41 कनाडाई राजनयिकों की स्वदेश वापसी की भारत सरकार की मांग विवाद को गहरा रही है

फाइनेंशियल टाइम्स, एशिया संस्करण की पहले पृष्ठ की खबर पढ़ने पर पता चलता है कि भारत सरकार ने कनाडा से अपने करीब 40 राजनयिकों को वापस लेने के लिए कहा है। भारतीय समाचार पत्रों में भी एफटी के हवाले से ही यह खबर जारी की गई है।

एफटी, एशिया ने अपनी खबर में बताया है कि भारत ने कनाडा से अपने दर्जनों राजनयिकों को देश से वापस बुलाने को कहा है। यह संकट तब और गहरा गया, जब कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि एक कनाडाई सिख की हत्या के पीछे भारत का हाथ हो सकता है।

इस मामले से परिचित लोगों के अनुसार, नई दिल्ली ने ओटावा से कहा है कि उसे अगले सप्ताह तक लगभग 40 राजनयिकों को वापस लेना होगा। इनमें से एक व्यक्ति का कहना था कि भारत द्वारा धमकी दी गई है कि उक्त समय-सीमा के बाद भी बने रहने वाले राजनयिकों के लिए राजनयिक छूट रद्द कर दी जायेगी।

हालांकि पीएम ट्रूडो ने कल तक इसकी पुष्टि नहीं की थी कि कुल कितने राजनयिकों को भारत छोड़ने के लिए कहा गया है, लेकिन दोनों देशों के बीच विवाद के चलते नई दिल्ली में राजनयिकों की उपस्थिति के महत्व पर उन्होंने रोशनी अवश्य डाली है। ट्रूडो ने अपने वक्तव्य में कहा, “निश्चित तौर पर हम फिलहाल भारत के साथ बेहद चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन यही वह वजह है कि हमारे राजनयिकों को जमीनी स्तर पर मौजूद रहकर भारत सरकार के साथ काम करना होगा और वहां पर मौजूद कनाडाई मूल के लोगों एवं कनाडाई परिवारों का समर्थन करना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।”

वहीं कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जोली ने कहा है कि ओटावा भारत के साथ अपनी बातचीत को जारी रखेगा। उन्होंने कहा: “हमारा मानना है कि राजनयिक बातचीत तब सबसे अच्छी होती है जब वे निजी बनी रहती हैं।”

एफटी के अनुसार, इस बारे में भारत सरकार ने टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है। नई दिल्ली का कहना है कि वह प्रत्येक देश द्वारा दूसरे देश में तैनात राजनयिकों की संख्या और ग्रेड में “समानता” का पक्षधर है। भारत के ओटावा में नियुक्त राजनयिकों की तुलना में कनाडा के नई दिल्ली स्थित उच्चायोग में कई दर्जन ज्यादा राजनयिक तैनात किये गये हैं। लेकिन इसके पीछे की वजह यह है कि भारतीय मूल का दावा करने वाले लगभग 13 लाख कनाडाई लोगों के रिश्तेदारों के लिए कनाडा सरकार को अपेक्षाकृत बड़े कांसुलर अनुभाग की जरूरत रहती है।

एफटी ने सूत्रों से जानकारी का हवाला देते हुए अपने लेख में बताया है कि वर्तमान में कनाडा के 62 राजनयिक भारत में कार्यरत हैं, और नई दिल्ली ने उनसे इस संख्या में भारी कटौती कर 41 लोगों को वापस भेजने के लिए कहा है। लेख के अनुसार, नई दिल्ली ने पहले ही कनाडाई लोगों के लिए वीज़ा जारी करने को लेकर प्रतिबंध की घोषणा कर रखी है।

भारत के इस ताजातरीन फैसले से दोनों देशों के बीच जारी संकट और भी गहरा सकता है। यह तनाव तब अचानक से बढ़ा जब जस्टिन ट्रूडो ने अपने बयान में कहा कि ओटावा एक सिख अलगाववादी और कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारतीय एजेंटों की संभावित भूमिका पर लगे “पुख्ता आरोपों” की जांच कर रहा है, जिसकी जून माह में वैंकूवर के उपनगरीय इलाके में हत्या कर दी गई थी।

एफटी का आकलन है कि भारत के इस कदम से ट्रूडो के लिए भी हालात जटिल हो जाते हैं, जिन्हें एक तरफ अपने देश के भीतर जवाबी कार्रवाई करने के लिए निरंतर दबाव का सामना करना पड़ रहा है। तो दूसरी तरफ नई दिल्ली के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए उत्सुक पश्चिमी सहयोगियों (अमेरिका) सहित फाइव आईज देशों से अपने पक्ष में समर्थन हासिल करने की चुनौती बनी हुई है।

पत्र आगे कहता है कि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले सप्ताह वाशिंगटन में कहा था कि निज्जर की कथित हत्या “हमारी नीति के अनुरूप नहीं है” और उन्होंने कनाडा पर भारत से एक स्वतंत्र राज्य के लिए चलाए जा रहे सिख अलगाववादियों के आंदोलन में भागीदार होने का आरोप लगाया था।

भारतीय अख़बारों में इकॉनोमिक टाइम्स ने अपनी खबर में बताया है कि फिलहाल कनाडा के 62 राजनयिक देश के विभिन्न हिस्सों में तैनात हैं। जबकि भारत के मात्र 21 राजनयिक इस वक्त कनाडा में नियुक्त किये गये हैं। राजनयिकों की संख्या में साम्यता का मुद्दा उठाते हुए भारत ने 41 कनाडाई राजनयिकों को वापस लेने के लिए कहा है।

ईटी के अनुसार 10 अक्टूबर तक कनाडा को अपने राजनयिकों की संख्या में कमी करनी होगी। पत्र के अनुसार मंगलवार को अपने बयान में ट्रूडो ने साफ़ किया है कि वे भारत के साथ संबंधों को और खराब न करने के पक्ष में हैं। हम भारत के साथ जिम्मेदारीपूर्ण रचनात्मक तरीके से काम करना चाहते हैं। रायटर्स के साथ अपनी बातचीत में ट्रूडो ने साथ ही यह भी जोड़ा था कि हम भारत में जमीन पर रहकर कनाडाई परिवारों की मदद करना चाहते हैं।   

जाहिर है, कनाडा चाहता है कि वह भारतीय मूल के कनाडाई नागरिकों के परिवारों की जरूरतों के प्रति अपनी जवाबदेही का मुद्दा आगे भी उठाये। फाइव आईज देशों (अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड) के बीच सभी अहम मामलों पर जानकारी ही नहीं साझा की जाती है, बल्कि कहीं न कहीं एक राय भी बनाई जाती है। भारतीय विदेश विभाग के कड़े तेवर के पीछे कनाडा के निज्जर हत्याकांड की जांच और भारतीय ख़ुफ़िया विभाग पर लगाए गये आरोप का हाथ है।

अभी तक अमेरिका ने बीच-बचाव का ही रुख सार्वजनिक किया है। उसके लिए अपने मित्र देश कनाडा और नए साझेदार देश भारत के बीच में किसी एक का चुनाव बेहद मुश्किल भरा है। आने वाले दिनों में उसके लिए चीन की घेरेबंदी सबसे प्रमुख मुद्दा है, जिसके लिए उसे भारत की दरकार है। भारत सरकार भी पश्चिमी देशों की ओर झुकी हुई है, लेकिन साम्राज्यवादी देशों के द्वारा इतिहास में चारे की तरह इस्तेमाल होने वाले तीसरी दुनिया के देशों की नज़ीर उसके पास है। कनाडा कूटनीतिक रूप से अपने केस को मजबूत कर रहा है, लेकिन क्या वह अपने सहयोगी देशों को पूरी तरह से अपने पाले में लाने में सफल रहेगा, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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