तमिलनाडु के भाजपा मुख्यालय ‘कमलालयम’ पर ईडी की रेड, आखिर वजह क्या है?

नई दिल्ली। यह खबर सच है लेकिन तमिलनाडु के अलावा शेष भारत में इस खबर को लगभग पूरी तरह से दबा दिया गया है। दक्षिण में भी कुछेक अंग्रेजी मीडिया आउटलेट्स के अलावा किसी ने भी इसकी जानकारी साझा करने का प्रयास नहीं किया है। खबर यह है कि तमिलनाडु के भाजपा मुख्यालय ‘कमलालयम’ पर ईडी की रेड पड़ी है।

बता दें कि ईडी की यह कार्रवाई मंगलवार, 26 सितंबर 2023 को भाजपा के मुख्यालय में अकाउंटेंट ज्योति कुमार पर हुई, जो 4 घंटे के भीतर ही रोक दी गई। इस छापे का कनेक्शन ईडी के 12 सितंबर के दिन राज्य के 34 ठिकानों पर छापे मारी के साथ जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें छह जिलों में 8 बालू खनन क्षेत्र भी शामिल थे।

अंग्रेजी समाचार एजेंसियों और वेबसाइट, जैसे कि द न्यूज़मिनट, द इंडियन एक्सप्रेस के दक्षिण भारतीय डिजिटल संस्करण और साउथ फर्स्ट ने ही इस छापेमारी को प्रकाशित किया है। ईडी, सीबीआई और जीएसटी अधिकारियों के राजस्थान, केरल सहित महाराष्ट्र एवं अन्य राज्यों में रेड डालने की खबरें देश के सभी प्रमुख समाचारपत्रों और टेलीविजन मीडिया की सुर्ख़ियों में बनी हुई हैं। लेकिन ईडी द्वारा भाजपा राज में अपने ही मुख्यालय के भीतर छापेमारी की घटना पर समाचारपत्रों का मौन बहुत कुछ स्पष्ट करता है।

सूत्रों के मुताबिक, ईडी अधिकारियों द्वारा बीजेपी के राज्य मुख्यालय, कमलालयम में अकाउंटेंट के तौर पर कार्यरत ज्योति कुमार और उनके मकान मालिक के साथ भी पूछताछ की गई है। अधिकारियों द्वारा ज्योतिकुमार के रिहायशी ठिकाने पर छापेमारी की गई है, जो कि एक रियल एस्टेट बिल्डर शंमुगम द्वारा डेवेलप्ड एक अपार्टमेंट कॉम्पलेक्स है। कल तक की सूचना के आधार पर पुलिस का कहना था कि दोपहर तक जारी इस छापेमारी को लेकर ईडी ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया था। 

इससे पहले ईडी द्वारा तमिलनाडु में 12 सितंबर के दिन रेत खनन ठेकेदारों, के रथिनम, एस रामचंद्रन और करिकालन से जुड़े विभिन्न खदानों पर 6 जिलों में छापेमारी की गई थी। इतना ही नहीं ईडी ने जल संसाधन विभाग के मुख्यालय सहित ऑडिटर शंमुगनराज के ठिकानों पर भी छापेमारी की थी और बेनामी 1 किलो सोने के साथ 12.82 करोड़ रूपये की बरामदगी भी की थी।  

ज्योतिकुमार की गिनती भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं में की जाती है, और 26 सितंबर को ईडी की छापेमारी ने तमिलनाडु भाजपा नेताओं को सकते की स्थिति में ला दिया है। 2014 के बाद जब से केंद्र की सत्ता में नरेंद्र मोदी सरकार स्थापित हुई है, यह पहला मौका है जब तमिलनाडु में भाजपा को ईडी की रेड का सामना करना पड़ा है। इस घटना पर पार्टी नेताओं में भिन्न राय है, लेकिन राज्य स्तर के नेता इससे उठने वाले सवालों को दबाने की समस्या से जूझ रहे हैं।  

खबर है कि दक्षिणी चेन्नई के भाजपा अध्यक्ष कालीदास और बीजेपी तमिलनाडु मुख्यालय के सचिव चांदराम तत्काल ज्योतिकुमार के घर पर पहुंच गए थे और एक तरफ ईडी की जांच चल रही थी, दूसरी तरफ ये नेता घर के भीतर बने हुए थे।

साउथ फर्स्ट की खबर के अनुसार, जो खुद को शेष आधे भारत की स्टोरी बयां करने का दावा करता है, ने अपने अपडेट में बताया है कि ईडी ने अवैध रेत खनन की बिक्री मामले में बीजेपी के खजांची के आवास पर छापा मारा, जो 4 घंटे बाद पूरा हो गया।

समाचार पत्र का दावा है कि जब ईडी के अधिकारियों द्वारा ज्योति कुमार के साथ पूछताछ जारी थी, उस दौरान भी भाजपा से जुड़े वरिष्ठ नेताओं को आवास के भीतर प्रवेश की इजाजत दी गई। ऐसा अनुमान है कि ईडी की यह कार्रवाई इसलिए हुई क्योंकि ज्योतिकुमार का संबंध उस रियल एस्टेट डेवलपर और कॉन्ट्रैक्टर्स के साथ था, जिनका रिश्ता खनन माफिया से निकलता है। सात ईडी अधिकारियों की टीम ने शहर के टी नगर इलाके में स्थित शंमुगम अपार्टमेंट में घुसकर इस छापेमारी को अंजाम दिया था।

छापेमारी की वजह

पत्र में आगे लिखा है कि सूत्रों के अनुसार, 12 सितंबर को जब रेत खनन कांट्रेक्टर के रथिनम, एस रामचंद्रन और करिकालन के विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी की गई थी तो उस दौरान ईडी के संज्ञान में यह जानकारी पता चली थी कि शंमुगम के बैंक अकाउंट में हर महीने एक निश्चित रकम ट्रान्सफर की जा रही थी। इसके बाद जब शंमुगम के बैंक अकाउंट की पड़ताल की गई तो एजेंसी को ज्योतिकुमार और बिल्डर के बीच पैसों के लेनदेन का पता चला।

इससे पहले 34 जगहों पर ईडी की रेड में जिसमें 6 जिलों में 8 खदानों पर छापेमारी की गई थी, ईडी को जाली बिक्री की रसीदें और नकली क्यूआर कोड बरामद हुए थे, जिसके जरिये पूरे प्रदेश भर में कई लाख रेत की गाड़ियां बेची गई हैं। लेकिन ईडी की ओर से रेड के बाद कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है, इससे भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इस छापेमारी के पीछे की वजह क्या हो सकती है।

सोशल मीडिया पर चर्चा है कि भाजपा की तमिलनाडु राज्य ईकाई ही कहीं न कहीं संदेह के घेरे में है। एआईडीएमके नेता जयललिता की मौत के बाद से ही पिछले कुछ वर्षों से राज्य में भाजपा ने अपने विस्तार की कोशिशें तेज कर दी थीं। केंद्र की ओर से राज्य ईकाई को भारी आर्थिक संसाधन मुहैया कराए जा रहे थे। राज्य के भीतर पार्टी की कतारों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग शामिल हो गये हैं, जिनका प्रमुख ध्येय विचारधारा के बजाय अपने आर्थिक साम्राज्य को मजबूती प्रदान करने का रहा है।

एआईडीएमके-बीजेपी के बीच गठबंधन खत्म

पिछले कुछ समय से एआईडीएमके के शीर्ष नेतृत्व को बीजेपी के साथ अपने रिश्तों को जारी रखने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। यही वजह है कि जब डीएमके नेता और मुख्यमंत्री के बेटे दयानिधि स्टालिन के सनातन धर्म को लेकर की गई टिप्पणी पर उत्तर भारत में भाजपा द्वारा अभियान चलाया जा रहा था, और तमिलनाडु में भी विरोध स्वरूप रैलियां और प्रदर्शन किये जा रहे थे, उसके चलते एआईडीएमके के लिए अपने आधार को टिकाये रख पाना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा था।

इसके अलावा, पिछले एक वर्ष से भाजपा प्रदेश की कमान संभाल रहे पूर्व आईपीएस अधिकारी अन्नामलाई ने भी एआईडीएमके के लिए जीना दूभर कर दिया था। अन्नामलाई की आक्रामक शैली और जल्दबाजी उन्हें लगातार मीडिया की सुर्ख़ियों में बनाए रखती है। वे डीएमके और द्रविड़ विचारधारा पर अपने हमले को बनाये हुए हैं, लेकिन एआईडीएमके जो खुद भी द्रविड़ विचारधारा से ही निकली पार्टी है, को भी कहीं न कहीं इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। पार्टी के आधार-स्तंभ रहे एमजी रामचंद्रन और जयललिता जयराम की राजनीति ही द्रविड़ विचारधारा से प्रेरित रही है।

डीएमके नेता और राज्य मंत्री पर ईडी की छापेमारी और गिरफ्तारी की वजह भी एआईडीएमके के जयललिता के कार्यकाल के दौरान किये गये भ्रष्टाचार को ही उजागर करता है। उपर से कई बार भाजपा अध्यक्ष अन्नामलाई के द्वारा अपने वक्तव्य में जयललिता के खिलाफ बयानबाजी एआईडीएमके के खिलाफ ही माहौल बनाने का काम करती है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इस प्रकार भाजपा तमिलनाडु में डीएमके और स्वंय को दो मुख्य प्रतिद्वंदी राजनीतिक गुट बनाती जा रही है।

द्रविड़ विचारधारा से जुड़ा राजनीतिक आधार तेजी से खिसककर डीएमके और दूसरा खेमा भाजपा के पाले में चला जायेगा। एआईडीएमके के हाथ में कुछ भी बचने की उम्मीद नहीं रहने वाली। पीएम मोदी भी हाल के दिनों में बनारस में तमिल संगम और संसद के भीतर सैंगोल की प्राण-प्रतिष्ठा कर तमिलनाडु और दक्षिणी राज्यों में भाजपा के लिए सांस्कृतिक सेंधमारी कर चुके हैं।

ऐसे में एआईडीएमके के सामने बड़ा सवाल ईडी, सीबीआई की छापेमारी के डर से भी अधिक अपने अस्तित्व का बन गया था। भाजपा के साथ गठबंधन को चुनाव बाद देखा जा सकता है। लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। एनडीए के अपने गठबंधन में उसके पास अब नाममात्र के साझीदार बचे हैं। दक्षिणी राज्यों में अपने ढहते किले को बचाने की खातिर उसके द्वारा जेडी(एस) को गठबंधन में शामिल करने की कोशिश, दूसरी तरफ एआईडीएमके द्वारा तोड़ देने से धूल में मिल चुकी है।

भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। उसके मंसूबों और दिन-रात की तपस्या पर पानी फेरते हुए एआईडीएमके का संबंध-विच्छेद करना दक्षिण भारत में उसकी इमेज को रसातल में ले जा रहा है। राज्य का नेतृत्व अपनी राजनीति को चमकाने और केंद्र से मिलने वाली आर्थिक मदद से राज्य में पार्टी का जनाधार बढ़ाने के बजाय खुद के एजेंडे को इसी प्रकार आगे बढ़ाता है तो नतीजा उसके सामने साफ़ नजर आ रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षक ईडी की इस छापेमारी को कहीं न कहीं इन्हीं विवशताओं से जोड़कर देख रहे हैं, वरना ईडी या पुलिस की कार्रवाई भाजपा के कार्यकर्ताओं या नेताओं के खिलाफ हो जाए, ऐसा अनर्थ पिछले 9 वर्षों में विश्व की सबसे बड़े महासंगम वाले नए-पुराने भाजपाईयों को देखने को नहीं मिला था।  

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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