अंतर्राष्ट्रीय दबाव में इजराइल ने 24 घंटे में उत्तरी गाजा खाली करने की समय सीमा में ढील दी

नई दिल्ली। 11 लाख फिलिस्तीनी नागरिकों को 24 घंटे के भीतर उत्तरी गाजा शहर छोड़ने के इजराइल के अल्टीमेटम का समय खत्म हो चुका है। लेकिन द न्यू यॉर्क टाइम्स की ताजा खबर के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र संघ सहित तमाम देशों के द्वारा इतने कम समय में इतनी बड़ी संख्या में पलायन की आलोचना के बाद अब इजराइल ने अपने शुरुआती 24 घंटे की समय सीमा में ढील दी है। लेकिन साथ ही अख़बार ने कहा है कि इजराइल गाजा को खाली कराने और संभावित हमले को लेकर अड़ा है।

बता दें कि शुक्रवार को जब इजराइल ने 24 घंटे के भीतर 23 लाख आबादी वाले गाजापट्टी पर जमीनी हमले से पहले लोगों को अपने-अपने ठिकानों को खाली करने का आदेश सुनाया, तो उसके बाद से ही हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ बदहवासी की हालत में सड़कों पर नजर आने लगी थी। लेकिन सवाल था कि जायें तो कहां जायें?

करीब 40 किमी लंबाई वाले समूचे गाजा में ऐसी कोई जगह नहीं है, जिसे इजराइली सेना ने हवाई हमलों से खंडहर में तब्दील न कर दिया हो। अस्पतालों में भर्ती दसियों हजार घायलों के लिए पलायन कैसे संभव है? पिछले 7 दिनों से खाने-पीने और अब बिजली, पानी के अभाव में जूझते लाखों निर्दोष लोगों का 24 घंटे में विस्थापन कैसे संभव बनाया जा सकता है?

बता दें कि गाजापट्टी का इलाका एक तरफ इजराइली सीमा से लगा है, जहां पर कंटीले तारों से इलेक्ट्रिक फेंसिंग है, और गाजापट्टी की तरफ मुंह किये सैकड़ों टैंक कतारबद्ध हमले के लिए तैयार हैं। पीछे भूमध्य सागर है, जिसमें सिर्फ डूब कर मरने का विकल्प है, लेकिन वहां भी इजराइल का ही कब्जा है।

सिर्फ एक गलियारा मिस्र की ओर खुलता है, लेकिन मिस्र में 11 लाख लोगों को सिनाय क्षेत्र में प्रवेश को लेकर न तो मिस्र सरकार और न ही इजराइल तैयार होगा। फिलिस्तीनियों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार करने का मतलब है मिस्र की सिसी सरकार के लिए अपने लिए मुसीबत मोल लेना।

इजराइल के भीतर हमास को लेकर जो गुस्सा है, पीएम नेतन्याहू उसे अपने पक्ष में भुनाने के लिए आतुर हैं। उन्हें लगता है कि अपनी अलोकप्रियता और अपदस्थ होते ही जेल के सीखचों के पीछे जाने से पहले यदि वे हमास और गाजा को पूरी तरह से खाली कराने में सफल हो जाते हैं तो अपना नाम इजराइली इतिहास में अमर करा सकते हैं।

अमेरिका की ओर से इजराइल के समर्थन में एक बार फिर से खुलकर सामने आने और खाड़ी देशों के नेतृत्व में अनिर्णय की स्थिति उसे और भी उद्दंड बना रही है।

इजराइल पर हमास के हजारों लड़ाकों द्वारा किये गये अप्रत्याशित हमले को आज 8वां दिन है, लेकिन आज भी पश्चिमी मीडिया की बहस में शनिवार के हमले को दोहराया जा रहा है। फेक न्यूज़ और पुराने वीडियो के सहारे हमास के खिलाफ नैरेटिव सेट कर पिछले सात दिनों से गाजापट्टी में इजराइल के हमलों को छुपाने का प्रयास जारी है।

लेकिन इजराइल के 24 घंटे के अल्टीमेटम ने पूरी दुनिया को असहज कर दिया है। ऊपर से हवाई हमलों में फास्फोरस बम के इस्तेमाल को कई स्वतंत्र जांच एजेंसियों द्वारा सही पाए जाने की पुष्टि ने पश्चिमी देशों के इस नरसंहार में शामिल होने की भूमिका का पर्दाफाश कर दिया है। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ सहित अंतर्राष्ट्रीय सहायता समूह के द्वारा इजराइली निर्देशों के गैरकानूनी एवं अव्यवहार्य होने की बात कह अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग ने जोर पकड़ा था।

इसके बाद अब खबर है कि इजराइली सेना ने अपने अल्टीमेटम में ढील देने का फैसला लिया है, लेकिन गाजा को जमींदोज करने और जमीनी आक्रमण से वह पीछे नहीं हटा है। रियर एडमिरल डेनियल हगारी ने पत्रकारों के साथ अपनी बातचीत में कहा है, “हम समझते हैं कि इसमें कुछ समय और लगेगा।”

उधर गाजा में हमास ने इसे इजराइल की ओर से “मनोवैज्ञानिक युद्ध” करार देते हुए लोगों से अपने स्थानों पर बने रहने को कहा है। X पर कुछ रिपोर्ट में यह भी बताया जा रहा है कि दक्षिणी गाजा की ओर जाने वाले लोगों पर इजराइली सेना के द्वारा गोलाबारी की गई है, और कई लोगों के मारे जाने की भी खबर है। ऐसे में स्पष्ट नहीं है कि पलायन के बावजूद निर्दोष फिलिस्तीनियों की जान बचती है या नहीं।

इजराइल के लिए हमास के ठिकानों को ध्वस्त करना और ग्राउंड पर जाकर बंकरों, रिहायशी इलाकों के बेसमेंट में बने उनके ठिकानों और भूमिगत सुरंगों को तबाह कर उग्रवादी संगठन का नामोनिशान मिटाना एकमात्र लक्ष्य बना हुआ है। इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है।

लेकिन अभी तक उसके हवाई हमलों में मारे जाने वाले लोगों और घायलों में अधिकांश संख्या आम फिलिस्तीनियों की ही देखने को मिल रही है। ग्राउंड जीरो पर जाकर भी इस बात को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है कि जो भी दसियों हजार लोग मारे जायेंगे, उनमें से उग्रवादी कौन थे और निर्दोष लोग कौन थे?

3 लाख 60 हजार रिजर्व सेना की तैनाती और 1.4 लाख नियमित सेना के साथ इजराइल गाजा में जमीनी हमले के लिए पूरी तरह से तैयार है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और दुनिया की बड़ी ताकतों द्वारा इजराइल को ऐसा करने के परिणामों को भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी देने वाला कोई नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हुए उसके द्वारा फास्फोरस बम का इस्तेमाल करना युद्ध अपराध की श्रेणी में आता है।

आज जो अमेरिका इन तथ्यों से पूरी तरह से वाकिफ है, के द्वारा ही दो दशक पहले इराक पर रासायनिक हथियार रखने के आरोप में हमला किया गया था, जिसमें नाटो की ओर से तमाम पश्चिमी देशों ने मिलकर इराक को राख के ढेर में बदल डाला था। बाद में सारे आरोप झूठे पाए गये और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने इसके लिए माफ़ी तक मांगी।

लेकिन उसी अपराध को अंजाम देने वाले देश इजराइल के लिए अमेरिका न सिर्फ उसे समर्थन दे रहा है, बल्कि कोई अन्य देश इजराइल के बूचर बनने की राह में बाधक न बनने पाए, को सुनिश्चित करने के लिए उसने अपना एयरक्राफ्ट कैरियर तक भूमध्यसागर में तैनात कर रखा है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन स्वयं इजराइल की धरती पर मौजूद हैं।

एंटनी ब्लिंकन ने इजराइल में जो कहा वह अमेरिकी लोकतंत्र की वास्तविकता की पोल खोलने के लिए काफी है। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा था कि वे न सिर्फ अमेरिकी सरकार की ओर से इजराइल पर हुए हमले में उनके साथ खड़े हैं, बल्कि वे स्वयं एक यहूदी हैं और उनके पूर्वजों ने यहूदियों के खिलाफ अत्याचारों को झेला है। यह बयान अपने आप में शर्मनाक और बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों में दिया गया है।

द्वितीय विश्व युद्ध में यहूदियों के कत्लेआम के लिए नाजीवाद और जर्मनी का शासक हिटलर जिम्मेदार था, लेकिन यहां तो मामला ही बिल्कुल उलट है।

1948 से पहले फिलिस्तीन में अरब, ईसाई और यहूदियों की आबादी बेहद शांति और सद्भाव से रहती थी, जिसे धीरे-धीरे यहूदियों के यूरोप से विस्थापन और ब्रिटिश कुटिल नीति ने पूरी तरह से यहूदियों के पक्ष में कर दिया, और आज 75 वर्ष बाद फिलिस्तीनियों के पास कहने के लिए अपना कोई देश नहीं है। जिसने भी होलोकास्ट की पीड़ा और त्रासदी झेली है, वे कभी भी दूसरे इन्सान के साथ भेदभाव और जातीय हिंसा में शामिल नहीं हो सकते।

लेकिन यहां पर तो गाजापट्टी में आतंकी हमास को लक्ष्य कर असल में फिलिस्तीनी नागरिकों को ही हमेशा-हमेशा के लिए गाजा से बेदखल करने की योजना पर काम चल रहा है। दूसरी तरफ वेस्ट बैंक में पिछले कुछ वर्षों से पहले से इजराइल के नियंत्रण में रह रहे फिलिस्तीनियों के साथ अमानवीय व्यवहार और उनके आवासों से उन्हें बेदखल करने की घटनाएं आम हो चली थीं। पिछले 8 दिनों में वहां पर 45 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं।

वेस्ट बैंक में भी फिलिस्तीनियों ने हजारों की संख्या में सड़कों पर निकलकर 24 घंटे के अल्टीमेटम का विरोध किया, जिस पर इजराइली प्रशासन द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी से 11 लोगों की जान जा चुकी है। पूर्व में रबर बुलेट से भीड़ को तितर-बितर करने वाली इजराइली पुलिस अब स्टील बुलेट का इस्तेमाल कर असल में नरसंहार को ही अंजाम दे रही है।

क्योंकि जियोनिस्ट परियोजना के अगले चरण में उसे अपने वृहत्तर इजराइल का सपना पूरा करना है, जिसमें येरुशलम उसकी राजधानी होगी और बेतलहम सहित समूचा वेस्ट बैंक पर इजराइल का कब्जा होना है। वेस्ट बैंक में मौजूद फिलिस्तीनी इसके बाद कोई बड़ी हैसियत नहीं रखते, जिन्हें दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में जियोनिस्ट शासन के तहत श्रम आधारित कार्यों में खुद को खपाने के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं होगा।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments