केजरीवाल की गिरफ्तारी साबित होगी सत्तारुढ़ मोदी सरकार के ताबूत में आखिरी कील

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यह लोकतंत्र नहीं मोदी तंत्र है। जहां विपक्षी दलों के खाते सीज कर दिए जाते हैं। और चुनाव के दौरान मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी हो जाती है। और यह सब काम उस सरकार के दौरान किया जाता है जो कामचलाऊ है। लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया जारी है लेकिन हर विपक्षी नेता को ऐन-केन प्रकारेण डराने-धमकाने और परेशान करने की कोशिश की जा रही है। और इसके जरिये एक ऐसे लोकतंत्र की परिभाषा गढ़ी जा रही है जिसमें किसी विपक्षी नेता को चुनाव प्रचार करने का अधिकार नहीं होगा। उसके खाते सील कर दिए जाएंगे। और हर तरीके से उसे दबा दिया जाएगा। 

दिल्ली में मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी के जरिये विपक्षी नेताओं को यही संदेश दिया जा रहा है कि भले ही आचार संहिता लग गयी हो लेकिन सत्ता की हनक अभी भी कम नहीं हुई है और एजेंसियां अभी भी मोदी जी के इशारे पर ही काम कर रही हैं। एक ऐसी पार्टी और सरकार जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे अब तक के भीषणतम घोटाले को अंजाम दिया हो वह भ्रष्टाचार के आरोप में दो-दो मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तारी करती है। कोई पूछ सकता है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये वसूली का धंधा चलाने वाली सरकार को आखिर इस तरह की कार्रवाई में जाने का क्या अख्तियार है। 

गृहमंत्री अमित शाह बहुत ज्यादा क्रोनोलाजी की बात करते हैं तो उन्हीं के शब्दों में इलेक्टोरल बॉन्ड के क्रोनोलाजी की बात की जाए तो पहले ईडी वसूली के लिए तय की गयी कंपनी या फिर उसके मालिक को नोटिस भेजती है और हरकत न होने पर कुछ दिनों बाद उसके खिलाफ छापे की कार्रवाई शुरू हो जाती है। और ज्यादा समय नहीं बीतता है जब संबंधित कंपनी सत्तारूढ़ पार्टी को मनचाहा चंदा देने के लिए तैयार हो जाती है। और फिर इस तरह से प्रसाद मिल जाने के बाद संबंधित कंपनी के खिलाफ जांच की कार्रवाई की प्रक्रिया को ताक  पर रख दिया जाता है। इस काम को कभी ईडी के जरिये तो कभी इनकम टैक्स और फिर कभी सीबीआई के जरिये अंजाम दिया जाता है। 

अब कोई पूछ सकता है कि अरविंद केजरीवाल को जिस कथित भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया है। क्या देश की सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग इसके दायरे में नहीं आते हैं। आखिर उन्होंने भी तो भ्रष्ट कंपनियों को चंदा लेने का साधन बनाया है। और ईडी, इनकम टैक्स और सीबीआई ने उनके लिए साधन मुहैया कराए। एक तरह से भ्रष्टाचार की जांच को रोकने और सत्तारूढ़ पार्टी के वसूली कार्यक्रम में शामिल होकर खुद उन्होंने भी कानून का उल्लंघन किया है। जो अपने किस्म से एक बड़ा अपराध है। ऐसे में क्या उस ईडी, इनकम टैक्स या फिर सीबीआई को किसी से पूछताछ और गिरफ्तारी का अधिकार मिल जाता है। जो खुद भ्रष्टाचार के गोरखधंधे में शामिल है। उल्टा ये सारे मामले उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हैं और इनमें शामिल अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई का औचित्य बनता है। 

केजरीवाल की गिरफ्तारी की घटना के बाद भी अगर किसी को लग रहा है कि इस देश में लोकतंत्र बचा हुआ है उसके भ्रम को अब कोई साफ नहीं कर सकता है। मोदी को वोट देने का मतलब वह साफ-साफ देश के भीतर तानाशाही को मजबूत करने के लिए वोट कर रहा है। कहते हैं चुनाव लोकतंत्र का उत्सव होता है। चुनावी घोषणा के बाद पीएम मोदी ने पहला ट्वीट कुछ इसी तर्ज पर किया था। लेकिन अब जबकि प्रक्रिया शुरू हो गयी है तो वह जबरन ताकत के बल पर विपक्षी दलों को हर तरीके से कमजोर करने में लग गए हैं। जिसमें कहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का बैंक एकाउंट फ्रीज किया जा रहा है तो कहीं देश की राजधानी के मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी की जा रही है। और अखिलेश से लेकर मायावती तक को प्रचार करने की जगह अपने घरों में बैठे रहने की नसीहत दी जा रही है। 

वरना इस बात का इशारा किया जा रहा है कि उनका भी हाल केजरीवाल जैसा होगा। और अगर एक सिटिंग मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कराया जा सकता है तो फिर उनकी विसात क्या जिनके पास कोई सरकारी पद ही नहीं है। अनायास नहीं चुनाव की घोषणा हो गयी है और ज्यादातर दल और उसके नेता चुनावी संग्राम में कूद पड़े हैं लेकिन अखिलेश और मायावती ऐसे नेता हैं जिन्होंने अपने घर की चौखट से बाहर कदम ही नहीं रखा। मोदी-शाह ने इतनी भर उन्हें छूट ज़रूर दे रखी है कि वो घर से ही ट्वीट या फिर प्रेस कांफ्रेंस करके विपक्षी दल का सदस्य होने का अपना धर्म निभा सकते हैं। और वैसे भी यह बीजेपी के लिए भी जरूरी है कि वह इतनी छूट दे कि अखिलेश के विपक्ष में होने का भ्रम बना रहे।

लेकिन जरा सोचिए, चीजें ठीक उसी तरह से आगे नहीं बढ़ती हैं जैसा सत्ता सोचती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी मोदी सत्ता के ताबूत की आखिरी कील साबित होगी। हर किसी को यह बात समझनी चाहिए कि दिल्ली के लोग विधानसभा में केजरीवाल को वोट करते रहे हैं और उन्होंने दिल्ली वासियों के एक बड़े हिस्से के जीवन को आसान बनाया है। और यह सब कुछ अपनी कल्याणकारी योजनाओं के जरिये किया है। ऐसे में अगर उनके सत्ता से हटने की कोई भी आशंका बनती है तो यह पूरी तरह से बीजेपी के खिलाफ जाएगी। पिछले चुनाव में भले ही दिल्ली की जनता ने विधानसभा में केजरीवाल और लोकसभा में बीजेपी को चुना हो लेकिन केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने उनके समर्थकों को नाराज करके अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। और अंतत: यह कार्रवाई बीजेपी के खिलाफ जा रही है।

या फिर इससे इतर पार्टी किसी दूसरी लाइन पर सोच रही है। जिसमें उसे शायद इस बात की आशंका सता रही हो कि लाख कोशिशों के बाद भी वह बहुमत हासिल नहीं करने जा रही है। ऐसे में उसे विपक्षी नेताओं को शंट करके ऐन-केन-प्रकारेण सत्ता पर कब्जा करना है। और जरूरत पड़ी तो वह तानाशाही के अगले चरण की दिशा में भी बढ़ सकती है जिसमें तमाम विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां और घोषित इमरजेंसी का पड़ाव शामिल होगा। और जरूरत पड़ने पर लोकतंत्र पर ताला लगा दिया जाएगा। लेकिन यह स्थिति भी शायद देश की उस जनता पर कोई फर्क न डाले जिसने खुद को मोदी जी की भक्ति की गंगा में डुबो दिया है।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संस्थापक सम्पादक हैं।)

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