Rahul and Modi

लोकसभा चुनाव 2024 : दांव पर सबकी साख

लोकसभा चुनाव शुरु हो चुके हैं यह चुनाव निश्चित रूप से सत्ता पक्ष, विपक्ष दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह चुनाव जहा एक ओर पिछले 10 साल से सत्ता में रही भाजपा के लिए अपनी साख और विश्वसनीयता बचाने का सवाल है तो वहीं प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के लिए अपनी खोई प्रतिष्ठा,विश्वसनीयता और साख हासिल करने का प्रश्न बन चुका है।

सत्ता पक्ष यानि भाजपा का पूरा दारोमदार प्रधानमंत्री मोदीजी पर निर्भर है। इस चुनाव में मोदीजी की साख ही दांव पर लगी हुई है। पूरे चुनाव प्रचार में मोदी की गारंटी का मतलब ही उनकी साख है। जहां भाजपा पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को भुनाने के उद्देश्य से मोदी की गारंटी को प्रचार का मुख्य माध्यम और टैग लाइन बनाकर मैदान में उतरी है । वहीं दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस का पूरा जोर सरकार की विफलताओं और दी जा रही गारंटी को असत्य और जुमला के रूप में प्रचारित करने में है। कांग्रेस के ध्वज वाहक इस बार भी राहुल गांधी और प्रियंका ही हैं।

मोदीजी लगातार भाजपा को 370 और गठबंधन को 400 पार का नारा बुलंद किए हुए हैं। यह कैसे हो पाऐगा यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। इसके लिए दक्षिण के राज्यों में भाजपा को बड़ी जीत हासिल करनी होगी जो एक बड़ी चुनौती है। हिन्दी प्रदेशों में तो भाजपा मजबूत दिखती है जहां तो पहले ही लगभग पूरी सीटें उसके पास है। पिछले दो चुनाव से भाजपा ने हिन्दी पट्टी में अपनी साख और सीटों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी की है जो अपने चरम पर पहुंच चुकी है।

दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस अपने न्यूनतम स्तर पर है। इस चुनाव में भाजपा के सामने जहां उत्तर भारत, विशेषकर हिन्दी पट्टी में अपनी अपराजेय छवि को कायम रखने की बड़ी चुनौती है तो दक्षिण भारत या कहें गैर हिंदी भाषी राज्यों में कामयाबी हासिल करने की चुनौती है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के सामने तो पूरे उत्तर भारत में खोने को भले कुछ न हो मगर अपनी खोई साख, और विश्वसनीयता हासिल करने के लिए काफी सीटें अर्जित करने की चुनौती तो है। इसके साथ ही कुछ हिंदी और गैर हिंदी राज्यों में क्षेत्रीय दलों के सामने भी अपनी साख बचाने की चुनौती है।

मतदाताओं की बात करें तो मतदाताओं के लिए 2024 का चुनाव एक तरह से पूरा खुला यानि ओपन इलेक्शन है जिसमें आम जन से कुछ भी छुपा नहीं है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो आम मतदाता से छुपा-ढंका हो। सत्ताधारी पक्ष की वादाखिलाफी हो, इलेक्ट्रोरल बॉन्ड की धांधली हो या ईवीएम की संदिग्धता, ईडी, सीबीआई या अन्य संस्थाओं के दुरुपयोग हों या विधायकों की खरीद फरोख्त कर सरकार गिराने बनाने के खेल, कुछ भी छुपा नहीं है।

दूसरी ओर विपक्षी दलों का दल बदल कर सरकार गिराने बनाने के षडय़ंत्र हों,अपने मातृ संगठनों और मतदाताओं के साथ विश्वासघात हो या मतदाताओं से संपर्क के लिए की गई लम्बी-लम्बी यात्राएं , सब कुछ ओपन है । ‘सबको पता है जी’ की तर्ज पर मतदाता के सामने सबका चाल, चरत्रि और चेहरा उजागर है ।

इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद से आज तक देश के मतदाता ऐसे कठिन और निर्णायक अवसरों पर खरे उतरते आए हैं। यह चुनाव राजनैतिक दलों की साख के साथ-साथ मतदाताओं की ऐतिहासिक भूमिका, विवेक और साख के लिए भी चुनौती बन पड़ा है। अब सब कुछ मतदाताओं को ही तय करना है ।

बाजी कौन जीतेगा ये परिणाम ही तय करेंगे मगर यह चुनाव देश के लिए एक महत्वपूर्ण चुनाव साबित होंगे जिसमें सभी की साख दांव पर है।

(जीवेश चौबे स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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