गुरमीत राम रहीम को 33 महीने में 11वीं पैरोल: पर्दे के पीछे का खेल!

हरियाणा के रोहतक के सुनारिया जेल में बंद कैदी नंबर 8647 कोई साधारण कैदी नहीं है। उसे दोहरी उम्र कैद की सजा मिली हुई है। कभी लोग उसे संत मानते थे और कुछ आज भी मानते हैं और वह खुद को ‘शाश्वत संत’ मानता और खुलेआम कहता है। इसका नाम गुरमीत राम रहीम सिंह है। आश्रम की दो साध्वियों से दुष्कर्म के मामले में 2017 के अगस्त महीने में इसे पंचकूला की विशेष सीबीआई कोर्ट ने 20 साल वामशक्कत कैद की सजा सुनाई थी। इसके अलावा सिरसा के निर्भीक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति और डेरा सच्चा सौदा के पूर्व प्रबंधक रणजीत सिंह की हत्या करवाने के लिए इसे सजा दी गई थी। एक सजा पूरी होने के बाद, दूसरी चलेगी। यानी न्यायपालिका तटस्थ रही तो वह सारी जिंदगी जेल की सलाखों के पीछे रहेगा।

33 महीनों से वह सुनारिया की अति सुरक्षित जेल में बंद है और यह असाधारण है कि वह 11वीं बार पैरोल पर बाहर आ गया। 15 अगस्त को इस कातिल और बलात्कारी बाबा का जन्मदिन है। जन्मदिन मनाने के लिए वह पैरोल पर बाहर आया है। गुरुवार की शाम 4 बज कर 45 मिनट पर उसे सुनारिया जेल से बाहर कदम रखने दिया गया। उसे लेने इसकी मुंहबोली बेटी हनीप्रीत आई थी, जो अब (बची-खुची) संगत की ‘दीदी’ है।

गुरमीत का सारा परिवार उसे छोड़कर विदेश चला गया है और हासिल जानकारी के मुताबिक परिजनों ने उससे पूरी तरह नाता तोड़ लिया है। डेरा सच्चा सौदा सिरसा के बाद उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्थित बरनावा आश्रम इसका सबसे बड़ा डेरा है। कड़ी सुरक्षा के बीच पुलिस टीम उसे लेकर बरनावा रवाना हुई। वहां वह एक महीने तक रहेगा और 15 अगस्त को अपना जन्मदिन सोशल मीडिया के जरिए मनाएगा। पिछले साल भी ऐसा हुआ था।

दो साध्वियों के दुष्कर्म और दो हत्याओं के सीधे मुजरिम ने नियमानुसार जेल प्रशासन को एक माह की पैरोल की अर्जी दी थी और वह आनन-फानन मंजूर हो गई। 33वीं बार ऐसा हुआ। नहीं तो यह वह देश है जहां बगैर अपील-दलील के बेगुनाह और व्यवस्था विरोधी बुद्धिजीवी जेलों में सड़ने को अभिशप्त रहते हैं। सालों बीत जाते हैं वे सूरज की रोशनी की एक किरण देखने तक को मोहताज रहते हैं। गंभीर बीमारियों की अवस्था में भी उन्हें जेल की अंधेरी कोठरियों से बाहर नहीं निकाला जाता।

और यह तथाकथित बाबा अपना जन्मदिन मनाने, बेहूदा गीतों की रिकॉर्डिंग करवाने तथा वर्चुअल सत्संग करने के लिए 33 महीनों में 11 बार जेल से बाहर की दुनिया में अपनी ऐशगाह में मजे से रहता है। उन तमाम लाखों लोगों को चिढ़ाते हुए जो इसके लिए इससे भी ज्यादा सख्त सजा चाहते थे और अब भी बड़ी कोर्ट की दहलीज के आगे फरियाद लेकर खड़े हैं कि इसे सूली पर लटकाया जाए एवं पैरोल अथवा फरलो के नाम पर एक दिन के लिए भी जेल से बाहर कदम न रखने दिया जाए। 

गुरमीत राम रहीम सिंह के अपराधों की फेहरिस्त काफी संगीन है। सियासत के दखल या कहिए हिदायत के बगैर जेल प्रशासन और जिला प्रशासन उसे बार-बार इस मानिंद मुतवातर पैरोल नहीं दे सकता, यह हरियाणा और पंजाब के लोगों की आमफहम राय है। दुर्दांत कैदियों को उनके मां, बाप या पत्नी के दाह संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल के लिए कितनी कवायद करनी पड़ती है, यह कौन नहीं जानता? इस बार पैरोल के लिए गुरमीत ने वजह जो भी लिखाई-बताई हो लेकिन असली वजह 15 अगस्त को जन्मदिन मनाना है और एक किस्म का ‘शक्ति प्रदर्शन’ करना भी है।

याद कीजिए कि वह पिछली बार जब पैरोल पर आया था तो जगह जगह उसके वर्चुअल सत्संग हुए थे और जिस राजनीतिक पार्टी के नेताओं ने उनमें बढ़-चढ़कर शिरकत की थी- वह भारतीय जनता पार्टी थी। रोहतक की सुनारिया जेल हरियाणा में है जहां भाजपा सत्ता में है और एक साल के भीतर वहां विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा के कई वरिष्ठ और कनिष्ठ नेताओं ने बाबा से ‘नामदान’ लिया हुआ है। विडंबना है कि पैरोल के नाम पर गुरमीत राम रहीम सिंह के साथ बढ़ती जा रही नरमी पर भाजपा ने तो क्या बोलना था, कांग्रेस और अन्य दल भी कमोबेश खामोश हैं।

ऐसा माना जाता है कि और कभी यह सच भी था, कि डेरा सच्चा सौदा और उसके मुखिया गुरमीत राम रहीम सिंह के पास तगड़ा वोट बैंक है, जो कई सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करता है। कभी वक्त था कि हरियाणा में और पंजाब के मालवा में डेरा सच्चा सौदा की समानांतर सरकार चलती थी। उसका साम्राज्य कायम रहना था, अगर दुष्कर्म की शिकार लड़कियां और छत्रपति तथा रणजीत सिंह का परिवार बेखौफ होकर तथा बगैर किसी लालच में आए अडिग न रहता।

न्यायपालिका ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई और गुरमीत राम रहीम सिंह के पाप का किला एकाएक ध्वस्त हो गया। मान लिया गया कि अगस्त 2017 के बाद इस तथाकथित संत की संतई का वजूद खत्म हो जाएगा। हालात ऐसे बन भी गए थे लेकिन राजनीतिक प्रेत ही ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि वह उनके लिए एक बलात्कारी और कातिल नहीं बल्कि वोट बटोरने का मोहरा था, है और रहेगा। जब तक जनचेतना उसके खिलाफ नहीं हो जाती।

अगस्त 2017 के दिनों को याद कीजिए। डेरा सच्चा सौदा, सिरसा में मरघट जैसी शांति रहती थी। लोगों ने वहां जाना छोड़ दिया था। हनीप्रीत फरार थी और गुरमीत की ‘किचन केबिनेट’ के तमाम सदस्य भी। अचानक हनीप्रीत ने आत्मसमर्पण कर दिया और पुलिस ने कुछ दिन के रिमांड की औपचारिकता के बाद उसे जेल भेज दिया। न्यायिक हिरासत में चंद दिन काटने के बाद उसे जमानत मिल गई और वह सुनसान डेरा सच्चा सौदा को फिर गुलजार करने लगी।

यह कभी मालूम नहीं हो सका कि पुलिस कस्टडी में हनीप्रीत ने क्या उगला। जाहिर है कि उस पर गुरमीत राम रहीम सिंह की विशेष मेहरबानी थी। अंततः दसवीं पैरोल पर वर्चुअल संबोधन में गुरमीत ने उसे अपने बाद डेरे का सर्वेसर्वा यह कहकर घोषित कर दिया कि अब उसे संगत ‘दीदी’ कह कर संबोधित करे। सो हनीप्रीत कौर संगत की दीदी तो है ही बल्कि गुरमीत राम रहीम सिंह तक संदेश पहुंचाने वाले राजनीतिक प्रतिनिधि भी उसे बकायदा दीदी कहते हैं। यानी वह ‘जगत दीदी’ है।

बागपत प्रशासन की विधिवत अनुमति से वह गुरमीत राम रहीम सिंह से मिल सकती है और मिलती है। डेरा मुखी कतिपय वजहों से अपने परिवार के किसी सदस्य को अपनी गुरु गद्दी नहीं देना चाहता था और न किसी अन्य करीबी को। दावेदार अनेक थे। अपनी पत्नी से उसकी अनबन थी। बेटा भी वक्त आने पर मां का साथ देता था। बेटियों की सक्रिय दखलअंदाजी कमोबेश भी नहीं थी।

आखिरकार गुरमीत राम रहीम सिंह का पूरा परिवार विदेश चला गया। यहां उसके पास बदनामी के सिवा कुछ नहीं था। अकूत धन-दौलत या तो सरकार ने अपने कब्जे में ले ली या फिर बेहद ‘करीबियों’ ने। आलम यह है कि जब से गुरमीत का परिवार विदेश गया है, तब से वापस नहीं लौटा। शायद लौटे भी ना। हालात तो यही बताते हैं।

देखना होगा कि के 30 महीने में 11वीं बार जेल से बाहर आए राम रहीम गुरमीत सिंह की कारगुजारियां इस बार क्या रहती हैं? उत्साह की अति किस गति को हासिल होती है? अंधविश्वासी भोले-भाले बहुत लोग अभी भी उसे अपना पिता यानी भगवान मानते हैं। भोले-भाले हैं तो सियासतदानों का भी आसान शिकार बन जाते हैं। दो साल से डेरा सच्चा सौदा का पॉलिटिकल विंग फिर से पहले की मानिंद सक्रिय है।

हरियाणा में विधानसभा चुनाव इसी साल होने हैं, अगले साल लोकसभा के आम चुनाव। जहां एक हजार वोट काबू में रखने वाला भी तगड़ा रुतबा रखता हो- वहां लाखों वोटों का दावेदार किस हैसियत का मालिक होगा, अलग से यह बताने की जरूरत नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा कोई ऐसा खेल खेलेगी कि गुरमीत राम रहीम सिंह खुलकर उसके पक्ष में आ जाए।

वैसे भी सुनारिया जेल के इस पत्रकार के सूत्र बताते हैं कि वहां उसे वीवीआइपी सुविधा हासिल है। केस सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। गुरमीत रिहाई चाहता है और पीड़ित विरोधी पक्ष भी बेहद मजबूती के साथ उसके खिलाफ खड़े हैं और केस लड़ने को हर वक्त तत्पर। गुरमीत राम रहीम सिंह की 33 महीने में ग्यारहवीं पेरोल इस बार क्या गुल खिलाती है, हफ्ते के भीतर ही पता चल जाएगा।

बेशक हरियाणा में उसकी पैरोल के खिलाफ कोई बड़ी आवाज फिलवक्त बुलंद न हुई हो लेकिन पंजाब में सर्वोच्च सिख धार्मिक संस्था श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने गुरमीत राम रहीम सिंह को बार-बार पैरोल देने पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि डेरा प्रमुख दुष्कर्मी व कातिल है। एक तरफ तो राम रहीम को लगातार पैरोल दी जा रही है, दूसरी तरफ तीस वर्षों से जेलों में बंद सिखों को सजा पूरी होने के बाद भी रिहा नहीं किया जा रहा है।

ज्ञानी रघबीर सिंह ने कहा कि सोची-समझी रणनीति के तहत गुरमीत राम रहीम सिंह को पैरोल दी गई है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के प्रधान एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने भी राम रहीम को पैरोल देने पर गहरी आपत्ति जताई है और कहा है कि इससे लोकभावनाएं आहत हुईं हैं।

जानकारों का मानना है कि दोहरी उम्रकैद का कैदी तैंतीस बार जेल से बाहर पैरोल तथा फरलो पर आया और बागपत गया। यूपी और हरियाणा के प्रशासन को उससे कोई शिकायत नहीं हुई यानी उसने कानून के किसी भी धारा का उल्लंघन नहीं किया।

यह दरअसल एक आधार तैयार करने की बड़ी कवायद है। ज्यादा न कहा जाए तो इशारों में इतना तो कर ही सकते हैं कि 2024 के आम लोकसभा चुनाव में वह अपनी पैरोल या फरलो सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा में काट सकता है। यह एक बहुत बड़ा और खतरनाक ‘खेल’ है; जिसमें सरकारी मशीनरी का हर पुर्जा अपनी-अपनी भूमिका निभाएगा। बहरहाल, खेल तो अभी भी चल रहा है! क्या आने वाले दिनों में पूरा परिदृश्य एकदम साफ हो जाएगा?।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)                                               

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