राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने 24 जुलाई को मानसून सत्र के शेष भाग के लिए निलंबित कर दिया था। विपक्षी दलों के विरोध के कारण सदन की कार्यवाही शुरू होने के कुछ ही मिनटों के भीतर स्थगित कर दी गई। जब सदन दोपहर 12 बजे दोबारा शुरू हुआ, तो सभापति ने मणिपुर पर विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य की दलीलों को नजरअंदाज करते हुए प्रश्नकाल को रोकने की कोशिश की। उत्तेजित विपक्षी सदस्य अपनी कुर्सियों पर खड़े हो गए और धीरे-धीरे “नरेंद्र मोदी-जवाब दो” (प्रधानमंत्री को जवाब देना चाहिए) के नारे लगाते हुए वेल की ओर बढ़े। दोपहर 12:10 बजे आप के सदन नेता संजय सिंह मणिपुर मुद्दे पर चर्चा करने के बारे में सभापति से पूछने के लिए आसन की ओर बढ़े।
इस पर सदन के नेता पीयूष गोयल ने उनके निलंबन की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पेश कर दिया, जिसे शोर-शराबे के बीच ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। सदन को दोपहर के भोजन के लिए स्थगित कर दिया गया। सदन स्थगित होने के बाद भी संजय सिंह अपनी कुर्सी पर बैठे रहे। इंडिया गठबंधन के सभी पार्टियों के नेता धनखड़ से मिलने गए और उन्होंने संजय सिंह के निलंबन को “जुर्म की तुलना में अनुपातहीन सज़ा” बताया। संजय सिंह को मानसून सत्र की शेष सभी 14 तारीखों के लिए निलंबित कर दिया गया है। समस्या के समाधान के लिए धनखड़ ने दोपहर एक बजे सदन के नेताओं की बैठक बुलाई। लेकिन बैठक गतिरोध तोड़ने में विफल रही।
सांसद संजय सिंह पूरी रात संसद परिसर में आसामान के नीचे गांधी प्रतिमा के पास बैठे रहे। संसद में मणिपुर पर पीएम को सदन में आकर अपना वक्तव्य देने की मांग के लिए सदन के वेल में आ जाना कौन सा अपराध है सभापति जी? पीयूष गोयल ने कुछ कहा और बिना विवेक का इस्तेमाल किए उसे मान लिया गया। एक बात तो तय है कि, संजय सिंह को जो सजा सदन में दी गई है वह उनके द्वारा किए गए अपराध की तुलना में अधिक है।
क्या यह सजा, पिछले सत्र में जब अडानी-मोदी रिश्तों पर प्रधानमंत्री से वक्तव्य की माग करते हुए संजय सिंह ने, “मोदी-अडानी भाई-भाई, दोनों ने मिल खाई मलाई” का नारा लगाया था और तब अडानी से अपनी नजदीकियों के चलते पीएम विपक्ष के सीधे निशाने पर थे। यह नारा पिछले सत्र में संजय सिंह तथा अन्य सांसदों द्वारा खूब लगा और लगाया जाता रहा। कहीं आज राज्यसभा से सत्र तक के निष्कासन का कारण यह नारा तो नहीं है? आखिर राहुल गांधी भी तो मोदी अडानी रिश्तों पर सवाल उठाने की ही तो सजा भोग रहे हैं।
सदन में मणिपुर के हालात पर चर्चा के फॉर्मेट पर अब एक नई बहस छिड़ गई है। विपक्ष चाहता है, बहस राज्यसभा की नियमावली के रूल 267 के तहत चर्चा हो, और सरकार मणिपुर पर चर्चा रूल 176 के तहत कराने के लिए तैयार है। मणिपुर की स्थिति पर चर्चा के फॉर्मेट को लेकर फिलहाल सरकार और विपक्ष के बीच रस्साकशी जारी है। इस दौरान रूल 176 और रूल 267 का अक्सर उल्लेख हो रहा है। एक तरफ सरकार जहां छोटी अवधि की चर्चा के लिए जिद पर अड़ी हुई थी। वहीं विपक्ष ने जोर देकर कहा कि प्रधानमंत्री नियम 267 के तहत सभी मुद्दों को निलंबित कर चर्चा के बाद स्वत: संज्ञान लें और मणिपुर पर सरकार का पक्ष रखें।
मंगलवार को आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने अपने लिखित अनुरोध में कहा कि सरकार की विफलता के कारण मणिपुर राज्य में कानून और व्यवस्था के टूटने पर चर्चा के लिए 21 जुलाई 2023 के लिए वह नियम 267 के तहत नोटिस देते हैं। राज्यसभा में सूचीबद्ध अन्य सभी कार्यकलापों के निलंबन के लिए, इस नियम में यह नोटिस दी जाती है। आखिर क्या है नियम 267, जिसकी मांग विपक्ष मणिपुर मुद्दे पर चर्चा के लगातार कर रहा है? दूसरी तरफ रूल 176 में क्या है, जिसके अंतर्गत सरकार छोटी अवधि की चर्चा के लिए तैयार है? इन दोनों नियमों को समझते हैं।
रूल 267 क्या है?
रूल 267 के अंतर्गत राज्यसभा के सदस्य को सभापति की मंजूरी से सदन के पूर्व-निर्धारित एजेंडे को स्थगित करने का प्रस्ताव रखने की विशेष शक्ति देता है। दरअसल संसद में एक सदस्य के पास मुद्दों को उठाने और सरकार से जवाब मांगने के कई तरीके संसदीय नियमावली में दिए गए हैं। प्रश्नकाल के दौरान सांसद किसी भी मुद्दे पर संबंधित प्रश्न पूछ सकते हैं। इसके तहत संबंधित मंत्री को मौखिक या लिखित उत्तर देना होता है। कोई भी सांसद शून्यकाल के दौरान अपने मन मुताबिक मुद्दे को उठा सकता है।
प्रति संसदीय कार्य दिवस के दिन 15 सांसदों को शून्यकाल में अपनी पसंद के मुद्दे उठाने की अनुमति होती है। कोई सांसद इसे विशेष उल्लेख के दौरान भी उठा सकता है। अध्यक्ष प्रतिदिन 7 विशेष उल्लेखों की अनुमति दे सकते हैं। सांसद राष्ट्रपति के भाषण पर बहस जैसी अन्य चर्चाओं के दौरान इस मुद्दे को सरकार के ध्यान में लाने का प्रयास कर सकते हैं। नियम 267 के तहत कोई भी चर्चा संसद में इसलिए बहुत महत्व रखती है क्योंकि, राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर चर्चा के लिए अन्य सभी कामों को रोक दिया जाता है।
अगर किसी मुद्दे को नियम 267 के तहत स्वीकार किया जाता है तो, यह दर्शाता है कि, यह आज का सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दा है। राज्यसभा नियम पुस्तिका में कहा गया है, “कोई भी सदस्य सभापति की सहमति से यह प्रस्ताव रख सकता है। वह यह प्रस्ताव ला सकता है कि उस दिन की परिषद के समक्ष सूचीबद्ध एजेंडे को निलंबित किया जाए।” अगर प्रस्ताव पारित हो जाता है तो, विचाराधीन नियम को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया जाता है। विपक्ष मणिपुर को लेकर इसी कारण रूल 267 के तहत चर्चा की मांग कर रहा है।
नियम 176 क्या है?
ध्यान देने वाली बात है कि केंद्र सरकार ने सोमवार को कहा था कि वह राज्यसभा में मणिपुर मुद्दे पर चर्चा करने को तैयार है। सदन के नेता पीयूष गोयल ने भी कहा था कि, सरकार को इसमें कोई आपत्ति नहीं है। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने फिर कहा था कि, “विभिन्न सदस्यों की ओर से नियम 176 के तहत मणिपुर के मुद्दों पर अल्पकालिक चर्चा की मांग की गई है। सदस्य मणिपुर के मुद्दों पर चर्चा में शामिल होने के इच्छुक हैं। इन चर्चाओं के तीन चरण होते हैं। एक, सदन का प्रत्येक सदस्य अल्पकालिक चर्चा के लिए नोटिस देने का हकदार होता है। उन नोटिसों पर उन्होंने विचार किया है। लेकिन, नियम के तहत उन्हें सदन के नेता से तारीख और समय की सलाह लेनी होगी।”
सवाल यह है कि नियम 176 क्या है? नियम 176 किसी विशेष मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा की अनुमति देता है, जो ढाई घंटे से ज्यादा नहीं हो सकती। इसके अनुसार, अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा शुरू करने का इच्छुक कोई भी सदस्य इस बारे में लिखित नोटिस दे सकता है। शर्त यह है कि नोटिस के साथ, अत्यावश्यकता (अर्जेंसी) का कारण बताया जाए। नोटिस पर कम से कम दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए जो इसका समर्थन करते हों।
विपक्ष शिकायत कर रहा है कि, नियम 267 के तहत उसके किसी भी नोटिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उदाहरण के लिए उसने दावा किया है कि सभापति धनखड़ ने संसद के पिछले शीतकालीन सत्र के दौरान आठ ऐसे नोटिसों को खारिज कर दिया था जब वे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की बढ़ती उपस्थिति पर चर्चा चाहते थे। टीएमसी के डेरेक ओ’ब्रायन ने पहले कहा था कि 2016 में नोटबंदी के बाद नियम 267 के तहत किसी भी नोटिस की अनुमति नहीं दी गई है। यह पुराने ट्रेंड से अलग है जब ऐसे नोटिस स्वीकार किए गए थे।
यह गतिरोध अभी भी बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न तो सदन में आ रहे है और न ही चर्चा में शामिल होने की बात कर रहे हैं। गृहमंत्री और रक्षा मंत्री जरूर सदन में आकर अपनी बात कह चुके है, पर वे भी नियम 267 के अंतर्गत लंबी और विस्तृत चर्चा के बारे में कोई भी आश्वासन देने से कतरा रहे हैं। मणिपुर एक राष्ट्रीय महत्व का मसला बन चुका है। यूरोपीय यूनियन, ब्रिटिश संसद और यूएस कांग्रेस में इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा हो रही है। दुनियाभर के प्रतिष्ठित अखबार, मणिपुर पर ख़बरें छाप रहे हैं, और संपादकीय लिख रहे हैं, लेकिन सरकार विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस INDIA के भाष्य में व्यस्त है।
(विजय शंकर सिंह पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं।)