नाम बदलने की सनक में नेता देश को दुनियाभर में बदनाम न कर दें 

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अंग्रेजी दासता से मुक्ति से पूर्व की बेला में नए भारत के संविधान निर्माण में जुटे स्वतंत्रता सेनानियों ने एक-एक शब्द लिखने से पहले बहुत सोच-विचार किया होगा। इस बात का अंदाजा अब 2023 में बहुत से भारतीयों को हो रहा होगा। 

संविधान के प्रमुख वास्तुकार, बाबा भीमराव आंबेडकर संभवतः भारत के भविष्य की आहट महसूस कर चुके थे। यही वजह है कि संविधान के पहले अनुच्छेद की शुरुआत ही इस वाक्य से होती है, “India, that’s Bharat, shall be a Union of States।” (इंडिया, अर्थात भारत, राज्यों का संघ होगा।)

संविधान निर्माताओं को आभास था कि हो न हो कल के भारत में जब विदेशी दासता से मुक्ति जैसा बड़ा लक्ष्य नहीं होगा तो संभवतः फिर से पुरातनपंथी शक्तियां सिर उठा सकती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि इंडिया अर्थात भारत है। 

2023 आते-आते स्वतंत्रता-सेनानियों की आशंका सच साबित हो रही है। आज देश की संसद में भाजपा के उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद नरेश बंसल ने मांग कर ही दी है कि संविधान से इंडिया शब्द हटा दिया जाये। संसद में दिए गये अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा है कि इंडिया एक औपनिवेशिक और थोपा गया शब्द है, जिसने वास्तविक नाम ‘भारत’ का स्थान ले लिया था। भाजपा सांसद को इंडिया नाम गुलामी का प्रतीक लगता है, जिसे फौरन हटा देना चाहिए।

बंसल साहब कहते हैं, “पीएम मोदी द्वारा पिछले वर्ष स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लालकिले से राष्ट्र को संबोधित करते हुए दासता के प्रतीक चिह्नों से मुक्ति की अपील की गई थी। बंसल ने कहा कि मोदी सरकार ने पिछले 9 साल के कार्यकाल में कई मौकों पर औपनिवेशिक विरासत, औपनिवेशिक चिह्नों को हटाने की अपील की है। साथ ही इनकी जगह भारतीय प्रतीकों, मूल्यों, सोच लागू करने की वकालत की है।

हमारे देश के क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत और मेहनत के बाद जब देश आजाद हुआ तो 1950 में संविधान का निर्माण किया गया। संविधान में लिखा गया कि India That Is Bharat (इंडिया जो कि भारत है)। जबकि देश का नाम पुराने समय से भारत रहा है और इसे इसी नाम से पुकारा जाना चाहिए। आजादी के अमृतकाल में देश को औपनिवेशिक विरासत से खुद को मुक्त करना चाहिए।

हाल ही में विपक्षी दलों के गठबंधन ने बेंगलुरु में हुई अपनी दूसरी बैठक में अपने गठबंधन को INDIA नाम दिया है। इसके बाद से ही भाजपा के खेमे में बदहवासी का आलम छाया हुआ है, और इसके नेता विपक्ष पर किसी न किसी बहाने से हमलावर हैं। स्वंय पीएम मोदी तक भाजपा संसदीय दल की बैठक में विपक्षी गठबंधन के INDIA नामकरण पर ढूंढ-ढूंढकर इंडिया शब्द को इंडियन मुजाहिद्दीन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया और ईस्ट इंडिया कंपनी से जोड़ दिया था।

लेकिन शायद भाजपा के अधिकांश नेताओं को इस बात का आभास ही नहीं है कि इंडिया शब्द का सबसे पहला इस्तेमाल ग्रीक लेखक मैग्स्थनीज के इंडिका में मिलता है। इंडिका में मौर्य कालीन भारत के इतिहास का विवरण मिलता है। मेग्स्थनीज का जन्म 350 बीसी के आसपास बताया जाता है। जबकि अंग्रेज भारत में 2000 वर्ष बाद आकर ब्रिटिश राज कायम कर पाए थे। इसलिए आज यदि वे इंडिया बनाम भारत के विवाद को तूल देते हैं, तो उनके लिए यह भारी पड़ सकता है। 

सबसे पहले भारत को विश्व में संयुक्तराष्ट्र सहित सभी महत्वपूर्ण संस्थाओं देशों, दूतावासों सहित भारतीय मुद्रा, बैंकों, रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया और न जाने कितने हजारों जगह पर खुद को ही मिटाना पड़ेगा और दुनिया में अपनी जाहिलियत का नग्न प्रदर्शन के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

भारतवर्ष वास्तव में हजारों वर्ष पुराना नाम है। लेकिन इंडिया गुलामी का प्रतीक नहीं है। एक बात और! हमारे देश का एक तीसरा नाम भी है, हिंदुस्तान, जिसे मुगलकाल में खासी लोकप्रियता हासिल हुई। कल को ये नीति-निर्माता इससे भी नफरत कर सकते हैं, भले ही इसी शब्द से बहुसंख्यक हिंदुओं को सबसे अधिक पहचान मिलती हो। लेकिन नफरत इसलिए हो सकती है कि, अरे इसे तो मुगलों ने नामकरण दिया है, भले ही हिंदू+स्थान बताया हो। सोचिए मुगल कितने लंबे समय तक मौजूदा भारत से भी बड़े भूभाग पर शासन किये, लेकिन उन्होंने यहां के लोगों की पहचान के आधार पर इसे हिंदुस्तान नाम दिया। सिंधु से अरबी, फ़ारसी जुबान ने इसे हिंदू और हिंदुस्तान बना दिया, जबकि ग्रीक भी सिंधु को इंडस (Indus) और India बना गये। 

भारत ही नहीं कई देशों (इंग्लैंड सहित) को दो या इससे भी अधिक नाम से पुकारा जाता है। देश में नाम परिवर्तन करने की सनक उसके जाहिल होते जाने का सुबूत है। दुनिया देख रही है। शायद जल्द ही हमारे नीति-निर्माताओं को अपनी गलती का अहसास हो जाये। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक के संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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