में अनुसूचित जाति में वाल्मीकि समुदाय को शामिल करने को कश्मीर में राज्य से बाहरी लोगों को आरक्षण दिए जाने के रूप में देखा जा रहा है। इसी प्रकार जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में पहाड़ी, ब्राह्मण और कोल को एसटी श्रेणी में शामिल करने से भाजपा के लिए अपने वोट बैंक को विस्तारित करने में ही मदद नहीं मिलेगी, बल्कि उच्च जातियों के एसटी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर मजबूत प्रतिनिधित्व भी हासिल होने की संभावना है।

घाटी के मुस्लिम और लद्दाख के लोग जहां आज खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं, वहीं आज केंद्र सरकार के इस फैसले से गुज्जर और बक्करवाल भी आक्रोशित और खुद को ठगा पा रहे हैं। इसे यदि आज यह समुदाय क्षेत्र में नई फाल्ट लाइन खड़ी करने के रूप में देख रहा है, तो शायद उनका ऐसा समझना गलत नहीं है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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