गाजा की मांओं के नाम एक पत्र: इस अंधेरी दुनिया में आप रोशनी के समान हो

गाजा की मेरी प्यारी मांओं,

मैं आपसे तीन हजार मील दूर बैठा हूं, लेकिन फिर भी आपका विलाप, आपका दुःख और आपकी चीखें मेरी आत्मा को एक तीर की तरह भेद रहे हैं। मैं खुद को असहाय पाता हूं जब मैं देखता हूं कि आपके प्रियजनों को मलबे के ढेर से निकाला जा रहा है – हड्डियां, वंचित गुड़ियाएं, खंडित निर्माण – और फिर काली थैलियों या सफेद कफ़न में लपेटकर लाया जा रहा है।

ऐसे में सांत्वना एक निरर्थक शब्द और धैर्य एक बेकार गुण बन जाता है। इसके बावजूद, एक पॉलीथिन में हड्डियों के बेतरतीब ढेर की तुलना में सफ़ेद कफ़न में करीने से लिपटे एक छोटे से शरीर को देखना अभी भी सांत्वना दायक है। इन्सान कम से कम कफ़न में है, भले ही वह मृत हो।

अक्टूबर से अब तक, इजराइली कब्जाधारी आपकी हज़ारों जानों का ख़ून बहा चुके हैं। मेरे लिए आपकी क्षति पर महज़ खेद जताना आजीवन क़ायम रहने वाले आपके दर्द को छोटा कर देना होगा।

आपमें से बहुतों के लिए वक्त थम गया जब आपने अपने दिल के टुकड़े को लाश के रूप में देखा। लेकिन दुनिया अपनी चाल से चलती रही। संसार का यही नियम है। हां, ऐसी ही है हमारी दुनिया। शेयर बाजार ऊपर गया और म्यूचुअल फंड्स को लाभ हुआ। महाद्वीपों के बीच युद्ध के हथियारों व्यापार बढ़ा। पूंजी की सड़ांध हमारे समय का सच बनी हुई है।

मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि आपका नुक़सान दुनिया के लिए बेमानी है क्योंकि यहां युद्ध और शान्ति के नाम पर तबाही मचाने के लिए और भी बहुत कुछ है। यहां अभी और भी बहुत सारे बच्चे मारे जाने हैं तथा और भी ज़मीन के टुकड़ों पर कब्ज़ा किया जाना बाक़ी है।

लेकिन यह पूरा सच नहीं है क्योंकि हममें से लाखों लोग उस ख़ूनी उन्माद के प्रति ग़ुस्से से कांप रहे थे जो आपके पीछे पड़ा है। हमने उस दर्द को महसूस किया जो आप अपने बच्चों से बिछुड़ते समय महसूस करती हो। यह चमड़ी को शरीर से उधेड़ने जैसा है।

मुझे अपनी छोटी बेटी के हाथ की वह बेचैन गर्माहट अब भी याद है जब पहली बार स्कूल छोड़ते समय उसने कसकर मेरा हाथ पकड़ लिया था। वे छोटी उंगलियां आपके हाथ को फिर कभी गर्म नहीं करेंगी यह सोचना भी न केवल हृदयविदारक है बल्कि यह आपके लिए दुनिया के ख़ात्मे जैसा है। मैं ऐसे आघात की कल्पना भी नहीं कर सकता।

गाज़ा के टूटे घरों के मलबे पर पड़ी फटेहाल गुड़ियों और छोटे जूतों को देखना हम सभी को शर्मसार कर देता है। विडम्बनापूर्ण ढंग से यह मुझे नाज़ी जर्मनी के यातना शिविरों में उन कुख्यात गैस चैंबरों के बाहर पड़े जूतों के ढेर की याद दिलाता है।

मेरी प्यारी अम्मी, जो दुःख आपको घेरे हुए है और आपके विचारों व आपके जीवन को जकड़े हुए है वही आपके दोबारा उठ खड़े होकर ज़िन्दगी में दोबारा लौट आने के एकमात्र हथियार है। वे दरख़्त जो कठोर सर्दी में अपने पत्तों को खो देते हैं बसन्त में उनमें फिर बहार आ जाती है। बेशक यह एक ख़राब उपमा है लेकिन शायद इन्सानों और पेड़ों के बीच यही फ़र्क़ है।

लेकिन यक़ीन मानिए शरीर और रूह का आपका यह अपूर्णीय नुक़सान जीवन के साथ एक समझौता है। यह भविष्य की उम्मीद ही है जो आपको जीने के लिए प्रेरित करेगी। अब खोने के लिए और कुछ नहीं है। ऐसे लम्हे आयेंगे जब आपको जीना असम्भव लगेगा। ख़ासकर उन शासकों और मोलौकों की छाया में जो इस तबाही के अग्रदूत हैं।

पर आपको जीना होगा। आपको जीवित रहना होगा हमें गाज़ा की कहानियां बताने के लिए। आपको जीना होगा उन रोटियों की महक़ को फैलाने के लिए जो कभी घर में आप पकाते थे। आपको इसलिए भी जीना होगा क्योंकि इन्सान जब दर्द में होते हैं तो वे इन्सान नहीं रह जाते। वे सन्त बन जाते हैं। आप इस दुनिया के सन्त हो जो सर्वोच्च बलिदान से गुज़रे हैं।

आइए मैं आपको बताता हूं कि दुःख और शोक के चरणों के बारे में एलिजाबेथ कुबलर-रॉस ने एक बार क्या लिखा था। उन्होंने लिखा कि लोग रंगीन शीशे वाली खिड़कियों की तरह हैं। जब सूरज निकलता है तो वे चमकती हैं, जब अंधेरा छा जाता है, तो उनकी असली सुन्दरता तभी प्रकट होती है यदि भीतर से रोशनी हो। मैं जानता हूं कि आप सबने सूरज को निगल लिया है। अब आप इस अंधेरी दुनिया का प्रकाश हो। और हमें रौशन करने के लिए आपको जीवित रहना होगा।

सुरक्षित घरों में आपके बच्चों की हत्याओं ने हम सभी को दुखी, हतप्रभ और क्रोधित कर दिया है। जब हमने इतिहास पढ़ा था तब हमें यक़ीन हो गया था कि सामूहिक हत्याएं और नरसंहार अतीत की बातें हैं। लेकिन हम गलत थे। आपके घरों पर गिराये हरेक बम, आपकी छाती पर दागी गयी हरेक गोली और आपके शरीर द्वारा झेली गई हर यातना ने नरसंहार को यथार्थ बना दिया और उम्मीद को ज़िन्दा दफन कर दिया।

लेकिन आशा को जीवित रखना ही मुक्ति का अर्थ है। आशा को जीवित रखना उन लोगों के लिए सबसे बड़ी हार है जिन्होंने आपको तकलीफ़ देने की योजना बनायी। आशा निराशा का अचूक इलाज है।

आपके पास हमारे लिए दो विकल्प हैं खुशी या शान्ति। खुशी एक सपना है और मैं आपको सपने देखने के लिए कहने की हिम्मत भी नहीं करूंगा क्योंकि जब भी आप अपनी आंखें बन्द करेंगी आपको वे नन्हें बच्चे स्टापू या फुटबॉल खेलते अथवा नखरे करते हुए नज़र आयेंगे जैसा उन्होंने खिलौनों की किसी दुकान पर किया था।

इज़रायल के इस नरसंहार और विध्वंस की क्रूरता इन्सानी सभ्यता के चेहरे पर एक बड़ा धब्बा है। वे गाज़ा से पूरी इन्सानियत को मिटा सकते हैं लेकिन वे आपको नहीं मार सकते, ओ गाज़ा की अपराजेय मांओं! मैं अपना आलिंगन भेजता हूं। हम सब आपके साथ हैं। हम आपके नुक़सान की भरपाई नहीं कर सकते हैं लेकिन हम आपके दुख के साझीदार बन सकते हैं और हार्दिक उम्मीद करते हैं कि आपके टूटे दिल और छलनी आत्मा को सुकून मिलेगा।

(शाह आलम खान का लेख टेलीग्राफ से साभार, अनुवाद- शुभम रौतेला)

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