पीएम मोदी के क्रिसमस भोज में शामिल पादरियों से ईसाई समुदाय नाराज, उठाया मणिपुर का मुद्दा

नई दिल्ली। पिछले साल 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आवास पर क्रिसमस कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें ईसाई धर्म को मानने वाले हजारों लोग और पादरी वहां आए थे। समारोह में पादरियों के शामिल होने पर ईसाई समुदाय ने विरोध जताया है। उनका कहना है कि क्रिसमस समारोह में शामिल हुए किसी भी पादरी ने ना तो पीएम मोदी से देश में ईसाईयों के खिलाफ हो रहे अत्याचार पर बात की और ना ही मणिपुर में ईसाईयों पर हो रहे हमलों की निंदा की। ये मौका आनंद उठाने का नहीं बल्कि ईसाईयों की बिगड़ी स्थिति पर बात करने का है।  

गुरुवार 4 जनवरी को ईसाई समुदाय ने एक खुला पत्र लिखा जिसमें कहा गया है कि “हालांकि यह निश्चित रूप से प्रधानमंत्री का अधिकार है कि वे जिसे चाहें उसके लिए एक स्वागत समारोह आयोजित करें। लेकिन इस समारोह पर सवाल उठाना लाजिमी है क्योंकि पीएम मोदी के कार्यकाल में ईसाइयों पर किए गए हमलों की निंदा किसी ने नहीं की।”

पत्र में कहा गया कि “दिलचस्प बात यह है कि पीएम ने ईसा मसीह की तारीफ की और ईसाई समुदाय की सेवाओं के बारे में भी बताया लेकिन उन्होंने वर्तमान में देश में ईसाइयों की हालत पर दुख नहीं जताया।”

पत्र में लिखा गया है कि “जिन ईसाई प्रतिनिधियों ने बात की उन्होंने कई बातों के लिए प्रधानमंत्री को बहुत धन्यवाद दिया। लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार ने लगातार अपने संवैधानिक जनादेश की अवहेलना की है, चाहे वह अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, दलितों, पिछड़ी जातियों, किसानों, मजदूरों, प्रवासियों से जुड़ी हों।”

पत्र में कहा गया है, “जब इन ईसाई प्रतिनिधियों ने स्वागत समारोह में बात की तो वे इस सरकार की गलतियों को मौन स्वीकृति दे रहे थे। अपनी चुप्पी के कारण वे भारत के संविधान में निहित मूल्यों को बनाए रखने में विफल रहे।”

पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से खास तौर पर देश में ईसाई समुदायों पर लगातार हमले हो रहे हैं और उनका अपमान किया जा रहा है।

पत्र में ये भी कहा गया है कि “ईसाइयों और ईसाई स्कूलों और संस्थानों को परेशान किया गया है, चर्चों को नुकसान पहुंचाया गया है, उन्हें नागरिक के रूप में उनके सामान्य अधिकारों से अलग रखा गया है और उनके साथ गलत व्यवहार किया गया।”

पत्र में सरकार के धर्मांतरण विरोधी कानून का भी जिक्र किया गया है और कहा गया है कि “भाजपा शासित राज्यों में जो धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किए गए हैं उनका इस्तेमाल किसी के धर्म का प्रचार और प्रचार करने के मौलिक अधिकार के खिलाफ किया जाता है। स्कूलों में समारोह रोक दिए गए हैं और ईसाइयों को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर लिया जाता है और बिना अपराध के जेल में डाल दिया जाता है।”

पत्र में मणिपुर हिंसा के बारे में कहा गया है कि मई 2023 से मणिपुर के ईसाइयों पर लगातार हमले हो रहे हैं। जिसको राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार का समर्थन मिल रहा है। पत्र लिखने वालों में तृणमूल सांसद डेरेक ओ’ब्रायन, रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट एम.जी. देवसहायम और वकील फ्लाविया एग्नेस शामिल हैं।

केरल में भी पीएम मोदी के क्रिसमस समारोह का विरोध हो रहा है। मलंकारा मार थोमा सीरियन चर्च के डॉ. अब्राहम मार पॉलोज़ एपिस्कोपा ने कहा कि “जब दिल्ली में समारोह हुआ तो वे कह सकते थे कि भले ही यह एक अद्भुत समारोह है लेकिन हमारा दिल जल रहा है।”

उन्होंने भी मणिपुर का मुद्दा उठाते हुए कहा कि “पूरा ईसाई समुदाय अब पूछ रहा है कि वे कुछ क्यों नहीं बोल सके। जब मणिपुर में एक पूरे समुदाय का सफाया हो रहा है तब भी हमारी जुबानें बंद हैं और मुद्दे से दूर हैं।”

उन्होंने ईसाई समुदाय से आह्वान किया कि इससे पहले की बहुत देर हो जाए अपनी आवाज बुलंद करें।

इससे पहले बुधवार 3 जनवरी को केरल के संस्कृति और युवा मामलों के मंत्री साजी चेरियन ने प्रधानमंत्री के समारोह में बिशपों के शामिल होने पर कुछ विवादास्पद टिप्पणी की थी।

चेरियन ने सीपीएम के एक कार्यक्रम में कहा था “जब भाजपा नेताओं ने उन्हें आमंत्रित किया तब कुछ बिशपों के रोंगटे खड़े हो गए थे। इसलिए उनमें से कुछ जिनके रोंगटे खड़े हो गए थे वे दिल्ली चले गए। उन्होंने समारोह का लुत्फ उठाया और मणिपुर पर कोई चर्चा नहीं की।”

चेरियन ने बाद में अपनी टिप्पणी वापस ले ली लेकिन मणिपुर मुद्दे की अनदेखी की अपनी आलोचना पर कायम रहे।

(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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