महाराष्ट्र: राजनीति का भसड़ और भसड़ की राजनीति

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार राज्यों में कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों को गिराने के लिए जो घटिया रणनीति अख्तियार की, संघ-भाजपा खेमे में उसे ‘ऑपरेशन लोटस’ के नाम से प्रतिष्ठा हासिल है। ऑपरेशन लोटस के रणनीतिकारों में प्रदेश स्तर के नेता, कार्यकर्ता और पदाधिकारी नहीं बल्कि इसमें पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, केंद्र सरकार के बड़े और मोदी-शाह के विश्वसनीय कैबिनेट मंत्री शामिल हैं। सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स और प्रमुख पदों पर बैठे कई वरिष्ठ नौकरशाह भी इस टीम में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

ऑपरेशन लोटस के तहत मध्य प्रदेश-कर्नाटक में कांग्रेस सरकार गिराने में मोदी की टीम को सफलता भी मिली। राजस्थान में तमाम कोशिशों के बाद अशोक गहलोत सरकार को गिराकर बीजेपी सरकार बनाने की कोशिश नाकाम रही। लेकिन पांच साल पूरे होने के बाद कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जनता ने मोदी की रणनीति का धुंआ निकाल दिया। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले ही ऑपरेशन लोटस के रणनीतिकार बदहवास नजर आ रहे हैं।

अब बारी महाराष्ट्र की है। राज्य में सत्तारूढ़ कुनबे में राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी है। क्योंकि अब एक ही विधानसभा सीट पर तीन-तीन दावेदार हो गए हैं। फिलहाल, लंबे समय से बीजेपी महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की सरकार को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। पहले शिवसेना से एकनाथ शिंदे को तोड़कर एमवीए सरकार गिराई गई। अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को तोड़कर अजित पवार को महाराष्ट्र सरकार में उप-मुख्यमंत्री और उनके साथ 8 विधायकों को मंत्री बनाया गया है। पीएम मोदी ने ऑपरेशन लोटस तो एनसीपी का किया लेकिन अब यह दांव उल्टा पड़ गया है। दरअसल, शिवसेना और एनसीपी से विधायकों को तोड़कर महा विकास अघाड़ी सरकार गिराकर बीजेपी ने उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी को संख्या बल के लिहाज से तो किनारे लगा दिया। लेकिन इस राजनीतिक दुर्घटना से महाराष्ट्र का सत्ता समीकरण तो बदल गया लेकिन सामाजिक समीकरण और जमीनी सच्चाई पहले जैसी ही है।

बीजेपी इसे शरद पवार और एनसीपी की कमजोरी कह कर प्रचारित कर रही है। लेकिन महाराष्ट्र में मोदी-शाह लंबे समय से कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी को कमजोर करने में लगे थे। इस ऑपरेशन की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी।

महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस की पटकथा और पीएम मोदी का नाटक

27 जून को भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) पर 70,000 करोड़ रुपये के घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था। 2 जुलाई को, भाजपा ने कथित सिंचाई घोटाले के मुख्य आरोपी राकांपा नेता अजित पवार को गले लगा लिया और उन्हें उप मुख्यमंत्री बना दिया। महाराष्ट्र की राजनीति में पवार जूनियर और दादा के नाम से मशहूर अजित पवार एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना की सरकार में भाजपा के देवेन्द्र फड़णवीस के साथ यह पद साझा करेंगे।

यह बिल्कुल बीजेपी की शैली के अनुरूप है। पहले विपक्षी नेताओं पर धन के दुरुपयोग का आरोप लगाकर उन्हें कमजोर करें और बाद में उन्हीं नेताओं को अपने पाले में लाएं। जिस बेशर्मी के साथ इसे महाराष्ट्र में अंजाम दिया गया, उससे सत्ता प्रतिष्ठान हैरान है। पिछले साल हुए शिवसेना विभाजन पर अंतिम फैसले का अभी भी इंतजार है। ठीक एक साल पहले, भाजपा ने शिवसेना से उसका नाम, चुनाव चिह्न छीनकर उसे घायल कर दिया था।

एकनाथ शिंदे से बीजेपी को नहीं हो रहा राजनीतिक फायदा

लेकिन एकनाथ शिंदे के राजनीतिक प्रदर्शन को देखकर बीजेपी को समझ में आ गया कि आगामी लोकसभा चुनाव में उसे अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने वाले हैं। इसलिए हताशा और हड़बड़ी में बीजेपी ने दूसरे ऑपरेशन लोटस को अंजाम दिया। ऐसा नहीं है कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार की स्थिरता के लिए अजित पवार एंड कंपनी के समर्थन की आवश्यकता थी। शिंदे के साथ एक साल बिताने के बाद, भाजपा को यह अहसास हो गया है कि पूर्व शिवसेना के लोग अपेक्षित राजनीतिक लाभ नहीं दे पाएंगे। इस अहसास के कारण ही राज्य सरकार पुणे और मुंबई सहित 200 से अधिक नगर पालिकाओं और 23 बड़े नगर निगमों के चुनावों में देरी कर रही है।

अजित पवार बहुत दिनों से पार्टी छोड़ने के लिए तैयार थे। एनसीपी अध्यक्ष न बन पाने के कारण उन्होंने पूरी तरह से बीजेपी के साथ जाने का मन बना लिया। अजित 1999 से अपने चाचा के लिए समस्या बने हुए हैं, जब शरद पवार ने राकांपा की स्थापना की थी। वह राकांपा में लगातार नाराज चल रहे थे क्योंकि पार्टी प्रमुख ने उन्हें सभी प्रमुख पदों से दूर रखा था। और पार्टी के प्रति उनमें समर्पण की कमी के कारण उन्हें हमेशा महत्वपूर्ण पदों से वंचित रखा गया। अपने चाचा के विपरीत, अजित में राजनीतिक दूरदर्शिता की कमी है। शरद पवार हमेशा नपे-तुले और सधे कदम उठाते हैं जबकि अजित पवार में यह सब गुण नहीं है।

अजित के स्वभाव को जानने के बाद भाजपा लंबे समय से उन्हें तलाश रही थी। बीजेपी की योजना है कि अजित पवार का उपयोग वह शरद पवार को हराने के लिए करेगी। बीजेपी के लिए महाराष्ट्र में राजनीतिक बढ़त की राह में शरद पवार बाधा बन रहे थे। इस बाधा को दूर करने के लिए उसकी निगाह अजित पवार के कथित सिंचाई घोटाले में उनकी भूमिका थी। अब अजित पवार के पास दो विकल्प थे एक- जांच और जेल, दूसरा- बीजेपी के साथ आना। अजित पवार ने दूसरा विकल्प चुना।

बीजेपी की रणनीति में अजित पवार का अलग होना न केवल एनसीपी को कमजोर करता है, बल्कि एकनाथ शिंदे को भी स्टैंड-बाय मोड़ पर रखता है, साथ ही विपक्षी एकता पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा करता है।

लेकिन राजनीति के इस बेतुके रंगमंच पर अभिनय शुरू हो गया है। अजित पवार को लाकर बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को नियंत्रण में रखने और लोकसभा में ज्यादा सीटे जीतने की आशा लगा रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर विधायकों के विरोध, असंतोष और राजनीतिक टकराव की संभावना ने केवल बलवती हुई है बल्कि असंतुष्टों के आक्रोश के स्वर फूट पड़े हैं।

एकनाथ शिंदे, शरद पवार और अजित पवार का अपने विधायकों के साथ बैठक

बुधवार को महाराष्ट्र एक बार फिर सियासी घमासान का साक्षी बनने जा रहा है जब एनसीपी प्रमुख शरद पवार अपने समर्थकों के साथ बैठक कर आगे की रणनीति पर विचार करेंगे वहीं एकनाथ शिंदे और अजित पवार अपने समर्थक विधायकों को मनाने के लिए बैठक कर रहे हैं।

शरद पवार के प्रति एनसीपी कार्यकर्ताओं में सहानुभूति की लहर है। दक्षिण मुंबई में शरद पवार के आवास सिल्वर ओक के बाहर एक पार्टी कार्यकर्ता को एक बैनर ले जाते हुए देखा गया, जिस पर लिखा था: “83 वर्षीय योद्धा अकेले लड़ाई लड़ रहे हैं।”

जबकि महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं ने मंगलवार को राकांपा अध्यक्ष शरद पवार के प्रति एकजुटता बढ़ाने का संकल्प लिया, पार्टी ने इस बात पर भी जोर दिया कि यह राज्य में अपने आधार को बढ़ाने का समय है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम अशोक चव्हाण ने कहा कि अजित पवार की बगावत के बाद जो जगह खाली हुई है, वह कांग्रेस को मौका देती है।

एकनाथ शिंदे के विधायक नाराज, भविष्य की चिंता

अजित पवार सहित राकांपा के नौ विधायकों के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल होने के दो दिन बाद, एक सेना मंत्री और कई शिवसेना विधायकों ने सार्वजनिक रूप से इस घटनाक्रम पर अपनी नाराजगी व्यक्त की और अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा को सरकार में शामिल करने की आवश्यकता पर सवाल उठाया। पार्टी विधायकों के भीतर नाराजगी की बढ़ती घटनाओं ने शिंदे को बुधवार को विधायकों और पार्टी के अन्य नेताओं की बैठक बुलाने के लिए मजबूर किया है।

मंगलवार को शिव सेना के मंत्री शंभुराजे देसाई ने यहां तक कह दिया कि अगर शिव सेना यूबीटी अध्यक्ष कोई प्रस्ताव देते हैं या उन तक पहुंचते हैं तो शिंदे के नेतृत्व वाली सेना भी सकारात्मक प्रतिक्रिया देगी।

देसाई ने कहा, “ये सभी काल्पनिक सवाल हैं। लेकिन अगर उद्धव जी की ओर से कोई भी हमारे पास पहुंचता है तो हम जवाब देंगे। अगर हमें कोई प्रस्ताव मिलता है तो हम सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगे।”

शिवसेना की कोर कमेटी ने भी मंगलवार शाम मंत्री दीपक केसरकर के रामटेक बंगले पर बैठक की और मुद्दों पर चर्चा की। बैठक में कई विधायकों और मंत्रियों ने अपनी नाराजगी व्यक्त की। शिवसेना विधायक संजय शिरसाट ने यहां तक पूछा कि अगर “सब कुछ बलिदान करना है” तो सत्ता में रहने का क्या मतलब है।

विधायक भरत गोगावले ने कहा कि शिंदे के नेतृत्व वाली सेना में असंतोष है लेकिन परेशान होने का कोई मतलब नहीं है और वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि “लोग कुछ हद तक परेशान हैं, क्योंकि अब हमें अपनी रोटी बांटनी पड़ेगी। पहले हमें एक पूरी रोटी मिलती थी, अब हमें आधी से संतुष्ट होना पड़ेगा और जिन्हें आधी मिलने वाली थी, उन्हें चौथाई से ही संतोष करना पड़ेगा।”

जमीन पर शिवसेना और अजित पवार के विधायकों मे होगा संघर्ष

अजित पवार के एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल होने से सत्ता समीकरण भले ही बीजेपी के पक्ष में आ गया है। लेकिन महाराष्ट्र की जमीन पर शिवसेना (शिंदे गुट), बीजेपी और अजित पवार के विधायकों में संघर्ष शुरू हो गया है। अजित पवार के शपथ समारोह में भले ही शिवसेना विधायकों ने उनका स्वागत किया लेकिन अतीत में शिंदे गुट के कई विधायकों का एनसीपी के विधायकों के साथ जमीनी संघर्ष होता रहा है। अब वे सब एक ही सरकार में हैं। ऐसे में चुनाव में टिकट कटने और भितरघात की आशंका से शिंदे गुट के विधायक परेशान हो गए हैं।

अजित पवार के साथ जिन आठ मंत्रियों ने शपथ लिया है उनमें से अधिकांश वहां से चुनाव जीते हैं जहां शिवसेना के प्रत्याशी भी चुनाव जीतते रहे हैं। ऐसे में आने वाला विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ ही शिंदे गुट और अजित पवार के लिए काफी मुश्किलों वाला होगा।

2019 के विधानसभा चुनावों में, एनसीपी के नौ विधायकों में से कम से कम पांच का अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवारों के साथ सीधा मुकाबला था और तीन एनसीपी विधायकों का शिवसेना उम्मीदवारों के साथ सीधा मुकाबला था।

वे पांच निर्वाचन क्षेत्र जहां राकांपा और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई थी, वे बारामती हैं, जहां अजित पवार ने भाजपा के गोपीचंद पडलकर को हराया; उदगीर, जहां राकांपा के संजय बनसोडे ने भाजपा के अनिल सदाशिव कांबले को हराया; अमलनेर, जहां राकांपा के अनिल पाटिल ने भाजपा के शिरीष चौधरी को हराया; बीड परली, जहां राकांपा के धनंजय मुंडे ने भाजपा की पंकजा मुंडे को हराया, और अहेरी, जहां राकांपा के धर्मरावबाबा आत्राम ने भाजपा के अंबरीश्रोद आत्राम को हराया।

शिंदे के नेतृत्व वाली सेना के कई विधायकों और नेताओं को डर सता रहा है कि कहीं गठबंधन की दशा में उनके टिकट काट न दिए जाएं।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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