क्या ममता बनर्जी वास्तव में एकला चलो के नारे के साथ आगे बढ़ गई हैं?

नई दिल्ली। अभी की ब्रेकिंग खबर सारे मीडिया आउटलेट्स में यही आ रही है कि तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। इंडिया गठबंधन के लिए इसे बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है।

बता दें कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ पिछले 11 दिनों से पूर्वोत्तर भारत में जारी है, और इसे अच्छा-खासा जनसमर्थन मिल रहा है। असम में तो तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता भी यात्रा में शामिल हुए। इन 10 दिनों के दौरान दो बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी सभा में आकर अपना संबोधन कर चुके हैं।

लेकिन साफ़ देखा जा सकता है कि इस हाइब्रिड यात्रा में कांग्रेस के राज्यों के नेता और कार्यकर्ता ही प्रमुख रूप से हिस्सा ले रहे हैं, जबकि अन्य राष्ट्रीय नेतृत्व के पास इंडिया गठबंधन और अपने-अपने राज्यों में रणनीति बनाने और अन्य विपक्षी दलों के साथ सीट शेयरिंग का महत्वपूर्ण काम था।

ममता बनर्जी के एकतरफा ऐलान के पीछे भी एक वजह यह नजर आती है कि कांग्रेस और वामपंथी मोर्चे की ओर से राज्य में टीएमसी के खिलाफ खुली शत्रुता बरकरार है, जिसे राष्ट्रीय नेतृत्व ही आगे बढ़कर सुलझा सकता था। तो क्या मल्लिकार्जुन खड़गे सहित कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारणी हाथ पर हाथ धरे बैठे सिर्फ समय का इंतजार कर रही है?

पिछले दिनों तृणमूल के एक कार्यकर्ता के खिलाफ ईडी की जांच के दौरान हुए हमले पर जिस प्रकार से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन की टिप्पणी आई थी, वह किसी भी साझीदार दल को हत्थे से उखाड़ने के लिए पर्याप्त थी, जिसमें इस वरिष्ठ नेता का साफ़ कहना था कि ईडी को बड़ी फ़ौज के साथ ही अगली बार जांच के लिए आना चाहिए और पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए।

जबकि कल ही प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने तृणमूल के साथ संबधों को स्पष्ट करते हुए सफाई दी थी कि “हमारा ममता जी के साथ निजी और पार्टी स्तर पर बहुत अच्छा रिश्ता है। हां कभी-कभी स्थानीय स्तर पर थोड़ा उनकी तो कभी हमारी ओर से भी कुछ बोल दिया जाता है, जो होना स्वाभाविक है। लेकिन इससे हमारे संबंधों में कोई प्रभाव नहीं पड़ने जा रहा है।”

लेकिन स्थानीय स्तर पर लगता है कि हालात अभी भी काफी तनावपूर्ण बने हुए हैं। मंगलवार, 23 जनवरी की दोपहर कूच बिहार के विभिन्न हिस्सों में राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के स्वागत के लिए लगे बैनर पोस्टरों को फाड़ दिये जाने की सूचना है। पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी ने इस घटना के पीछे तृणमूल कांग्रेस की कूच बिहार जिला नेतृत्व का हाथ होने का आरोप लगाया है, जबकि तृणमूल की ओर से इन आरोपों को सिरे से नकारा जा रहा है।

कल अर्थात 25 जनवरी को भारत जोड़ो न्याय यात्रा को कूच बिहार जिले के तूफानगंज सब डिवीजन में बक्शिरहाट से प्रवेश कर रही है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का इस बारे में मानना है कि हालिया घटनाक्रम इंडिया गठबंधन के स्तर पर कांग्रेस और तृणमूल के बीच की दूरियों को ही बढ़ाने में योगदान करने जा रहा है।

मीडिया से बात करते हुए कांग्रेस के राज्य स्तर के प्रवक्ता सौम्य एच रॉय का कहना है, “अगर तृणमूल को लगता है कि इस प्रकार की दमनकारी नीति को अपनाकर न्याय यात्रा को रोका जा सकता है, तो यह उनकी भूल है। तृणमूल कांग्रेस का व्यवहार भाजपा के एजेंट की तरह नजर आ रहा है, जिसने असम में ठीक इसी तरह का बर्ताव किया है। उम्मीद है लोग इसका मुहंतोड़ जवाब देंगे।”

उधर राज्य कांग्रेस अध्यक्ष और पांच बार के लोक सभा सदस्य अधीर रंजन चौधरी एक बार फिर तृणमूल कांग्रेस की राजनीति पर कड़ी टिप्पणी दर्ज करते हुए कहते हैं, “तृणमूल कांग्रेस असल में एक बाइनरी पॉलिटिक्स का माहौल निर्मित करने में लगी हुई है, जिसमें पश्चिम बंगाल में सिर्फ वह और भाजपा ही नजर आये।”

उन्होंने कहा कि “इस बाइनरी पॉलिटिक्स के जरिये तृणमूल कांग्रेस राज्य में सिर्फ अपना फायदा देख रही है, और साथ ही भाजपा को लाभ पहुंचाना चाहती है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित पार्टी नेतृत्व हर दिन अपना नैरेटिव बदलता रहता है।” 

हालांकि तृणमूल कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य प्रकाश चिक बारिक इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज करते हुए अपने वक्तव्य में कहते हैं, “हमारी पार्टी का लोकतंत्र पर विश्वास है, जिसमें सभी राजनीतिक पार्टियों को अपने कार्यक्रमों को जारी रखने का पूरा हक है। कांग्रेस के आरोप पूरी तरह से तथ्यहीन हैं।”

क्षेत्रीय दलों की छटपटाहट की असल वजह

पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश सहित दिल्ली और पंजाब में गठबंधन क्रमशः तृणमूल कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी की चौधराहट और अपने खेमे को मजबूत करने की जुगत में कोई कमी नहीं है। इन सभी राज्यों के क्षत्रपों का साफ़ मानना है कि राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस को बड़ा दिल दिखाना चाहिए और उनके राज्यों में ज्यादा से ज्यादा सीटें क्षेत्रीय दलों को मिलनी चाहिए।

इंडिया गठबंधन के तहत आना तो उनकी विवशता है, जिसे मोदी सरकार की ईडी, सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों ने अवश्यंभावी बना दिया है। इससे भी बड़ी बात यह है कि नीचे से जनदबाव भी उन्हें विपक्षी एकता के लिए मजबूर कर रहा है।

पिछले दिनों 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी साफ़ देखने को मिला कि क्षेत्रीय दलों के वोटों में लगातार क्षरण जारी है। तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति का शासन खत्म हो गया। हिंदी बेल्ट में भी भले ही कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा हो, लेकिन उसके वोट प्रतिशत में कमी नहीं आई है। भाजपा का वोट प्रतिशत पिछली बार से बढ़ा है, जिसे क्षेत्रीय दलों के सिमटते जाने में देखना चाहिए।

पूर्वोत्तर में भारत जोड़ो न्याय यात्रा को जिस स्तर पर सफलता मिल रही है, वह भी बंगाल, बिहार और यूपी के क्षत्रपों के लिए मिलीजुली प्रतिक्रिया पैदा कर रही है। हिंदी बेल्ट में भाजपा अपनी पकड़ को लगातार मजबूत करने के प्रयास में जुटी हुई है, जिसमें 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन और लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा मीडिया के माध्यम से अभी भी मुख्य बहस बना हुआ है।

नरेंद्र मोदी की लार्जर देन लाइफ तस्वीर ने आज समूची भाजपा और यहां तक कि आरएसएस तक को भी पूरी तरह से ढक लिया है। भाजपा ने इस चुनाव को मोदी बनाम कौन में तब्दील करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है, और लोगों के बीच में नैरेटिव भी यही बनता जा रहा है।

उधर पिछले वर्ष की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता से राहुल गांधी की इमेज में भी गुणात्मक उछाल आया है। अब राहुल गांधी आईटी सेल और मीडिया के द्वारा अपनी पप्पू की इमेज से बाहर आ चुके हैं, और एक बार फिर से एक नई यात्रा के जरिये नए-नए इलाकों में अपनी पहचान को स्थापित कर नीचे से दबाव बना रहे हैं।

विभिन्न राज्यों की इस यात्रा में कांग्रेस पार्टी का संगठनात्मक ढांचा भी कहीं न कहीं खड़ा हो रहा है, जो पूर्वोत्तर के बाद बंगाल और बिहार, यूपी में प्रवेश करने पर एक नया आकार ले सकता है।

निश्चित ही इस यात्रा से तत्काल चुनावी लाभ तो क्षेत्रीय दलों को ही मिलने जा रहा है, लेकिन वे कहीं न कहीं इसमें कांग्रेस की दीर्घकालिक नीति को देख रहे हैं। विशेषकर तृणमूल, समाजवादी और आप पार्टी की राष्ट्रीय पार्टी के रूप में खुद को स्थापित करने की आकांक्षाओं को विराम लगा है।

उनके सामने भाजपा ने दो ही विकल्प रखे हैं- ओडिसा, आंधप्रदेश की तरह गुपचुप समर्थन अथवा ईडी, सीबीआई का बढ़ता शिकंजा, जो अंततः पार्टी में टूट और भ्रष्टाचारी विधायक सांसद को पाला बदलकर भाजपा को ही मजबूत करता है। दूसरी तरफ यदि स्वंतत्र अस्तित्व की रक्षा के लिए कांग्रेस के साथ विपक्षी गठबंधन में आते हैं, तो कल को कांग्रेस के विस्तार की सूरत में उनके अपने वोट बैंक के स्विच ओवर होने का खतरा उत्पन्न हो रहा है।

ममता बनर्जी, नीतीश कुमार और अखिलेश यादव की यही समस्या उन्हें रोज नए-नए बयान देने के लिए मजबूर कर रही है। कांग्रेस नेतृत्व गठबंधन में साझीदार पार्टियों की इस उलझन से बाखबर है, और यही वजह है कि उसकी ओर से अभी तक कोई घबराहट नहीं दिख रही है। जिस अस्तित्व की लड़ाई को विपक्षी दल आज महसूस कर रहे हैं, कांग्रेस उससे पिछले 10 वर्ष से जूझ रही है।

इसलिए उसके पास एकमात्र एजेंडा है, भाजपा को किसी भी तरह 272 सीटों से कम पर लाना। इसके लिए लगता है उसका केंद्रीय नेतृत्व किसी भी हद तक राजी हो सकता है। पिछले दिनों खुद कांग्रेस की ओर से 250-255 सीटों तक चुनाव लड़ने की बात कही गई थी।     

इंडिया गठबंधन को आगे बढ़ाना कांग्रेस के दूरगामी लक्ष्य को सूट करता है 

निश्चित रूप से बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के कांग्रेस पदाधिकारियों की आकांक्षाओं से काफी कम सीटों पर कांग्रेस नेतृत्व चुनाव लड़ने के लिए राजी होगा। भाजपा को शिकस्त देने के लिए क्षत्रपों द्वारा कांग्रेस की बांह मोड़ने के इस कोशिश के बावजूद इस बार पूरी उम्मीद है कि कांग्रेस जन-आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए खुद को बड़ा भाई होने का सुबूत पेश करेगी।

ममता बनर्जी, नीतीश कुमार के सामने भी अपने मतदाताओं के सामने मोदी को चुनौती देते हुए दिखने की चुनौती बनी हुई है, वरना उनका आधार भी मायावती की तरह खिसक कर अन्य पार्टियों में विलीन हो सकता है। इसलिए वे भी अंतिम सीट समझौते से पहले अपनी भभकियों को खुलकर सार्वजनिक करने के लिए स्वतंत्र हैं।

इसका एक पहलू यह भी है कि ऐसा करते रहने से केंद्र सरकार को उम्मीद बनी रहती है कि इंडिया गठबंधन शायद कभी भी एकजुट होकर लड़ाई नहीं लड़ सकता, और जीत पक्की होने की सूरत में इन क्षत्रपों पर ईडी, सीबीआई की और कार्रवाई जरूरी नहीं है। 

जयराम रमेश ने भी असम से इस बारे में बेहद सधी प्रतिक्रिया दी है, और इंडिया गठबंधन के एकजुट होकर लड़ने का भरोसा जताया है। जयराम रमेश ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा, “हम ममता बनर्जी के बिना इंडिया गठबंधन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। जो बातचीत चल रही है, उससे कुछ न कुछ बीच का रास्ता निकाल जाएगा, और इंडिया गठबंधन एकजुट होकर चुनाव लड़ेगा।”

उन्होंने कहा कि “गठबंधन दलों को निमंत्रण मेरे स्तर पर नहीं दिया गया है, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष और राहुल गांधी जी ने उनसे बात की है। 3-4 बार खड़गे जी ने खुद अपने भाषणों में सभी इंडिया के घटक दलों को भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने का आह्वान किया है।”

जयराम रमेश ने कहा कि “मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि ममता जी ने यह बात किस संदर्भ में कही है, लेकिन कल भारत जोड़ो न्याय यात्रा पश्चिम बंगाल में इसी भवना के साथ कूच बिहार में प्रवेश कर रही है, और कल ममता जी ने भी स्वयं कहा था की बीजेपी को हराना हमारी प्राथमिकता है।”

पश्चिम बंगाल में कल भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू हो रही है, और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस इस यात्रा के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाता है, असल में उसी से गठबंधन का स्वरूप तय हो जायेगा।

26-27 जनवरी के दिन यात्रा को विश्राम दिया गया है। ये दो दिन निर्णायक होंगे, जिसमें बंगाल, बिहार और यूपी में सीट शेयरिंग को अंतिम स्वरूप दिए जाने की उम्मीद करनी चाहिए। असल में बंगाल, बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और हरियाणा ही वे राज्य हैं, जिनमें स्विंग एनडीए-इंडिया को राजा या रंक बना सकता है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक के संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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