ग्राउंड रिपोर्टः आमदनी दोगुनी करने की तरह ‘मोदी की गारंटी’ को चुनावी जुमला मान रहे चंदौली के किसान!

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में ‘धान का कटोरा’ के नाम से विख्यात चंदौली में आजकल हर गली और हर नुक्कड़ पर सिर्फ लोकसभा चुनाव की चर्चा है। चना और मटर के होरहा का सीजन चल रहा है। आम का मौसम आने में अभी कई महीने बाकी हैं। लेकिन चंदौली के किसानों का जज़्बा ऐसा है कि बस पूछिए मत…! सिर्फ चुनाव के समय ही नहीं, हर वक्त वो अपने मंसूबों को बेहद ख़ूबसूरती से बयां करते हैं। खूबसूरती ऐसी कि आप कायल हो जाएंगे। वोट देने की बारी आएगी तो आप समझ ही नहीं पाएंगे कि वो किस सियासी दल के खांचे में फिट होंगे?

चंदौली लोकसभा सीट अपने राजनीतिक इतिहास कि वजह से हमेशा सुर्खिंयों में रही है। यहां सभी राजनीति दल-कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सबने जीत दर्ज की है। चंदौली लोकसभा में कांग्रेस चार और बीजेपी सबसे ज्यादा पांच बार जीत दर्ज करने में कामयाब रही है। करीब 18 लाख से ज्यादा वोटरों वाले चंदौली लोकसभा क्षेत्र में सर्वाधिक यादव मतदाता हैं। इनकी तादाद करीब 2.75 लाख और दलितों का वोट 2.50 लाख से पार है।

बहुसंख्यक वोटरों में तीसरा स्थान मौर्य-कुशवाहा का है। इस जाति के लोग फल-बागवानी और सब्जियों की खेती में निपुण माने जाते हैं। इनके वोट करीब दो लाख के आसपास हैं। चंदौली में मुसलमानों की एक बड़ी आबादी भी है। राजपूत, ब्राह्मण, बिंद, चौहान, राजभर और बियार जाति के वोटर भी चुनावों में काफी दमखम दिखाते हैं।

बीजेपी के डा. महेंद्रनाथ पांडेय ने चंदौली लोकसभा सीट पर साल 2014 और 2019 में जीत हासिल की थी। महेंद्र नाथ पाण्डेय वर्तमान में केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री के पद पर काबिज हैं। वर्ष 2019 के चुनाव में सपा प्रत्याशी संजय चौहान ने भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी थी। इस चुनाव में डा. महेंद्र नाथ जीते तो ज़रूर, लेकिन सिर्फ 12 हजार वोटों के अंतर से। बीजेपी ने उन्हें तीसरी मर्तबा चुनाव मैदान में उतारा है। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह पर दांव लगाया है। वीरेंद्र सिंह कई मर्तबा चिरईगांव विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए सपा ने राजपूत उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि अबकी चंदौली में ब्राह्मण बनाम राजपूत सीधी लड़ाई हो सकती है।

बंशीपुर के किसान सत्य प्रकाश

नेपथ्य में झांकेंगे तो पाएंगे कि नेताओं को तनिक भी गुमान हुआ नहीं कि चंदौली के वोटरों ने ‘धोबिया पाट’ दांव मार दिया। इस इलाके के वोटर चंदौली में नहरों और सड़कों का जाल बिछाने वाले पंडित कमलापति त्रिपाठी को भी हरा चुके हैं। सिर्फ कमलापति ही नहीं, राजनीति की गंदी गली में भी शुद्ध आचरण की वकालत करने वाले समाजवादी चिंतक डा.राम मनोहर लोहिया को पराजय का सामना करना पड़ा था। त्रिभुवन नारायण सिंह वाराणसी के रहने वाले थे और साल 1957 के चुनाव में उन्होंने चंदौली सीट पर डा.लोहिया को हराया था। साठ के दशक में वह केंद्र सरकार में उद्योग और फिर लौह और इस्पात मंत्री रहे। 18 अक्टूबर, 1970 को वह मुख्यमंत्री बने। इसके बाद हुए उप-चुनाव में चंदौली के वोटरों ने उन्हें भारी मतों से हरा दिया, जिसके चलते उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई।

दुश्वारियों का कोई ओर-छोर नहीं

चंदौली और मिर्जापुर के बार्डर पर एक कस्बा है बबुरी। आबादी करीब 22 हजार। वोटर 8500 के आसपास हैं। लोगों का रंज यह है कि यहां न तो विकास दिखता है और न ही मोदी की गारंटी। आठवीं कक्षा के बाद न कोई सरकारी स्कूल है, न डिग्री कालेज। सालों से सफेद हाथी बने सरकारी अस्पताल की इमारत की ईंटों पर प्लास्टर लगाने का काम तब शुरू हुआ जब लोकसभा चुनाव की दुंदुभी बजी। बबुरी कस्बे से निकलने वाली चंद्रप्रभा नदी सूखी पड़ी है। नहरों में पानी नहीं है। ब्लैक राइस उगाने वाले किसान पिछले पांच सालों से अपनी उपज लेकर बिकने का इंतजार कर रहे हैं।

बबुरी के बंशीपुर का एक किसान

बबुरी बाजार में वैश्य समुदाय के दुकानदार ही नहीं, प्रगतिशील किसानों का एक पुरवा भी है, जिसका नाम है-बंसीपुर। यहां सर्पीली गलियों में किसानों-बुनकरों के घर और खेत हैं। बंसीपुर के लोग अपने खेतों में सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते दिखते हैं तो अक्सर परेशान हाल। यहां हमें मिले 50 वर्षीय सत्यप्रकाश मौर्य। इनके दो बेटे हैं जो स्कूल में पढ़ते हैं। मौर्य सब्जियों की खेती करते हैं। वह कहते हैं, ”आप जब भी आएंगे, हमारे खेतों में पालक, बोड़ा, भिंडी, चुकंदर, करैला और फूलगोभी-पत्तागोभी की फसल जरूर लहलहाती मिलेगी। इनका रंज यह है कि मौजूदा सांसद डा. महेंद्रनाथ पांडेय ने चंदौली की तरक्की के लिए कुछ भी नहीं किया। हमारे पास-पड़ोस के तमाम बच्चे पुलिस में भर्ती के लिए तैयारी कर रहे थे, लेकिन पेपर लीक होने से सबकी उम्मीदें टूट गईं। दस साल तक मंत्री रहे डा. महेंद्रनाथ चंदौली में न कोई उद्योग लगवा पाए और न जिला मुख्यालय बनवा पाए। फिर भी हम मोदी को ही वोट देंगे, क्योंकि उन्होंने हमारे सुनहरे भविष्य की गारंटी ली है। हमें उम्मीद है कि जिस तरह से फोकट में राशन मिलता है, उसी तरह हमारी दूसरी जरूरतें भी पूरी करेंगे।”

खेतों में मजूरी करने वाले राम शकल विश्वकर्मा के दो बच्चे हैं, जिनके भविष्य की चिंता उन्हें साल रही है। वह कहते हैं, ”हमारे बच्चे फोर्स (सेना) में जाना चाहते थे। कई सालों तक सड़कों पर दौड़ लगाते रहे, लेकिन उम्र निकल गई। आखिर पीएम नरेंद्र मोदी की गारंटी किस काम की? ” बंशीपुर में हथकरघे पर बनारसी साड़ियां बुनने में जुटे अमीरुल्लाह अंसारी ने हमें देखा तो उनकी आखों में चमक उभरी। शायद उन्हें लगा कि किसी सरकारी योजना का सर्वे चल रहा है। मुलाकात हुई तो वह भी अपना दुखड़ा सुनाने बैठ गए।

बनारसी साड़ी की बुनाई करते अमीरुल्लाह अंसारी

कहने लगे, ”हमारी बेटियां पुलिस में भर्ती के लिए कई सालों से तैयारी कर रही थीं। जब बार-बार पेपर लीक हो रहे हैं तो बीजेपी यह कैसे गारंटी दे सकती है कि अगली मर्तबा पेपर लीक होंगे? इनसे अच्छा तो बिहार सरकार है। पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के बेटे तेजस्वी ने चुनाव के समय नौजवानों को लाखों नौकरियां देने का वादा किया था, जिसे उन्होंने पूरा किया। हमारे कई रिश्तेदारों को बिहार में टीचर की नौकरी मिली है। कांग्रेस शासन में सस्ते गल्ले की दुकानों पर हमें दो रुपये में गेहूं, चावल, चीनी और केरोसिन मिलता था। पहले राशन हमारा अधिकार था और अब सरकारी भीख है।”

बंसीपुर के कृपाशंकर मौर्य के पास सिर्फ दो बीघा खेत है। इसी खेत से उनका परिवार पलता है और बच्चों की पढ़ाई भी होती है। वह कहते हैं, ”हमारे बेटे दीपू की सेना की तैयारी करते हुए भर्ती की उम्र निकल गई। अब वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है, लेकिन कोई गारंटी नहीं कि उसे सरकारी नौकरी मिल पाएगी? ” कुछ इसी तरह का दर्द प्रेमचंद मौर्य का भी है। इनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं। एक बेटी ममता मौर्य पुलिस में भर्ती होने की उम्मीद लगाए हुए थी। परीक्षा कैंसिल हुई तो ममता की सारी उम्मीदें धराशायी हो गईं। वह कहते हैं, ”लगता है कि युवाओं को गुमराह करने के लिए सरकार परीक्षाएं कराती है और पेपर लीक कराकर करोड़ों रुपये बटोर लेती है। परीक्षा देते हुए तमाम बच्चे थक गए हैं। कोई उम्मीद की कोई किरण नहीं बची है।”

बहुत याद आते हैं कमलापति त्रिपाठी

चंदौली के बबुरी बाजार के उत्तरी मुहल्ले में एक है मदर स्टूडियो। इसके प्रोपराइटर हैं सत्यप्रकाश। इनके स्टूडियो में स्कूली बच्चों की हर वक्त चहल-पहल रहती है। इसी बीच कुछ वक्त निकालकर उन्होंने हमसे चंदौली के सियासी हालत पर बात की। बगैर लाग-लपेट के वह बताते हैं कि आज चंदौली में जो कुछ भी है वो कमलापति त्रिपाठी की ही वजह से है। सत्यप्रकाश कहते हैं, “पंडित जी के नेता बनने से पहले चंदौली की ज़मीन पर सिर्फ़ मोथा (घास) उगा करता था। जब उन्होंने नहरों और सड़कों का जाल बिछाया तो चंदौली जनपद धान का कटोरा कहा जाने लगा। रेलमंत्री रहे तो उन्होंने ट्रेनें ख़ूब चलवाईं। पंडित जी के बाद उनकी हैसियत का कोई नेता नहीं आया। सांसद तो कई हुए, लेकिन किसी में विकास कराने की इच्छाशक्ति नहीं रही।”

बुनियादी सुविधाओं के खस्ताहाल होने के सवाल पर सत्यप्रकाश नेताओं को कोसने लगते हैं? कहते हैं, ”बस स्टैंड की बदहाली बबुरी कस्बे के हालात को बयां कर देती हैं। टूटी सड़कें, खुली नालियां और जाम की समस्या चंदौली में बनारस से कम नहीं है। चंदौली, बनारस से अलग होकर 1997 में ही ज़िला बन गया। ज़िले का मुख्यालय भी यहीं है। लेकिन इसकी स्थिति आज भी वैसी ही है जैसी कि इसके तहसील रहते हुए थी। चंदौली तहसील के गेट के पास एक छोटे से पार्क में पंडित कमलापति त्रिपाठी की प्रतिमा लगी है। उनके नाम पर बने पार्क और उनकी प्रतिमा का हाल बुरा है। चंदौली के लोगों ने इस विकास पुरुष को भुला दिया है। स्कूली बच्चों से पूछेंगे तो शायद ही कोई उनका नाम बता पाएगा।”

अपना दुखड़ा सुनाते किसान

बबुरी के पत्रकार रोहित वर्मा यह कथन कई अबूझ सवालों का उत्तर दे देता है। वह कहते हैं, “कमलापति त्रिपाठी को छोड़कर कोई भी मुख्यमंत्री बहुत प्रभावी नहीं था और न ही किसी को बहुत ज़्यादा काम करने का मौक़ा मिला। विकास, क्षेत्र का भले न हुआ हो, नेताओं का ज़रूर हुआ है। इस क्षेत्र में नेतृत्व संकट भले ही हो, लेकिन जो नेता बन गए उनके परिवार राजनीति में आज भी फल-फूल रहे हैं। चंदौली की सियासत में सवर्णों के मजे हैं। पिछड़ों को कोई नहीं पूछ रहा है। सत्तारूढ़ दल में यहां एक ही बिरादरी का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। नतीजा, आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर तबका लगातार फिसड्डी होता जा रहा है।”

चंदौली ज़िले में कुल चार विधानसभा सीटें मुगलसराय, सैयदराजा, सकलडीहा और चकिया हैं। चकिया सोनभद्र लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जबकि बनारस की शिवपुर और अजगरा सीटें चंदौली लोकसभा में शामिल हैं। चंदौली कमलापति त्रिपाठी की कर्मभूमि भले रही हो, लेकिन यहां न तो उनका कोई मकान है और न ही कोई उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने वाला है। साल 1984 तक कमलापति त्रिपाठी चंदौली से लोकसभा के सदस्य रहे। सियासत में उनकी चौथी पीढ़ी के ललितेशपति त्रिपाठी (पौत्र) सपा के सिंबल से इस सीट पर चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन कामयाब नहीं हो सके।

केंद्रीय रक्षामंत्री और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह का गृह जनपद भी चंदौली है। राजनाथ कभी चंदौली से चुनाव नहीं लड़े। ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष आनंद सिंह कहते हैं, ” राजनाथ सिंह ने तो कभी विधानसभा का चुनाव तक यहां से नहीं लड़ा। मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार हैदरगढ़ से विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते। वह चंदौली की चकिया तहसील के भभौरा गांव के मूल निवासी ज़रूर हैं, लेकिन लेकिन उनकी कर्मभूमि पहले मिर्ज़ापुर थी और अब लखनऊ है।

बिहार की सीमा से लगा चंदौली का नौगढ़ इलाका कभी घमड़ी खरवार, मोहन बिंद सरीके डकैतों की शरणस्थली हुआ करता था तो कभी यहां नक्सलियों समानांतर सरकार चला करती थी। यह इलाका अब पूरी तरह शांत है। हिंसक वारदातें नहीं होतीं, फिर भी सत्तारूढ़ दल के सांसदों के दर्शन नहीं होते। वो गाहे-बगाहे ही चंदौली आते हैं और लोग उन्हें अपना दुखड़ा सुनाने के लिए तरस जाते हैं। बीजेपी के नेता अबकी तर्क यह दे रहे हैं कि उनके पास राम हैं, राशन है और रणनीति है, जिसके दम पर डा. महेंद्रनाथ पांडेय की नैया ज़रूर पार लग जाएगी।

बबुरी के बंसीपुर कस्बे के एक किसान

चंदौली के पत्रकार कालीदास त्रिपाठी कहते हैं, “नेताओं की पहचान अब उनके काम से नहीं, बल्कि पार्टी से होने लगी है। सियासत में अब एक नया दौर यह शुरू हुआ है कि पिछली सरकारों के कामकाज को अपना बताओ। काम किसी का हो, बोर्ड अपना लगा दो। ऐसे में नई पीढ़ी क्या जानेगी और क्या समझेगी? चुनाव है तो आदमी वोट डाल आता है। बाक़ी किसी से उम्मीद कुछ नहीं रहती।”

उखड़ जाएंगे मोदी के पांवः राजेंद्र

चंदौली में सिर्फ सियासी दलों के नेताओं की गाड़ियां ही नहीं, वो किसान नेता भी दौड़ रहे हैं जिन्हें डबल इंजन की सरकार से नाराजगी है। खासतौर पर वो किसान जिसे मोदी सरकार ने एक साल से ज्यादा समय तक आंदोलन करने पर विवश किया था। चकिया के तिलौरी गांव के किसान नेता चौधरी राजेंद्र सिंह कहते हैं, ”देश और संविधान को बचाने के लिए बीजेपी को उखाड़ फेंकना जरूरी है। ये जो डबल इंजन की सरकार थी, वो पांच साल तक अपने झूठे प्रचार-पाखंड से जनता को लड़ाती रही।”

”इस सरकार ने संविधान विरोधियों और राष्ट्रद्रोहियों को न सिर्फ संरक्षण और प्रोत्साहन दिया, बल्कि देश की संवैधानिक संस्था-चुनाव आयोग, ईडी, आयकर, सीबीआई, पुलिस, सेना और अदालतों का जमकर दुरुपयोग किया। पेगासस से गैर-कानूनी तरीके से जासूसी कराई और देश के संसाधनों व सार्वजनिक उपक्रम-रेल, स्टेशन, हवाई अड्डा, बंदरगाह, फोन, बीमा, बैंक, प्रतिरक्षा-सामग्री निर्माण कंपनियों को कारपोरेट घरानों के हवाले कर दिया।”

चंदौली रेलवे स्टेशन

चौधरी कहते हैं, ”डबल इंजन की सरकार में याराना कंपनियों की संपदा बेहिसाब बढ़ाई गई और किसानों-बागबानों का अनाज गरीबों को बांटकर देश की अस्सी करोड़ जनता को भिखमंगा बना दिया गया। भुखमरी, महंगाई, बेरोजगारी से किसानों, बुनकरों, मजदूरों, कारीगरों और आदिवासियों का बुरा हाल है। कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए भाजपा सरकार ने कोरोना के संकट काल में धोखे से कई ऐसे कानून बना डाले जिससे शिक्षा, और स्वास्थ्य पर कुलीन वर्ग का आधिपत्य हो गया। यूपी में जनद्रोही सरकार के दिन लौट रहे हैं और आने वाले दिनों में दिल्ली से भी मोदी सरकार के पांव उखड़ जाएंगे।” 

मायूस हैं अन्नदाता

चंदौली में चाहे जिस चट्टी-चौराहे पर जाएंगे, चाय-पान की दुकानों पर बड़े-बूढ़ों का झुंड जहां-तहां दिखने लगता है। लोग बता देंगे कि इस इलाके में नेताओं का जमघट तभी लगता है जब धान और चना-मटर की फसलें पकती हैं। आम का सीजन सीजन आता है अथवा चुनाव का। चकिया प्रखंड का एक गांव है उतरौत। करीब दस हजार आबादी वाले इस गांव में हर कोई मोदी सरकार से गारंटी चाहता है। यहां के किसान अपने खेत-खलिहान और गोशाला में सुबह से शाम तक लगे रहते हैं, लेकिन मायूसी है कि उनका पीछा ही नहीं छोड़ रही है।

किसानों की कोई नहीं सुनता

प्रगतिशील किसान अशोक सिंह की दिनचर्या दूसरी है। वह कहते हैं, “कई सालों से अखबारों में पढ़ रहा हूं कि किसानों-बागबानों की आमदनी दोगुनी होने वाली है, लेकिन वो कब होगी, इसका हमें सालों से इंतजार है? ऐसे में मोदी की गारंटी पर भला कौन यकीन करेगा? चुनाव के वक्त गारंटी-वारंटी को लोग जुमला ही मानते हैं। हमारे जैसे किसानों की ज़िंदगी में जैसे सुगंधित धान की मिठास का तमगा सा लग गया है। सभी को लगता है कि चंदौली के किसान अच्छा खाते और पीते हैं। फिर उनके बारे में बात क्यों करना? लोकसभा चुनाव में भी किसानों की न कोई चर्चा है, न हमारी आदमनी ही कोई मुद्दा है?”

चंदौली के लोगों का सबसे बड़ा सवाल यह है कि मोदी-योगी सरकार ने चंदौली के लिए क्या किया और क्या कर सकते थे? उतरौत गांव के प्रधान महेंद्र मौर्य कहते हैं, ”पिछले दस साल में बीजेपी की सरकार ने किसे क्या दिया? यहां न कोई भारी उद्योग लगा और न ही धान के कटोरे में किसानों की आय दोगुनी हुई। चंदौली को इस बात से ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता कि सरकार किसकी है? जिसकी भी होगी वो सुगंधित धान पकने पर चूड़ा और ढुंढा खाने के लिए किसानों को याद जरूर करेगा। अफ़सोस इस बात का है कि सुगंधित चावल, आम और सब्जियों के अलावा हमारे बारे में दूसरा कोई ख़्याल नेताओं और अफसरों के दिमाग़ में आता ही नहीं है।”

अभी चढ़ा नहीं है चुनावी रंग

चंदौली लोकसभा में एक प्रगतिशील गांव चिरईगांव भी है, जहां बागों की श्रृंखला देख मुग्ध हो जाएंगे। मनोहारी बाग-बगीचे नेताओं को भले ही न सुहाते हों, लेकिन फलों से लगदक बगीचे और फूलों से लदे खेत चिरईगांव की सुंदरता में चार-चांद लगाते हैं। पहले बनारस के मंदिरों के लिए गुलाब और गेंदे के फूल इसी गांव से भेजे जाते थे। यह कोई मामूली गांव नहीं है। इसी गांव की माटी से पूर्वांचल के कद्दावर नेता उदयनाथ सिंह तीन बार विधायक चुने गए और मंत्री भी बने तो आनंदरत्न मौर्य तीन बार सांसद। पिछली मर्तबा मौर्य-कुशवाहा और ब्राह्मणों ने भाजपा को झूमकर वोट दिया था। तब की बात और थी और इस बार यह तबका डबल इंजन की सरकार से नाराज है। कोई वादाखिलाफी से, तो कोई उपेक्षा से।

फूल तोड़ते किसान

चंदौली के किसानों का जो रंज छह दशक पहले था, वही आज भी है। सिर्फ चुनाव के समय ही इनका हाल-चाल लेने नेता आते हैं या फिर चंदौली के सुगंधित लजीज चावल, बाटी-चोखा का लुफ्त उठाने। आमदनी दोगुना करने का सवाल उठता है तो भाजपा नेताओं और उनके नुमाइंदों की सांसें उखड़ने लगती हैं। वरिष्ठ पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं, ”भाजपा के डा.महेंद्रनाथ पांडेय के कामकाज से कोई खुश नहीं है। जिले में कोई ऐसी सड़क नहीं है जो बदहाली की कहानी न कहती हो। कबीना मंत्री होते हुए भी उन्होंने किसी भी सड़क का कायाकल्प नहीं किया। किसानों के सवाल पर चंदौली के सांसद की बोलती बंद हो जाया करती है। इस जिले के अन्नदाता अपनी धान और गेहूं पर एमएसपी की गारंटी चाहते हैं, लेकिन मोदी सरकार लगातार हीला-हवाली कर रही है।

गेंदे के फूल के खेत में चंदौली लोकसभा क्षेत्र का एक किसान

राजीव यह भी कहते हैं, ”अबकी लोकसभा चुनाव में ग़ौर करने वाली बात यही रह सकती है कि चंदौली सीट आख़िर किसकी झोली में जाएगी?  बसपा ने इस सीट पर अभी अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। चंदौली के वोटरों पर भी चुनावी रंग नहीं चढ़ा है। सबके मुंह बंद हैं। इस वजह से स्थिति साफ नहीं है। ऐसे में सभी सवालों के जवाब अगर-मगर में दिए जा रहे हैं। इतना तय है कि इस बार किसकी होगी जय और किसकी होगी पराजय?  इसका फ़ैसला मतदान के बाद चंदौली के किसानों और बागबानों के सामने ही होगा।

(लेखक विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments