मोदी-बीजेपी का विकल्प बनेगा कर्नाटक मॉडल! सिद्धारमैया के निशाने पर बीजेपी-आरएसएस

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कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की शुरुआत धमाकेदार ढंग से हुई है। एक तरफ सिद्धारमैया सरकार ने विधानसभा चुनाव में कर्नाटक की जनता से किये 5 वादों को एक-एक कर पूरा करने की ओर कदम बढ़ाना शुरू किया है। वहीं दूसरी तरफ सिद्धारमैया सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की कई नीतियों, कानूनों पर पुनर्विचार की पहल कर एक के बाद एक फैसले भी लेने शुरू कर दिए हैं। ये कदम कर्नाटक भाजपा के लिए ही नहीं बल्कि केंद्र में आसीन मोदी सरकार के लिए भी बेहद बेचैनी भरे हो सकते हैं, क्योंकि कहीं न कहीं यह मोदी सरकार के वैकल्पिक मॉडल के तौर पर 2024 चुनाव का एक नैरेटिव बन सकता है।

यह कर्नाटक राज्य के लिए तेजी से बदलते परिदृश्य के समान है, जहां कल तक जिस चीज के लिए सरकार और सत्ता समूह से शाबाशी मिला करती थी, आज उस पर जांच और कार्रवाई की आंच आ सकती है। मिसाल के लिए स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव की पहल को लिया जा सकता है।

अस्पताल में 36 मरीजों की ऑक्सीजन की कमी से मौत मामले की जांच

शुक्रवार को स्वास्थ्य मंत्री ने 2021 में कोविड महामारी के दौरान चामराजनगर जिला अस्पताल में ऑक्सीजन के अभाव में 36 लोगों की मौत की एक बार फिर से जांच कराए जाने के लिए राज्य सरकार से निवेदन किया है। उनके अनुसार भाजपा सरकार के दौरान की गई जांच संतोषजनक नहीं पाई गई। स्वास्थ्य मंत्री गुंडू राव ने अपने बयान में कहा है कि “पिछली रिपोर्ट संतोषजनक नहीं थी। मैंने सरकार से एक और जांच कमेटी के गठन का अनुरोध किया था। पिछली जांच के लिए कमेटी के गठन में विलंब किया गया और चिकित्सा विभाग एवं मेडिकल शिक्षा विभाग के बीच एक-दूसरे पर आरोप में ही समाप्त हो गया।”

इस बारे में स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि “भले ही न्याय मिलने में देरी हो, लेकिन वह मिलकर रहेगा और जो लोग भी इसके गुनहगार हैं, उन्हें सजा मिलकर रहेगी।” मंत्री का आरोप है कि इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों के नामों को सूची में दर्ज नहीं किया गया है और उन्हें जवाबदेह नहीं बनाया गया है।” बता दें कि मई 2021 में चामराजनगर जिला अस्पताल में सरकार की विभिन्न एजेंसियों के बीच में तालमेल के अभाव के कारण 36 लोगों को ऑक्सीजन की कमी के कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।

बाद में एक प्राथमिक जांच में इस बात की पुष्टि की गई कि 3 मई 2021 की रात को जिला अस्पताल में मरीजों की मौत हुई थी। इसमें पाया गया कि अस्पताल और जिला प्रशासन अपनी भूमिका का निर्वहन नहीं कर पाया। इतना ही नहीं, कामराजनगर के डिप्टी-कमिशनर, जिनके पास जिला प्रबंधन समिति की अध्यक्षता का कार्यभार भी था, अपने कर्तव्य के निष्पादन में विफल रहे। इन मौतों के लिए जिम्मेदार विभिन्न आईएएस एवं कर्नाटक राज्य प्रशासनिक अधिकारियों की सूची भी जांच में सामने आई थी। लेकिन एक वर्ष बाद राज्य सरकार ने 24 प्रभावित परिवारों को मुआवजा देकर, बाकियों को उनके हाल पर छोड़ दिया। प्रभावित परिवारों के अनुसार, सरकार ने मृतकों के परिवार के सदस्यों के लिए सरकारी नौकरी को भी प्रस्तावित किया था, लेकिन यह वादा पूरा नहीं किया गया।

आरएसएस सहित अन्य संस्थानों को सरकारी जमीन दिए जाने पर पुनर्विचार

ऐसा सुनने में आ रहा है कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम छह महीने में आरएसएस सहित विभिन्न संस्थाओं को भूमि आवंटित की थी। राजस्व मंत्री कृष्ण बायर गौड़ा ने पत्रकारों से अपनी बातचीत में कहा है कि “मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के निर्देश पर पिछले छह माह में विभिन्न संस्थाओं को आवंटित की गई भूमि की रिपोर्ट को मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाना है। इस पर अंतिम फैसला मंत्रिमंडल के द्वारा इस पर चर्चा के बाद ही लिया जायेगा।”

उन्होंने कहा कि “विभाग यह भी जांच करेगा कि दिसंबर 2022 के बाद जिस प्रकार से हड़बड़ी में जमीनें आवंटित की गई थीं, वे उचित भी थीं या नहीं। उन्होंने आगे कहा कि यदि किसी अच्छे काम के लिए भूमि दी जाती है तो उन्हें कोई समस्या नहीं है, लेकिन सरकारी भूमि को किसी निजी संस्था को नहीं दिया जाना चाहिए।” बता दें कि स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने आरोप लगाया था कि भाजपा सरकार ने आरएसएस और इसके सहयोगी संगठनों को सरकारी भूमि का आवंटन किया है।

हेडगेवार की जीवनी पाठ्यपुस्तकों से हटेगी: बीके हरिप्रसाद

इस मुद्दे पर तो कथित राष्ट्रीय मीडिया में शुक्रवार से माहौल पूरी तरह से गरमा गया है। अपने बयान में कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने कहा है, “हम अपने बच्चों को कायरों का पाठ नहीं पढ़ाना चाहते हैं। कांग्रेस सरकार के लिए संघ परिवार की विचारधारा मंजूर नहीं है। हम किसी भी सरकारी संस्थान को आरएसएस जैसे हिन्दुत्ववादी संगठन के प्रभाव में आने की इजाजत नहीं दे सकते।”

जाहिर सी बात है कि भाजपा के लिए हेडगेवार सबसे ऊपर हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ की स्थापना की थी, जिसके विभिन्न संगठनों में से एक प्रमुख राजनीतिक विंग भारतीय जनता पार्टी है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने इस विवाद पर अपनी टिप्पणी में कहा है, “यदि कार्ल मार्क्स को पढ़ाया जा सकता है तो छात्र आरएसएस नेताओं को क्यों नहीं पढ़ सकते हैं। आरएसएस की शाखाओं के माध्यम से हमारी विचारधारा का प्रसार होगा। वे सिर्फ पाठ्यपुस्तकों से ही इसे हटा सकते हैं। लेकिन लोगों के दिलों से नहीं। पूर्व में जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी जैसे प्रधानमंत्रियों ने भी इसी प्रकार के प्रयास किये, लेकिन सफल नहीं हो पाए।”

इससे पहले भी कांग्रेस के उप-मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार सहित कैबिनेट मंत्री प्रियांक खड़गे की ओर से आरएसएस के आनुषांगिक संगठन बजरंग दल को प्रतिबंधित किये जाने को लेकर बयानों ने जाहिर कर दिया था कि कर्नाटक की वर्तमान सरकार पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों और यहां तक कि केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार (2004-2014) से भिन्न है। पूर्ण बहुमत के साथ इसके लिए भाजपा से तोड़फोड़ की आशंका नहीं है। पार्टी में अनुभवी और जमीनी नेताओं का जखीरा है, साथ ही नए विधायकों में भी अन्य राज्यों की तुलना में अधिक परिपक्वता है।

भारत जोड़ो यात्रा से भी कर्नाटक में कांग्रेस को भारी फायदा पहुंचा है। सिद्धारमैया का अहिंदा फार्मूला भी इस प्रयोग के मुफीद बैठता है, जो हिन्दुत्ववादी एजेंडे के बरखिलाफ पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, दलितों एवं महिलाओं की एक ऐसी विशाल आबादी को एक छतरी के नीचे लाने का काम करता है, जिसे वास्तव में लोकतंत्र और आर्थिक बेहतरी की सबसे अधिक दरकार है। 9 वर्षों तक केंद्र में भारी बहुमत के आधार पर मोदी सरकार ने जिस तिलिस्म को निर्मित किया था, सरकार एवं शिक्षण संस्थाओं सहित हर जगह आरएसएस की विचारधारा का समर्थन करने वालों को एक-एक कर स्थापित किया गया, आज यदि इतनी तीव्रता से कोई राज्य काट निकाल रहा है तो वह कर्नाटक है।

कर्नाटक में यदि कांग्रेस अपने प्रयोग में सफल और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में सफल सिद्ध होती है। महिलाओं को आर्थिक राहत सहित प्रभावी तौर पर राज्य में मुफ्त परिवहन को उपलब्ध कराने, बेंगलुरु शहर में भारी जलजमाव और परिवहन की भारी समस्या से निजात दिलाने में सफल सिद्ध होती है, और सबसे बढ़कर राज्य में आये-दिन सांप्रदायिक तनाव के स्थान पर निवेश एवं रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती है तो आगामी लोकसभा चुनावों के लिए उसके पास दिखाने के लिए कर्नाटक मॉडल होगा, जो राजस्थान या छत्तीसगढ़ की तुलना में देश के करोड़ों-करोड़ महिलाओं, आदिवासियों, दलितों, युवाओं, अल्पसंख्यकों सहित शहरी मध्यवर्ग के अपेक्षाकृत लोकतांत्रिक हिस्से को रास आएगा।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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S k Singh gaur
S k Singh gaur
Guest
1 year ago

सटीक

Venugopalan K M
Venugopalan K M
Guest
1 year ago

Right steps taken at the right time; in solidarity with the initiative and perseverance !

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