स्वतंत्रता दिवस: क्या पंजाब के नौजवानों को नशे से ‘आजादी’ मिलेगी?

हर जगह की मानिंद पंजाब में भी सूरज उगता है। बिल्कुल नैसर्गिक। अब पंजाब में जब तक सूरज उगता है तो तब तक कई नौजवानों की जिंदगी में उसे देखना नसीब नहीं होता। कई बार तो लगता है कि यहां सूरज उगता ही लाशों और लाशों में तब्दील होते नौजवानों की गिनती करने के लिए। हम एक और स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहे हैं। इसका एक मतलब यह भी होता है कि देश आजाद है और इसी की खुशी मना रहा है।

दशकों बीत गए और पल-पल बीत रहा है। स्वतंत्रता दिवस की खुशी नशे की दलदल में बेमौत मारे गए नौजवानों की दहलीज पर आकर रुदन में बदल जाती है। किसी का बेटा चला गया या जाने की तैयारी में है तो किसी का भाई। किसी का पति और किसी का पिता। नशे का श्राप हजारों नहीं, लाखों घरों को शापित किए हुए है। बेबसी का यह आलम दूर से कम और नजदीक से ज्यादा नजर आता है। इस स्वतंत्रता दिवस पर भी वही सवाल मौंजू है कि आखिर पंजाब को नशे की मारक और दलदल से मुक्ति कब और कैसे मिलेगी? खालिस्तानी आतंकवाद को भारतीय गणतंत्र के लिए बहुत बड़ी चुनौती माना जाता है तो नशे को क्यों नहीं?

इसी साल जारी राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) रिपोर्ट के मुताबिक, हरित आबोहवा के लिए जाना जाने वाला यह सूबा अब मादक पदार्थों के इस्तेमाल और स्मगलिंग के मामले में तीसरे स्थान पर आ गया है। आबादी के औसत के हिसाब से पहले नंबर पर।

रिपोर्ट से पता चलता है कि एनटीपीसी एस अधिनियम के तहत 10,432 एफआईआर दर्ज की गईं। 10,078 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। 4,078 दर्ज मामलों के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है। दोनों की आबादी पंजाब से बहुत ज्यादा है और वह 9,972 एफआईआर के साथ तीसरे नंबर पर है। पंजाब से वाबस्ता व्यावहारिक रूप में उसे पहले नंबर पर दर्शाता है।

‘इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च’ (पीजीआईएमईआर) के सामुदायिक चिकित्सा विभाग द्वारा इस साल जारी की गई पुस्तक ‘रोड मैप फॉर प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ सब्सटेंस एब्यूज इन’ पंजाब के दूसरे संस्करण में कहा गया है कि 30 लाख से अधिक लोग या तकरीबन पंजाब की 15.4 फ़ीसदी आबादी इस वक्त नशीले पदार्थों का सेवन करती है। यहां दुर्भाग्यपूर्ण इजाफा होता जा रहा है।

सरहदी सूबे पंजाब में हर साल करीब 7,500 करोड़ रुपए का ड्रग्स का कारोबार होने का अनुमान है। नशे की वजह से कई परिवारों (जो दो जून की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल से करते हैं) को सदा के लिए खो दिया है। राज्य के कई गांव ऐसे हैं जिन्हें विधवाओं और अनाथों के गांव के बतौर जाना जाता है। नशे के जहरीले नाग ने वहां के पुरुषों को डस लिया। फिर भी कोई सबक नहीं, होश नहीं! सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों नाम में महज दस प्रतिशत लोग जाते हैं और गैर सरकारी नशा मुक्ति केंद्र नशे के वितरण के लिए बदनाम हैं। इनमें से कुछ अपवादों छोड़कर।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक अलगाववादी खालिस्तानी आंदोलन के दौरान पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई पहले यहां जानलेवा हथियारों की खेप भेजती थी और अब नशा थोक मात्रा में भेजा जाता है। इसके लिए ड्रोन का सहारा भी लिया जा रहा है। पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की तमाम सख्ती के बावजूद यह सिलसिला बदस्तूर जारी है।

अलगाववादी खालिस्तानी आतंकवादी कहीं न कहीं मर्यादा की बात करते थे और लोगों को नशे से दूर रहने के लिए कहते थे। उनसे खौफजदा लोग गांवों में शराब भी छिपकर पीते थे। सूबे से एक आतंकवाद गया तो उससे भी बड़ी अलामत आ गई। बॉर्डर पर बीएसएफ की तैनाती भी है लेकिन इसके बावजूद नशीले पदार्थों की आवक नहीं रुक रही।

खालिस्तानी आंदोलन से जुड़े रहे कुछ लोगों ने अलगाववादी आंदोलन के ठंडा होने के बाद यह पेशा अख्तियार कर लिया। इनमें से ज्यादातर ब्लैक कैट कमांडो तथा पुलिस के टाऊट रहे हैं। भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों के साथ उनके रिश्ते आतंकवाद की कमर टूट जाने के बाद भी नहीं टूटे। यह अब ढकी-छुपी बात नहीं कि बेशुमार पुराने अलगाववादी खालिस्तानी अब नशे के कारोबार में संलिप्त हैं। वे तब भी नौजवानों को मौत की अंधी गली में धकेलते थे और आज भी वही काम कर रहे हैं।

पूरा प्रदेश जानता है कि नशा तस्कर और कुछ मामलों में गिरफ्तार उनके पुराने पुलिसकर्मी दोस्त जेलों तक में बैठकर यह काला धंधा कर रहे हैं। ड्रोन से रोज पाकिस्तान की ओर से नशे की बड़ी खेप भेजी जाती है। इसमें करोड़ों रुपए का मौत का समान होता है। बहुत सारी खेप जवाबी कार्रवाई में बीएसएफ और अन्य अर्धसैनिक बलों को बरामद भी होती है। लेकिन आईएसआई के एजेंट और भारत में बैठे उनके एजेंट नए से नए पैंतरे का इस्तेमाल करते हैं।

जबकि सरहद पर कदम-कदम पर गश्त है। उपकरणों के जरिए आसमान पर नजर रखी जाती है। लेकिन किसी न किसी तरह नशे की खेप धरती के किसी न किसी हिस्से पर उतर ही जाता है। आईएसआई पहले अमृतसर और गुरदासपुर के जरिए मौत का सामान भेजती थी। अब कुछ दिनों से फिरोजपुर और फाजिल्का नए ठिकाने बने हुए हैं। एसटीएफ भी दिन-रात छापेमारी करता है। लेकिन नशीले पदार्थों की खेप आ ही जाती है, तस्करों तक पहुंचती है और फिर खुद अपनी मौत को गले लगाने वाले लोगों तक।

पंजाब में नशा पाकिस्तान के जरिए ही नहीं आता। हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के जरिए भी यह काला कारोबार जारी है। मारिजुआना खतरनाक नशा है और इसका अधिक सेवन तत्काल मौत का सबब बनता है। इसकी लत छुटती नहीं।

मारिजुआना पंजाब में हिमाचल प्रदेश के माध्यम से पंजाब आता है। चिट्टे का यह दूसरा रूप है।  सस्ता नशा करने वाले भुक्की का नशा करते हैं जो राजस्थान से आती है और बीच के लोग अफीम खाते हैं। यह मध्य प्रदेश से आती है।  रोडवेज की बसों के जरिए भी नशा-तस्करी होती है।

गोल्डन क्रीसेंट चौराहे (अफगानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान) के समीप स्थित होने की वजह से इसे ‘मौत का त्रिकोण’ भी कहा जाता है। यह पंजाब के स्मगलरों के लिए आकर्षक और सुविधाजनक बाजार है। तस्करों को मलाल है कि यह भांग या उनके डेरिवेटिव का उत्पादन नहीं करता। न ही साइकॉट्रॉपिक दवाओं का निर्माण करता है। ‘चिट्टा’ एक सिंथेटिक हीरोइन ही है। पंजाब में सबसे ज्यादा इस्तेमाल इसी का किया जाता है।

कई गांव ऐसे हैं जहां घर-घर यह बिकता है और अब तो शराब के ठेकों पर भी गैरकानूनी ढंग से उपलब्ध है। पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित कहते हैं कि उनके स्रोतों के मुताबिक ठेकेदारों और स्थानीय पुलिस की मदद से यह शराब के ठेकों पर मिलता है। एक अखबार को दिए विशेष साक्षात्कार में उन्होंने लुधियाना का उदाहरण दिया। जबकि पुलिस के आला अधिकारी इससे इनकार करते हैं।

विदेशी कनेक्शन को छोड़ दें तो पंजाब देश में हेरोइन की बरमादगी का पांचवां हिस्सा है। यहां राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और संगरिया से इसकी स्मगलिंग होती है। जम्मू-कश्मीर तथा मध्य प्रदेश से अफीम की तस्करी की जाती है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एम्फैटेमिन और एक्स्टसी जैसी सिंथेटिक दवाई हिमाचल प्रदेश के बद्दी और दिल्ली से आती हैं।

‘इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशंस, चंडीगढ़’ ने एक अध्ययन में पाया कि नशा करने वाले 75.8 फ़ीसदी लोग सीमावर्ती जिलों में रहते हैं और 15 से 35 वर्ष के बीच की आयु के हैं। यह एक त्रासद स्थिति है। पुलिस ने पिछले दिनों कश्मीर से आ रहा टमाटरों से लदी एक ट्रक को पकड़ा, जिसमें नशे की खेप थी। इस तरह की पकड़ पहले भी होती आई है। नशाखोर, शिनाख्त से बचने के लिए रोज नए-नए तरीकों का इस्तेमाल करते हैं।

स्वतंत्रता दिवस है। बताना-कहना मुनासिब होगा कि पंजाब में बाकायदा ‘नारको पॉलिटिक्स’ चलती है। सब राजनीतिक दलों के लोग आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलते रहे हैं। नारको पॉलिटिक्स राज्य की विकृत ड्रग शब्दावली में एक संदर्भ शब्द बन गया है। दूसरी कतार आते-आते नशे के सौदागर और खाकी को दाग लगवाने वाले इस नारको पॉलिटिक्स में शुमार होते हैं।

पंजाब को पहले आजादी चाहिए नारको पॉलिटिक्स से और उसके बाद बहुत कुछ बदलने की संभावना है। लाखों बेरोजगारों में सैकड़ों को सरकारी नौकरी मिलना कुछ ज्यादा मायने नहीं रखता। अब पंजाब के युवा फौज में भी कम जाते हैं। वजह साफ है कि नशे ने उनकी देह खोखली कर दी है। क्या हम इस स्वतंत्रता दिवस पर हम यह उम्मीद रख सकते हैं कि उनका शौर्य लौटेगा? सरकार सामाजिक और आर्थिक स्तर पर ऐसा कुछ करेगी की सूबे के नौजवान न अपने प्रांत से पलायन करें और न जिंदगी से।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।) 

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