अशोका विश्वविद्यालय: राजनीतिक अनुसंधान केंद्र के निदेशक को जबरन हटाने पर उसको नियंत्रित करने वाले बोर्ड को सदस्यों ने किया भंग

नई दिल्ली। दो प्रोफेसरों के इस्तीफा देने के बाद भी अशोका विश्वविद्यालय में विवाद थम नहीं रहा है। परिसर में रोज कोई न कोई घटनाक्रम हो रहा है जो अकादमिक स्वतंत्रता और संस्थानों की स्वायत्तता पर सवाल खड़े कर रहा है। ताजा विवाद बहुत महत्वपूर्ण है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने परिसर के राजनीतिक अनुसंधान केंद्र का विलय दूसरे केंद्र में प्रस्तावित कर राजनीतिक अनुसंधान केंद्र के निदेशक गाइल्स वर्नियर्स को पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया। लेकिन इसकी सूचना केंद्र को संचालित करने वाले वैज्ञानिक बोर्ड के किसी सदस्य को नहीं दिया।

विश्वविद्यालय प्रशासन के इस तानाशाही रवैए के विरोध में राजनीतिक अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक बोर्ड के सदस्यों ने बोर्ड को भंग कर दिया है। इस बोर्ड में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी, मुकुलिका बनर्जी, अमेरिका में नोट्रे डेम विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर सुसान ओस्टरमैन और ओस्लो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फ्रांसेस्का जेन्सेनियस जैसे लोग शामिल हैं।

विश्वविद्यालय ने कहा कि टीसीपीडी का एक अन्य केंद्र में विलय करना प्रस्तावित है। लेकिन अशोका प्रशासन के इस रवैए से विश्वविद्यालय से जुड़े कई शिक्षाविदों और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी, जो त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा (TCPD), के वैज्ञानिक बोर्ड के सदस्य थे, का कहना है कि बोर्ड को सूचित किए बिना केंद्र निदेशक गाइल्स वर्नियर्स को पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। और केंद्र के प्रस्तावित एकीकरण की सूचना भी बोर्ड सदस्यों को नहीं दिया गया।

इस फैसले से नाराज वैज्ञानिक बोर्ड ने अशोका विश्वविद्यालय प्रशासन को एक खुला पत्र लिखा है। शिक्षाविदों और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त के खुले पत्र को टीसीपीडी के वैज्ञानिक बोर्ड के अध्यक्ष क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट द्वारा प्रमाणित किया गया है। वह पेरिस में सेंटर डी रीचर्चेस इंटरनेशनल डी साइंसेज पो में अनुसंधान निदेशक और लंदन के किंग्स कॉलेज में प्रोफेसर भी हैं। इस पर बोर्ड के अन्य सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किया है।

पत्र में लिखा गया है कि “अब हम अपना खेद व्यक्त करने के लिए लिखते हैं कि केंद्र के संस्थापक और निदेशक को पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, और विश्वविद्यालय ने केंद्र के वैज्ञानिक बोर्ड को उन निर्णयों के बारे में सूचित नहीं किया जो न केवल केंद्र के नेतृत्व को बल्कि इसके भविष्य को भी प्रभावित करते हैं।”

विवाद बढ़ता देख विश्वविद्यालय प्रशासन ने निदेशक गाइल्स वर्नियर्स के हटाए जाने का जवाब दिया है। जवाब में कहा गया है कि विश्वविद्यालय में कार्यकाल बढ़ाने की प्रक्रिया बहुत जटिल है। कार्यकाल बढ़ाने के अनुमोदन में हो रहे विलंब के चलते वर्नियर्स ने अपना इस्तीफा दिया है। और वह पिछले एक साल से शिक्षण कार्य नहीं कर रहे थे।

गाइल्स वर्नियर्स ने मीडिया को बताया कि “विश्वविद्यालय का बयान वैज्ञानिक बोर्ड द्वारा उठाए गए मुख्य सवाल का जवाब नहीं देता है कि उनसे परामर्श नहीं किया गया था जबकि विश्वविद्यालय बड़े बदलाव करने जा रहा था।”

वर्नियर्स ने आगे कहा कि “विश्वविद्यालय के बयान में कहा गया है कि उन्होंने बोर्ड को इसके बारे में अवगत कराया, लेकिन बोर्ड द्वारा केंद्र की स्थिति के बारे में स्पष्टीकरण मांगने के लिए पहला पत्र भेजे जाने के 10 दिन बाद यानि अभी दो दिन पहले यह सब बताया।”

पिछले महीने, अशोका में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास ने इस्तीफा दे दिया था क्योंकि विश्वविद्यालय ने उनके अप्रकाशित पेपर से खुद को अलग कर लिया था और एक पैनल द्वारा इसकी जांच का आदेश दिया था जिसमें इसके शासी निकाय के एक गैर-शैक्षणिक सदस्य भी शामिल थे। अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने दास का इस्तीफा स्वीकार होने के बाद उनके साथ एकजुटता दिखाते हुए इस्तीफा दे दिया।

वर्नियर्स ने दास के समर्थन में ट्वीट किया था, जिनके वर्किंग पेपर में 2019 के लोकसभा चुनावों में मौजूदा पार्टी द्वारा संभावित चुनावी हेरफेर का आरोप लगाया गया था।

हस्ताक्षरकर्ताओं ने आगे कहा कि “उत्कृष्टता के इस ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, हम आश्चर्यचकित और निराश थे कि वैज्ञानिक बोर्ड के रूप में, केंद्र को चलाने और संस्थान को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त बदलाव करने से पहले हमसे परामर्श नहीं किया गया, जो अकादमिक मानदंड का उल्लंघन है।

“ऐसी परिस्थितियों में, हम, इस पत्र के हस्ताक्षरकर्ता, टीसीपीडी के वैज्ञानिक बोर्ड को भंग कर रहे हैं। हम डेटा और उससे जुड़े कार्यों के भविष्य और अखंडता को बनाए रखने के लिए गाइल्स वर्नियर्स और उनके सहयोगियों के प्रयासों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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