गरीबी से जूझ रहे इलाकों में आक्रोश के विस्फोट का इजहार है फ्रांस के दंगे

सार्वजनिक पुस्तकालय के जले हुए अवशेषों का निरीक्षण करते समय हनीफा गुरमिटी रो पड़ीं। यह पुस्तकालय वर्षों से पूर्वी फ्रांस के बोर्नी इलाके में रहने वाले बच्चों के लिए न केवल किताबें और कॉमिक्स उपलब्ध कराता था, बल्कि यहां बैठकर वे शांतिपूर्वक अपना होमवर्क भी कर लेते थे। यह देश के सबसे वंचित इलाकों में से एक है। स्कूल के काम में जिन बच्चों की वे मदद करती थीं, उन्हें याद करते हुए हनीफा कहती हैं कि अब “मेरा दिल टूट गया है।”

मेट्ज़ शहर के पड़ोस में इस अत्याधुनिक पुस्तकालय को जलाने की घटना पिछली पांच रातों में फ्रांस के बुनियादी ढांचे पर सबसे बड़े हमलों में से एक है। लगभग 1 करोड़ 20 लाख यूरो (लगभग 107 करोड़ रुपये) के नुकसान का अनुमान है, और 1 लाख 10 हज़ार से अधिक किताबें और दस्तावेज़ नष्ट हो गये हैं। दंगे पूरे देश में फैल गये हैं।

पिछले हफ्ते पेरिस के बाहर एक ट्रैफिक स्टॉप पर पुलिस द्वारा अल्जीरियाई और मोरक्कन मूल के 17 वर्षीय लड़के नाहेल की गोली मारकर हत्या कर दी गयी, जिससे देश भर में अशांति फैल गयी। 2,000 से अधिक कारें जला दी गयीं, 700 से अधिक दुकानें और व्यवासायिक प्रतिष्ठान क्षतिग्रस्त हो गये और 3,000 से अधिक लोग गिरफ्तार किये गये हैं, जिनकी औसत उम्र 17 वर्ष है।

बोर्नी से आगे, जर्मन सीमा के पास वाले कस्बों तक, जिनमें पहले खनन कार्य होता था, उन इलाक़ों में पिछले दिनों धुर दक्षिणपंथी पार्टी ‘मरीन ले पेन’ के वोट बढ़े थे। उन इलाक़ों में भी कारों को आग लगा दी गयी, कन्टेनर जला दिये गये और युवाओं की पुलिस से झड़पें हुईं। ‘मैकडॉनल्ड्’स’ का एक रेस्तरां जला दिया गया, एक कबाब की दुकान में आग लगा दी गयी, एक पुलिस स्टेशन पर हमला किया गया और एक स्कूल को क्षतिग्रस्त कर दिया गया।

17,000 की आबादी वाले बोर्नी में बेरोजगारी औसत से ऊपर है और इसके आधे से अधिक निवासी गरीबी रेखा से नीचे जी रहे हैं। आस-पास में बोर्नी जैसे कई क़स्बे हैं जहां हाल के दिनों में पुलिस के साथ भिड़ंतें हो चुकी हैं। इस उथल-पुथल के केंद्र मेट्ज़ से बोर्नी केवल 3 किलोमीटर दूर है। ऊंचे दर्जे का रेस्तरां ‘मिशेलिन’ और ‘पोम्पीडौ’ कला केंद्र मेट्ज़ की शान हैं।

लेकिन कई निवासियों ने कहा कि अश्वेत या उत्तरी अफ़्रीकी मूल के किशोर यह महसूस करते हैं कि उनके लिए सरकारी सेवाओं के दरवाजे बंद कर दिये गये हैं, पुलिस पहचान-पत्रों की जांच में उनके साथ नस्लवादी व्यवहार करती है, नौकरियों और शिक्षा प्रणाली में उनके साथ भेदभाव किया जाता है, और यही कारण है कि उनके दिलों में नस्लीय अन्याय के प्रति गुस्सा पहले से उबल रहा था जो पुलिसिया गोलीबारी की इस घटना से फूट पड़ा।

मेट्ज़ के दक्षिणपंथी मेयर, फ्रांकोइस ग्रोसडिडियर कहते हैं कि मेट्ज़ के केंद्रीय इलाकों की शांति की तुलना में पड़ोस के इलाक़ों में पुलिस के खिलाफ हो रही झड़पों को देख कर ऐसा लगता है जैसे “ये दो अलग-अलग समानांतर दुनिया हो।”

सरकार विशेष रूप से बोर्नी जैसी जगहों पर हिंसा भड़कने को लेकर चिंतित है, क्योंकि फ्रांस के कई अन्य संकटग्रस्त इलाकों की तरह ही, बोर्नी में भी हाल के वर्षों में शहरी नवीनीकरण में लाखों यूरो का सार्वजनिक निवेश हुआ है। फिर भी मात्र कुछ बहुमंजिली इमारतों को गिराने और कुछ नयी इमारतों के पुनर्निर्माण की कार्रवाई द्वारा उन दीर्घकालीन सामाजिक समस्याओं या गहराई तक जड़ जमा चुके अन्याय-बोध को नहीं मिटाया जा सकता।

2005 में, जब पेरिस के बाहर, फ्रांस के कम्यून ‘क्लिशी-सूस-बोइस’, में पुलिस के डर से एक बिजली सब स्टेशन में छुपे हुए दो युवकों की करेंट लगने से मौत हो गयी थी, और उसके बाद वहां की ग़रीब आवासीय बस्तियों में हफ्तों तक अशांति फैली रही थी और राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी थी, तब भी बोर्नी उन कई स्थानों में से एक था जहां युवाओं ने कारों को आग लगायी थी, और पुलिस पर पथराव किये थे। उसके बाद से स्थानीय अधिकारियों ने इस इलाक़े में भवन-निर्माण और बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं शुरू कीं, ताकि युवाओं के मन में पनप रही सामाजिक बहिष्कार की भावनाएं मिटायी जा सकें।

इसी क्रम में यह पुस्तकालय भी बनाया गया था, जो अब नष्ट हो चुका है। एक स्थानीय टाउन-हॉल भवन भी बनाया गया था, लेकिन इस सप्ताह उसे भी आग लगा दी गयी। एक नया सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क बनाया गया था- लेकिन अब बस-स्टॉप भी तोड़ दिए गये हैं। इस सप्ताहांत माताएं बोर्नी के स्कूल के सामने निगरानी करती रहीं ताकि उसे आग लगने से रोका जा सके।

गुरमिटी बताती हैं कि “2005 के बाद से, चीजें वास्तव में काफी खराब हो गयी हैं।” वे 31 वर्षों से बोर्नी में एक बस्ती में रह रही हैं, उन्होंने वहीं अपने बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा किया, एक समाजवादी पार्षद के रूप में काम किया और वर्तमान में शरणार्थियों की देखभाल करती हैं। उन्होंने समानता के लिए और नस्लवाद के खिलाफ फ्रांस के 1983 के प्रसिद्ध मार्च में भाग लिया था।

वे कहती हैं “तब से 40 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन कुछ भी नहीं बदला है.. अश्वेत किशोर अभी भी मर रहे हैं। नस्लवाद बदतर हो गया है और अब तो राजनीति का केंद्र बन चुका है। एक समय यह धुर दक्षिणपंथ तक सीमित था, अब यह पारंपरिक दक्षिणपंथ और यहां तक ​​कि सरकार तक भी पहुंच गया है। कोविड, मुद्रास्फीति और ईंधन की क़ीमतों में वृद्धि से गरीबी का हाल और भी बदतर हो गया है। भेदभाव व्याप्त है, समान अवसर नहीं मिल रहे हैं। यहां के लोगों पर वही घिसी-पिटी फब्तियां आज भी कसी जाती हैं। कोई आशा नहीं है, यही समस्या है। लोगों को अपनी बस्तियों और अपनी त्वचा के रंग के कारण कलंकित होने से बचने की कोई उम्मीद नहीं है।”

चैरिटी का काम करने वाले और कई स्थानीय राजनेता लंबे समय से कह रहे हैं कि फ्रांस की इन बस्तियों में निर्माण परियोजनाओं ने इन दरारों पर परदा भर डाला है, लेकिन उस अलगाव, सामाजिक असमानता, नस्लवाद और गरीबी पर अंकुश नहीं लगाया है, जिसका यहां के निवासियों को अभी भी रोजाना सामना करना पड़ता है।

जब इमैनुएल मैक्रॉन 2017 में पहली बार राष्ट्रपति चुने गये थे, तो उन्होंने कहा था कि वह अर्थव्यवस्था को उदार बनाएंगे और लंबे समय से बरक़रार उस ग़ैर बराबरी को समाप्त करेंगे, जिसने लोगों को “कैद” कर रखा है। लेकिन गरीबी का फंदा फ्रांस की सबसे स्थायी समस्याओं में से एक बन चुका है और अभी तक इसका समाधान नहीं हुआ है। पुलिस द्वारा अश्वेत या उत्तरी अफ्रीकी लोगों को गोली मारने के बहुचर्चित मामलों के बीच युवाओं का पुलिस के साथ संबंध खराब होता गया है।

21 साल की नूरा ने अपनी खिड़की से लाइब्रेरी को आग की लपटों में घिरते हुए देखा था। वे बताती हैं कि “अभी हाल ही में मैं वहीं बैठ कर अपनी परीक्षा की तैयारी कर रही थी क्योंकि यह पढ़ाई के लिए बहुत शांत जगह थी। मेरे छोटे भाई अब किताबें कहां से इशू कराएंगे? किताबें खरीदना तो बहुत महंगा है। रोज़मर्रा के अन्यायों और भेदभाव पर यहां हमेशा से बहुत गुस्सा रहा है। मैं यह समझती हूं, लेकिन अपने आस-पास की चीजों को नष्ट करना न्याय पाने का तरीका नहीं है।”

सरकार ने उन लोगों की उम्र पर ध्यान केंद्रित किया है जो पुलिस पर आग के गोले फेंक रहे हैं। मैक्रॉन का कहना है कि “वीडियो गेम्स ने कुछ किशोरों के दिमागों को दूषित कर दिया है, वे वही सब सड़कों पर कर रहे हैं। मां-बाप को चाहिए कि अपने बच्चों को घर पर ही रोक कर रखें।” लेकिन बोर्नी जैसी बस्तियों में 18 साल से कम उम्र के युवाओं का प्रतिशत बहुत अधिक है, जबकि रातों में होने वाले इन उपद्रवों में इनमें से बहुत थोड़े से लड़के ही भाग लेते हैं।

मेट्ज़ के एक हाई स्कूल के शिक्षक चार्लोट पिकार्ड कहते हैं कि “अगर रात में 200 बच्चे बाहर हैं, तो इसका मतलब है कि कम से कम 8,000 अन्य बच्चे अपने घरों पर हैं।”

फ्रांसीसी शिक्षा प्रणाली में व्याप्त ग़ैर बराबरी ने किशोरों में अलगाव और परित्याग कर दिये जाने की भावना को बढ़ाया है। ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ (ओईसीडी) के अनुसार, फ्रांस में एक वंचित इलाक़े में पैदा हुए और वहीं स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे के पास अन्य विकसित देशों की तुलना में अपनी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से बाहर निकल पाने की संभावना कम रहती है। फ्रांस विकसित दुनिया में सबसे ग़ैर बराबरी वाली स्कूल प्रणालियों में से एक बना हुआ है।

2005 की अशांति के बाद, पेरिस के आसपास की उपनगरीय आवासीय कॉलोनियों में रहने वाले अश्वेत और उत्तरी अफ्रीकी मूल के किशोरों का कहना था कि उनके साथ सबसे बड़ा अन्याय 14 साल की उम्र में तभी हो गया था, जब उन्हें विश्वविद्यालयीय उच्च शिक्षा के लिए तैयार करने वाले सेकंडरी स्कूलों में पढ़ाने की बजाय जबर्दस्ती शारीरिक श्रम या कम वेतन वाली नौकरियों के प्रशिक्षण के लिए तकनीकी हाई स्कूलों में धकेल दिया गया था।

पिकार्ड एक तकनीकी हाई स्कूल में पढ़ाती हैं जहां अधिकांश अश्वेत और उत्तरी अफ़्रीकी मूल के बच्चे हैं। वे बताती हैं कि “समस्या की जड़ को अगर एक शब्द में बताना हो, तो वह है- अपमान। हाल ही में कक्षा में एक चर्चा के दौरान लड़कों ने बताया कि वे पुलिस द्वारा लगातार अपमानित महसूस करते हैं। अगर वे बाहर सड़क पर खड़े हैं, तो पुलिस दिन भर में कई बार उनके पहचान-पत्र चेक करती है।”

2018 और 2019 के ‘गिलेट्स जौन्स’ (पीली जर्सी) सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई झड़पों, और हाल के वर्षों में पुलिस ट्रैफिक स्टॉप पर अश्वेत और अरबी मूल के लोगों की मौतों में वृद्धि ने लोगों में क्रोध और भय पैदा कर दिया है, और वे महसूस करती हैं कि इन वजहों से समाज सामान्य रूप से अधिक हिंसक हो गया है।

पिकार्ड कहती हैं कि “आपने कुछ लोगों को वर्तमान अशांति के बारे में यह कहते हुए सुना होगा कि ‘नशे के कारोबारी अपने कारोबार को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहेंगे, और वे हालात को जल्दी ही शांत करने में कामयाब होंगे।’ यह एक भयानक बात है, यह राज्य की अनुपस्थिति का इतना भयानक एहसास है कि लोग नशे के कारोबारियों से हालात को नियंत्रित करने की उम्मीद करने लगे हैं।”

डेनिएल बोरी रात में अन्य महिलाओं के साथ बोर्नी के स्कूल की सुरक्षा कर रही हैं। स्थानीय निवासियों को यह स्पष्ट नहीं है कि कारों में आग लगाने वाले स्थानीय किशोरों ने ही पुस्तकालय में आग लगायी है, या यह काम अन्य शहरों के गिरोहों ने किया है।

बोर्नी में रहने वाली एक पूर्व मनोचिकित्सक नर्स और कम्युनिस्ट पार्षद कहती हैं कि “आपसी संवाद और एक-दूसरे की बात सुनने की एक प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न घटें। हां यह सच है कि यहां इमारतों के नवीनीकरण के काम हुए और नया सार्वजनिक परिवहन शुरू किया गया। उच्चाधिकारियों द्वारा बहुत सारे निवेश के निर्णय लिये गये। लेकिन इससे हमें अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। लोगों की ग़रीबी और बेरोजगारी नहीं दूर हुई। लेकिन इसका समाधान यह नहीं है कि और अधिक पुलिस तैनात कर दी जाए, बल्कि मनुष्यों में निवेश करने की जरूरत है, न कि केवल इमारतों में। एक मानवीय रुख अपनाने की जरूरत है।”

ऐसी आवासीय बस्तियों में मतदान का प्रतिशत बहुत कम होने के कारण कई लोगों को लगता है कि ले पेन के धुर दक्षिणपंथी आंदोलन को ही इससे फायदा होगा। मेट्ज़ के उत्तर में मोसेले निर्वाचन क्षेत्र के धुर दक्षिणपंथी सांसद लॉरेंट जैकोबेली ने इस सप्ताह कहा कि उन्हें विश्वास नहीं है कि पुलिस में नस्लवाद जैसी कोई चीज़ है।

57 वर्षीय मैरी-क्लेयर अपनी बेटी और सात वर्षीय नतिनी के साथ बोर्नी की एक अपार्टमेंट बिल्डिंग में रहती हैं। वे चिंतित हैं कि अगर उनकी कार में आग लगा दी गयी, तो वह जिस अस्पताल में सफाईकर्मी का काम करती हैं, वहां अपनी रात की पाली में नहीं जा पाएंगी। वे कहती हैं कि “नवीनीकरण से इस बस्ती का चेहरा तो थोड़ा बदला है, लेकिन हम अभी भी दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए जूझ रहे हैं। गुस्सा अभी भी मौजूद है। विपदा भी जस की तस है। मुझे चिंता है कि यह आग किसी भी समय फिर से भड़क सकती है।”

(ऐंजेलिक क्रिसाफिस की रिपोर्ट, ‘द गार्जियन’ से साभार, अनुवाद : शैलेश)

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