सुप्रीम कोर्ट में पहली बार होंगे 3 दलित जज, कॉलेजियम ने की जस्टिस वराले की नियुक्ति की सिफारिश

पिछले कुछ समय से उच्च न्यायपालिका में वंचित वर्गों की पर्याप्त भागीदारी न होने के आरोप लगते रहे हैं। कॉलेजियम प्रणाली की इसलिए भी आलोचना होती रही है कि इसके द्वारा चयनित जजों में उच्च जातियों बल्कि जाति विशेष के जजों की बाहुल्ता होती है। अब सुप्रीम कोर्ट को एक और जज मिलेगा। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने केंद्र सरकार को सिफारिश भेजी है।

कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रसन्ना बी वराले को सुप्रीम कोर्ट जज नियुक्त करने की सिफारिश की गई है। इस नियुक्ति के बाद जस्टिस वराले सुप्रीम कोर्ट में तीसरे दलित जज होंगे। साथ ही इस नियुक्ति के बाद पहली बार होगा जब सुप्रीम कोर्ट में तीन जज दलित समुदाय से होंगे।

यह फैसला चीफ जस्टिस  डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस के कॉलेजियम का है। इस नियुक्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट में जजों की पूरी क्षमता यानी 34 जज हो जाएगी।

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार दलित हैं। वहीं जस्टिस गवई देश के मुख्य न्यायाधीश भी बनेंगे। जस्टिस बीआर गवई मई से नवंबर 2025 तक मुख्य न्यायाधीश होंगे।

61 साल के जस्टिस वेरेला महाराष्ट्र के औरंगाबाद में डॉ बाबासाहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट हैं। अक्‍टूबर 2022 में उन्‍होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में शपथ ली थी।

भारतीय संसद के शीतकालीन सत्र 2023 के चौथे दिन न्यायिक नियुक्तियों, अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं (एआईजेएस) और इंडिया इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (आईआईएसी) के वित्तपोषण पर सवालों के जवाब दिए गए।

गुजरात के राज्यसभा सांसद शक्ति सिंह गोहिल द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में, केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने खुलासा किया कि 2023 की शुरुआत तक, उच्च न्यायालय कॉलेजियम से प्राप्त 171 प्रस्ताव प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में थे। वर्ष 2023 के दौरान, अतिरिक्त 121 नए प्रस्ताव प्राप्त हुए, जिससे विचार किए जाने वाले प्रस्तावों की संख्या 292 हो गई।

इन 292 प्रस्तावों में से, 110 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है, और 60 सिफारिशें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सलाह के आधार पर उच्च न्यायालयों को भेजी गईं, 122 लंबित प्रस्तावों को छोड़ दिया गया।

122 प्रस्तावों में से, 87 को सलाह के लिए कॉलेजियम को भेजा गया था, और कॉलेजियम ने 45 प्रस्तावों पर मार्गदर्शन प्रदान किया है, जो अब सरकार के भीतर प्रसंस्करण के विभिन्न चरणों में हैं। 42 मामले अभी भी कॉलेजियम के पास लंबित हैं। हाल ही में प्राप्त शेष 35 नए प्रस्तावों पर कॉलेजियम की सलाह लेने के लिए कार्रवाई की जा रही है।

इसकी तुलना में 2022 में उच्च न्यायालयों में 165 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई।

केरल के सांसद डॉ. जॉन ब्रिटास ने उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित महिलाओं और न्यायाधीशों की संख्या के बारे में जानकारी मांगी।

मेघवाल ने खुलासा किया कि पिछले छह वर्षों में, विभिन्न उच्च न्यायालयों में नियुक्त 650 न्यायाधीशों में से 23 अनुसूचित जाति (एससी), 10 अनुसूचित जनजाति (एसटी), 76 अन्य पिछड़ा वर्ग और 36 अल्पसंख्यक वर्गों  के थे। 13 न्यायाधीशों के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में केवल 3 जज महिलाएं हैं, जिनके नाम जस्टिस हिमा कोहली, बीवी नागरत्ना और बेला त्रिवेदी हैं। देशभर के उच्च न्यायालयों में 790 न्यायाधीशों में से केवल 111 महिलाएं हैं। मेघालय, उत्तराखंड और त्रिपुरा उच्च न्यायालयों में कोई महिला न्यायाधीश नहीं है।

इसके पहले मानसून सत्र जुलाई 23 में कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने संसद में एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें बताया कि कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त जजों में करीब 76 फीसदी सवर्ण जाति से आते हैं।

संसद सत्र में सांसद असद्दुदीन ओवैसी ने सवाल पूछा था- क्या यह तथ्य सही है कि पिछले पांच सालों में हाई कोर्ट में नियुक्त जजों में से 79 प्रतिशत जज अपरकास्ट से आते हैं?’ इसके जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने 17 जुलाई 23 को एक रिपोर्ट पेश की।

जिसके बारे में उन्होंने बताया कि इस रिपोर्ट में 2018 से जुलाई 2023 तक आंकड़ें है। जिसके मुताबिक हाईकोर्ट में नियुक्त जजों में से करीब 76 फीसदी जज अपर कास्ट हैं, जबकि दलित और आदिवासी बमुश्किल 5 प्रतिशत हैं। उन्होंने बताया कि मौजूदा वक्त में कुल नियुक्त जजों की संख्या 604 है, जिसमें से 458 सवर्ण हैं। यानी ये आंकड़ा कुल मिलाकर 75.58 प्रतिशत बैठता है।

मेघवाल ने ये भी बताया कि 18 यानी 2.98 जज एससी वर्ग के हैं और 9 यानी 1.49 प्रतिशत जज एसटी समाज से हैं। इसके अलावा 72 यानी 11.92 ओबीसी वर्ग के हैं। इसके अलावा अल्पसंख्यक समुदाय के जजों की संख्या 34 यानी 5.56 प्रतिशत है। इसमें 13 के बारे में जानकारी नहीं मिल सकी है।

इसी तरह एक रिपोर्ट बताती है कि मुंबई के वकीलों के एक संगठन ने अपने अध्ययन के आधार पर 2015 में बताया था, कि उच्च न्यायालय में 50 प्रतिशत ऐसे जज हैं जिनका पारिवारिक संबंधी इन पदों पर विराजमान रह चुका है। सर्वोच्च न्यायालय में ऐसे लोगों की संख्या 33 प्रतिशत थी।

मेघवाल ने ही संसद में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 224 के तहत की जाती है, जो किसी भी जाति या वर्ग के लिए आरक्षण प्रदान नहीं करते हैं।

हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि सरकार उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकोंऔर महिलाओं के उपयुक्त उम्मीदवारों पर विचार करके सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने का अनुरोध कर रही है।

दरअसल जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम को साल 1993 में लागू किया गया था, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के साथ 4 वरिष्ठ जज इस कॉलेजियम सिस्टम का हिस्सा होते हैं, यानि कोलेजियम सिस्टम केंद्र सरकार से जजों की नियुक्ति और उनके ट्रांसफर की सिफारिश करता है। हालांकि इस सिस्टम के जरिए जजों की नियुक्ति का जिक्र न हमारे संविधान में है, न ही इसका कोई कानून संसद ने कभी पास किया है।

कॉलेजियम सिस्टम में केंद्र सरकार की केवल इतनी भूमिका होती है कि अगर किसी वकील का नाम हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने के लिए बढ़ाया जा रहा है, तो सरकार इंटेलिजेंस ब्यूरो से उनके बारे में जानकारी ले सकती है, केंद्र सरकार कोलेजियम की ओर से आए इन नामों पर अपनी आपत्ति जता सकती है और स्पष्टीकरण भी मांग सकता है।

कॉलेजियम सिस्टम पिछले दिनों खूब चर्चा में रहा था, जब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आग्रह पर दो जज अनिरुद्ध बोस और ए एस बोपन्ना के नाम वापस कर दिए थे।नवंबर 2022 में शुरु हुई कॉलेजियम पर बहस के दौरान तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने जजों की नियुक्ति को पूरी तरह से असंवैधानिक बताया था।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संविधान के सबसे महत्वपूर्ण अंग न्यायपालिका में उस समाज की भूमिका सबसे कम है, जिसकी संख्या देश में सबसे ज़्यादा है। ऐसे में न्याय पूरी तरह से पारदर्शी होगा, ये कह पाना ज़रा मुश्किल लगता हैऔर इससे अक्सर चीन्ह चीन्ह के न्याय देने के आरोप लगते रहे हैं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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