Wednesday, March 22, 2023

ग्राउंड रिपोर्ट: असि नदी की पुकार, कोई तो भगीरथ मिले जो कर दे उद्धार

Janchowk
Follow us:

ज़रूर पढ़े

वाराणसी। विश्व विख्यात नगरी वाराणसी में आदि गंगा अपनी छोटी बहनों वरुणा और असि नदियों के साथ संगम कराते हुए शहर के बीच से होकर बहती है। अब यह अलग बात है कि गंगा नदी का अपना विशाल स्वरूप तो दिखलाई देता है, लेकिन वरुणा और असि नदी का अस्तित्व विलुप्त होने के कगार पर है। यह दोनों नदियां नाले का रूप धारण कर चुकी हैं खास करके असि नदी तो पूरी तरह से एक नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है। जिसे देख कोई यह नहीं कह सकता है कि क्या यही असि नदी है? 

आखिरकार कहे भी तो कैसे, नदी का अपना एक दायरा होता है, स्वरूप होता है। चाहे वह छोटी हो या बड़ी, हालांकि असि नदी का भी एक समय था जब इस नदी के निर्मल जल के साथ इसका अपना विशाल दायरा, क्षेत्रफल था। इस नदी का अपना एक अलग इतिहास था, लेकिन कालांतर में विस्तारवादी, भोगवादी नीतियों के चलते यह नदी पूरी तरह से अस्तित्व विहीन होकर नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है। जिसे देखना तो दूर इस नदी की तरफ से गुजरना भी लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है। वाराणसी शहर के कचरे, गंदे मल मूत्र, औद्योगिक कचरे इत्यादि को अपने आंचल में समाते हुए यह नदी पूरी तरह से नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है। जिसके जीर्णोद्धार के लिए चलाई गई सरकार की तमाम योजनाएं भी कागजों में सिमट कर रह गई हैं।

कहने को तो राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) वाराणसी के असि व वरुणा नदी के प्रवाह क्षेत्र पर अतिक्रमण व प्रदूषण को लेकर गंभीर है। वाराणसी प्रशासन से प्राधिकरण ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी है। इसका असर यह रहा है कि पिछले वर्ष वाराणसी सदर तहसील प्रशासन द्वारा रिपोर्ट को जल्द से जल्द तैयार करने में भी जुटा रहा है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की कड़ाई के बाद नदी के किनारे से कब्जे भी हटाए गए। वाराणसी सदर तहसील की टीम ने वरूणा नदी के तटीय क्षेत्र के लगभग 83 से अधिक स्थानों का मौका मुआयना और पैमाइश भी किया, लेकिन सभी कार्यवाहियां ढाक के तीन पात साबित हुईं।

asi

कार्यवाही के बाद भी असि नदी की दुर्दशा जारी

आप इसे लापरवाही कहें या महज खानापूर्ति, लेकिन यह हकीकत है। विश्व विख्यात काशी नगरी (वाराणसी) को नाम देने वाली नदियों का जो अस्तित्व मौजूदा समय में देखने को मिलता है उसे देखकर इस नगरी से अटूट आस्था रखने वाले लोग आहत होते हैं। देश-विदेश के कोने-कोने से आने वाले सैलानी उस असि नदी को ढूंढते फिरते हैं जिसने वाराणसी को एक नाम दिया है, लेकिन यह नदी ढूंढे भी नहीं मिल पाती है। कारण कि यह नदी अब नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है। वाराणसी के असि नदी के उद्गम स्थल कंचनपुर से लेकर विभिन्न राजस्व ग्रामों से होते हुए अंतिम बिंदु अस्सी घाट तक का पिछले साल राजस्व विभाग की टीम ने मौका मुआयना किया था।

इसमें कंचनपुर, करौंदी, चितईपुर, सरायनंदन, भदैनी आदि शामिल रहे हैं। राजस्व विभाग की टीम में कई स्थानों पर कब्जे अतिक्रमण को चिन्हित भी किया था तथा इस पर विकास प्राधिकरण व नगर निगम को कार्यवाही के लिए निर्देश भी दिए गए, बावजूद इसके अभी तक कुछ सफलता हासिल नहीं हो पाई है अधिकारियों ने ज़रूर दर्जनों अतिक्रमणकारियों को नोटिस जारी करते हुए तत्काल कब्जे हटाने की चेतावनी दे दी तथा इसके साथ ही नदी में गिरने वाले नाले को भी चिन्हित किया गया। इसकी रिपोर्ट भी एनजीटी को भेजी गई, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इतने के बाद भी क्या असि नदी जो अब नाले में तब्दील हो चुकी है पुनः अपने स्वरूप को पा सकेगी? यह एक बड़ा सवाल है?

asi3

मां गंगा पुत्र ने भी साध ली है चुप्पी

लोगों को भली प्रकार याद होगा कि लोकसभा चुनाव के पूर्व अपनी जनसभाओं के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा वाराणसी संसदीय क्षेत्र के सांसद ने बड़े ही गर्मजोशी के साथ कहा था कि “मैं आया नहीं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है।” मजे की बात है कि मां गंगा के इस पुत्र ने भी कभी इसी मां गंगा की छोटी बहन कहे जाने वाली असि नदी के जीर्णोद्धार और इनके पुराने स्वरूप को वापस लौटाने की दिशा में कभी भी कोई पहल नहीं की, ना ही कभी उन्होंने इनकी ओर झांकना भी गंवारा समझा है। वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश प्रसाद त्रिवेदी एवं स्वतंत्र लेखक पत्रकार अंजान मित्र कहते हैं कि “वाराणसी को नाम और पहचान दिलाने वाली वरुणा और असि नदी के स्वरूप को कुरुप बनाने के लिए कोई एक जिम्मेदार नहीं है।

asi4

इसके लिए सभी वह जनप्रतिनिधि, सभी वह अधिकारी, वह संबंधित लोग जिम्मेदार हैं साथ ही साथ वह नागरिक भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने इस नदी के उद्गम स्थलों सहित दोनों पाटों को पाट-पाट कर अतिक्रमण कर बिल्डिंगें तान लीं, कब्जे कर लिए। ऊपर से इन दोनों नदियों के उद्धार के लिए कितनी योजनाएं बनी अरबों-खरबों की परियोजनाएं ध्वस्त हो गईं, खर्च हो गए, लेकिन इन दोनों नदियों का स्वरूप बदलने को कौन कहे दिन प्रतिदिन बिगड़ता ही गया। एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या इन दोनों नदियों के पुराने दिन, पुराने स्वरूप लौट पाएंगे? सवाल लोगों के जेहन में एक यक्ष प्रश्न की तरह कौंध रहा है शायद जवाब अनुत्तरित ही मिले।

कोई एक नहीं सभी जिम्मेदार हैं असि नदी को नाला बनाने में?

वाराणसी की विख्यात असि नदी के साथ सरकार और जनप्रतिनिधियों ने भी बड़ा खेल खेला है। इसके स्वरूप को बिगाड़ने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। आइए हम इस पर प्रकाश डालते हैं, दिखाते हैं आपको यहां जो दो शिलापट्ट आपको दिखलाई दे रहे हैं। इनमें एक 11 फरवरी 2001 का है तब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह थे, जिन्होंने रविंद्रपुरी लंका बाईपास मार्ग पर नदी के ऊपर सेतु/पुल का लोकार्पण किया था। शिलापट्ट पर नाम दिया गया था रामेश्वरम सेतु का लोकार्पण, दूसरी तस्वीर को देखते हैं यह तस्वीर 14 जनवरी 2014 की है।

asi6

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। सुरेंद्र पटेल वाराणसी से रोहनिया के विधायक तथा लोक निर्माण राज्यमंत्री थे। इनके ही कार्यकाल में वाराणसी विकास प्राधिकरण की अवस्थापना निधि से “असि नाले” पर नवनिर्मित दूसरी लेन के पुल का लोकार्पण किया गया। शब्दों पर आप गौर करिएगा जिस असि नदी ने वाराणसी को नाम दिया उस नदी को वाराणसी विकास प्राधिकरण के लोगों, अधिकारियों यहां तक कि जनप्रतिनिधियों ने भी नकार दिया और नाला बना दिया। कागजों में भी इसे नाला दर्शा दिया गया है। अब आप इस लापरवाही और उदासीनता को क्या कहेंगे?

(वाराणसी से संतोष देव गिरि की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest News

अमृतपाल सिंह खालसा पर पंजाब के सियादी दलों ने खोली जुबान 

पंजाब में 'ऑपरेशन अमृतपाल सिंह खालसा' पर सियासत होने लगी है। शनिवार से अमृतपाल सिंह की धरपकड़ की कवायद...

सम्बंधित ख़बरें