पंजाब में बाढ़: मुआवजा या मजाक?

बाढ़ के गहरे जख्म देने के बाद पंजाब में मॉनसून की बारिश फिलहाल थमी हुई है। मौसम विभाग का अनुमान लोगों को खौफजदा कर रहा है कि अगले चौबीस घंटों के भीतर कई दिनों के लिए फिर मध्यम से लेकर तेज बारिश हो सकती है। हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है। पहाड़ों में हो रही मूसलाधार तथा मुतवातर बारिश मैदानों में बड़ी बर्बादी का सबब बन रही है। खैर, बात सरकार के एक मजाक की। अगर बाढ़, भारी बरसात और भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के चलते किसी का पक्का मकान पूरी तरह ढह जाता है तो उसे सरकार की ओर से 1 लाख 20 हजार बतौर मुआवजा दिया जाएगा।

इस वक्त राज्य में 14 जिले सीधे तौर पर बाढ़ से प्रभावित हैं। सरकारी आंकड़ों में अधिकारियों ने दर्ज करवाया है कि 49 मकान पूरी तरह ढह चुके हैं। 180 घर ऐसे हैं जिन्हें काफी नुकसान हुआ है। गैर सरकारी अनुमान हजारों घर तहस-नहस होने का है और बेहिसाब पक्के घर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए हैं। लाखों कच्चे मकानों में दरारें आईं हैं। इनमें से कोई भी मकान फिलहाल रहने लायक नहीं बचा। यानी एक किस्म से वे खंडहर में तब्दील हैं।

फरीदकोट में तेज बारिश के चलते क्षतिग्रस्त हुए मकान की छत गिरने से गर्भवती महिला, उसके पति व एक बच्चे की जान चली गई। 1058 गांवों में बने पक्के और कच्चे घर ढहने की कगार पर हैं। वहां से समान उठाने में भी बड़ा खतरा है। ऐसा करने वाले 5 लोगों की मौत हो चुकी है। यानी हर क्षतिग्रस्त मकान की दहलीज पर मौत खड़ी है और सरकार मुआवजा कितना दे रही है? महज एक लाख बीस हजार रुपये। वह भी पक्के मकानों के पूरी तरह क्षतिग्रस्त होने के बाद।

प्राकृतिक आपदा प्रबंधन कोष से यह राशि देने के लिए केंद्र सरकार ने जो नियम-कायदे तय किए हैं, उनके अनुसार मैदानी इलाकों में बाढ़ या भूचाल आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में अगर किसी का पक्का मकान गिर जाता है तो उसे 1.20 लाख रुपये दिए जाएंगे। ताकि वह अपने जर्जर मकान की मरम्मत इन पैसों से करवा सके। इसमें भी विसंगति यह कि साठ फीसदी राशि केंद्र सरकार की ओर से उपलब्ध कराई जाएगी और 40 प्रतिशत राशि राज्य सरकार देगी। एक लाख बीस हजार में तो एक कमरा तक नहीं बनता, सोचिए-पूरे मकान की मरम्मत कैसे होगी?

यह राशि भी इसी वित्तीय वर्ष में बढ़ाई गई है। इससे पहले पंजाब में बतौर मुआवजा ऐसे मामले में 95 हजार रुपये दिया जाता था। वरिष्ठ वामपंथी नेता और विश्वविख्यात ‘देशभक्त यादगार हाल’ की कमेटी के सदस्य स्वर्ण सिंह विर्क कहते हैं, “दो या तीन मरले के साधारण मकान बनाने पर ही आठ से दस लाख रुपये का खर्चा आता है, तो ऐसे में सरकार की तरफ से बाढ़ में पूरी तरह से बर्बाद हुए मकान का मुआवजा महज 1.20 लाख रुपये देना मजाक नहीं तो क्या है?”  

बेशक ऐसा नहीं है कि केंद्र का यह नियम-कायदा पंजाब के लिए ही है बल्कि यह सभी राज्यों पर लागू होता है। पहाड़ी इलाकों में मुआवजे की रकम थोड़ी ज्यादा यानी 1.31 लाख रुपये है। यानी मैदानी इलाकों से 11 हजार रुपये ज्यादा। प्राकृतिक आपदाओं के दौरान कच्चे मकान ज्यादा ढहते हैं, उनके लिए मुआवजे का क्या प्रावधान रहता है- सरकारी अधिकारियों को अभी यह नहीं मालूम।

और तो और राज्य सरकार के एक मंत्री ने भी इस बाबत अनभिज्ञता जाहिर की और यह कहकर फोन काट दिया कि पता करके बताऊंगा। फोन न आना था और न आया। कई मंत्रियों, विधायकों और वरिष्ठ अधिकारियों तक के पास पुख्ता जानकारी तक नहीं है।

अधिकारियों की ओर से रटा-रटाया जवाब मिलता है कि नई गाइडलाइन मिलने के बाद सब जगजाहिर हो जाएगा। हालांकि वे नहीं जानते कि इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदा के बाद नई गाइडलाइन बनेगी कहां, जारी कहां से होगी और उसे लागू कैसे किया जाएगा? इस मामले में अधिकारी सत्ता-सीनों की ओर देख रहे हैं तो उन पर राज करने वालों को उनके प्रारूप का इंतजार है।  

पंजाब के रेवेन्यू डिपार्टमेंट के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि यह राशि अथवा स्कीम गरीब लोगों के लिए सरकार की ओर से सहायता है न की पैसे वाले लोगों के लिए। सरकार का मानना यह है कि गरीब आदमी को फिर से अपना तहस-नहस हुआ मकान बनाने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ सकता है, जबकि जिन लोगों के पास पैसा है वे अपना मकान फिर से बनाने में सक्षम हैं।

पंजाब राजस्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह राशि केवल प्राकृतिक आपदा फंड से केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित की गई है। अगर राज्य सरकार अपनी ओर से बढ़ी हुई राशि देना चाहे तो दे सकती है। वह उदाहरण देते हैं कि बाढ़ और ओलावृष्टि की वजह से अगर पूरी फसल बर्बाद हो जाती है तो 6,800 रुपये दिए जाते हैं। इनमें से 60 प्रतिशत केंद्र और 40 फीसदी राज्य सरकार अदा करती है।

उन्होंने कहा कि पंजाब में भगवंत मान सरकार के गठन के बाद फसल बर्बादी पर बतौर मुआवजा सरकार 15 हजार रुपये देती है। साफ मतलब है कि 6,800 रुपये से ऊपर की सारी राशि पंजाब सरकार अपने बजट से अदा करती है। एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक राज्य सरकार चाहे तो आपदा राहत फंड में से ऊपर की राशि में अच्छा-खासा इजाफा कर सकती है। 

सरकार आंकड़ों की भाषा में यह तो मान रही है कि बड़े पैमाने पर फसलों के साथ-साथ रिहाइशगाहों का भी जबरदस्त नुकसान हुआ है। ज्यादातर धक्का गरीब परिवारों को लगा है और फिलहाल वे राहत कैंपों में बैठे एक-दूसरे से पूछ रहे हैं कि क्या सरकार ने किसी किस्म के मुआवजे की कोई घोषणा की है? जवाब किसी के पास नहीं होता क्योंकि फिलवक्त घोषणा हुई ही नहीं।

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इतना जरूर कहा है कि बाढ़ पीड़ितों के लिए 71.5 करोड़ रुपये जल्द सरकारी खजाने से जारी किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि लोगों का जो भी नुकसान इस बार की बाढ़ में हुआ है, उसके एक-एक पैसे की भरपाई की जाएगी। मुख्यमंत्री मान ने मंगलवार को घोषणा की कि बारिश और बाढ़ की वजह से मारे गए लोगों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये दिए जाएंगे।  

मंगलवार शाम और बुधवार की सुबह तक चर्चा रही कि मुख्यमंत्री गिरदावरी की घोषणा कर सकते हैं लेकिन इन पंक्तियों को लिखने तक ऐसा कुछ नहीं हुआ। दरअसल, मीडिया में बरसात और बाढ़ के चलते जो नुकसान दिखाया-बताया या पढ़ाया जा रहा है; उसे बहुत कम करके आगे रखा जा रहा है। भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि केंद्र के एक वजीर हालात का जायजा लेने पंजाब आना चाहते थे लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें फिलहाल कुछ दिन के लिए न आने के लिए कहा है।

पर क्यों? इसका जवाब तो सिर्फ सरकार के पास है और सरकार सिर्फ औपचारिक तौर पर लोगों से मुखातिब हो रही है। केंद्र की बेशुमार एजेंसियां पंजाब में कार्यरत हैं और पल-पल की खबर दिल्ली जाती है। अंदाजा लगाया जाता है कि हालात कितने गंभीर हैं। उफान पर आए बांधों का पानी मजबूरन छोड़ना पड़ रहा है जोकि किनारों पर बने घरों के लिए लगभग मौत का सामान है। उन्हें माल-पशु लेकर वहां से तत्काल चले जाने को कह दिया गया है।

इस बीच पंजाब भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा है कि भगवंत मान सरकार किसानों को बिना गिरदावरी के ही बीस हजार रुपये का मुआवजा तत्काल दे। उनके मुताबिक, “मौसम विभाग पहले से ही पंजाब में बारिश का अलर्ट तक जारी करता रहा। हाई अलर्ट के बावजूद कोई अग्रिम प्रबंध करने के लिए मीटिंग नहीं की गई। मुख्य सचिव ने भी तब उच्चस्तरीय बैठक बुलाई, जब समूचा पंजाब पानी में डूब चुका था।”

नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा का आरोप है कि एनडीआरएफ और एसडीआरएफ को तब तैनात किया गया जब सूबा जलमग्न हो गया। कुशल प्रबंधन की कमी अभी भी साफ नजर आती है।” बाजवा कहते हैं कि पंजाब सरकार के पास आपदा प्रबंधन के लिए 729 करोड़ रुपये उपलब्ध हैं। केंद्र सरकार ने भी 488 करोड रुपये दिए हैं लेकिन सरकार को जैसे आपदा का इंतजार था और पहले से कोई तैयारी नहीं की गई जिसका खामियाजा राज्य के आम लोग भुगत रहे हैं।

आखिरकार मुख्यमंत्री एकमुश्त मुआवजा राशि की घोषणा क्यों नहीं करते? सब कुछ किस्तों में क्यों हो रहा है? नुकसान का पूरा अंदाजा लगाने में तो महीना लग जाएंगे तब तक बेबस लोग क्या यूं ही भटकते फिरेंगे?

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की रिपोर्ट)                             

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