नई दिल्ली। केंद्र ने बुधवार 6 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जांच एजेंसियों की ओर से पत्रकारों और नागरिकों के निजी डिजिटल उपकरणों की तलाशी और जब्ती पर दिशानिर्देश लाने के लिए उसे और समय चाहिए।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल एस.वी. राजू ने पीठ से कहा कि “हमें दिशानिर्देशों के लिए कुछ और समय चाहिए। एक कमेटी का गठन किया गया है। हम कुछ सकारात्मक लेकर आएंगे।” न्यायमूर्ति संजय किशन कौल सुप्रीम कोर्ट की पीठ की अध्यक्षता कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति कौल ने यह बताते हुए कि अदालत ने 2021 में ही सरकार की प्रतिक्रिया के लिए नोटिस जारी किया था, कहा कि “हमने नोटिस कब जारी किया? कुछ समय सीमा का पालन करना होगा। दो साल बीत गए, मिस्टर राजू।”
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मामले को स्थगित कर दिया, अगली सुनवाई अब 14 दिसंबर को होगी। पीठ में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया भी शामिल थे।
अदालत एनजीओ फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स और कुछ शिक्षाविदों की ओर से दायर दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें व्यक्तिगत डेटा जब्त करने में एजेंसियों की ओर से शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश की मांग की गई थी।
एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील नित्या रामकृष्णन ने दिशानिर्देशों की तत्काल जरुरत पर जोर दिया। उन्होंने न्यूजक्लिक पर छापे का हवाला दिया जिसमें 300 डिवाइस जब्त किए गए थे। उन्होंने कहा कि “यह बिल्कुल एक हमला है।”
7 नवंबर को, पीठ ने केंद्र को पत्रकारों और मीडिया घरानों के खिलाफ जांच एजेंसियों की ओर से मनमाने ढंग से जब्ती और तलाशी अभियान को रोकने के लिए दिशानिर्देश लाने के लिए एक महीने का समय दिया था। जिसमें कहा गया था कि “राज्य को केवल अपनी एजेंसियों के माध्यम से नहीं चलाया जा सकता है”। इसने सरकार की कथित बेलगाम शक्तियों को ”गंभीर मामला” करार दिया।
पिछली सुनवाई में पीठ ने यह भी चेतावनी दी थी कि यदि जरुरी हुआ तो अदालत स्वयं दिशानिर्देश तैयार करेगी, लेकिन वह चाहेगी कि सरकार उपाय करे।
जस्टिस कौल ने एएसजी से कहा “मिस्टर राजू, मुझे एजेंसियों के पास मौजूद कुछ प्रकार की सर्व-शक्ति को स्वीकार करना बहुत मुश्किल हो रहा है। ये बहुत खतरनाक है। आपके पास बेहतर दिशानिर्देश होने चाहिए। यदि आप चाहते हैं कि हम यह करें तो हम यह करेंगे। लेकिन मेरा विचार यह है कि आपको यह स्वयं करना चाहिए। अब समय आ गया है कि आप यह सुनिश्चित करें कि इसका दुरुपयोग न हो। यह ऐसा राज्य नहीं हो सकता जो केवल अपनी एजेंसियों के माध्यम से चलता हो। हम आपको समय देंगे, कोई कठिनाई नहीं है। लेकिन आपको यह विश्लेषण करना चाहिए कि उनकी सुरक्षा के लिए किस तरह के दिशानिर्देश आवश्यक हैं। मीडिया पेशेवरों के लिए बेहतर दिशानिर्देश होने चाहिए। मीडिया पेशेवरों के अपने स्रोत हैं। हमने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है। एक संतुलन होना चाहिए।”
पीठ ने फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं। जिसमें जांच एजेंसियों की ओर से डिजिटल रिकॉर्ड, लैपटॉप, मोबाइल और कंप्यूटर की खोज और जब्ती की मनमानी कार्रवाई को रोकने के लिए उचित दिशानिर्देशों की मांग की गई थी और कहा गया था कि इसका “चौथे स्तंभ की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर डराने वाला प्रभाव” है।
(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)
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