मिजोरम में बह रही मोदी विरोधी हवा, मणिपुर हिंसा की आंच से डर कर पीएम ने रद्द की चुनावी सभा

नई दिल्ली। मिजोरम में मंगलवार, 7 नवंबर को 40 विधानसभा सीटों के लिए मतदान संपन्न हो गया। 40 सीटों के लिए कुल 174 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला 3 दिसंबर को मतगणना के बाद बी पता चलेगा। लेकिन इस पूरे चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक पीएम नरेंद्र मोदी राज्य में एक भी चुनावी सभा नहीं किए। जबकि भाजपा की तरफ से चुनावी सभा करने के लिए मिजोरम में गए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्ढा के भाषण की हर लाइन में पीएम मोदी की प्रशंसा की गई। उक्त नेताओं के भाषण में मोदी द्वारा की गई  पूर्वोत्तर की कई यात्राओं, क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने और मिजोरम को शीर्ष पर रखने की उनकी प्रतिबद्धता को बार-बार रेखांकित किया। लेकिन मिजो जनता इससे प्रभावित नहीं हुई। 

ऐसे में सवाल उठता है कि पीएम मोदी मिजोरम में चुनाव प्रचार के लिए क्यों नही गए?  लेकिन मिजोरम के लेंगपुई हवाईअड्डे पर नरेंद्र मोदी की विशाल चुनावी होर्डिंग लगा है, जिसमें मिजोरम के विकास के लिए भाजपा को वोट देने की अपील है।

मिजोरम विधानसभा के चानी जंग में मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। मुख्यमत्री जोरमथांगा की एमएनएफ वैसे तो बीजेपी के नेतृत्व वाले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) का हिस्सा है और केंद्र में एनडीए की सहयोगी है, लेकिन राज्य में दोनों के बीच दूरी है।

मिजोरम भाजपा इकाई मोदी की घोषणाओं वाले होर्डिंग के सहारे ही रही। ऐसे में राज्य में चुनाव प्रचार के लिए पीएम मोदी का न जाना बहुत आश्चर्यजनक लगता है। ऐसा नहीं है कि भाजपा मिजोरम में अपनी राजनीतिक उपस्थिति नहीं चाहती है। दरअसल मणिपुर हिंसा और मिजोरम में पीएम मोदी के न जाने के कारण एक दूसरे से जुड़े हैं। मणिपुर औऱ मिजोरम दोनों इसाई बहुल राज्य है। मणिपुर हिंसा औऱ पलायन में ईसाई समुदाय के लोग ज्यादा प्रभावित हुए हैं। राज्य से पलायन कर मिजोरम में शरण पाने वालों में ईसाइयों की संख्या अधिक है।

मिजोरम चुनाव में मणिपुर से आए विस्थापितों का मुद्दा छाया रहा। ऐसे में पीएम मोदी मिजोरम में चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए। क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं मणिपुर का मुद्दा उनके पीछे न लग जाए। पीएम मोदी अभी तक मणिपुर भी नहीं गए हैं।

ईसाई बहुल मिजोरम के किसी कोने में जाइए, आइजोल जिले में जिन लोगों से बातचीत की, उनमें से ज्यादातर लोग मोदी या भाजपा के बारे में बात करते समय उत्साह नहीं दिखाया, क्योंकि केंद्र का जिस तरह से मणिपुर हिंसा पर रवैया रही, उससे राज्य के लोग दुखी हैं। मिजोरम के लोगों ने कहा कि मणिपुर में भाजपा की “चरम” धार्मिक विचारधारा और उनकी सरकार में अल्पसंख्यकों को “लक्ष्य” मानकर हमला किया गया।

शिक्षकों, कार्यकर्ताओं और सड़कों पर लोगों से बातचीत से पता चलता है कि ब्रांड मोदी या भाजपा को मिजोरम में बहुत कम लोग पसंद करते हैं।  

मिजोरम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक प्रोफेसर जांगखोंगम डोंगेल ने कहा कि “प्रधानमंत्री मोदी का मिजोरम में कोई प्रभाव नहीं है। जिस तरह से मणिपुर को संभाला गया है, उससे लोग उनसे नाखुश हैं। उन्होंने ममित में चुनाव प्रचार के लिए आने से क्यों मना कर दिया?  मिजोरम मोदी और भाजपा के खिलाफ नाखुशी को दर्शाता है। मोदी और भाजपा का मिजोरम की राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं है।”

मोदी की 30 अक्टूबर को ममित की प्रस्तावित यात्रा रद्द कर दी गई। मणिपुर में 3 मई को भड़के संघर्ष को लेकर मिजोरम में बहुत दर्द और पीड़ा है, जिसमें कम से कम 178 लोग मारे गए और 67,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए। मोदी को अभी तक मणिपुर का दौरा नहीं किया है। कई लोगों का मानना ​​है कि चुनाव प्रचार के लिए मिज़ोरम की यात्रा अधिकांश मिज़ोवासियों को अच्छी नहीं लगी होगी।

मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने हाल ही में कहा था कि अगर मोदी चुनाव प्रचार के लिए मिज़ोरम जाएंगे तो वह उनके साथ मंच साझा नहीं करेंगे।

डौंगेल के अनुसार, “जो लोग मिजोरम में भाजपा में हैं, वे उन पार्टियों के साथ मतभेदों के कारण वहां हैं, जिनका वे हिस्सा थे या अपने लिए राजनीतिक जगह तलाश रहे थे। उनका भाजपा की विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है।”

डौंगेल ने कहा, मणिपुर अशांति से पहले मिजोरम में “कोई मोदी जादू नहीं था” और “अब भी” कोई मोदी जादू नहीं है, उन्होंने कहा कि यह मोदी सरकार द्वारा मणिपुर जातीय अशांति से “निपटने” के कारण था जहां ज़ो  जनजातियों के साथ “भेदभाव किया जाता है” और मणिपुर में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अपमानित किया गया।

डौंगल ने कहा, “मिजोरम के लोग हिंदू राष्ट्र की नीति और बर्मा (म्यांमार) से ज़ो जनजाति के शरणार्थियों को वापस भेजने के केंद्र के प्रयास से भी आशंकित हैं।”

दरअसल, मिजोरम और मणिपुर के लोगों का भाजपा से नाराजगी का कारण नस्लीय भेदभाव है। मिजोरम, मणिपुर और म्यांमार से भारत आए कुकी-चिन शरणार्थी एक ही नस्ल के हैं। सच तो यह भी है कि मणिपुर के मैतेई समुदाय भी एक ही नस्ल के हैं। ऐसे में कुकी-चिन शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजने की योजना या मणिपुर हिंसा में मारे कुकी समुदाय के मारे जाने का प्रभाव मिजोरम के लोगों पर भी पड़ता है।

केंद्र ने मिजोरम सरकार से 2021 में तख्तापलट से प्रभावित म्यांमार से मिजोरम और मणिपुर में प्रवेश करने वाले कुकी-चिन शरणार्थियों को वापस भेजने के लिए कहा था, लेकिन ज़ोरमथांगा के नेतृत्व वाली सरकार ने ऐसा नहीं किया क्योंकि शरणार्थी मिज़ोस के समान वंश वाले हैं।  

इस समय मिजोरम में म्यांमार और बांग्लादेश से 32,000 से अधिक शरणार्थियों और मणिपुर से 11,000 से अधिक शरणार्थियों की मेजबानी कर रहा है। एमएनएफ ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया था और मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा का मानना ​​है कि इससे उन्हें चुनाव में फायदा होगा।

नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एनईएसओ) के काउंसिल सदस्य जेरी एच. पुलमटे ने “मोदी फॉर मिजोरम” कैचलाइन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वे मोदी सरकार के तहत “सुरक्षित महसूस नहीं करते”।

“हम भाजपा का समर्थन नहीं करते हैं। इसके तहत हम सुरक्षित नहीं हैं। पड़ोसी राज्य मणिपुर में संघर्ष चल रहा है। प्रभावित कुकी-ज़ो लोग हमारे सगे भाई/बहन हैं और वे पीड़ित हैं। मोदी सरकार ने मणिपुर में अशांति बढ़ा दी है। उन्होंने (जम्मू-कश्मीर से) अनुच्छेद 37O को हटा दिया है और अब हमें नहीं लगता कि मोदी सरकार के तहत संविधान का अनुच्छेद 371G सुरक्षित है। कुल मिलाकर, मिज़ो हृदय क्षेत्र में, मोदी के साथ या उनके बिना, भाजपा का जीतना मुश्किल है।

अनुच्छेद 371जी के अनुसार, संविधान में एक विशेष प्रावधान, मिज़ोस की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, मिज़ो प्रथागत कानून, नागरिक और आपराधिक न्याय प्रशासन, भूमि के स्वामित्व और हस्तांतरण के संबंध में “संसद का कोई कार्य” मिज़ोरम पर लागू नहीं होगा। जब तक कि राज्य विधानसभा “किसी संकल्प द्वारा ऐसा निर्णय न ले ले”।

ज़ोरम रिसर्च फाउंडेशन के महासचिव रोचमलियाना ने कहा कि भाजपा अपनी “अतिवादी” धार्मिक विचारधारा के कारण राज्य में अपनी स्थापना के बाद से मिजोरम में आगे नहीं बढ़ सकी। 1993 से लगातार चुनाव लड़ने के बावजूद भाजपा ने अपनी पहली विधानसभा सीट 2018 में जीती। उसे उम्मीद है कि इस बार त्रिशंकु सदन होने की स्थिति में वह अपनी सीटें बढ़ाएगी और सरकार का हिस्सा बनेगी।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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