लोकसभा चुनाव 2024: देहरादून में नशा है सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा


सुबह के करीब 11 बजे हैं। आसमान में हल्के बादलों के बावजूद गर्मी महसूस हो रही है। देहरादून में रेलवे लाइन से लगती नई बस्ती रेसकोर्स की गलियों में किसी तरह का कोई चुनावी शोरगुल नहीं है। देहरादून शहर का यह धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र है, जो हरिद्वार संसदीय सीट का हिस्सा है। कांग्रेस ने यहां से पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के कद्दावर नेता हरीश रावत के बेटे वीरेन्द्र रावत को टिकट दिया है। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को चुनाव मैदान में उतारा है। पत्रकार से नेता बने खानपुर विधायक उमेश कुमार ने भी इस संसदीय सीट पर ताल ठोंकी है। समझा जाता है कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत से पुरानी अदावत होने के कारण वे मैदान में उतरे हैं। बसपा ने भी इस सीट में अपना उम्मीदवार उतारा है।

नई बस्ती रेसकोर्स में किसी उम्मीवार के बैनर पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं। यहां तक कि बीजेपी के भी नहीं। 15-20 लोगों की एक टीम घरों के गेट खटखटा रही है। टीम के सदस्यों को जो भी मिलता है, उसे नीले रंग का एक पर्चा थमाया जाता है और कुछ समझाया जाता है। टीम में ज्यादातर महिलाएं हैं। कुछ महिलाएं काफी बुजुर्ग हैं। इन महिलाओं की बात लोग धीरज से सुन रहे हैं। दो से तीन मिनट तक एक घर में मौजूद लोगों को समझाने के बाद टीम आगे बढ़ जाती है और किसी दूसरे घर पर दस्तक देने लगती है।

यह टीम देहरादून के विभिन्न जन संगठनों से जुड़े लोगों की है। इनमें ज्यादातर उत्तराखंड महिला मंच से जुड़ी महिलाएं हैं। उत्तराखंड महिला मंच अलग राज्य आंदोलन से तपा संगठन है। राज्य आंदोनल के दौरान लाठी, गोली और जेल की हवा खाये महिला मंच के सदस्यों को राज्य में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। उम्र ढल जाने के बाद भी इन महिलाओं में गजब की जीवटता देखी जा सकती है।

जनचौक ने कुछ घंटे इस टीम के साथ रहकर इस क्षेत्र के मुद्दों को समझने और चुनावी माहौल का आकलन करने की कोशिश की। टीम की ओर से जो पर्चा बांटा रहा है, उसमें बहुत संक्षिप्त में राज्य की कई समस्याओं को लिखा गया है। निवेदनकर्ता के रूप में कुछ नाम हैं, जिनमें हारेगी नफरत, जीतेगा भारत अभियान, भारत जोड़ो अभियान, उत्तराखंड महिला मंच, उत्तराखंड इंसानियत मंच, जनवादी महिला समिति, सर्वोदय मंडल, चेतना आंदोलन, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, एसएफआई, किसान सभा और जन संवाद समिति दर्ज हैं।

पर्चे में कहा गया है कि बीजेपी भ्रष्टाचार खत्म करने का आश्वासन देकर सत्ता में आई थी, लेकिन इलेक्टोरल बॉण्ड का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार उसी ने किया। बेटी बचाओ का नारा दिया और अंकिता भंडारी सहित कई बेटियों की हत्या कर दी, आरोप बीजेपी नेताओं पर लगे। घसियारी और दलित महिलाओं के साथ अत्याचार किये गये। दो करोड़ रोजगार की बात कही थी, लेकिन नौकरी मांगने वाले युवाओं पर लाठियां भांजी। जो युवक फौज में जाने का सपना देखते थे, उन्हें अग्निवीर का झुनझुना थमा दिया। नशा घर-घर तक पहुंचा दिया गया है। पर्चे में सरकार पर उत्तराखंड में भू-कानून  के साथ छेड़छाड़ करने और वोट के लिए धार्मिक उन्माद फैलाने की बात भी कही है। हालांकि इस पर्चे में कहीं नहीं लिखा है कि किस उम्मीदवार को वोट देना चाहिए।

जनचौक करीब तीन घंटे इस टीम के साथ रहा। इस दौरान टीम को दो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग दिशाओं में भेज दिया गया। टीम के सदस्य वोट के महत्व से अपनी बात शुरू करते हैं। उसके बाद बेरोजगारी, अग्निवीर, महिला हिंसा और महंगाई की बात करते हैं। यह भी जरूर पूछती हैं कि उन्हें 5 किलो मुफ्त राशन मिल रहा है या नहीं। जब लोग हां में जवाब देते हैं तो महिलाएं कहती हैं कि सिलेंडर 5 सौ रुपये ज्यादा कीमत पर देकर तुम्हें पांच किलो राशन दे रही है सरकार। ये मुफ्त में नहीं सौ रुपये किलो मिल रही है।

महिलाएं लोगों को यह भी बताती हैं कि किस तरह से वोट लेने के लिए सत्ताधारी पार्टी धार्मिक उन्माद फैलाकर लोगों को बांट रही है। टीम के सदस्य बनभूलपुरा का उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि गरीबों की बस्तियों पर बुलडोजर चलाये जा रहे हैं। लोगों की समझ में ये बातें आ रही हैं। बीच-बीच में कुछ बीजेपी के समर्थकों से भी टीम का आमना-सामना हुआ। जो इस बात पर जोर दे रहे थे कि मोदी के अलावा कोई देश नहीं चला सकता। ऐसे लोगों के लिए इस टीम के पास कुछ ऐसे सवाल थे जो सामने वाले को निरुत्तर कर देते थे। इनमें अंकिता भंडारी हत्याकांड प्रमुख है। महिलाएं पूछ रही थीं कि यदि ऐसा है तो अंकिता के वीआईपी का नाम क्यों छिपाया जा रहा है।

बस्ती में जनसंपर्क के इस अभियान के दौरान एक बात जो चिन्ताजनक रूप से सामने आई, वह है युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति। लगभग हर तीसरा व्यक्ति टीम के सामने नशे का सवाल उठा रहा था। लोगों का कहना था युवक नशेड़ी बन गया है। कुछ लोगों ने गलियों में टहल रहे या जगह-जगह बैठे युवाओं की तरफ इशारा किया और कहा कि इनमें ज्यादातर नशे के आदी हो चुके हैं। टीम के सदस्यों ने ऐसे युवकों से बात करने का प्रयास किया। लेकिन लगभग बदहवास इन युवाओं में से ज्यादातर ने किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। बातचीत के ऐसे प्रयास के दौरान वे या तो चुपचाप खड़े रहे या बहाना बनाकर वहां से खिसक गये।

एक स्थानीय महिला टीम के सदस्यों के सामने रो पड़ी। महिला टीम के सदस्यों को उसका घर देखने के लिए कह रही थी। उसका कहना था कि घर में एक भी बर्तन नहीं है। उसके बेटे ने सारे बर्तन नशे के लिए बेच दिये हैं। महिला ने बताया कि वह नशेड़ी बेटे को घर में रोकने की कोशिश करती है, लेकिन कहीं से फोन आ जाता है और उसके बाद वह किसी भी हालत में रुकता नहीं। कुछ लोगों ने यह भी बताया कि कुछ स्थानीय सत्ताधारी नेता बस्ती के लड़कों को ड्रग्स सप्लाई कर रहे हैं।

एक गली में नई उम्र की दो विवाहिताएं श्वेता और पूजा मिलती हैं। वे कहती हैं कि यह पूरी बस्ती ही नशे में है। उनके बच्चे अभी छोटे हैं, लेकिन उन्हें चिन्ता है कि बड़े होने पर इन बच्चों को नशे से कैसे बचाएंगी। श्वेता और पूजा कहती हैं कि वे उसी को वोट देंगी, जो इस बस्ती का नशे से मुक्त करने की बात करेेगा। इस बस्ती के लोग नशे पर पुलिस के रवैये से भी निराश हैं। कहते हैं कि सरेआम गलियों में और सड़कों पर नशा बिक रहा है। पुलिस दिन में एक-दो राउंड लगा ले तो भी कुछ हो सकता है, लेकिन पुलिस तो इस तरफ आती ही नहीं।

करीब तीन घंटे बाद टीम के दोनों ग्रुपों के सदस्य एक जगह इकट्ठा हो गये हैं और तीन घंटे में हुए काम की समीक्षा की जा रही है। अनुमान लगाया गया है कि टीम के दोनों ग्रुपों ने कुल मिलाकर 80 घरों में दस्तक दी है। इसके अलावा सड़कों पर आने-जाने वाले लोगों से और खासकर महिलाओं से भी बातचीत की है। टीम के सदस्यों को भाजपा के पक्ष में बहस करने वाले कुछ लोग मिले तो हैं, लेकिन उनकी संख्या उतनी नहीं थी, जितनी आशंका जताई जा रही थी।

जनचौक ने इस मौके पर टीम की सबसे बुजुर्ग सदस्य 80 वर्षीय श्रीमती विमला वेदवाल से पूछा कि इस उम्र में इस तरह से क्यों और किसके लिए जुटी हुई हैं, जबकि यह उम्र घर में रहकर आराम करने की है। विमला वेदवाल कहती हैं कि जब हमने 1994 में अलग राज्य की लड़ाई लड़ी थी तो कई सपने देखे थे। भावी पीढ़ी के अच्छे भविष्य के सपने देखे थे। लेकिन, मिला क्या, इसकी एक झलक तो इन तीन घंटों में मिल ही गई है। वे कहती हैं कि हम अब भी ये चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी को शिक्षा और रोजगार मिले, नशा नहीं।

विमला वेदवाल कहती हैं कि वे कभी किसी पार्टी में नहीं रहीं। आज भी नहीं हैं। लेकिन सरकार ने हाल के वर्षों में इस राज्य और देश में जो तमाशा किया है, जिस तरह से अंकिता की हत्या हुई, जिस तरह से फौज में अग्निवीर लागू हुआ, जिस तरह से पेंशन खत्म की, जिस तरह विकास के नाम पर जोशीमठ जैसे हाल कर दिये और जिस तरह से उत्तराखंड में जमीनों को सेठों के हाथों बेचा गया, उसके बाद इस उम्र में भी उन्हें लोगों को समझाने के लिए बाहर निकलना पड़ा।

टीम का नेतृत्व कर रही निर्मला बिष्ट कहती हैं, बीजेपी की डबल इंजन सरकार सब कुछ तहस-नहस करने पर तुली है। वे प्रधानमंत्री के रुद्रपुर में दिये गये भाषण का हवाला देती हैं, कहती हैं कि प्रधानमंत्री मुफ्त बिजली देने की बात कर रहे हैं, लेकिन सवाल ये है कि उन्हें 10 साल तक मुफ्त बिजली देने से कौन रोक रहा था?

निर्मला बिष्ट कहती हैं कि नशे का कारोबार हाल के वर्षों में खूब बढ़ा है। स्कूल कॉलेजों के आसपास और रेसकोर्स जैसी बस्तियों में खुलेआम नशा बिक रहा है। अब तो लड़कियां भी नशे की चपेट में आ रही हैं। लेकिन, सरकार का रवैया नशे को लेकर ये है कि पिछले दिनों उत्तराखंड महिला मंच ने अन्य संगठनों के साथ मिलकर नशे पर रोक लगाने के लिए डीएम को ज्ञापन दिया तो उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया गया।

निर्मला बिष्ट कहती हैं कि उन्हें यह कहने में कोई परहेज नहीं है कि नशे का कारोबार बीजेपी के स्थानीय नेताओं और पुलिस की सांठगांठ से हो रहा है। पैसे की हवस में ये लोग पूरी पीढ़ी को बर्बाद करने पर तुले हैं। वे कहती हैं कि उन्हें पूरी आशंका है कि नशा बेचकर कमाये गये पैसे का हिस्सा पुलिस के बड़े अधिकारियों और बीजेपी के बड़े नेताओं तक भी पहुंच रहा है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर नशे की तस्करी बंद क्यों नहीं करवाई जा रही है? पुलिस थोड़ा सा भी सख्ती करे तो ड्रग्स तस्करी रोकना बहुत कठिन काम नहीं है।

(देहरादून से त्रिलोचन भट्ट की ग्राउंड रिपोर्ट)

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