पेटीएम करो स्लोगन कैसे बन गया पेटीएम मत करो?

नई दिल्ली। PayTM की कहानी असल में न्यू इंडिया की कहानी है। पे थ्रू मोबाइल (मोबाइल के माध्यम से पेमेंट करो) का संक्षिप्त नामकरण है पेटीएम। देश में फिनटेक क्रांति की अग्रदूत मानी जाने वाली कंपनी पेटीएम के बुरे दिन भी इसी मोदी सरकार के कार्यकाल में आयेंगे, ऐसा कंपनी के मालिक ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। लेकिन क्या किया जा सकता है, समझदार इंसान सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को हलाल करने की नहीं सोचता। उसे पता है कि सोने का अंडा ही सबसे महत्वपूर्ण है।

फिलहाल जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर भारतीय रिजर्व बैंक को पेटीएम के खिलाफ इतना सख्त कदम क्यों उठाना पड़ा? पेटीएम एक पेमेंट गेटवे होने के साथ-साथ डिजिटल पेमेंट एवं विभिन्न प्रकार की वित्तीय सेवायें मुहैया कराता है।

कंपनी के संस्थापक विजय शेखर शर्मा के द्वारा ONE97 कम्युनिकेशन के तहत 2010 में पेटीएम की शुरुआत की गई थी। कंपनी अपने ग्राहकों को मोबाइल पेमेंट की सेवाएं प्रदान करने के साथ-साथ दुकानदारों को क्यूआर कोड के जरिये भुगतान हासिल करने के मामले में भारत में अग्रणी कंपनी मानी जाती है।

कंपनी की वेबसाइट में गर्व के साथ दावा किया गया है कि कंपनी के पास 30 करोड़ से अधिक वॉलेट चल रहे हैं, और कंपनी से जुड़े बैंक में 3 करोड़ से अधिक बैंक खाते सक्रिय हैं। 10 करोड़ से अधिक KYC ग्राहक होने का दावा करने वाली पेटीएम की वेबसाइट में भारत में स्वयं के लिए डिजिटल क्रांति की शुरुआत करने का ख़िताब दिया गया है। कंपनी के दावे शत प्रतिशत सही हैं। 80 लाख फ़ास्टटैग जारी करने वाली पेटीएम लेकिन आज गहरे संकट में है।

इसके पीछे की बड़ी वजह पेमेंट गेटवे में कोई गड़बड़ी नहीं है, बल्कि कंपनी की बैंकिंग नीति से जुड़ी खामियां बताई जा रही हैं। पेटीएम बैंक आरबीआई के द्वारा निर्देशित नियमों की लंबे समय से अनदेखी कर रहा था। आरबीआई के मुताबिक, पेटीएम की ऑडिट रिपोर्ट और ऑडिटर्स की रिपोर्ट में पाया गया है कि पेटीएम ने बैंकिग नियमों का लगातार उल्लंघन किया है, जिसके चलते पेटीएम पेमेंट बैंक पर एक्शन लिया गया है।

इसमें बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के 35ए नियम के तहत 29 फरवरी के बाद पेटीएम पेमेंट्स बैंक में किसी प्रकार का क्रेडिट-डिपॉजिट, लेन-देन सहित फास्ट टैग एवं ट्रांजेक्शन का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। 29 फरवरी के बाद पेटीएम पेमेंट्स बैंक लिमिटेड के ग्राहक भी इसकी सुविधा हासिल नहीं कर पाएंगे। इतना ही नहीं आरबीआई ने पेटीएम को 15 मार्च तक नोडल अकाउंट सेटल करने के लिए निर्देशित किया है।

आरबीआई की ओर से ऐसी सख्ती पहली बार देखने को मिल रही है। यही कारण है कि गुरुवार को शेयर बाजार खुलते ही पेटीएम के शेयर तेजी से गोता खाकर लोअर सर्किट लग जाने के लिए मजबूर हो गये। आज भी इसके शेयरों में 20 फीसदी की गिरावट आई है। पेटीएम के शेयर आज 120 रुपये कम होकर 487.20 रुपये के स्तर पर पहुंच चुके हैं।

18 नवंबर 2021 को 1950 रुपये में बिकने वाला शेयर 68.77% कीमत खोकर निवेशकों के -1341 रुपये प्रति शेयर का नुकसान दे चुका है। बता दें कि पेटीएम के पास डिजिटल पेमेंट बाजार का करीब 17 फीसदी हिस्सा है, जिसके कारण कहा जा सकता है कि लाखों निवेशकों सहित करोड़ों ग्राहक इसकी जद में आ चुके हैं।

फिलहाल 29 फरवरी तक पेटीएम ऐप पहले की तरह काम करता रहेगा, और आगे भी अपनी सुविधाएं देता रहेगा। लेकिन फ़ास्ट टैग अकाउंट के बैलेंस को 29 फरवरी तक ही इस्तेमाल किया जा सकेगा, और इसमें और पैसे नहीं डाले जा सकते हैं। पेटीएम पेमेंट बैंक की सेवाओं पर रोक लगा दी गई है। हालांकि अगर आपका खाता किसी अन्य बैंक में है तो लिंक वालेट के तौर पर पेटीएम गेटवे काम करता रहेगा। पेटीएम के ग्राहकों को अपना बैलेंस निकालने की सुविधा मिलेगी।

आरबीआई के द्वारा इतनी बड़ी कार्रवाई के पीछे की असल वजह?

असल में जिस बात को सभी राष्ट्रीय समाचार पत्र नहीं बता रहे हैं, या बताने से बचना चाह रहे हैं, उसकी जड़ में सिर्फ पेटीएम बैंक ही नहीं बल्कि पर्सनल लोन से जुड़ा समूचा अर्थतन्त्र जुड़ा हुआ है। पिछले वर्ष ही आरबीआई ने कुछ हैरान कर देने वाले पहलुओं को अपनी रिपोर्ट में सामने रखा था, लेकिन 2024 में देश आम चुनाव की तैयारी में लगा था, इसलिए इसे बेहद दबे स्वर में कहा गया था।

19 अक्टूबर 2023 को रॉयटर्स की खबर के मुताबिक, आरबीआई ने देश में कम आय वाले उपभोक्ताओं द्वारा बैंकों एवं एनबीएफसी से पर्सनल लोन में आई तेज वृद्धि को कड़ाई से नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने के निर्देश जारी किये थे। आरबीआई गवर्नर शक्ति कांत दास की ओर से पर्सनल लोन में आई तेज वृद्धि पर विशेष रूप से चिंता व्यक्त की गई थी, और उनका कहना था कि आरबीआई के द्वारा ऐसे कर्जों की कुछ श्रेणियों की निगरानी की जा रही है।

इसमें चिंता की बात यह थी कि बड़ी संख्या में कम आय वर्ग के लोगों के द्वारा अक्सर अपनी लाइफस्टाइल को बेहतर दिखाने के लिए 10,000 से लेकर 50,000 रुपये के कर्ज बड़ी संख्या में पेटीएम सहित विभिन्न एनबीएफसी बैंकों से बेहद आसानी से हासिल किये जा रहे थे। आज भी अगर आप पेटीएम की वेबसाइट पर जाते हैं तो आपको 2 मिनट में आसानी ने बिना केवाईसी के आसानी से लोन हासिल करने का मार्ग प्रशस्त करने की सुविधा के बारे में बताया जा रहा है।

आज से 2 वर्ष पहले तक भारत के वित्तीय मामलों के समाचारपत्रों में पेटीएम बैंक के 2 मिनट में लोन की सुविधा की इंस्टेंट मैगी बनाने से तुलना की जा रही थी। लेकिन आज के दिन आरबीआई के लिए एनपीए का खतरा बड़े कॉर्पोरेट समूहों की तुलना में लाखों छोटे-छोटे ऋणों में दिखने लगा है।

10,000 रुपये या इससे कम ऋण की संख्या 2019-20 में जहां 2.35 करोड़ थी, 2022-23 में यह संख्या बढ़कर 6.56 करोड़ के स्तर तक पहुंच गई थी। इसी प्रकार 10,000 से 50,000 रुपये मूल्य के ऋण 2019-20 में मात्र 55 लाख थे, 2022-23 में उनकी संख्या बढ़कर 2.04 करोड़ हो चुकी थी।

इसमें चिंताजनक पहलू यह है कि उधार पर अपनी लाइफस्टाइल में आमूलचूल परिवर्तन को आतुर भारतीय युवाओं की संख्या में हाल के दिनों में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है। ये लोग किसी एक लोन पर निर्भर नहीं हैं। इनके लिए आधे दर्जन बैंकों से क्रेडिट कार्ड, एनबीएफसी लोन के दरवाजे हाल के वर्षों में तेजी से खुले हैं।

पेटीएम सहित विभिन्न निजी बैंकों एवं एनबीएफसी बैंकों के द्वारा फोन कर-करके करोड़ों लोगों को आसान शर्तों पर कर्ज लेकर शानदार लाइफस्टाइल का आनंद उठाने के लिए ललचाया जा रहा है। प्रोसेसिंग फीस और ब्याज ही पेटीएम सहित तमाम बैंकिग संस्थाओं के लिए खुद को बाजार में टिकाये रखने का सबसे बड़ा स्रोत बने हुए हैं।

फिन टेक की दुनिया में सीड मनी और कुछ वर्षों तक लगातार घाटे में चलने के बावजूद लगातार निवेश की मांग को अब विदेशी निवेशकों एवं एंजेल इन्वेस्टर्स के द्वारा पूरा नहीं किया जा रहा है।

पेटीएम पर सख्ती नहीं, आम भारतीय को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना होगा 

वास्तव में देखें तो देश में बहुसंख्यक आबादी की आमदनी बढ़ने के बजाय घटी है। सरकार द्वारा उपभोक्ता वस्तुओं की खपत में वृद्धि की तमाम कोशिशें नाकाम हुई हैं। ऐसे में शुरू-शुरू में पेटीएम सहित अन्य बैंकिंग संस्थाओं की ओर से आसान शर्तों पर झट पर्सनल लोन की सुविधा से सरकार भी खुश थी, क्योंकि खपत में वृद्धि का मतलब है जीडीपी को रफ्तार मिलना।

लेकिन इसका कुल नतीजा आज यह है कि देश में घरेलू बचत आज के दिन 51 वर्षों के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। वर्ष 2020-21 में घरेलू बचत जहां जीडीपी के 12% के आसपास थी, 2022-23 में वह 50% से भी अधिक कम होकर 5.1% तक पहुंच चुकी थी।

हालत यह है कि भारत सरकार तक के लिए देश के भीतर अपने खर्चों की पूर्ति के लिए ऋण हासिल कर पाना बेहद दुष्कर हो चुका है, और उसे अब ग्लोबल बांड्स जारी कर पूरा करने की तैयारी की जा रही है।

ऐसे में देश की वित्तीय हालत को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी केंद्रीय बैंक पर आन पड़ी है। आरबीआई को इस बात का अहसास है कि सरकारें तो आती-जाती रहती हैं, लेकिन एक बार यदि देश की जनता एवं वैश्विक बिरादरी का भारत की वित्तीय नियामक संस्था, आरबीआई से भरोसा उठ गया तो रुपये और देश की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाना लगभग असंभव हो जाएगा।

ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक के सामने पेटीएम पर नकेल कसने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा था। केंद्रीय बैंक के पास पेटीएम सहित तमाम एनबीएफसी बैंकों की बैलेंस शीट का कच्चा-चिट्ठा अवश्य मौजूद होगा। बहुत संभव है कि आरबीआई की यह सख्ती बाकियों के लिए आवश्यक सबक का काम करे।

लेकिन एक बात तो तय है कि भारत को जिस आर्थिक राह पर धकेल दिया गया है, उसमें फाइनेंस कैपिटल, फिनटेक स्टार्टअप, जीडीपी के सतही आंकड़े और शेयर बाजार के सहारे ही मोदी सरकार अपनी सरकार की कामयाबी के नैरेटिव को दिखा सकती है।

असल में आरबीआई इस काम को दबे-ढके तरीके से संपन्न करना चाहती है, लेकिन जब हमने रास्ता ही यही लिया है तो कुछ दिनों की पाबंदी के बाद इसे फिर से बड़े पैमाने पर उभरने से वह रोक पाने में तब तक नाकाम रहने वाली है, जब तक वास्तव में आम लोगों की आय में वृद्धि नहीं होती और वे एक संयमित उपभोक्ता के तौर पर खपत और बचत में आवश्यक संतुलन नहीं बिठाते।

देश को झूठे विकास और झूटे लाइफस्टाइल की दौड़ में ले जाने की असल दोषी तो हमारी अपनी सरकार और मुनाफाखोर थैलीशाह हैं, जिन्होंने 90 के दशक से ही इसके बीज बो दिए थे। आज यह सिलसिला भारतीय मध्य वर्ग से विस्तारित होकर निम्न मध्य वर्ग तक पहुंचकर व्यापक आबादी को अपनी आगोश में ले चुका है।

एक पेटीएम के कान उमेठकर तात्कालिक सख्ती तो दिखाई जा सकती है, लेकिन जिस नव-उदारवादी अर्थनीति पर देश को धकेला जा चुका है, उसमें आमूलचूल बदलाव नहीं किया तो देर-सवेर देश को अर्जेंटीना, श्रीलंका बनने से कैसे रोक सकेगा आरबीआई?    

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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