कैमूर बाघ अभ्यारण्य: जल-जंगल-जमीन को लूटने की साजिश और प्रतिरोध का दमन

अखबारों में आ रही खबरों के मुताबिक इस वर्ष 2024 में कैमूर टाइगर प्रोजेक्ट को जमीन पर उतारा जाएगा। यही वजह है कि बिहार के कैमूर पठार पर खुफिया एजेंसियों और पुलिस-प्रशासन ने जनता के अंदर दहशत पैदा करने के लिए छापेमारी और गिरफ्तारियां शुरू कर दी हैं।

पिछले साल 5 अगस्त, 2023 की रात को बाघ अभ्यारण्य विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता रोहित को पकड़कर 3 दिन तक अवैध हिरासत में रखा गया। 8 अगस्त को उनकी गिरफ्तारी एक और नौजवान प्रमोद यादव के साथ औरंगाबाद के गोह थाने से दिखाई गई। उनके ऊपर आर्म्स एक्ट व जनद्रोही कानून UAPA लगा दिया गया। रोहित एक स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ता के बतौर पिछले 3 सालों से कैमूर पठार को 5वीं अनुसूची क्षेत्र में शामिल करने, कैमूर पठार पर पेशा अधिनियम लागू करने व टाइगर प्रोजेक्ट को निरस्त करने की मांग को लेकर संघर्षरत थे।

रोहित की गिरफ्तारी के दो दिन बाद 7 अगस्त 2023 को कैमूर मुक्ति मोर्चा के कार्यकारिणी सदस्य व कवि और लेखक विनोद शंकर को नक्सली घोषित कर उनके घर पर बिना किसी वारंट के कैमूर एसपी द्वारा छापेमारी की गई। कैमूर एसपी उनके घर से उनकी किताबें, डायरियां व बक्सा तोड़कर महिलाओं के गहने और रुपये तक उठा ले गया। विनोद शंकर उस समय घर पर नहीं थे इसलिए गिरफ्तारी से बच गए। अभी तक कैमूर के दो थानों में मुकदमा दर्ज कर पुलिस उन्हें ढूंढ़ रही है।

इसके अलावा विनोद शंकर के ही गांव बडीहा के एक अन्य व्यक्ति विजय शंकर सिंह खरवार के घर पर भी छापेमारी की गई और वन्य जीवों से सुरक्षा के लिए रखे गए “भर्राट” नामक परम्परागत हथियार को जब्त कर उनके घर को मिनी गन फैक्ट्री घोषित कर दिया गया। विजय शंकर सिंह सहित उनके घर के तीन सदस्यों को गिरफ्तार कर उन पर आर्म्स एक्ट व जनद्रोही कानून UAPA लगा दिया गया।

23 नवम्बर, 2023 को एक बार फिर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा कैमूर मुक्ति मोर्चा के सचिव राजालाल खरवार व कुछ अन्य कार्यकर्ताओं के घर पर छापेमारी की गई। राजालाल खरवार को NIA अपने साथ पूछताछ के लिए पटना ले गयी और दो दिन बाद उन्हें छोड़ा गया। कैमूर मुक्ति मोर्चा के कार्यकारिणी सदस्य विनोद शंकर ने बताया कि NIA ने कैमूर मुक्ति मोर्चा के अधौरा स्थित कार्यालय को भी सीज कर दिया है और संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया है।

कैमूर मुक्ति मोर्चा पिछले 40 वर्षों से जल-जंगल-जमीन के अधिकार के लिए संघर्षरत एक जन संगठन है। इसकी स्थापना मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. विनयन ने की थी। “बाघ अभ्यारण्य” योजना को निरस्त करने की मांग को लेकर कैमूर पठार की जनता पिछले 3-4 सालों से कैमूर मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में आंदोलित है।

सितंबर 2020 में बाघ अभ्यारण्य परियोजना को निरस्त करने, कैमूर पठार को 5वीं अनुसूची क्षेत्र में शामिल करने, पेशा कानून व वनाधिकार कानून 2006 को लागू करने आदि मांगों को लेकर अधौरा प्रखंड पर संगठन ने एक बड़े प्रदर्शन व रैली का आयोजन किया था। जिसमें कथित हिंसा को लेकर 32 लोगों पर मुकदमा व गिरफ्तारी हुई थी। तब से तमाम प्रदर्शनों, धरनों-जुलूसों के अलावा 26 मार्च 2022 को अधौरा प्रखंड से कैमूर जिला मुख्यालय तक करीब 1 हजार लोगों द्वारा तीन दिवसीय पदयात्रा भी निकाली जा चुकी है। उपरोक्त मांगों को लेकर आज भी आंदोलन जारी है।

कैमूर मुक्ति मोर्चा के सचिव राजालाल सिंह खरवार के अनुसार कैमूर पहाड़ को 1982 में ही सरकार ने वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया था। उस समय यहां छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम लागू था, जिसके अनुसार कोई भी गैर-आदिवासी न तो आदिवासियों की जमीन खरीद सकता था और न तो बेच सकता था।

कैमूर वन्यजीव अभ्यारण्य बनाने के बाद सरकार ने विभिन्न तरह के प्रतिबंध जंगलों पर लगाने शुरू कर दिए। सबसे पहले यहां सरकार ने तेंदू पत्ते का टेंडर खत्म करके तेंदू पत्ता के व्यापार पर रोक लगाकर आदिवासियों की जीविका को छीन लिया। रोड, बिजली पर भी कुछ हिस्से में रोक लगा दिया गया, जिसकी वजह से मूलभूत आवश्यकताओं की चीजें भी कैमूर के आदिवासियों को नसीब नहीं हुईं।

राजालाल बताते हैं कि कैमूर वन्यजीव अभ्यारण्य से तो यहां जनता पहले से आक्रांत थी ही, लेकिन 14 अगस्त, 2020 से कैमूर बाघ अभ्यारण्य बनाने को लेकर होने वाली सुगबुगाहटों से वे और भी भयभीत हो गए। 14 अगस्त, 2020 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कैमूर व रोहतास जिले के आला अधिकारियों से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये बात की और कैमूर टाईगर प्रोजेक्ट (कैमूर बाघ अभ्यारण्य) का प्रस्ताव दिया।

इस प्रस्ताव पर अमल करते हुए जिले के पदाधिकारियों से सहमति बनाकर तत्कालीन डीएफओ विकास अहलावत ने 19 अगस्त को ही केंद्र सरकार को भारत का सबसे बड़ा बाघ अभयारण्य कैमूर पहाड़ को बनाने का प्रस्ताव भेज दिया। शायद सरकार की यह योजना पुरानी ही थी, क्योंकि इस प्रस्ताव पर आनन-फानन में जिला और राज्य से लेकर केंद्र तक सभी तुरंत सक्रिय हो गये। संसद के मानसून सत्र (सितंबर 2020) में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार के अध्यक्ष भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूड़ी ने कैमूर बाघ अभ्यारण्य बनाने का प्रस्ताव रखा, जो कि पास भी हो गया।
बाघ अभ्यारण को हटाना है! जल-जंगल जमीन को बचाना है!

कैमूर पहाड़ में आदिवासी-मूलवासी परिवार के लाखों लोगों को धीरे-धीरे बाघ अभ्यारण्य के नाम पर विस्थापित किया जाएगा। एक तरफ बिहार के मुख्यमंत्री जल-जीवन-हरियाली का नारा दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कैमूर पहाड़ में रह रहे लाखों आदिवासी-मूलवासियों को बाघ पालने के नाम जल-जमीन-जंगल से बेदखल करने की योजना है। कोई भी संवेदनशील व्यक्ति यह समझ सकता है कि जिन्हें इंसानों की चिंता नहीं है उन्हें भला बाघों की कितनी चिंता होगी? मूल मसला तो प्राकृतिक संपदा से भरपूर कैमूर पठार के जल-जंगल-जमीन को हथियाने का है।

कैमूर पठार पर देश का 52वां व सबसे बड़ा बाघ अभ्यारण्य बनाने की केंद्र सरकार की योजना को बिहार सरकार 2023-24 में जमीन पर उतारने जा रही है। बिहार सरकार बड़े गर्व के साथ यह बता रही है कि इससे बिहार में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। मीडिया भी इसे बिहार को मिले एक सौगात के रूप में प्रचारित कर रही है। लेकिन जहां बाघ अभ्यारण्य बनता है वहां की स्थानीय जनता को किन कठिनाइयों व दुखों को झेलना पड़ता है इस पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है।

बाघ अभ्यारण्य जिस इलाके में बनता है, वहां वनाधिकार कानून को खत्म कर दिया जाता है। जंगल में लोगों के घुसने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। बाघ अभ्यारण्य की आड़ में प्राकृतिक संपदा का अवैध खनन किया जाता है। बाघ अभ्यारण्य के इलाके के अंदर आने वाले गांवों को जबरदस्ती हटा दिया जाता है।

इसे हम अचानक मार्ग बाघ अभ्यारण्य (अमरकंटक, छत्तीसगढ़) संजय गांधी बाघ अभ्यारण्य (सीधी, मध्यप्रदेश), मुकुन्द्रा बाघ अभयारण्य (कोटा, राजस्थान), पन्ना बाघ अभ्यारण्य (मध्य प्रदेश), बेतला बाघ अभ्यारण्य (पलामू, झारखंड) आदि में देख सकते हैं। जहां सैकड़ों गांवों को हटाया जा चुका है और अभी भी गांवों को हटाने की प्रक्रिया जारी है। इनमें से कई ऐसे टाइगर रिजर्व हैं जो पांचवी अनुसूची क्षेत्र और पेशा कानून के दायरे में आते हैं। पांचवीं अनुसूची और पेशा कानून में परम्परागत ग्राम सभा ही सर्वोच्च मानी गयी है। लेकिन सरकार ने इन कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए बिना ग्रामसभा के अनुमति के ही यहां टाइगर प्रोजेक्ट लागू कर दिया। जो कि पूरी तरह असंवैधानिक है। विस्थापित परिवारों को न तो ठीक से बसाया गया है न ही पर्याप्त मुआवजा मिला है।

कैमूर बाघ अभ्यारण्य के लिए दो प्रकार का एरिया चयनित किया गया है। पहला कोर एरिया है जो 450 वर्ग किलोमीटर का होगा। यह बाघ अभ्यारण्य का मुख्य इलाका होगा। इसमें पड़ने वाले गांवों को किसी न किसी बहाने आज नहीं तो कल हटाया जाएगा। दूसरा एरिया बफर जोन का होगा जो 850 वर्ग किलोमीटर में होगा। इसमें शुरू में तो गांवों को नहीं हटाया जाएगा। लेकिन जंगल में घुसने पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।

इसकी बानगी अभी से दिखने लगी है। जनता के साथ मारपीट करना, जलावन की या अन्य लकड़ी जब्त कर लेना, खेती योग्य जमीन पर कब्जा कर लेना, महुआ को मादक पदार्थ में डालकर प्रतिबंधित कर देना। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, बलात्कार, हत्या आदि। दरसल बाघ अभ्यारण्य तो बहाना है। कैमूर पठार प्रचुर प्राकृतिक संपदा से भरा हुआ है। यहां सोना, अभ्रक, गंधक, लोहा, पेट्रोलियम जैसे अन्य बहुमूल्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में हैं। जिस पर विदेशी-देशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की निगाहें हैं। हमारे देश की दलाल सरकारें इस पर कब्जा जमाना चाहती हैं ताकि विदेशी कंपनियों और भारत के बड़े पूंजीपतियों से इसका सौदा किया जा सके।

बाघ अभ्यारण्य के खिलाफ संघर्षरत कैमूर पठार के जनता की निम्नलिखित मांगें हैं जिसके समर्थन में देश व दुनिया के सभी जनपक्षधर लोगों को एकजुटता दिखाना चाहिए। क्योंकि जल-जंगल-जमीन नहीं रहेगा तो धरती पर जीवन भी नहीं रहेगा। प्रमुख मांगें निम्न हैं:

1- कैमूर पठार से वन जीव अभ्यारण और बाघ अभ्यारण को तत्काल खत्म करो!

2- प्रस्तावित भारतीय वनाधिकार कानून 2019 को तत्काल वापस लो!

3- वनाधिकार कानून 2006 को तत्काल प्रभाव से लागू करो!

4- कैमूर पहाड़ का प्रशासनिक पुनर्गठन करते हुए पांचवीं अनुसूची क्षेत्र घोषित करो!

5- छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम को लागू करो!

6- पेशा कानून को तत्काल प्रभाव से लागू करो!

7- बिना ग्राम सभा के अनुमति के गांव के सिवान में घुसना बंद करो!

8- जंगल में टांगी (कुल्हाड़ी) छीनना बंद करो!

9- खेती की जमीन से लोगों को उजाड़ना और उसमें वृक्ष रोपना बंद करो!

10- हमारे वन उत्पाद पर रोक लगाना बंद करो!

11- जनता व सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमे में फसाना बंद करो!

12- सभी कार्यकर्ताओं पर से मुकदमे वापस लो और गिरफ्तार लोगों व कार्यकर्ताओं को जल्द से जल्द रिहा करो!

(कैमूर से रितेश विद्यार्थी की रिपोर्ट।)

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