समान नागरिक संहिता के विरोध में उतरे पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान, केजरीवाल कर रहे हैं समर्थन

मंगलवार, 4 जुलाई की शाम तक पंजाब में आम आदमी पार्टी की खासी किरकिरी हो रही थी कि उसने अल्पसंख्यक हितों की बलि देकर ‘समान नागरिक संहिता’ (यूसीसी) का समर्थन किया है। जबकि पंजाब के अतिरिक्त समूचे देश में बड़ी तादाद में सिख इसे लागू करने के हक में नहीं हैं और इसे अपनी अस्मिता पर खुला हमला मानते हैं। सूबे की बेशुमार पंथक अथवा धार्मिक जत्थेबंदियां, स्थानीय मानवाधिकार संगठन और किसान संघ यूसीसी के खिलाफ बड़े आंदोलन की तैयारी में हैं। शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस भी अपनी मुखालफत का खुला इजहार कर चुकी है। ऐसे में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता, वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संदीप पाठक का बयान खासी हलचल मचा गया कि ‘आप’ ‘समान नागरिक संहिता’ के मुद्दे पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ है यानी उसका खुला समर्थन करती है।

संदीप पाठक ने समर्थन की घोषणा तो दिल्ली में की लेकिन तूफान पंजाब की सियासत में आ गया। दो दिन तक ‘आप’ की राज्य इकाई का अदने से अदना पदाधिकारी भी इस पर खामोशी अख्तियार किए रहा। मुख्यमंत्री भगवान सिंह मान, राज्य इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष प्रिंसिपल बुधराम, मंत्रिमंडल के तमाम सदस्य और कोई भी विधायक इस पर कुछ नहीं बोला। अचानक बुधवार को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पूरी मुखरता के साथ अपनी जुबान यूसीसी की खिलाफत में खोली। पंजाब में इसे आम आदमी पार्टी का ‘समान नागरिक संहिता’ पर यू-टर्न लिया बताया जाता है। विपक्ष मुख्यमंत्री भगवंत मान को सवालिया घेरे में खड़ा कर रहा है।

आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री की मुखालफत के बाद भी कोई आगे नहीं आ रहा। कम से कम 12 विधायकों और दो मंत्रियों से फोनवार्ता की गई तो यही जवाब मिला कि अभी वे कुछ नहीं कह सकते। ‘आप’ के कार्यकारी अध्यक्ष प्रिंसिपल बुधराम ने संदेश भेजने के बावजूद फोन नहीं उठाया। इस सबका मतलब शीशे की मानिंद साफ है। इससे यह जाहिर भी होता है कि ‘आप’ ने जब यूसीसी पर नरेंद्र मोदी सरकार को ‘सैद्धांतिक’ समर्थन देने की बात कही थी तो पंजाब इकाई को पूछा तक नहीं गया था।

वैसे भी आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल सहित दिल्ली आलाकमान में बैठे नेता पंजाब की जमीनी सच्चाइयों को समझना नहीं चाहते। पंजाब का दोहन वे जरूर जमकर कर रहे हैं। पंजाब से हासिल आर्थिक संसाधनों से पार्टी को सशक्त करने की खबरें सूत्र देते रहते हैं। केजरीवाल पंजाब के सरकारी उड़न खटोले का खूब इस्तेमाल करते हैं और उनके तथा अन्य लोगों के पास वाहनों सहित पंजाब पुलिस का भारी अमला है। अब यह कोई ढकी-छुपी बात नहीं है। सब कुछ जगजाहिर है।

बहरहाल, जबरदस्त किरकिरी के बाद मंगलवार को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि भारत विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों व परंपराओं का गुलदस्ता है और प्रत्येक धर्म-पंथ की अलग पहचान और परंपरा है। लेकिन केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार केवल एक फूल वाला गुलदस्ता क्यों बनाना चाहती है और अलग-अलग संप्रदायों व लोगों की पहचान क्यों खत्म करना चाहती है?

मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने उदाहरण देकर कहा कि पंजाब में सिख, पिता के भोग के बाद वारिस की पगड़ी बांधते हैं जबकि हिंदू समुदाय में मुंडन होता है। सिखों के विवाह पर 4 फेरे दोपहर 12 से पहले होते हैं और हिंदुओं के सात फेरे रात को होते हैं। इसी तरह मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों, जैनियों व बौद्ध धर्म के मानने वालों की अपनी-अपनी अलहदा परंपरा है। मान ने कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों की बाबत कोई कानून बनाने और उसे लागू करने के लिए सभी पक्षों के साथ गंभीर-विचार विमर्श तथा सहमति जरूरी है। 

गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता, राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद संदीप पाठक के केंद्र की मोदी सरकार के प्रस्ताव को सैद्धांतिक समर्थन देने की घोषणा पर मुख्यमंत्री ने पूछने पर भी कोई टिप्पणी नहीं की। तब ‘आप’ आलाकमान के स्टैंड की पंजाब में तीव्र आलोचना हुई थी। जमीनी स्तर तक। कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल को तो इस मसले पर आम आदमी पार्टी को निशाने पर लेना ही था, खुद पार्टी कार्यकर्ता भी इसे लेकर अपनी सरकार से नाराज थे।

विधानसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल, भगवंत सिंह मान और उनके कद्दावर नेता अवाम को ‘समान नागरिक संहिता’ के नफे-नुकसान विस्तार से बताते हुए कहा करते थे कि इसे किसी भी सूरत में लागू नहीं होने दिया जाएगा। इससे समाज का सारा ताना-बाना बदल जाएगा। सिख मैरिज एक्ट ठंडे बस्ते में पड़ा-पड़ा गल जाएगा। भारतीय संविधान की देन सर्वोच्च सिख संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अधिकार एकदम सीमित हो जाएंगे। इसके हाथ ज्यादा कुछ नहीं बचेगा। कहना होगा कि आम आदमी पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनाव में जिन मुद्दों पर बहुमत मिला था- उसमें ‘समान नागरिक संहिता’ का मुद्दा भी शुमार था।

सीमांत पंजाब सिख बाहुल्य सूबा है। यहां मामूली सी चिंगारी देखते-देखते भयावह आग में तब्दील हो जाती है और उस आग को बुझाने में लंबा और पीड़ाजनक वक्त लगता है। इसीलिए पार्टी कोई भी हो- दिल्ली में उसका स्टैंड कुछ और होता है और पंजाब आते-आते उसमें तब्दीली आ जाती है। हाल का उदाहरण दिल्ली बॉर्डर पर लगा व्यापक किसान आंदोलन है, जिसे विश्वस्तरीय मीडिया कवरेज हासिल हुई। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान पंजाब के हर मिजाज से अच्छी तरह वाकिफ हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि मान ने आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से संक्षिप्त ही सही; बात करने के बाद ऐसा बयान दिया।

मुख्यमंत्री के यूसीसी के विरुद्ध दिए बयान के बाद राज्य के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने भी कहा कि ‘आप’ आलाकमान को ‘समान नागरिक संहिता’ के मुद्दे पर स्टैंड लेने से पहले भगवंत मान और उनके साथियों से मशवरा करना चाहिए था कि पंजाब में इसका क्या असर होगा। यहां चीमा का बयान स्पष्ट करता है कि इस बाबत दिल्ली ने मुख्यमंत्री से चर्चा तक नहीं की। ‘आप’ से ही जुड़े कुछ भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि पार्टी की पंजाब इकाई आलाकमान के कंट्रोल व दबाव से कुछ ज्यादा ही आजिज आ गई है।

कम से कम पंजाब आम आदमी पार्टी से जुड़ा हर नेता जानता है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान वही करते हैं जो उन्हें अरविंद केजरीवाल या राघव चड्ढा निर्देशित करते हैं। वैसे, यह पहली बार है कि आम आदमी पार्टी की ओर से दिल्ली में कुछ और कहा गया हो और पंजाब में बिल्कुल अलहदा स्वर सामने आए हों। पंजाब इकाई का यूसीसी पर अलग स्टैंड लेना सभी को हैरान कर रहा है। अब इंतजार दिल्ली से आने वाली प्रतिक्रिया का है।

प्रसंगवश, दिल्ली में ‘आप’ सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल बेशक कितने भी लोकप्रिय क्यों न हों। पंजाब आकर भी वह वैसी ही छवि हासिल करने की फिराक में रहते हैं लेकिन यकीनन मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान उनसे कई गुना ज्यादा लोकप्रिय हैं। हालांकि अतीत और वर्तमान के घटनाक्रम में मान की लोकप्रियता में कोई इजाफा नहीं हो रहा। उल्टे लोकप्रियता सिमट रही है। जालंधर लोकसभा उपचुनाव उनकी अगुवाई में जरूर जीता गया लेकिन जीत किस तरह हासिल की गई, इसका खुलासा एकबारगी शर्मसार कर देगा। यूसीसी लागू होता है तो यह अपने आप में राज्य सरकार की भी परीक्षा होगी।

उधर, मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के ‘समान नागरिक संहिता’ पर आए ताजा बयान पर विपक्ष उन्हें घेर भी रहा है। शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री और मुख्य प्रवक्ता डॉ दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि यह अच्छी बात है, मुख्यमंत्री को इसकी समझ आने लगी है। लेकिन इससे ‘आप’ का दोहरा चेहरा भी सामने आया है।

नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा कहते हैं कि यू-टर्न के पीछे कोई गहरी रणनीति है जो जल्द साफ हो जाएगी। भगवंत सिंह मान का बयान फौरी तौर पर ‘डैमेज कंट्रोल’ का हिस्सा भी हो सकता है। यह भी संभव है कि उन्होंने सिख मनोविज्ञान को समझते हुए ‘आप’ आलाकमान से हटकर अपने तौर पर स्टैंड लिया।

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की रिपोर्ट।)

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