गोदी मीडिया से रवांडा टीवी में तब्दील होते भारतीय न्यूज चैनल

नई दिल्ली। आजकल कथित भारतीय न्यूज़ चैनलों में इजराइल-गाजापट्टी के युद्ध-क्षेत्र से लाइव दिखने की होड़ लगी है। पूरी दुनिया सशंकित है कि कहीं इजराइल-हमास की इस लड़ाई की चिंगारी पूरे मध्य-पूर्व को अपनी आगोश में न ले ले, क्योंकि इसके बाद विश्वव्यापी तीसरे विश्व युद्ध को भड़कने में देर नहीं लगेगी। इसके चलते देश-दुनिया की बाक़ी खबरों की बजाए आम भारतीयों के लिए भी गाजापट्टी की खबर से रूबरू होना पहली जरूरत बन चुकी है।

भारत में एक-दिवसीय क्रिकेट विश्व कप चल रहा है, लेकिन उद्घाटन मैच से अभी तक स्टेडियम में दर्शकों की भीड़ नहीं उमड़ी है। रेटिंग पर जिंदा रहने वाले इन न्यूज़ चैनलों के लिए खबर कैसी भी हो, खबर वही तो दर्शक मन भाये की तर्ज पर उसने एक-एक कर इजराइल की हवाई यात्रा शुरू कर दी है।

लेकिन वहां जाकर हमारे गोदी मीडिया वाले दिखा क्या रहे हैं? पिछले 3 दिनों से एनडीटीवी के दो वरिष्ठ पत्रकार इजराइल की धरती पर मौजूद हैं। वार-ज़ोन से सबसे ताजातरीन खबरों को पेश करने का दावा करने वाले ये पत्रकार असल में वहां से अपनी खबरों को प्रसारित कर रहे हैं, जहां से हवाई हमले किये जा रहे हैं, ना कि वास्तविक युद्ध क्षेत्र से जो कि गाजापट्टी है।

असल में एक भी भारतीय न्यूज़ चैनल गाजापट्टी के इलाकों में जाने की जहमत नहीं उठाएगा। उठाये भी क्यों? उसे तो धमाकों, धमाकों से उठते गुबार और गगनचुंबी इमारतों को पल भर में ध्वस्त होने की कवायद को अपने कैमरों में कैद करना है, और हांफते हुए सारा किस्सा बयां करना है। आखिर रेटिंग तो सनसनी दिखाने से मिलने वाली है। गाजापट्टी में गये तो कभी भी चीथड़े उड़ सकते हैं, या फिर बिल्डिंग के मलबे में दफन होने का खतरा है। वहां की बर्बादी और मानवीय त्रासदी को मध्य-पूर्व और लेबनान के जांबाज पत्रकार दिखा तो रहे हैं, जिसमें रेटिंग बढ़ने का कोई खास मौका भी नहीं है।

जबकि सिर्फ फिलिस्तीन के ही कम से कम 6 पत्रकार अब तक मारे जा चुके हैं, और वे सभी गाजापट्टी से रिपोर्टिंग कर रहे थे। शुक्रवार को रॉयटर्स के भी एक पत्रकार के मारे जाने की खबर है। शनिवार तड़के रॉयटर्स ने एक वीडियो जारी करते हुए कहा है कि शुक्रवार को दक्षिणी लेबनान में उनके वीडियोग्राफर ईसाम अबदल्ला की मौत हो गई है, जब उन्हें इजराइल से हो रही गोलाबारी का शिकार होना पड़ा।

उधर एनडीटीवी के पत्रकार उमाशंकर सिंह की शुक्रवार की ट्वीट देखिये, “तेल अवीव में अभी अभी एयर सायरन बजा। होटल में मुनादी हुई कि शेल्टर में जाएं। पर जाएं तो जाएं कहां।” जबकि तेल अवीव से गाजा की दूरी 71 किमी है। अपने होटल के बाहर लॉन और होटल में स्टील के दरवाजों को दिखाते ही उनके ट्वीट कभी-कभी गाजापट्टी के पास से भी खबर कवर करते दिखते हैं।

लेकिन आज दुनिया सबसे अधिक जिस बात को लेकर चिंतित और फिक्रमंद है, वह यह है कि 23 लाख फिलिस्तीनियों, जिन्हें पहले ही दड़बेनुमा खुली जेल में 15 वर्षों से रखा गया है, क्या इजराइली सेना द्वारा 24 घंटे की अवधि समाप्त होने के बाद उनका कत्लेआम किया जायेगा या अंतर्राष्ट्रीय दबाव के तहत इजराइल पीछे हटेगा?

किसी जिम्मेदार पत्रकार की सबसे बड़ी भूमिका यह है कि वह सच के साथ खड़ा हो, मजलूमों के हक के लिए खड़ा हो और ताकतवर के सामने माइक लगाकर कुछ जरूरी लेकिन कड़वे प्रश्न पूछे, ताकि उसकी आत्मा भी जागे।

यही वजह है कि तेल अवीव से आंखों देखा हाल बताने वाले पत्रकार उमाशंकर सिंह को ट्रोल होना पड़ रहा है। लगभग सभी गोदी मीडिया के पत्रकारों से भारतीय यूजर सवाल कर रहे हैं कि 5 महीने से तुम्हें देश के भीतर मणिपुर वार जोन नजर नहीं आया जो इजराइल चले गये? वहां से भी कुछ दिखाने के बजाय, अपनी डरी हुई तस्वीरें दिखाने से अच्छा है कि मणिपुर जाओ। इसी से खीझकर उमाशंकर ने अपने एक ट्वीट में लिखा, “मेरी मां एक कहावत कहा करती थी ‘हाथी चले बाज़ार, कुत्ते भौंके हज़ार’ चलिए चालू हो जाइए।”

उमाशंकर सिंह के बारे में विशेष इसलिए लिखा, क्योंकि अडानी द्वारा एनडीटीवी अधिग्रहण से पहले देश ने इस पत्रकार से कई शानदार रिपोर्टिंग देश और दुनिया से की है। एनडीटीवी से अधिकांश अच्छे पत्रकार जा चुके हैं। कुछ नए पत्रकार भी थे, जिन्होंने अपने कैरियर की बजाय ईमानदार पत्रकारिता के लिए एनडीटीवी ही छोड़ना बेहतर समझा।

अब पत्रकारों की इस जमात में सबसे ताजातरीन एंट्री कल रुबिका लियाकत ने की है, जिन्होंने इजराइल की धरती पर पहुंचने से पहले ही हवाई जहाज से ट्वीट करते हुए लिखा है कि “नई चुनौती मिली है। जल्द ही आपसे इजराइल में ग्राउंड जीरो से मुखातिब होंगे।”

अपने नवीनतम ट्वीट में रुबिका का कहना है कि दो दिनों के अपने प्रवास में उन्हें अहसास हुआ है कि ये युद्ध दो देशों के बीच नहीं बल्कि हमास के खिलाफ है। अब यह तो चैनल मालिक की समझदारी पर सवाल उठता है कि उसने रुबिका लियाकत को रोज-रोज की चिल्लपों में उलझाकर इतना समय भी नहीं दिया कि वे एक घंटे अखबार भी पढ़ सकें। बेचारी को इजराइल जाकर ग्राउंड जीरो से पता चल रहा है कि यह लड़ाई आखिर हो क्यों रही है।

टाइम्स नाउ नवभारत के प्रदीप दत्ता का तो हाल सबसे अलग है। ये साहब वैसे तो सिख हैं लेकिन नाम देखकर गफलत हो सकती है कि बंगाली हों। ये साहब भी इजराइल से बैठकर हमास के हमले के बारे में बढ़ा-चढाकर बताने और अपनी रेटिंग की चिंता में घुले जा रहे हैं। सायरन की आवाज पर सैनिक, पत्रकार या आम नागरिक सभी को जो निर्देश दिए गये होंगे, उसी का पालन करना होगा।

लेकिन ये साहब जमीन पर लेटकर भी तेज-तेज चीखते हुए रिपोर्टिंग से जब बाज नहीं आते तो इजराइली सैनिक ऊंगली के इशारे से मुंह पर चेंपी लगाने के लिए कहता है, लेकिन भारतीय पत्रकार हैं। इतनी जल्दी मान जाएं तो बात ही क्या है।

और आखिर में भारत की ओर से इजराइल में सबसे पहले-पहल पहुंचने वाली पत्रकार पलकी शर्मा की कुछ बात कर लेते हैं, जिन्होंने बेन गुरिओं एअरपोर्ट से बाहर निकलते ही शरणस्थल वाले होर्डिंग्स की तरफ अपना ध्यान लगाया। उनकी बाद की खबरों से भी स्पष्ट लगता है कि उन्होंने शहर से बाहर निकलने की कोई जहमत ही नहीं उठाई। उनका ध्यान सबसे अधिक बम धमाकों में बचने के लिए बनाये गये तहखानों को ढूंढने में लगा हुआ था।

जो खबरें और राकेट हमलों की वीडियो पलकी शर्मा ने साझा कीं, वे पहले से सार्वजनिक जानकारी में मौजूद हैं। तेल अवीव के शहर का कैनवास और सार्वजनिक स्थलों की तस्वीर के माध्यम से उन्होंने जरूर शहर की अभिरुचि को लेकर ज्ञानवर्धन किया है।

दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में एसोसिएटेड प्रेस के एक फोटोग्राफर ने बताया है कि रॉयटर्स के वीडियोग्राफर अब्दुल्ला के शव और अल जजीरा और एजेंस फ्रांस-प्रेसे सहित छह लोगों को उन्होंने घायल अवस्था में देखा था। इनमें से कुछ को एम्बुलेंस में अस्पतालों में ले जाया गया था। घटनास्थल की तस्वीरों में एक जली हुई कार दिख रही थी। इज़राइल रक्षा बलों या आईडीएफ से इस बारे में टिप्पणी करने के अनुरोध पर तत्काल जवाब नहीं दिया गया।

इज़राइल के संयुक्त राष्ट्र के दूत गिलाद एर्दान ने शुक्रवार को एक ब्रीफिंग में कहा: “जाहिर है, हम अपना काम कर रहे किसी भी पत्रकार को गोली मारना नहीं चाहेंगे। लेकिन आप जानते हैं, हम युद्ध की स्थिति में हैं, ऐसी चीजें हो सकती हैं।” इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इजराइल इस घटना की जांच करेगा।

रॉयटर्स ने एक बयान में कहा है कि ब्रॉडकास्टर्स के लिए लाइव वीडियो सिग्नल मुहैया कराते समय अब्दुल्ला की मौत हो गई। कैमरा एक पहाड़ी की ओर था, तभी एक तेज़ विस्फोट से कैमरा हिल गया, हवा में धुंआ भर गया और चीखें सुनाई दीं। समाचार एजेंसी ने बयान में कहा, “हमें यह जानकर गहरा दुख हुआ कि हमारे वीडियोग्राफर इस्साम अब्दुल्ला की हत्या कर दी गई है।”

रॉयटर्स के दो अन्य पत्रकार, थेर अल-सुदानी और माहेर नाज़ेह भी इस घटना में घायल हो गए और चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने के बाद उन्हें अस्पताल से रिहा कर दिया गया। एपी और अल जजीरा ने दावा किया कि गोले इजरायली थे, रॉयटर्स ने कहा कि यह स्थापित नहीं किया जा सका कि मिसाइलें वास्तव में इजरायल द्वारा दागी गई थीं या नहीं।

एएफपी ने कहा कि उसके दो पत्रकार घायल हो गए लेकिन एजेंसी ने उनके नाम जारी नहीं किए। कतर द्वारा वित्त पोषित प्रसारक अल जज़ीरा ने कहा कि उसके दो पत्रकार, एली ब्राख्या और रिपोर्टर कारमेन जौखादर भी इस घटना में घायल हो गए और प्रेस के रूप में स्पष्ट रूप से पहचाने जा रहे थे। इसने इस घटना के लिए इज़राइल को दोषी ठहराया और कहा कि “इस आपराधिक कृत्य” के पीछे के सभी लोगों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

अल जज़ीरा ने एक बयान में कहा, “हमारी टीम की सहमति वाले स्थान पर बाकी अंतरराष्ट्रीय मीडिया क्रू के साथ/साथ मौजूद होने के बावजूद प्रसारण वाहन पर बमबारी की गई और उसे पूरी तरह से जला दिया गया।”

अल्मा अल-शाब गांव बार-बार झड़पों का स्थल रहा है क्योंकि इज़राइल और हमास के बीच दक्षिण में युद्ध छिड़ गया है, जो कि हिजबुल्लाह के करीबी संबंधों वाला फिलिस्तीनी मिलिशिया है। अब्दुल्ला की हत्या से कुछ समय पहले, उसने सोशल मीडिया पर हेलमेट और फ्लैक जैकेट पहने हुए अपनी एक तस्वीर पोस्ट की थी, जिस पर “प्रेस” शब्द दिखाई दे रहा था।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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