Saturday, June 3, 2023

दिल्ली दंगे: कोर्ट ने खजूरी खास एफआईआर में उमर खालिद, खालिद सैफी को आरोप मुक्त किया

जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद और सामाजिक कार्यकर्ता खालिद सैफी को दिल्ली की एक कोर्ट ने उत्तर पूर्वी दंगे के एक मामले में शनिवार को बरी कर दिया। लेकिन बरी होने के बावजूद दोनों जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे। दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद और खालिद सैफी के खिलाफ कई मामले दर्ज कर रखे हैं, जब तक सभी में उन्हें जमानत नहीं मिलती, तब तक वो जेल से बाहर नहीं आ सकते।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने थाना खजूरी खास में दर्ज एफआईआर 101/2020 के मामले में यह आदेश सुनाया। कोर्ट ने उमर खालिद और खालिद सैफी के अलावा तारिक मोईन रिजवी, जागर खान और मो इलियास को भी आरोपमुक्त कर दिया।

“आरोपी तारिक मोइन रिजवी, जागर खान, मोहम्मद इलियास, खालिद सैफी और उमर खालिद को धारा 437-ए सीआरपीसी के तहत 10,000 रुपये के मुचलके के साथ इतनी ही राशि की जमानत राशि जमा करने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने संबंधित आरोपियों को सूचित करने के लिए आदेश की प्रति संबंधित जेल अधीक्षक को भेजने का निर्देश दिया। जज ने हालांकि ताहिर हुसैन, लियाकत अली, रियासत अली, शाह आलम, मो शादाब, मो आबिद, राशिद सैफी, गुलफाम, अरशद कय्यूम, इरशाद अहमद और मो रिहान के खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी, 147, 148, 188, 153ए, 323, 395, 435, 436, 454 के तहत आरोप तय किए गए हैं।

एफआईआर में खालिद और सैफी दोनों जमानत पर हैं। हालांकि, वे अब भी यूएपीए मामले में न्यायिक हिरासत में हैं। एफआईआर आईपीसी की धारा 109, 114, 147, 148, 149, 153-ए, 186, 212, 353, 395, 427, 435, 436, 452, 454, 505, 34 और 120-बी, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम की धारा 3 और 4 और शस्त्र अधिनियम की धारा 25 और 27 के तहत दर्ज की गई थी।

यह मामला एक कांस्टेबल के बयान के आधार पर दर्ज किया गया था, जिसने कहा था कि 24 फ़रवरी, 2020 को चांद बाग पुलिया के पास एक बड़ी भीड़ जमा हो गई थी और पथराव शुरू कर दिया था। आरोप है कि जब पुलिस अधिकारी खुद को बचाने के लिए पास की एक पार्किंग में गया, तो भीड़ ने पार्किंग का शटर तोड़ दिया और अंदर मौजूद लोगों की पिटाई की और वाहनों में भी आग लगा दी। इसके बाद मामला 28 फरवरी, 2020 को अपराध शाखा को स्थानांतरित कर दिया गया।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की इमारत का इस्तेमाल कथित दंगाइयों द्वारा “ईंटें मारने, पथराव करने, पेट्रोल बम फेंकने और एसिड बम फेंकने” के लिए किया गया था। यह भी आरोप लगाया गया था कि उक्त सामग्री इमारत की तीसरी मंजिल और छत पर पड़ी मिली थी। हालांकि उमर भीड़ का हिस्सा नहीं था, लेकिन उस पर और खालिद पर मामले में आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया था।

एफआईआर में उमर खालिद को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि उसके खिलाफ अधूरी सामग्री के आधार पर उसे सलाखों के पीछे रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह देखते हुए कि मामले की जांच पूरी हो चुकी थी और चार्जशीट भी दायर की जा चुकी थी, अदालत ने कहा कि उसे केवल इस तथ्य के कारण अनंत काल तक जेल में नहीं रखा जा सकता है कि अन्य व्यक्ति जो दंगाई भीड़ का हिस्सा थे, उन्हें मामले में पहचान की जाए और गिरफ्तार किया जाए।

दोनों पर 2020 के दिल्ली दंगों में एक मामले में पुलिस ने पथराव का आरोप लगाया था। खजूरी खास थाने में इस संबंध में एफआईआर 101/2020 दर्ज की गई थी। 25 फरवरी 2020 को दर्ज की गई इस एफआईआर में पूर्वोत्तर दिल्ली के खजूरी खास इलाके में हुई हिंसा की जांच की गई थी।

चार्जशीट में क्या कहा गया था? चार्जशीट मुख्य रूप से पूर्व आप पार्षद ताहिर हुसैन की कथित संलिप्तता पर केंद्रित थी। हालांकि, इसमें उमर खालिद और खालिद सैफी के साथ उनका बार-बार जिक्र भी किया गया। चार्जशीट में कथित 8 जनवरी की बैठक की बात की गई थी, जहां हुसैन, खालिद सैफी और उमर खालिद की तिकड़ी कथित तौर पर शाहीन बाग में दंगों की योजना बनाने के लिए मिले थे। हालांकि ये आरोप साबित नहीं हो पाए।

चार्जशीट में लिखा था- वह (ताहिर हुसैन) खालिद सैफी और खालिद से जुड़ा पाया गया, जो उन लोगों के एक बड़े समूह का हिस्सा हैं, जो दिल्ली में दंगे और विरोध-प्रदर्शन आयोजित कर रहे थे। यहां यह बात तथ्यात्मक रूप से महत्वपूर्ण है कि ताहिर हुसैन जिस पार्टी से जुड़े थे, उस विचारधारा से उमर खालिद और खालिद सैफी का कोई लेना-देना नहीं था। उमर और खालिद सैफी कम्युनिस्ट औऱ सोशलिस्ट विचारधारा के नजदीक थे। जबकि ताहिर हुसैन आम आदमी पार्टी के उस समय पार्षद थे।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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