विशेष खबर: 4000 हिंदुस्तानियों पर एक अंग्रेज करता था राज, गुलाम भारत में कुल अंग्रेजों की संख्या?

नई दिल्ली। भारत लंबे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। देश पर पहले ईस्ट इंडिया कंपनी फिर ब्रिटेन की महारानी के नाम पर लूट-खसोट और अमानवीय उत्पीड़न वाला शासन था। आश्चर्य की बात यह है कि ब्रिटेन से आए कुछ अंग्रेज अधिकारी और कर्मचारी ही समूचे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन करते थे। अंग्रेजों से लंबी लड़ाई और लाखों देशभक्तों की शहादत के बाद देश स्वतंत्र हुआ। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत पर अंग्रेजों का शासन कैसे स्थापित हुआ और फिर उसे कितने ब्रिटिशों के माध्यम से चलाया जाता था? लेकिन पहले हम यह जानेंगे कि भारत में अंग्रेजों का राज कब स्थापित हुआ।

प्लासी युद्ध भारत में ब्रिटिश राज की स्थापना का निर्णायक बिंदु

प्लासी के युद्ध के बाद भारत में ब्रिटिश राज स्थापित हो गया था। प्लासी का यह युद्ध 23 जून 1757 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब की सेना के बीच हुआ था। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नबाव सिराज़ुद्दौला को हरा दिया था। क्योंकि नवाब के सेनापित मीर जाफर को अंग्रेजों ने अपने पक्ष में कर लिया था।

इतिहासकारों की नजर में प्लासी की लड़ाई कोई बड़ा युद्ध नहीं था। नवाब सिराज़ुद्दौला की सेना कुछ ही घंटों में हार गई थी। सिराज़ुद्दौला को एक हारे हुए नायक के रूप में देखा जाता है। और मीर जाफर को गद्दार के रूप में।

1757 में प्लासी की लड़ाई भारत में ब्रिटिश राज की स्थापना में निर्णायक बिंदु थी। इस लड़ाई के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल का वास्तविक शासक बन गया और उसने अन्य क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण बढ़ाया। बक्सर की लड़ाई (1764) के बाद कंपनी ने राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। भारत सरकार अधिनियम, 1858 ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया और शासन, राजस्व और क्षेत्रों की शक्तियां सीधे ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरित कर दी गई। इस तरह भारत में करीब दो सौ बरस अंग्रेजों का शासन रहा। हिंदुस्तान को जीतकर अंग्रेज सारी दुनिया पर छा गए और भारत का सूरज अस्त हो गया।

ब्रिटिश भारत में अंग्रेजों की संख्या

साइमन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार हिंदुस्तान में 1,56,000 अंग्रेज थे। (रिपोर्ट में इन्हें यूरोपियन कहा गया है, लेकिन इनमें ज्यादातर अंग्रेज थे। ) 1931 की जनगणना के अनुसार उनकी संख्या 1,68,000 थी। उनमें से 12, 000 सरकारी अधिकारी; 60,000 अंग्रेज फौजी; 21,000 अंग्रेज व्यापार या निजी काम-धंधे में लगे थे। इस तरह 1 लाख वयस्क अंग्रेज हिंदुस्तान के 40 करोड़ लोगों पर स्रामाज्यवादी हुकूमत बनाए हुए थे। इस हिसाब से 4000 हिंदुस्तानियों पर एक अंग्रेज राज कर रहा था।

जाहिर है कि हिंदुस्तानियों से हथियार छीन लेने के बाद, और तोपखाना, हवाई जहाज और दूसरे जंगी औजार अपने हाथ में रखने पर भी यह 1 लाख अंग्रेज 40 करोड़ हिंदुस्तानियों पर सिर्फ हथियार के भरोसे राज न कर सकते थे। अपना राज कायम करने के लिए इन्हें हिंदुस्तानी समाज में ही एक आधार की जरूरत थी। बिना कुछ हिंदुस्तानी मददगारों के इस बड़े देश पर राज कायम करना उनके लिए असंभव था।

प्रजा में फूट डालो और उस पर राज करो की नीति

14 मई 1859 को बंबई के गवर्नर लॉर्ड एलफिंस्टन का यह कथन बहुत मायने रखता है “ रोमन शासक कहा करते थे कि प्रजा में फूट डालो और उस पर राज करो। हमारी भी यही नीति होनी चाहिए”

भारत पर अपनी हुकूमत कायम रखने के लिए अंग्रेजों ने भारत में कुछ प्रतिक्रियावादी समूह तैयार किए। जिसमें देशी रियासतें, सांप्रदायिकता, बहुजातिवाद ने अंग्रेजों की भरपूर मदद की। आजादी के समय तक भारत में 563 रियासतें थी। जिसमें 108 बड़ी, 127 छोटी और 328 जमींदारी तरह की रियासतें थीं। बड़ी रियासतें ब्रिटिश रेजिडेंट और छोटी-छोटी रियासतें पोलिटिकल एजेंटों के मातहत थे। गुलाम भारत की 40 से 50 फीसदी भू-भाग और 8 करोड़ 10 लाख आबादी रियासतों के अधीन थी। हिंदुस्तान में जो घृणित अंग्रेजी व्यवस्था कायम हुई, ये देशी रियासतें उसके दृढ़ स्तम्भ थे।

सर जॉन मैलकम ने बहुत पहले कहा था कि “अगर हमने हिंदुस्तान को तमाम जिलों में बांट दिया तो हमारा राज्य 50 साल भी नहीं टिकेगा। लेकिन अगर हमने कुछ देशी रियासतों को बनाए रखा तो ….. और समुद्र पर हमारी धाक रहे………तो हिंदुस्तान में भी पैर जमाए रहेंगे।”

भारत बहु-सांस्कृतिक, बहु-धार्मिक और विभिन्न जातियों वाला देश है। यह सही है कि आजादी के पहले देश में वर्ण व्यवस्था आधारित भेदभाव थे। सामाजिक और आर्थिक आधार पर भी भेदभाव थे। जैसे-जैसे देश में आजादी की लड़ाई आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे देश में विभिन्न धर्मों और जातियों के संगठन बनाकर साम्राज्यवादी हुकूमत ने इन शक्तिओं का अपने हित में इस्तेमाल किया।

भारत में ब्रिटिश शासन का उदय 1757 में शुरू हुआ और उन्होंने 1947 तक 200 वर्षों तक शासन किया। इस शासन को उपनिवेशवाद के रूप में जाना जाता है। ब्रिटिश शासन आर्थिक शोषण, राजनीतिक उत्पीड़न और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के लिए जाना जाता है।

भारत में ब्रिटिश व्यापारियों ने 1611 में मसुलीपट्टनम में ईस्ट इंडिया कंपनी की पहली व्यापारिक फैक्ट्री की स्थापना की थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे अपने व्यापारिक कार्यों का विस्तार किया और सूरत, मद्रास, बॉम्बे और कलकत्ता (कोलकाता) सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में कारखाने शुरू किए। अंग्रेजों ने भारत पर शासन करने के लिए पुर्तगाली, डच और फ्रांसीसी जैसी प्रमुख व्यापारिक शक्तियों को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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