अमेरिकी दबाव में निशाने पर भारत में बिकने वाली सस्ती दवाएं, पेटेंट कानून में बदलाव की तैयारी

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अमेरिका के दबाव में भारत में बिकने वाली सस्ती जीवन रक्षक दवाएं निशाने पर हैं। दूसरी ओर विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच यह मुद्दा जनता तक नहीं पहुंच सका है। बेशक, महंगाई एवं बेरोजगारी को लेकर अंडरकरेंट है परन्तु भारतीय पेटेंट कानून में जो जनविरोधी बदलाव लाने के लिये मसौदा पेश किया गया है उस पर कोई बहस नहीं हो रही है।

वैसे राष्ट्रीय अखबारों में खबर चली थी परन्तु सस्ती दवाओं को मुद्दा नहीं बनाया जा सका है। या कहा जाये कि किसी भी राजनीतिक दल ने इसे जनता के बीच ले जाने की कोशिश नहीं की है। चूंकि पेटेंट का मुद्दा तकनीकी तथा कानूनी है और आसानी से समझ में आने वाला नहीं है इसलिये हम इसे सरल शब्दों में क्रमवार ढंग से पेश करके इसे आसान बनाने की कोशिश करते हैं।

केन्द्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने 23 अगस्त 2023 को draft Patent (Amendment) Rules, 2023 बहस के लिये सार्वजनिक किया है तथा उस पर सुझाव मांगा है। इसके बाद इस नियम को लेकर जानकारों ने अपने सुझाव तथा मत दिये हैं। यहां पर इस बात का उल्लेख करना गलत न होगा कि अमरीकी सरकार की संस्था ने ठीक इससे पहले वैश्विक पेटेंट अवस्था पर 22 अप्रैल को अपनी रपट ‘2022 Special 301 Report’ प्रकाशित की थी।

इस रपट में भारत को फिर से Priority Watch List में रखा गया है। इसे Office of the United States Trade Representative ने जारी किया है, जिसके पास कई मुद्दों पर अमरीकी राष्ट्रपति से भी ज्यादा अधिकार हैं।

दरअसल, अमरीकी दवा कंपनियों के गठजोड़ जिसे बिग फार्मा भी कहा जाता है, चाहता है कि भारत के पेटेंट कानून उनके हितों के अनुरूप हों, न कि भारतीय जनता तथा दवा उद्योग के हितानुसार हों। इसे आसानी से समझा जा सकता है कि बिग फार्मा के दबाव के अनुरूप ‘2022 Special 301 Report’ में भारत के पेटेंट कानून में कई बदलाव की मांग की गई है।

इस रपट में कहा गया है कि “पेटेंट मुद्दे भारत में विशेष चिंता का विषय बने हुए हैं। पेटेंट निरस्तीकरण का संभावित खतरा, पेटेंट वैधता की धारणा की कमी, और भारतीय पेटेंट अधिनियम के तहत संकीर्ण पेटेंट योग्यता मानदंड विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियों को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, पेटेंट आवेदकों को महंगाई का सामना करना पड़ रहा है और अनुदान से पहले और बाद में समय की खपत करने के लिए पेटेंट अनुदान प्राप्त करने के लिए लंबी प्रतीक्षा अवधि, और अत्यधिक रिपोर्टिंग आवश्यकताएं। हितधारक भारतीय पेटेंट अधिनियम की व्याख्या में अस्पष्टता पर चिंता जाहिर करते रहते हैं।”

यहां पर हम draft Patent (Amendment) Rules, 2023 की दो धाराओं पर चर्चा करेंगे। पहला है ‘Pre grant oppositions’। वर्तमान में जब कोई देशी या विदेशी दवा कंपनी किसी दवा के लिये पेटेंट अधिकार के लिये आवेदन करती है तो कोई भी व्यक्ति या संस्था उसे चुनौती दे सकता है। इस तरह से भारत में दवाओं पर एकाधिकार को रोका जा सकता है। एकाधिकार का सीधा अर्थ जीवनरक्षक तथा आवश्यक दवाओं की कीमत से है। जाहिर है कि एकाधिकार होने पर उससे मुनाफा कमाने के लिये अत्याधिक मूल्य तय किया जा सकता है। जब हम आगे उल्लेख करेंगे तब मामला आपको और आसानी से समझ में आ जायेगा।

अब ‘Pre grant oppositions’ के लिये फीस भी ली जायेगी तथा मसौदे के अनुरूप पेटेंट कंट्रोलर को अधिकार होगा कि उसे सुनवाई के योग्य माने या नहीं माने। इस तरह से पेटेंट अधिकार मिलने के पहले जो विरोध पेश किया जाता है वह कानून के अनुसार न होकर एक उच्चाधिकारी के हाथ की कठपुतली बन जायेगा। जाहिर है कि उन पर दबाव भी बनाया जा सकता है तथा चांदी का जूता भी चलाया जा सकता है। हालांकि, अभी यह केवल मसौदा है तथा कानूनन नियम नहीं बना है। लेकिन इससे केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय की मंशा का आभास हो जाता है।

draft Patent (Amendment) Rules, 2023 की एक और धारा पर चर्चा करना अनिवार्य है। वह है ‘working of the patent’ का मुद्दा। इसमें बड़ी चतुराई से बदलाव करना मसौदे में शामिल है। ‘working of the patent’ के तहत भारत सरकार चाहे तो यदि कोई विदेशी या देशी दवा कंपनी की कोई दवा जो अधिक दामों पर बेची जा रही है या वह पूरे देश में उपलब्ध नहीं है तो ‘अनिवार्य लाइसेंसिग’ की धारा का उपयोग करते हुये उसे किसी दूसरी दवा कंपनी को कम कीमत पर बनाकर बेचने का अधिकार दे सकती है।

गौरतलब है कि भारत के इतिहास में पहली बार मनमोहन सिंह की यूपीए-2 की सरकार ने इसका साल 2012 में उपयोग किया था। जिसके कारण विदेशी महाकाय दवा कंपनी बायर की किडनी कैंसर की दवा NEXAVAR, जिसकी एक माह के खुराक का खर्चा 2 लाख 84 हज़ार रुपये पड़ता था का अधिकार भारतीय कंपनी NATCO को दे दिया जिसने इसे मात्र 8880 रुपयों में भारतीय बाजार में उपलब्ध करा दिया था। यह ‘अनिवार्य लाइसेंसिंग’ के तहत किया गया था। अब इसे लागू करने का नियम कठिन बना दिया जा रहा है।

वर्तमान में दवा कंपनियों को ‘working of the patent’ के तहत हर साल पेटेंटेड दवा के बारे में सूचना प्रकाशित करना पड़ता है जिसमें उसकी बिक्री का जिक्र करना अनिवार्य है। मसौदे में इसे 1 साल से बढ़ाकर 3 साल कर देने का प्रस्ताव है। जाहिर है कि इससे तीन साल तक पेटेंटेड दवा के बारें में कोई जानकारी नहीं मिलेगी तथा दवा पर एकाधिकार को सदाबहार बनाया जा सकता है। इस तरह से अनिवार्य लाइसेंसिंग की धारा को कमजोर किया जाना प्रस्तावित है।

कुल मिलाकर, मुद्दा जीवन रक्षक तथा आवश्यक दवाओं की देश में कम कीमत पर उपलब्धता से है जोकि विदेशी दवा कंपनियां अमरीकी सरकार के माध्यम से नहीं करने देना चाहती हैं। यहां पर ज़रूर यह सवाल किया जाना चाहिये कि विदेशी दबाव में देशज कानूनों को जो भारतीय जनता के हितों के अनुरूप बनाये गये हैं क्यों बदला जाये। क्या इसे भी विधानसभा तथा लोकसभा के चुनावों का मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिये?

(जेके कर की रिपोर्ट।)

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