ईडी को लिखित रूप में बतानी होगी आरोपी को गिरफ्तारी की वजह: सुप्रीम कोर्ट

जब किसी भी संस्था की साख, चाहे राजनीतिक दखलंदाजी हो या संस्था प्रमुख की बेजा महत्वाकांक्षा हो या राजनीति का स्वतः एक उपकरण बन जाने की लालसा हो, या कोई और भी कारण हो, तो उसके हर एक्शन पर लोगों की निगाह उठती है, सवाल खड़े किए जाते हैं, और उक्त संस्था द्वारा उठाया गया कदम यदि नेकनीयती तथा विधि सम्मत रूप से उठाया गया हो तो भी, लोग उसे संदेह की दृष्टि से ही देखने लगते है।

यदि वह संस्था, सीधे जनता से जुड़े सरोकारों के संबंध में कोई जांच या छानबीन कर रही हो, तो उसकी चर्चा वे भी करने लगते हैं, जो, उक्त संस्था के किसी भी एक्शन से सीधे प्रभावित नहीं होते। मैं बात कर रहा हूं देश की शीर्ष जांच एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय यानी एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट जिसे सामान्यतया ईडी के नाम से जाना और पुकारा जाता है।

पिछले दस सालों में यदि किसी महत्वपूर्ण जांच एजेंसी की प्रतिष्ठा हानि या बुरी तरह साख गिरी है तो वह जांच एजेंसी, पीएमएलए यानी प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट के अंतर्गत सर्वाधिकार प्राप्त एजेंसी, ईडी है। आज ऐसी स्थिति हो गई है कि सामान्य पुलिस की जांचों की तरह से ईडी की जांच पर सवाल उठ रहे हैं, उनकी गिरफ्तार करने की शक्ति को अदालतों में चुनौती दी जा रही है, उनकी मुल्जिम को रिमांड पर रखने के अधिकार पर संशय खड़ा किया जा रहा है, और तो और सुप्रीम कोर्ट में ईडी को राजनीतिक प्रतिशोध और उत्पीड़न का एक हथियार कहा जा रहा है और पीआईएल दायर किए जा रहे हैं।

ईडी के पास, गिरफ्तारी की कितनी शक्तियां हैं और क्या ईडी को गिरफ्तारी के संबंध में पुलिस की शक्तियां प्राप्त हैं या नहीं, इस पर अभी भी कुछ याचिकाएं सुनवाई हेतु सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, पर गिरफ्तारी की शक्ति के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने पवन बंसल मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि “प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को आरोपी को गिरफ्तारी के कारण लिखित रूप में बताने होंगे।”

यानी गिरफ्तार व्यक्ति को, क्यों और किस कारण से गिरफ्तार किया गया है, इसका विवरण लिखित रूप में उसे अवगत कराना होगा।

इस तरह का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने कहा है कि, “मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 19, ईडी के अधिकारियों को मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के दोषी किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति देती है। लेकिन इस अधिकार का उपयोग करते हुए अभियुक्त को इस तरह की गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित किया जाएगा।” हालांकि, उक्त धारा में यह साफ साफ नहीं अंकित है कि गिरफ्तारी के आधार की जानकारी गिरफ्तारशुदा व्यक्ति को कैसे और किस रूप में दी जानी चाहिए। 

इस मामले में सुनवाई करते हुए पीठ ने यह भी कहा कि, “विजय मदनलाल चौधरी मामले में यह माना गया था कि “किसी दिए गए मामले में ईसीआईआर (मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में दर्ज होने वाली एफआईआर को ईसीआईआर कहते है) प्रदान न करने को गलत नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि ईसीआईआर में विवरण शामिल हो सकते हैं। इस कारण ईडी के कब्जे में मौजूद सामग्री और उसका खुलासा करने से जांच या पूछताछ के अंतिम नतीजे पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।

साथ ही, पीठ ने यह भी माना गया था कि जब व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के आधार के बारे में ‘सूचित’ किया जाता है, तभी यह संविधान के अनुच्छेद 22(1) के आदेश का पर्याप्त अनुपालन करना होगा।”

पर पवन बंसल के मामले, में शीर्ष अदालत के समक्ष मुद्दा, गिरफ्तारी के आधार को सूचित करने के तरीके के बारे में था – “चाहे वह मौखिक हो या लिखित। जस्टिस संजय कुमार द्वारा लिखे गए फैसले में संविधान के अनुच्छेद 22(1) का उल्लेख किया गया है जिसमें प्रावधान है कि, “गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को, ऐसी गिरफ्तारी के आधार के बारे में जितनी जल्दी हो सके सूचित किए बिना हिरासत में नहीं रखा जाएगा।”

फैसले में कहा गया, “गिरफ्तार व्यक्ति को दिया गया, यह एक मौलिक अधिकार है, इसलिए गिरफ्तारी के आधार की जानकारी देने का तरीका, आवश्यक रूप से सार्थक होना चाहिए ताकि इच्छित उद्देश्य की पूर्ति हो सके।”

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आगे कहा कि, “पीएमएलए की धारा 19 के अनुसार ईडी के अधिकारी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते हैं यदि उनके पास “विश्वास करने का कारण” है कि आरोपी पीएमएलए के तहत किए गए अपराधों का दोषी है। पीएमएलए की धारा 45 के तहत जमानत पाने के लिए आरोपी को यह स्थापित करना होगा कि यह मानने का कोई उचित आधार नहीं है कि वह दोषी है।..

.. इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए गिरफ्तार व्यक्ति को उन आधारों के बारे में पता होना आवश्यक होगा, जिन पर अधिकृत अधिकारी ने उसे धारा 19 के तहत गिरफ्तार किया है, और अधिकारी के ‘विश्वास करने के कारण’ के आधार पर कि, वह 2002 के अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का दोषी है।..

.. यदि गिरफ्तार व्यक्ति को इन तथ्यों की जानकारी है तभी वह विशेष अदालत के समक्ष अपने बचाव में दलील देने और खुद को निर्दोष साबित करने की स्थिति में होगा कि, यह मानने का आधार है कि वह ऐसे अपराध का दोषी नहीं है, ताकि जमानत से उसे राहत मिल सके। इसलिए, गिरफ्तारी के आधार की सूचना, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 22(1) और 2002 के अधिनियम की धारा 19 द्वारा अनिवार्य है, इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए रखी गई है, और इसे उचित महत्व दिया जाना चाहिए।”

पीएमएलए की धारा 19 के अनुसार प्राधिकृत अधिकारी को यह विश्वास करने के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना होगा कि, “जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाना है, वह 2002 के अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का दोषी है। धारा 19(2) के लिए प्राधिकृत अधिकारी को यह बताने की आवश्यकता है कि, धारा 19(1) में निर्दिष्ट, उसके कब्जे में मौजूद सामग्री के साथ गिरफ्तारी आदेश की प्रति एक सीलबंद लिफाफे में न्यायनिर्णायक प्राधिकारी को भेजें।”

इन प्रावधानों के आलोक में न्यायालय ने कहा, “हालांकि गिरफ्तार व्यक्ति को धारा 19(2) के तहत जुडिशियल प्राधिकारी को भेजी गई सभी सामग्री प्रदान करना आवश्यक नहीं है, लेकिन उसे गिरफ्तारी के आधार के बारे में ‘सूचित’ होने का संवैधानिक और वैधानिक अधिकार है। जिन्हें अधिनियम 2002 की धारा 19(1) के अधिदेश को ध्यान में रखते हुए प्राधिकृत अधिकारी द्वारा लिखित रूप में अनिवार्य रूप से दर्ज किया जाता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी द्वारा एक समान परंपरा का पालन नहीं करने पर आश्चर्य व्यक्त किया कि, ईडी आरोपी को गिरफ्तारी के कारणों को लिखित रूप में सूचित करने की किसी सुसंगत और समान प्रथा का पालन नहीं कर रहा है।

शीर्ष अदालत ने कहा, “आश्चर्यजनक रूप से इस संबंध में ईडी द्वारा कोई सुसंगत और समान प्रथा का पालन नहीं किया जाता है, क्योंकि देश के कुछ हिस्सों में गिरफ्तार व्यक्तियों को गिरफ्तारी के आधार की लिखित प्रतियां प्रदान की जाती हैं, लेकिन अन्य क्षेत्रों में उस प्रथा का पालन नहीं किया जाता है और गिरफ़्तारी के आधार या तो उन्हें पढ़कर सुनाए जाते हैं या उन्हें पढ़ने की अनुमति दी जाती है।”

अभियुक्त को गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में क्यों दिया जाना चाहिए, इस पर अदालत का आधार तार्किक है। न्यायालय ने यह मानने के लिए मुख्य रूप से दो कारण बताए कि गिरफ्तारी के आधार के बारे में आरोपी को लिखित रूप में सूचित किया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा, “सबसे पहले, ऐसी स्थिति में गिरफ्तारी के ऐसे आधार मौखिक रूप से गिरफ्तार व्यक्ति को पढ़े जाते हैं या ऐसे व्यक्ति द्वारा बिना किसी अतिरिक्त जानकारी के पढ़े जाते हैं और यह तथ्य किसी दिए गए मामले में विवादित है, तो यह शब्द के खिलाफ गिरफ्तार व्यक्ति के शब्द तक सीमित हो सकता है  प्राधिकृत अधिकारी से पूछें कि इस संबंध में उचित और उचित अनुपालन है या नहीं।”

न्यायालय ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति को छोड़ने के बजाय, उचित स्वीकृति के तहत 2002 के अधिनियम की धारा 19(1) के संदर्भ में अधिकृत अधिकारी द्वारा दर्ज गिरफ्तारी के लिखित आधार प्रस्तुत करके अनिश्चित स्थितियों से आसानी से बचा जा सकता है।

दूसरा कारण यह है कि, “गिरफ्तार व्यक्ति को ऐसी जानकारी देने का उद्देश्य संवैधानिक अधिकार में निहित है। इस जानकारी का संप्रेषण न केवल गिरफ्तार व्यक्ति को यह बताना है कि उसे क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है, बल्कि साथ ही ऐसे व्यक्ति को कानूनी सलाह लेने के लिए, सक्षम बनाना और उसके बाद, यदि वह चाहे तो जमानत पर रिहाई के लिए धारा 45 के तहत अदालत के समक्ष, अपना मामला प्रस्तुत कर सकता है।

इस संवैधानिक और वैधानिक संरक्षण का उद्देश्य संबंधित अधिकारियों को केवल गिरफ्तारी के आधारों को पढ़ने या पढ़ने की अनुमति देने से निरर्थक हो जाएगा, चाहे उनकी लंबाई और विवरण कुछ भी हो, और अनुच्छेद 22(1) और 2002 के अधिनियम की धारा 19(1) के तहत वैधानिक आदेश की संवैधानिक आवश्यकता के उचित अनुपालन का दावा करें।

मुल्जिम को गिरफ़्तारी का आधार बताना आमतौर पर संवेदनशील जानकारी नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, “2002 के अधिनियम की धारा 19(1) के संदर्भ में अधिकृत अधिकारी द्वारा दर्ज की गई गिरफ्तारी का आधार, गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत होगा और आमतौर पर इसे लिखित तौर पर बताने में कोई जोखिम नहीं होना चाहिए।..

.. फिर भी, यदि प्राधिकृत अधिकारी द्वारा दर्ज किए गए गिरफ्तारी के ऐसे आधारों में ऐसी किसी संवेदनशील सामग्री का उल्लेख मिलता है, तो उसके लिए यह, विकल्प हमेशा खुला रहेगा कि वह दस्तावेज़ में दर्ज ऐसे संवेदनशील हिस्सों को संशोधित करे और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों की संशोधित प्रति दे, ताकि जांच की शुचिता की रक्षा की जा सके।”

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि, गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार की जानकारी देने के 2002 के अधिनियम की धारा 19(1) के संवैधानिक और वैधानिक आदेश को सही अर्थ और उद्देश्य देने के लिए, हम मानते हैं कि अब से यह आवश्यक होगा कि इसकी एक प्रति दी जाए। गिरफ्तारी के ऐसे लिखित आधार गिरफ्तार व्यक्ति को निश्चित रूप से और बिना किसी अपवाद के प्रस्तुत किए जाते हैं।”

(विजय शंकर सिंह पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं।)

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