आंध्र प्रदेश: राजनीतिक बदलाव और उठापटक की पृष्ठभूमि में चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी

आंध्र प्रदेश की राजनीति में तेजी से बदलते घटनाक्रम ने कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों को चौंका दिया है। प्रदेश की राजनीति में जहां हाल तक टीडीपी, पवन कल्याण की जनसेना पार्टी और बीजेपी के बीच संभावित गठबंधन की अटकलों का बाजार गर्म था, कि अचानक से 9 सितंबर, 2023 के दिन आंध्र प्रदेश की सीआईडी द्वारा चंद्रबाबू नायडू पर आंध्र प्रदेश कौशल विकास निगम में अपने मुख्यमंत्रित्व काल में 371 करोड़ रुपए की धनराशि गबन करने का आरोप लगाकर हिरासत में ले लिया जाता है।

आश्चर्यजनक रूप से न तो केंद्र और न ही सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी द्वारा इस गिरफ्तारी की आलोचना की जाती है और बीजेपी अपने संभावित सहयोगी के साथ एकजुटता को खुलकर जाहिर करने से बचती दिख रही है। लेकिन उससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह है कि सूत्रों से संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गठबंधन की वार्ता के लिए एआईएडीएमके नेता एडाप्पडी पलानीस्वामी और जेडी (एस) नेता कुमारस्वामी के साथ-साथ जगन मोहन रेड्डी को भी दिल्ली पहुंचने का न्योता दिया है।

राज्य सभा के भीतर वाईएसआरसीपी और टीडीपी दोनों के समर्थन का लाभ उठाने के बावजूद भाजपा ने अब जगन मोहन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू के साथ समान दूरी बनाए रखने की अब तक की अपनी नीति को परे हटाते हुए लगता है कि उसने अंततः चंद्रबाबू नायडू को उनके भाग्य के सहारे छोड़ दिया है और 2024 लोकसभा चुनाव के लिए वाइएसआरसीपी के साथ गठबंधन बनाने की दिशा में कदम बढ़ा लिया है।

कांग्रेस के नेताओं के साथ वाईएसआरसीपी नेताओं की वार्ता की अटकलों के बावजूद ऐसा लगता है कि वाईएसआरसीपी ने कांग्रेस को परे धकेलकर अब भाजपा के साथ गठबंधन बनाने की दिशा में जाने का फैसला कर लिया है। चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी की पृष्ठभूमि इस प्रकार से है।

चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ मामला

चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ दिसंबर 2021 को केस दाखिल किया गया था। यह मामला अदालत में विचाराधीन होने के बावजूद, 21 महीने बाद अचानक नायडू को 9 सितंबर, 2023 को गिरफ्तार कर लिया जाता है। इसे एक विचित्र संयोग ही कहा जा सकता है कि अगले ही दिन 10 सितंबर 2023 को विजयवाड़ा की विशेष अदालत को पूर्व मुख्यमंत्री नायडू के खिलाफ धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात, जालसाजी और भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत एक प्रथमदृष्टया मामला समझ आता है, और उन्हें 14 दिनों की न्यायाधीश हिरासत में रखने का आदेश सुना दिया गया है।

चंद्रबाबू नायडू की ओर से इस आदेश के खिलाफ आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में अपील कर मांग की गई कि उनके खिलाफ लगाए गए मामले को रद्द किया जाए और उन्हें न्यायिक हिरासत में रखने के बजाय घर पर हिरासत में रखा जाए। उच्च न्यायालय ने अस्थायी तौर पर विशेष अदालत के आदेश पर रोक लगा दी है और मामले की अगली सुनवाई को 19 सितंबर के लिए निश्चित कर दिया है, लेकिन नायडू के न्यायिक हिरासत में रखे जाने के खिलाफ की गई अपील को खारिज कर दिया है ।

उच्च न्यायालय में नायडू की ओर से यह तर्क पेश किया गया था कि उनकी गिरफ्तारी इसलिए गैरकानूनी है क्योंकि इसके लिए राज्यपाल से पूर्व-अनुमति लेने की यथोचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अनुच्छेद 17 के अनुसार किसी भी सेवारत या पूर्व लोकसेवक, जिसमें पूर्व मंत्री भी शामिल हैं, की पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार करने से पहले राज्यपाल से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है।

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में पहले ही इस बात को स्पष्ट किया हुआ है कि विशेष अदालतों को लोक सेवकों के खिलाफ दाखिल की गई निजी शिकायतों का तब तक संज्ञान नहीं लेना चाहिए, जब तक ऐसा करने की पूर्व-मंजूरी राज्यपाल द्वारा न दी गई हो। नायडू की ओर से दलील दी जा रही है कि राज्य सरकार द्वारा इस मामले में दर्ज शिकायत पर भी यही नियम लागू होना चाहिए।

इस मामले में और क्या-क्या घटनाक्रम सामने आता है, यह अब 19 सितंबर, 2023 के बाद ही पता चलेगा। लेकिन अभी भी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि चंद्रबाबू नायडू को ट्रायल कोर्ट का फैसला सुनाए जाने से ठीक एक दिन पहले क्यों गिरफ्तार कर लिया गया? इसके साथ इस बारे में स्पष्टता का अभाव बना हुआ है कि उच्च न्यायालय द्वारा ट्रायल कोर्ट के फैसले को ख़ारिज कर देने और उनके खिलाफ सीआईडी की कार्रवाई पर 19 सितंबर तक रोक लगाने के बावजूद उन्हें जमानत पर रिहा क्यों नहीं किया जा रहा है?

विडंबना यह है कि जहां एक ओर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मीडिया को प्रसिद्ध न्यायिक उक्ति “जब तक अपराध सिद्ध नहीं हो जाता, तब तक हर इंसान निर्दोष है’ का हवाला देकर किसी आरोपी को अपराधी के रूप में व्याख्यायित नहीं किये जाने को लेकर आये दिन फटकार लगाई जाती है, और शीर्षस्थ अदालत के द्वारा बारंबार इस बात को दोहराने के बावजूद कि विचाराधीन मामलों के लिए जेल नहीं जमानत का नियम होना चाहिए, आंध्र प्रदेश सरकार चंद्रबाबू को गिरफ्तार करने को प्राथमिकता देती है और उच्च न्यायालय को भी लगता है कि घर पर नजरबंद रखने के बजाय उन्हें राजमुंदरी केंद्रीय कारागार में रखना उनके लिए ‘ज्यादा सुरक्षित’ होगा!

बहरहाल, चंद्रबाबू भी अब गिरफ्तार होने वाले पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद यादव, करुणानिधि, जयललिता, मधु कोडा और ओमप्रकाश चौटाला वाले गुट में शामिल हो चुके हैं, जो भ्रष्ट होने के साथ-साथ राजनीतिक बदले की कार्रवाई के भी शिकार रहे हैं। हालांकि कुछ अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों एवं मंत्रियों जैसे कि मायावती, अशोक चौहान और येदियुरप्पा के खिलाफ भी मामले दर्ज किए गए थे लेकिन इन सभी को गिरफ्तारी का सामना नहीं करना पड़ा। और की तो बात ही छोड़िये, खुद जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ भी कुछ गंभीर मामले आज भी लंबित हैं।

सीबीआई द्वारा जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ 11 चार्जशीट दर्ज हैं, जिनमें सरकारी ठेकों के दुरुपयोग सहित खनन लाइसेंस के कई मामलों में अपनी खुद की 58 कंपनियों का पक्षपोषण कर 45,000 करोड़ रुपये तक का लाभ हासिल करने के आरोप तब से कायम हैं, जब उनके पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी राज्य के मुख्यमंत्री थे। उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति से संबंधित एक अन्य मामला भी लंबित है। लेकिन जेल की सीखंचों के पीछे होने के बजाय जगन आज आंध्र के मुख्यमंत्री के रूप में सत्तासीन हैं। लेकिन उन्होंने नायडू को एक ऐसे मामले में अदालत के फैसले का इंतजार किये बिना ही जेल में डाल दिया है, जिसमें 371 करोड़ रुपए के घपले में काफी दिनों बाद उनके नाम को जोड़ा गया था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि आंध्र प्रदेश में आपराधिक न्याय तमाशे के रूप में पूरी तरह से एक पक्ष की ओर झुका हुआ है।

इसी बीच एक और घटना हुई है। चंद्रबाबू को उच्च न्यायालय से 19 सितंबर को संभवतः किसी प्रकार की दंड-मुक्ति, यहां तक कि जमानत पर छूट जाने की संभावना को भांपते हुए जगन सरकार ने 13 सितंबर को नायडू के खिलाफ एक नया मामला ठोंक दिया है।

गिरफ्तारी का परिणाम

नायडू की गिरफ्तारी के बाद से ही टीडीपी कार्यकर्ताओं की ओर से विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी है, और 11 सितंबर के दिन एक सफल बंद को भी आयोजित किया जा चुका है। टीडीपी ने घोषणा की है कि विरोध प्रदर्शनों को जारी रखा जायेगा।

भाजपा की पूर्व सहयोगी पवन कल्याण की जनसेना पार्टी, जिसकी तेलुगू देशम पार्टी से नजदीकियां बढ़ी हैं, की ओर से भी अपने कापू समुदाय के मजबूत गढ़ों जैसे कि पूर्व एवं पश्चिम गोदावरी के इलाकों में सक्रिय रूप से विरोध प्रदर्शन में हिस्सेदारी की जा रही है। चूंकि वर्तमान में अपेक्षाकृत संपन्न खम्मा समुदाय में चंद्रबाबू नायडू सबसे बड़े नेता हैं, ऐसे में खम्मा के मजबूत गढ़ों जैसे कि विजयवाड़ा, गुंटूर, तेनाली, नेल्लौर और प्रकासम जिलों में असंतोष सबसे मुखर रूप में नजर आ रहा है।

नायडू की गिरफ्तारी पर कांग्रेस तटस्थ नजर आ रही है और उसने खुद को गिरफ्तारी पर निंदा वाले बयान तक सीमित कर रखा है।
वामपंथी दलों में सीपीआई सक्रिय रूप से गिरफ्तारी का विरोध कर रही है और टीडीपी के साथ खड़ी है, लेकिन कुछ अज्ञात वजहों से सीपीआई (एम) का विरोध उदासीन दिखता है। सीपीआई (एमएल) के विभिन्न समूहों की ओर से गिरफ्तारी की भर्त्सना की गई है।

लेकिन मुख्य रूप से यहां पर टीडीपी के ही कार्यकर्ता और समर्थक हैं जो विरोध प्रदर्शनों में बढ़चढ़कर हिस्सेदारी कर रहे हैं, आम नागरिकों की ओर से गिरफ्तारी को खारिज किया जा रहा है, लेकिन सड़कों पर उनकी सक्रिय भागीदारी नहीं दिख रही है। संभवत इसके पीछे की एक वजह यह भी है कि आम लोगों, विशेषकर महिलाओं के बीच जगन रेड्डी खासे लोकप्रिय बने हुए हैं। इसकी बड़ी वजह उनके द्वारा आला-दर्जे की कल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगा देने में छिपी है।

वास्तव में देखें तो जगन मोहन रेड्डी सरकार, आंध्र प्रदेश में 2 वजहों से अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में सफल रही है। इनमें से एक है, अनोखी लोकप्रिय कल्याणकारी योजनायें, विशेषकर इनमें महिलाओं को केंद्र में रखकर कई योजनाएं हैं। दूसरा है, भ्रष्टाचार को खत्म करने के नाम पर विपक्ष को कुचलने के लिए बेहद दमनकारी सत्तावादी उपायों को अपनाना। आईये इन दोनों पहलुओं को विस्तार से देखने की कोशिश करते हैं।

जगन की जनकल्याण योजनाएं

एनटीआर की 2 रुपये प्रति किलो चावल वाली लोकलुभावन योजना वाली भूमि में जगन ने कल्याणकारी राज को नई ऊंचाईयों पर पहुंचा दिया है। विशेषकर कल्याणकारी वितरण के मामले में नवोन्मेष अपने आप में उल्लेखनीय है। उदाहरण के लिए, पीडीएस चावल के वितरण कार्य को फरवरी 2021 के बाद से आम लोगों के दरवाजे तक पहुंचाने की योजना आम लोगों के बीच में, विशेषकर महिलाओं में बेहद लोकप्रिय है। इसकी वजह से वितरण में होने वाली लीकेज बड़े पैमाने पर कम हुई है और राज्य सरकार को भी खाद्य सब्सिडी के मद में अच्छी-खासी बचत हुई है।

इसी प्रकार, आंध्र प्रदेश सरकार ने वृद्ध-जनों, विधवाओं एवं दिव्यांगजनों की पेंशन राशि का भुगतान उनके घर तक पहुंचाने का काम कर 58,44,240 लाभार्थियों को बीडीओ ऑफिस या मंडल पंचायत कार्यालय का चक्कर काटते रहने और बहुत सारे झंझटों से मुक्त कर दिया है। वर्तमान शासन के दौरान पेंशन लाभार्थियों की संख्या में भी 3 लाख का इजाफा हुआ है।

लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण चीज यह है कि ईपीएफओ के द्वारा राज्यों को पुरानी पेंशन स्कीम में वापस लौटने की इजाजत नहीं दी जा रही थी, जिसके मद्देनजर जगन सरकार ने राज्य सरकार के सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन को उनकी अंतिम सैलरी निकासी के 50% के बराबर लाकर मौजूदा पेंशन को ओल्ड पेंशन स्कीम के लगभग बराबर ला दिया है। सरकारी कर्मचारियों में इससे ख़ुशी का माहौल है। इसके अलावा जगन सरकार ने लगभग 10000 सरकारी संविदा कर्मियों को स्थायी नियुक्ति दी है। एक और ऐतिहासिक फैसले में जगन सरकार ने करीब 15, 000 पारा शिक्षकों को सरकारी कर्मचारियों के रूप में खपाने का काम किया है।

लेकिन सबसे उल्लेखनीय, जगन सरकार ने बीडीओ, मंडल राजस्व अधिकारियों और जिला राजस्व अधिकारियों की भूमिका को पूरी तरह से खत्म कर, लाभार्थियों हेतु कल्याणकारी योजनाओं के वितरण के लिए पंचायत नेताओं की तीन परत बना दी है। पूर्ववर्ती कांग्रेस और टीडीपी सरकारों द्वारा आम लोगों तक कल्याणकारी फंड के हस्तांतरण के लिए बिचौलियों की परत दर परत निर्मित कर दी गई थी। आलम यह था कि टीडीपी की समूची पार्टी मशीनरी ही इस प्रकार की योजनाओं के लाभार्थियों से जबरन वसूली पर चल रही थी। आज के दिन सभी योजनाओं का सारा पैसा सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में जमा हो रहा है। असल में देखें तो टीडीपी कार्यकर्ताओं की गुस्से की वजह चंद्रबाबू की गिरफ्तारी से अधिक यही वजह बनी हुई है।

हमारे पिछले लेखों में से एक में (“क्या जगन एनडीए और इंडिया के बीच में अपनी तटस्थता को बरकारर रख पाएंगे?”, जनचौक, 12 अगस्त 2023), में हमने महिलाओं, विशेषकर छात्राओं की शिक्षा को लेकर जगनमोहन सरकार द्वारा नई योजनाओं की संख्या के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की थी। इन योजनाओं के सहारे जगन ने आंध्र प्रदेश में महिला शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। स्कूली शिक्षा, कॉलेज एजुकेशन और प्रोफेशनल एजुकेशन सहित विदेश में पढ़ाई करने के लिए भी छात्राओं को एक-मुश्त धनराशि प्रदान की जा रही है। इसकी वजह से छात्राओं के पंजीकरण में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, विशेषकर गरीब आदिवासी, दलित और खेतिहर मजदूर परिवार की लड़कियों के बीच में इसे देख सकता है।

मोदी की मुद्रा योजना की तुलना में जगन की स्व-रोजगार योजना के तहत भी महिलाओं की आय के स्तर में बढ़ोतरी हुई है। इन सभी योजनाओं के चलते आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी के लिए महिलाओं के बीचे में एक मजबूत मतदाता समर्थक वर्ग तैयार हो गया है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इस प्रकार के समर्थन ने जगन को अपने मुख्य चुनावी विपक्ष के खिलाफ अविवेकी एवं घोर अलोकतांत्रिक दमनकारी नीतियों को अपनाने में ही मदद की है।

निरंकुश लोक-लुभावनवादी नीति

एक शिक्षित टेक-उद्योगपति होने की वजह से जगन ने कल्याणकारी योजनाओं में कई हाई-टेक इनोवेशन को जोड़ने का काम किया है, और लाभार्थियों के आधार के साथ इन योजनाओं को जोड़कर वितरण को सहज बनाकर फर्जी हाजिरी रजिस्टर की बीमारी को जड़ से उखाड़ फेंका है। आज के दिन कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े सभी मध्यस्थों को बाहर किया जा चुका है। आधार संख्या एवं अन्य जरूरी कागजी कार्रवाई के बाद किसी भी पात्रता रखने वाले व्यक्ति को, ऑनलाइन से भी खुद को कल्याणकारी योजनाओं के साथ जोड़ने की व्यवस्था हो चुकी है।

विवेकहीन दमन

चरम कार्रवाई रेड्डी वंश की खासियत रही है। वाईएस राजशेखर रेड्डी को भी अब जाकर अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई के मामले में संयम से काम लेने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाने लगा है। जगन के दादा राजा रेड्डी को अपने विरोधियों के खिलाफ चरम राजनीतिक हिंसा के लिए रायलसीमा गैंग की विशेषताओं वाले नेता के रूप में ख्याति प्राप्त है। रायलसीमा के इन स्वंयभू निगरानी रखने वाले गिरोहों ने वहां की राजनीति को परिभाषित कर रखा था, और तेलुगु में उन्हें मुतास के नाम से जाना जाता था। जगन भी इसी प्रकार की राजनीतिक संस्कृति का उत्पाद हैं।

लेकिन शासन में रहते हुए किसी के लिए भी गिरोह के मुखिया की तरह व्यवहार करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, विशेषकर मुख्यमंत्री से तो हर्गिज नहीं। जाहिर सी बात है कि जगन मोहन रेड्डी अपने कार्यकाल में न तो आवश्यक सबक और ना ही संयम की भाषा ही सीख पा रहे हैं। अपने लोक-लुभावनवाद से वे अस्थायी तौर पर ही राजनीतिक समर्थन खरीद सकते हैं। लेकिन उनकी अविवेकपूर्ण कार्रवाई स्वंय के खिलाफ विपक्ष की लामबंदी को ही मजबूत करेगा। उन्हें याद रखना चाहिए कि विपक्षी पार्टियों का अस्तित्व शक्तिशाली सामाजिक शक्तियों पर टिका है और जातीय समीकरण और उनका अविवेकी व्यवहार आज नहीं तो कल उनके खिलाफ एक बड़ी जवाबी कार्यवाही को आवेग देने का बड़ा आधार प्रदान कर सकता है।

(बी. सिवरामन स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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